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अष्टविध ब्रह्मचर्य क्या है व इसका महत्त्व

November 22, 2020 By Surendra Mahara 1 Comment

अष्टविध ब्रह्मचर्य क्या है व इसका महत्त्व Ashtang Yog Brahmacharya Importance In Hindi

Table of Contents

  • अष्टविध ब्रह्मचर्य क्या है व इसका महत्त्व Ashtang Yog Brahmacharya Importance In Hindi
      • ब्रह्मचर्य की वास्तविक परिभाषा :
    • Ashtang Yog Brahmacharya Importance In Hindi
      • अष्टविध ब्रह्मचर्य क्या है :
      • ब्रह्मचर्य का महत्त्व :

Ashtang Yog Brahmacharya Importance In Hindi

ब्रह्मचर्य की वास्तविक परिभाषा :

ब्रह्मचर्य का विस्तृत अर्थ तो यह निकलता है कि अपनी दसों इन्द्रियों ( पाँचों कर्मेन्द्रियों व पाँचों ज्ञानेन्द्रियों ) सहित मन व बुद्धि को सांसारिक विषयों से हटाकर, माया से सर्वथा दूर कर परब्रह्म में लीन करना।

मानव के षड्रिपुओं में काम को प्रथम व अति भयावह शत्रु के रूप में गिना गया है, इसलिये ब्रह्मचर्य में इससे बचने पर अत्यधिक ज़ोर दिया जाता है। ब्रह्मचर्य को अविवाहितावस्था से जोड़कर न देखें, यह आजीवन पालन करने योग्य विषय है।

लिंगपुराण के अनुसार ब्रह्मचर्य में मन, वाणी, कर्म व शरीर से मैथुन का सर्वत्याग कर दिया जाता है। स्त्री-आकर्षण से दूर रहना अति सरल है, मन में विचार उपजने व आने से रोकें, आ गया हो तो तुरंत ही उसकी निरर्थकता के बोध से उसे निकाल बाहर फेंकें। जो स्त्रियाँ इस आलेख को पढ़ें वे आलेख में प्रयुक्त ‘स्त्री’ शब्द के स्थान पर ‘पुरुष’ शब्द पढ़ें।

सर्वप्रथम इस वास्तविकता को स्वीकार कर लें कामेच्छा स्वाभाविक अथवा प्राकृतिक नहीं होती, न ही किसी प्रकार की जैविक अथवा मनोवैज्ञानिक जरूरत है यह उस दिशा में सोचकर जान-बूझकर ‘की जाती’ है, सोचोगे नहीं तो होगी नही जबकि भूख-प्यास नैसर्गिक इच्छाएँ हैं क्योंकि भोजन-पान प्राकृतिक आवश्यकताएँ हैं।

Ashtang Yog Brahmacharya Importance In Hindi

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Ashtang Yog Brahmacharya

अष्टविध ब्रह्मचर्य क्या है :

दक्षसंहिता में आठ घटकों वाला ब्रह्मचर्य स्पष्ट किया गया है (आठों शीर्षकों के बाद इस आलेख के लेखक द्वारा उनमें आधुनिक काल के अनुसार विवरण दर्शाया गया है कि अष्टविध Brahmacharya का पालन सटीकता से कैसे करें..

1. कामभाव से स्त्रियों के स्मरण से बचें :

जैसे कि ‘क्या लग रही है’ जैसे कामुक भाव त्यागें तथा ग़ैर-इरादतन रूप से भी किसी स्त्री का चित्र अथवा नाम दिख जाये तो कामुक दिशा में आगे न बढ़ें। वैसे भी किसे पता कि पूर्वजन्म में वह आपकी माँ रह चुकी हो। कोई सम्बन्ध रहा हो अथवा न रहा हो किन्तु यह सत्य गाँठ बाँध लें कि कामवासना को पुण्यभाव अथवा पवित्र विचार नहीं कहा जा सकता। ‘विवाह करें न करें’ आलेख पठनीय है।

देवर्षि नारद दो जन्म पूर्व एक गन्धर्व थे जो शृंगार रस से भरे गीत गाते हुए सभा में पहुँचे थे जिससे अभिशापित होकर उपबर्हण के रूप में पृथ्वी पर जन्मना पड़ा परन्तु सुसंगति के प्रभाव में उनमें हरिभक्ति का जागरण हुआ एवं वे आगामी जन्म में ब्रह्मदेव के मानसपुत्र नारद के रूप में उत्पन्न हुए।

2. उनके (स्त्रियों के) अंग-प्रत्यंग, सौन्दर्य इत्यादि वर्णन से बचें :

‘फ़िगर साइज़ इत्यादि जैसे संकीर्ण शब्दों का विचार व संवाद न करें, मल-मूत्र से भरे स्त्री-पुरुष अंगों, माँस के लोथड़ों, रक्त व दुर्गन्ध से भरी काया को कोई सुन्दर या आकर्षक कैसे कह सकता है ? अवश्य ही वह कामान्ध ही होगा जिसे ये सब यथार्थताएँ दिखायी नहीं देतीं। स्तनों का महत्त्व ‘नवजात’ को दूध पिलाने तक सीमित समझो.. उसके विचार से भी आप में माता-सन्तान का भाव आना चाहिए।

अपने पुण्यों के बल से स्वर्ग प्राप्त कर चुके देवता भी अप्सराओं के नृत्य में समय का नाश करके पुण्यनाश करते हुए स्वर्ग से पतित होते रहते हैं। कामभाव, कामुकता इत्यादि तुच्छ व पाप पूर्ण विचारों की निरर्थकता व दोषपूर्णता का बोध हो गया तो आपको स्वयं ही इन विषयों से घृणा होने लगेगी।

3. उनके साथ कामभावपूर्वक हास्य-विनोद न करें :

मज़ाक में भी ‘गज़ब ढा रही हो आज माल लग रही’ जैसे तुच्छ वाक्य न बोलें। ऐसे धारावाहिक, फ़िल्में, कॉमर्शियल इत्यादि न देखें-सुनें जहाँ कामेडी अथवा मनोरंजन के नाम पर सेक्सुअल कण्टेण्ट का समावेश किया जा रहा हो, वहाँ से तुरंत उठा जाया करें।

4. कामभाव से उन्हें न देखें :

कितनी आकर्षक मोहक’ जैसी दृष्टि से न देखें, क्या पता पिछले जन्म में वह आपकी बहन रही हो। ‘न्यूनतम वस्त्र अधिकतम विक्रय जैसी धारणा बनाकर आजकल कोई वस्तु बेचने के लिये भी अर्द्धनग्न स्त्री के हाथ में उस उत्पाद को दर्शाया जा रहा है, ऐसे विज्ञापनों का न देखें, यदि अनचाहे में दिख भी गये हों तो उनका विचार न करें। ‘मन से कामभाव जड़ से मिटाने के उपाय’ लेख पढ़ सकते हैं।

धूर्त कम्पनियों के मालिक मानव-मन में स्त्री-पुरुष आकर्षण पनपाने उकसाने व बढ़ाने के माध्यम से अपने ‘गुणवत्ता विहीन’ उत्पादों को सफलतापूर्वक बेच लेते हैं क्योंकि मानव-मन सेवा अथवा उत्पाद की आन्तरिक गुणवत्ता के बजाय बाहरी रूपरंग व दृश्य पर मोहित होकर वह निर्णय कर बैठता है जो वास्तविकताओं का बोध होने पर वह नहीं करता।

5. एकान्त में उनके साथ कामबुद्धि से संवाद न करें :

तथाकथित Chating या किसी सभ्य कारण वश भेंट के भी दौरान उसके कहने पर या अपनी ओर से कोई वासनाजनित संवाद न करें, वह स्वयं आरम्भ करे तो उसे रोकें, उठ जायें। क्या पता यही आपकी बेटी रही हो। विभिन्न आनलाइन मैसेन्जर्स को सदा-सदा के लिये अन-इन्स्टाल कर दें, अन्यथा ग़ैर-इरादतन रूप से आपको मिल रहे 18 + जोक, एडल्ट जोक्स व अन्य वासानापूर्ण विषयसामग्रियों से कैसे बचेंगे ?

नयीचेतनाडाटकाम पर ‘ओफ़लाइन सुख से रहने के उपाय जरुर पढ़ें। जिससे जो भी धर्मसंगत कार्य हो उसे डायरेक्ट फ़ोन काल (सामान्य Voice Call) से संवाद करें। कोई सूचना पहुँचानी हो तो ओफ़लाइन संदेश SMS तो हैं ही जिनके लिये किसी पक्ष हेतु ओनलाइन होने की आवष्यकता भी नहीं होती व ये तुरंत पहुँचते हैं. साधारण फ़िएचर मोबाइल में से भी। यदि कार्यालयीन आवश्यकता से कोई फ़ाइल भेजनी प्राप्त करनी हो तो ईमेल का प्रयोग करें।

6. कामासक्त होकर उन्हें प्राप्त करने की इच्छा न करें :

काश ! मिल जाये’ जैसी कामनाएँ कभी न करें, इस काम ने बड़े-बड़ों का सर्वनाश किया है। ‘मन को नियन्त्रण में कैसे करें’ लेख पढ़ें।

7. उनके साथ बैठने घूमने का निश्चय न करें :

एक काफ़ी मेरे साथ’ जैसे भाव मन में क्यों ला रहे हो ? इससे अच्छा उस दुखियारी मायी को खाना खिला आओ जो बस स्टैण्ड पर बैठी यात्रियों से कुछ मिलने की बाट जोहती रहती है।

8. प्रत्यक्ष समागम मैथुन न करें :

अपनी मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, आध्यात्मिक इत्यादि ऊर्जाओं को व्यर्थ के कामकृत्य में गँवाने के बजाय जीवन में कुछ सकारात्मक कर लो कि यह समय व ध्यान भी सदुपयोग हो जाये। वृक्षारोपण व पशुसेवा में ऊर्जा लगाओ। ‘जीवन की सार्थकता के 41 मार्ग’ तो अवश्य पठनीय है।

ब्रह्मचर्य का महत्त्व :

1. ब्रह्मचर्य परब्रह्म का ही रूप है. जीवात्मा का सर्वस्व पवित्र होने लगे तो परमात्मा भी उसे सहर्ष अंगीकार करने के लिये आगे बढ़ने लगता है. जीवात्मा व परमात्मा एकीभाव व अद्वैत् स्थिति को प्राप्त होने लगते हैं.

2. इसके द्वारा मोक्षरूप परमगति प्राप्त होती है, फिर जन्म-जन्मान्तरों तक शरीरों में भटकना व पीड़ाओं के भँवर में घिरना नहीं पड़ता.

3. पुराणानुसार ब्रह्मचर्य सर्वश्रेष्ठ तप है.

4. मानव-जन्म तो मोक्ष का स्वर्णिम अवसर है जिसे पाने के लिये देवता भी मचलते रहते हैं किन्तु मानव अपनी इन्द्रियों को व्यर्थ के नष्वर विषयों में लगाकर प्रतिदिन कुछ मिनटों, घण्टों से लेकर कई प्रहरों तक का समय नाश कर देता है.

जब तक कोई तर्कसंगत आवश्यकता अथवा धर्मसंगत स्थिति अथवा औचित्यपूर्ण स्थिति अथवा आपातकालीन स्थिति न हो तब तक चैबीसों घण्टे-बारहमासी आजीवन अपनी समस्त इन्द्रियों को बस प्रभु में लगायें रखें, दिनचर्या में उन कार्यों में कटौती करें जो आपके द्वारा करने बहुत आवश्यक नहीं हैं.

परमात्म विषय बातें पढ़ें, सुनें, देखें, करें. परमात्मा के प्रत्यक्ष अंश पशु-पक्षियों की सेवा में रत रहें, सामूहिक व एकान्त रूप में भजन-कीर्तन में हृदय से डूबे रहें। संसार में कुछ नहीं रखा। उसे प्राप्त करने की ओर आगे बढ़ें जो शाष्वत् हो, जो अनन्त परमानन्द का स्रोत है।

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Comments

  1. Rv says

    November 27, 2020 at 2:21 pm

    Gud Content

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