बच्चों में अच्छे संस्कार कैसे सँजोयें ? 20 टिप्स How to Give Good Values Children In Hindi
कहा जाता है कि आजकल बच्चे बचपन में ही बिगड़ जाते हैं लेकिन कारणों व निवारण की बात कोई नहीं करना चाहता। ग़लत परवरिश के ही कारण बच्चे बिगड़ते हैं क्योंकि घर के भीतर अपने माता-पिता व बाहर संगी-साथियों व अन्य लोगों को वे वैसा ग़लत करते देखते हैं। इसलिये निम्नलिखित सीधे-सरल नियमों का पालन करें तो काफी आसानी से बच्चों के मन में सुसंस्कार बिठा सकते हैं. तो आइये देखते है की आखिर क्या है वह आसान सरल नियम :
How to Give Good Values Children In Hindi
1. स्वयं आदर्श प्रस्तुत करें :
बच्चों को दिखावे के लिये केवल उनके सामने नहीं बल्कि भीतर से सुधरें। वाणी अपषब्दों से रहित हो, नारी की बात आते ही विनम्रता का भाव आये। साधारण हँसी-ठिठोली व अपमान का अन्तर बच्चों के भी समझ आये। परीक्षा में मिले अंकों पर ज़ोर देने, स्कोर्स अथवा अन्य प्रकारों से दूसरों से तौलने जैसी मूर्खताएँ करनी स्थायी रूप से बन्द कर दें।
इसके बजाय पूछें कि क्या आज पक्षियों/गिलहरियों को दाना-पानी रखा ? आज क्या कुछ अच्छा किया ? आज किसी निर्धन अथवा बेसहारा की सहायता की ? आज किसी का दिल तो नहीं दुखाया ? आज कुछ अच्छा किया ? आज कुछ बुरा किया या नोटिस किया ? आगे से सुधार करना है।
2. सीमा को कभी न लांघे :
सीमा में या असीमित ग़लत तो ग़लत ही होता है यह बात बच्चो को समझायें क्योंकि बच्चे, किशोर व बड़े भी यह बात दोहराते पाये जाते हैं कि लिमिट में पीओ, लिमट में खाओ तो शराब व गुटका ठीक है। उन्हें वास्तविकता समझायें कि ग़लत काम ग़लत ही होता है, कम करोगे तो कम नुकसान लेकिन नुकसान तो अवश्य होगा. चाहे वह अभी दिखायी न दे।
वैसे भी चरित्र में एक बार भी लगा दाग आसानी से छुड़ाये नहीं छूटता, फिर भी जाने-अनजाने, बहकावे में अगर कोई ग़लती-भूल-चूक हो भी गयी हो तो मौखिक व लिखित संकल्प के साथ आगे बढ़ें कि न तो उस ग़लती को कभी दोहराना है, न ही कोई नया अनैतिक करना है।
3. बच्चो को टोकते समय रीज़न भी बताये :
बच्चे को रोकते-टोकते समय यथासम्भव अधिक से अधिक शारीरिक, धार्मिक, वैज्ञानिक, मानसिक, आध्यात्मिक इत्यादि कारण गिनायें एवं समझायें कि यह इतना हानिप्रद है इसलिये मैं भी नहीं करता क्योंकि मैं एक अच्छा इन्सान बनना चाहता हूँ। किसी बात को दबाकर रखने से यथासम्भव बचें, अन्यथा बच्चे के मन में घर कर गया वह कुतूहल उसकी जीवन-डोर को ग़लत दिशा में मोड़ सकता है।
ख़ुद ठोकर खाकर सुधरने से बेहतर होगा कि ‘क्या कभी नहीं करना है’ नामक ज्ञान-दीप लेकर चलें ताकि ठोकर पड़के सीखने की आवश्यकता ही न पड़े। बच्चे और अपनी किसी भी ग़लत इच्छा को मारने से बेहतर होगा कि जड़ से मिटा दें ताकि भविष्य में अनुकूल स्थितियाँ पाकर वह इच्छाधारी नागिन जैसे अपना फ़न न उठा सके। जड़ से न उखड़े व न मिटे खरपतवार किसी प्रसुप्त बीज जैसे होते हैं जो ‘अपना टाइम आयेगा’ अनुकूल समय आने पर फल-फूल कर खड़ी फसल को पूरी तरह तबाह करने लायक रक्तबीज जितने शक्तिशाली हो जाते हैं।
4. गलत आदतों को शुरू में ही रोक दे :
“हर चीज़ को एक बार टेस्ट करके देखो” वाली किशोरावस्थाजनित आदत को शुरु होने से पहले की दफ़न कर दें; समझायें कि चरित्र और सिद्धान्तों के बिना जीवन कोई मानवीय जीवन नहीं होता, इसलिये आदर्शवादी बनो, ग़लत को न तो कभी सोचो, न करो, न करने दो, न ही किसी प्रकार उसे प्रेरित करो, न ही किसी के उकसावे में आओ। किसी भी कुतूहल अथवा इच्छा को दबाना नहीं है, उसे उखाड़कर सामने लाकर जड़सहित जला डालना है।
5. लालच और धमकावे से रखे दूर :
कोई बात मनवाने अथवा किसी बात से रोकने के लिये क्रमशः ललचाने व धमकाने से यथासम्भव बचकर चलें, अन्यथा यह दुधारी तलवार आपके व उसके पारस्परिक एवं दूसरों से सम्बन्धों सहित समूचे जीवन को तहस-नहस कर सकती है। उदाहरणार्थ ” बच्चे को मोबाइल देते रहे तो वह उसी में डूबकर आँख़ें, दिमाग व समय ख़राब करने में लगा रहे एवं Mobile देने से जब मना किया तो घर छोड़कर भाग गया/आत्महत्या कर ली“ जैसे समाचार शायद सुने ही होंगे.
वैसे भी ऐसी स्थितियाँ ‘लिमिट में करो तो सही’ वाली ग़लत मानसिकता की भी पैदाइश होती हैं। ‘Limit’ में भी हानि तो होगी ही, चाहे वह न दिखे लेकिन भीतर ही भीतर अवश्य रहेगी तथा शरीर जैसे अवचेतन में जमा होते-होते कब अनलिमिटेड होकर असर दिखाने लगी यह पता भी नहीं पड़ेगा एवं स्थिति उस समय अनियन्त्रणीय जैसी लग सकती है। समस्या बढ़े या न बढ़े ग़लत को लिमिट में करना या करने देना भी ग़लत ही होता है।
6. गलत – सही का अंतर बताये :
अच्छे-बुरे का अन्तर समझाने के लिये अपने आसपास, टी.वी., समाचार-पत्र, समाज इत्यादि जहाँ कुछ अनुचित दिखे बच्चों को तुरंत टोको और उससे दूर रखने के लिये हो सके तो नुकसान समझाओ। उसके सामने अच्छे की बढाई करो।
7. अहसान न दिखाए :
उनको पैदा करना आपकी इच्छा थी और समुचित पालन-पोषण आपका उत्तरदायित्व है; इसलिये ”हम माँ-बाप/बड़ों ने तुम पर एहसान किया है“ ऐसा न तो सोचें, न ही कभी किसी से बोलें।
8. स्पष्टवादी बनाये :
अपने बच्चो को ऐसी शिक्षा दे ताकि आपके बच्चे स्पष्टभाषी बन पायें; उन्हें पीठ पीछे कुछ और, सामने कुछ और जैसा आचरण त्यागें के लिए कहे. वह जैसे सामने व्यवहार करते है पीठ पीछे भी वैसा ही व्यवहार करने के लिए कहे.
9. नैतिक शिक्षा दे :
नैतिक शिक्षा बचपन से बुढ़ापे तक अपनाने के लिये होती है, इसलिये धार्मिक चैनल्स, शिक्षाप्रद बाल-कथाएँ, पंचतन्त्र की कहानियाँ, जातक कथाएँ सुनें, देखें, पढ़ें, पढ़ायें एवं स्वयं से रुचि ले-लेकर चारित्रिक मूल्यों की चर्चा घर के भीतर-बाहर सबसे करें एवं बच्चों को उन चर्चाओं में भागीदार बनायें। नियम जैसा बना लें कि साल के कम से कम 350 दिन हर दिन कम से कम एक-दो ऐसी प्रेरक कहानियाँ सुनेंगे-सुनायेंगे एवं वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उन्हें उपयोग में लाना सिखायेंगे।
10. सुविचार लिखे और लिखवाये :
घर में बारम्बार नज़र पड़ने वाले कम से कम चार स्थानों को चिह्निन करें जहाँ आप रंग-बिरंगे पोस्टर-साइज़ कागज़ लगायें एवं तीन में रोज़ कम से कम एक-एक सूक्ति, शास्त्रोक्त वचन, महात्मा-प्रवचन, प्रेरक वाक्य लिखें एवं बच्चे से उसका अर्थ पूछें एवं विस्तृत विचार-विमर्श करें तथा चौथे पोस्टर पर उसे पेन्सिल से रोज़ ऐसा ही कुछ अच्छा व सार्थक लिखने को कहें।
11. फ़ूहड़ कॉमेडी से दूर रखे :
फ़ूहड़ कॉमेडी करने/देखने से दूर रहें. फ़ोन का प्रयोग भी बहुत आवश्यकता पड़ने पर ही करें एवं उसे छोटे व बड़े सब बच्चों की पहुँच से दूर ही रखा करें।
12. शुद्ध शाकाहारी रहें :
विशुद्ध शाकाहारी रहें एवं हर प्रकार की सब्जी-भाजी, तरकारी घर में बनवायें एवं स्वयं भी स्वाद लेकर खायें व बच्चों को भी खिलायें, यदि ठीक से न बना पायें तो किसी सक्षम व्यक्ति को बुलाकर उससे सीखें ताकि बच्चे आजकल के बड़ों जैसे ‘ये भाजी मुझे पसन्द नहीं’ कभी न बोल सकें एवं प्रकृति में सुलभ सभी पोषक उन्हें आजीवन सरलता से मिलते रहें।
13. सेल्फ – डिपेंडेंट बनाये :
उन्हें साइकिल चलाने व अधिक से अधिक पैदल चलने, अपना कार्य स्वयं करने के लिये यथासम्भव प्रेरित करने के लिये स्वयं भी ऐसा करें ताकि वे आज की सिटिंग लाइफ़स्टाइल के दुष्प्रभावों से बचे रहें एवं साइकिल व पदयात्रा को‘लॉअर-मिडल क्लास’ एवं बाइक-कार को ‘हाई सोशल स्टेटस’से जोड़कर न देखें।
14. बच्चे को अच्छा माहौल प्रदान करें :
बच्चे को अच्छा माहौल प्रदान करें, संतुलित प्यार भी करें लेकिन सुविधाभोगी व लोभी मत बना देना कि बड़ा होकर वह ऐसा व्यक्ति निकले जिसे पालतू कुत्ते जैसे सब रेडी-टू-यूज़ मिल रहा है अथवा जो टी-स्पून-फ़ीडिंग का आदी हो चुका हो। हर सुविधा Remote अथवा एक फ़ोन-कॉल पर जैसी वर्तमान उपभोक्तावादी घुड़दौड़ से उसे दूर ही रहने देना।
15. सही दिशा दे :
बच्चे के मन व तन दोनों को सदैव सही दिशा में चलायमान रखें, जैसे कि घर में दैनिक उपयोग की छोटी-मोटी सामग्रियाँ उससे मँगवायें एवं एक-एक पैसे का लेखा-जोखा रखना सिखायें ताकि ‘खाली दिमाग शैतान का घर’न बन जाये एवं ‘बैठे-बिठाये सब मिल जाये’ वाली आदत उसे न लगने पाये।
बच्चे को अपनी मेहनत का असर तुरंत नज़र आयेगा कि मुझसे बेकार का काम नहीं करवाया जा रहा है, न ही फालतू घुमाया जा रहा है. मुझसे काम के काम करवाये जा रहे हैं जिनके माध्यम से मैं अच्छा जीवन जीने लायक दुनियादारी सीख रहा हूँ और बेकार की दुनियादारी से दूरी बनाकर चलना भी सीख रहा हूँ।
16. लगातार एवं द्विपक्षीय संवादः
उसे उसके पूछे बिना अपनी बाते थोड़ी-थोड़ी देर में अपने आप बताते रहें ताकि वह भी खुल के अपने विचार व आपबीती बताते रहने में सहज रहे तथा ऑफ़िस से आने के बाद बस आधा घण्टा बात जैसी यांत्रिकता में अपने व उसके सम्बन्ध को न बाँधें।
17. दिन की प्लानिंग के बारे में बताये :
सोकर उठकर अपनी व उसकी आज की योजनाओं की चर्चा करें एवं सोने से पहले पूरे दिन के घटनाक्रम एक-दूसरे को बतायें तथा क्या नया सीखा व देखा इस बात पर Focus करते हुए उस नये की भी अच्छाइयों व बुराइयों का विश्लेषण करें।
18. इच्छा व आवश्यकता का अंतर बताये :
दिनचर्या की गतिविधियों के बीच-बीच में इच्छा व आवश्यकता में अन्तर करना सिखायें। उदाहरण के लिये यदि प्यास लगी है तो यह आवश्यकता है जिसे मटके के उत्तम पानी द्वारा पूर्ण किया जाना चाहिए जबकि Soft Drink पीने की इच्छा वास्तव में आवश्यकता है ही नहीं, वह तो एक हानिप्रद इच्छा, ग़लत चाह है।
19. अच्छी बाते सिखाये :
घर में बच्चे की पंचेन्द्रियग्राहिता में अच्छी-अच्छी बातें लायें, भजन-कीर्तन से भरा परिवेश उसे सुलभ करायें, कभी गायत्री मंत्र तो कभी शान्ति-प्रार्थना के गीत-संगीत की मधुर लहरियाँ गुँजायमान रखें, सम्भव हो तो घर में कभी-कभी सत्यानारायण की कथा, हनुमान चालीसा इत्यादि का छोटा-सा आयोजन करें तथा सकारात्मक सांस्कृतिक व सामाजिक गतिविधियों में उसे ले चलें।
20. अपनी अंतरात्मा से पूछे :
सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि स्वयं भी पालन करते हुए उसे भी समझायें कि जो भी करने का विचार मन में आये तो सबसे पहले ईश्वर को साक्षी मानकर अपनी अन्तरात्मा से पूछें कि यह मैं क्यों करूँ, क्या मुझे यह करना चाहिए ? इस प्रकार बच्चा वर्तमान व भविष्य में हर ग़लत काम से दूर रहना स्वयं सीखते जायेगा।
All The Best For Your Effort
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SHIVAM TRIPATHI says
bahut hi acchi post hai sirji lekin 1no. aur 3no.to is post ki sabse acche points hain mai aapki har post acchi hoti hai lekin ye wali sabse acchi hai.