ऑनलाइन शिक्षा के फायदे व नुकसान Online Education Advantages & Disadvantages In Hindi
Online Education Advantages & Disadvantages In Hindi
कोरोना-काल में शिक्षा, विशेष रूप से प्रायोगिक शिक्षा का अकाल-सा पड़ गया है. जिस Online शिक्षा को लोग झँझट अथवा आधुनिकता की निशानी या Fashion समझते थे वह अब इच्छा व अनिच्छा से अपनायी व थोपी जा रही है। वे दिन चले गये जब दूरस्थ शिक्षा में ‘घर-बैठे शिक्षा’ को व्यावहारिकता की दृष्टि से अपर्याप्त माना जाता था परन्तु अब वही पुरानी ‘घर-बैठे शिक्षा’ अनिवार्य जैसी लगने लगी है क्योंकि न जाने कहाँ-कहाँ Corona का साया मँडरा रहा हो।
इस आलेख में यह समझाने का प्रयास किया जायेगा कि Online के बजाय Offline दूरस्थ व आवश्यकतानुरूप व्यावसायिक स्थल-शिक्षा प्रदान किये जाने की आवश्यकता है। यहाँ Online Education के लाभ-हानियों सहित शिक्षा में प्रायोगिकता के समावेश के उपाय भी दर्शाए जा रहे हैं ताकि शिक्षा में समग्रता आये।
Online Education Advantages & Disadvantages In Hindi
ऑनलाइन शिक्षा किसे कहते हैं ? (What is online education)
पाठशाला (विद्यालय व महाविद्यालय) नियमित रूप से न जाकर Phone या Desktop इत्यादि माध्यमों से घर से पाठ्यसामग्रियों के Online study व अध्यापन को ऑनलाइन शिक्षा (Online education) कहा जाता है.
इसमें ऑनलाइन पुस्तकों व नोट्स को पढ़ने के साथ-साथ शिक्षकों द्वारा Online व्याख्यान भी उपलब्ध कराये जाते हैं व वीडियो-कान्फ़ेरेन्सिंग (Video Conferencing) भी अनेक स्थानों पर करायी जाती है परन्तु ऑनलाइन शिक्षा के लाभ-हानियों को बिन्दुवार जानना जरुरी है.
ऑनलाइन शिक्षा के फायदे : (Advantages of online education)
1. महामारी, भौगोलिक दूरी, मौसमी परिस्थितियों, गृहिणी या विकलांगता जैसी स्थितियों में पाठशाला नियमित जाना कठिन हो सकता है, ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा घर बैठे सम्भव है।
2. आने जाने का समय बचता है।
3. वायु प्रदूषण उत्पन्न होने से रुक जाता है व पहले से व्याप्त वायु प्रदूषण से शिक्षार्थियों का बचाव हो जाता है।
4. पाठशाला में वैद्युत्, जल व अन्य संसाधनों सहित संभारतन्त्र (लाजिस्टिक्स) की बचत होती है।
5. औपचारिकताओं में खप जाने वाला समय बचता है।
ऑनलाइन शिक्षा के नुकसान : (Disadvantages of online education)
1. स्क्रीन पर पढ़ना सहज नहीं होता (पश्चिमी जगत के भी अधिकांश व्यक्ति कम्प्यूटर अथवा मोबाइल पर पढ़ना उतना पसन्द नहीं करते). एक-दो पन्ने पढ़कर आगे बढ़ने का मन नहीं करता जबकि हार्डकापी पुस्तक को अधिक मात्रा व अवधि तक पढ़ा जा सकता है।
2. नेत्र, अँगुलियों, गर्दन व रीढ़ की विकृतियाँ घेरने लगती हैं, भारत में अनेक स्तरों पर ऑनलाइन पढ़ाई रोकने तक के निर्देश दे दिये गये थे।
3. अध्यापक व शिक्षार्थी का सामान्य संवाद न होने से एक तरफ़ा जैसी स्थिति रहती है जो कि सीखने-सिखाने के लिये ठीक नहीं मानी जा सकती।
4. कई लर्निंग-टीचिंग Mobile इत्यादि एप्लीकेशनस में 3D एनिमेशन्स सहित Video Call इत्यादि की व्यवस्था भी है परन्तु किसी भी स्थिति में सामान्य अध्ययन व अध्यापन जैसी स्थिति व बोधगम्यता नहीं आ सकती।
5. शिक्षार्थी कितना पढ़ रहा है, कैसे पढ़ रहा है, कब से कब तक पढ़ रहा है एवं वास्तव में सीख-समझ कितना पा रहा है इतनी नज़र रखनी ऑनलाइन में सम्भव नहीं हो सकती।
6. लगभग सब कुछ शिक्षार्थी पर निर्भर हो जाने से वह उद्दण्ड हो सकता है एवं अनुशासनहीन भी तथा उसे प्रेरित करने के लिये कोई प्रत्यक्ष प्रेरक भी नहीं बचता. हम ऐसी अपेक्षा नहीं कर सकते कि हर शिक्षार्थी ‘एकलव्य’ जैसे निकलेगा।
7. इलेक्ट्रानिक गेजट्स पर निर्भरता से अन्य अनेक घाटे भी उठाने पड़ते हैं, जैसे चार्जिंग, अँधेरे में देखने में समस्या, बैटरी जल्दी ख़राब होना, हर प्रकार के नेटवर्क की सदा बनी रहने वाली उठा पटक इत्यादि।
8. ऑनलाइन होने से व्यक्ति क्या देख-सुन रहा है इसका नियन्त्रण अति कठिन हो जाता है, अनैतिक कारकों की कमी नहीं है। आभासी जगत में इन्द्रियों को भटकाने व समय सहित चरित्र का नाश करने वाले बहुत सारे साधन सुलभ हो जाते हैं.
पढ़े – Offline कैसे रहे इसके फायदे
इसी प्रसंग को ध्यान में रखते हुए हमें समझना होगा कि घर-बैठे शिक्षा एवं शिक्षा में प्रायोगिकता का समागम कितना महत्त्वपूर्ण है ताकि शिक्षार्थियों का समग्र विकास अवरुद्ध न हो सके, इस दिशा में निम्नांकित उपाय अपनाये जाने की जरूरत है.
1. शैक्षणिक संस्थानों द्वारा प्रत्येक शिक्षार्थी को पुस्तकों इत्यादि का समग्र सेट बनाकर डाक से भेज दिया जाये ताकि उसे भटकना न पड़े तथा ऑनलाइन-निर्भरता को घटाया जा सके (Hard copies) के साथ में PDF इत्यादि रूपों में Offline प्रयोग योग्य Text इत्यादि भेजे जा सकते हैं);
2. विभिन्न जिलों, सम्भागों, राज्यों व राष्ट्रीय स्तर पर शैक्षणिक विषय-विशेषज्ञों के दल हों जहाँ Toll Free नम्बर्स द्वारा कोई भी शिक्षार्थी सम्पर्क करके सम्बन्धित विशेषज्ञ से जिज्ञासा-समाधान करा सके. ध्यान रहे कि विशेषज्ञता पर ज़ोर दिया जाये, इस दल में अध्यापन को ‘कोई अन्य प्रतियोगिता परीक्षा उत्तीर्ण’ करने का माध्यम बनाने वाले तथाकथित शिक्षक न हों, शिक्षा के क्षेत्र में समर्पित विशेषज्ञ हों.
ऐसे Toll Free Numbers किसी कम्पनी के Customer Care नम्बर्स जैसे न हों जहाँ कोई स्टाफ़ अथवा मध्यस्थ बैठा होता है, यहाँ वास्तव में Experts व्यक्ति ही हों जो अपने स्तर पर तुरंत विश्लेष्णात्मक जिज्ञासा पूर्ति कर सकते हों। अभी तो लोग अप्रामाणिक Websites व संदिग्ध YouTube Videos इत्यादि परस्पर संवादरहित माध्यमों का सहारा लेने के प्रयास करते हैं जो समुचित बौद्धिक विकास नहीं होने देते।
3. यदि शिक्षा तन्त्र पूर्वाग्रहों से मुक्त होने को तैयार हो तो तन्त्र में प्रायोगिक शिक्षा का समावेश अत्यन्त सरल है. कैसे ?
*. शिक्षार्थियों को विभिन्न संग्रहालयों, ऐतिहासिक स्मारकों इत्यादि में शैक्षणिक भ्रमण हेतु ले जाया जाये (स्थानीय स्तर पर विशेष बल देते हुए) जहाँ वे यथार्थता के निकट जाकर वह बहुत कुछ समझ पायेंगे जो वे स्वयं पढ़कर अथवा शैक्षणिक संस्थागत स्तर पर स्वयं प्रयोग करते हुए कदाचित कभी सीख न पाते.
*. उपरोक्त Toll – Free नम्बर्स के माध्यम से शिक्षार्थियों व विशेषज्ञों का सीधा सम्पर्क एवं सतत प्रवाह रहे ताकि प्रायोगिक शिक्षा, सम्भावित विकल्पों इत्यादि के बारे में खुलकर विचार-विमर्ष किया जा सके (बाद में कभी पूछेंगे जैसी प्रतीक्षा न करनी पड़े).
*. शिक्षा में प्रायोगिकता की बात ही क्यों की जाती है ? इसीलिये न कि भविष्य में उनके लिये उपयोगिता सिद्ध हो ! तो क्यों न उस भविष्य को इन शिक्षार्थियों के वर्तमान में ले आया जाये ! कैसे ? विशेषतया जिला व सम्भाग स्तर पर विभिन्न कारखानों व उद्योगों सहित खेतों में इन्हें अल्पायु में ही औद्योगिक व कृषिगत प्रशिक्षण हेतु ले जाया जाये जहाँ वे स्वयं अपने नेत्रों से एवं व्यावहारिकता के धरातल पर ‘प्रत्यक्ष क्रियान्वयन’ को देख-सुन व समझ सकें.
इससे जहाँ एक ओर वे शिक्षा में आगामी प्रायोगिकता की तारतम्यता को समझ सकेंगे वहीं दूसरी ओर विभिन्न कार्य-क्षेत्रों व व्यवसायों में वास्तविक सन्दर्भों में प्रयुक्त सामग्रियों एवं कार्य विधियों को वे स्वयं अनुभवगत स्तर पर देख व सीख पायेंगे जबकि Videos इत्यादि में यह ग्रहण शीलता कभी नहीं हो सकती, न ही शैक्षणिक प्रयोगशालाओं में इतना ‘यथार्थ अनुभव’ सम्भव हो सकता है।
4. Direct To Home इत्यादि में विभिन्न शैक्षणिक चैनल्स हैं जिनमें दक्षता से विभिन्न कक्षाओं व विषयों के बारे में पढ़ाया-सिखाया जाता है, इस दिशा में लोगों में जागृति बढ़ायी जाये।
5. परीक्षा-आयोजन कैसे करें ? शिथिल शिक्षा तन्त्र को उपरोक्त समस्त कसौटियों में कसने के पश्चात् परीक्षा का आयोजन ऐसा हो जिसमें रटी-रटायी बातों के बजाय शिक्षार्थी के बौद्धिक स्तर की परख सम्भव हो। विभिन्न शैक्षणिक विभागों के Expert Video Conferencing जैसे माध्यम से शिक्षार्थियों को परखें जहाँ ‘नकल’ जैसी आशंकाएँ भी न हों.
सम्बन्धित जिले के ऐसे शासकीय व स्थान-स्थान पर क्लोज़ सर्किट टी.वी. कैमरा, सशस्त्र जाँच-दलों इत्यादि से सुसज्जित शैक्षणिक भवन व कारखानों इत्यादि में वीडियो-कान्फ्ऱेन्सिंग समान व्यवस्था में शिक्षार्थियों को बुलाया जाये जहाँ पहले से अनेक विशेषज्ञ, कारखानों के श्रमिक, किसान उपस्थित हों (जो स्वयं भी इन शिक्षार्थियों को परखेंगे) तथा इस प्रकार प्रशासनिक व्यवस्थाओं में एक-एक शिक्षार्थी को उपस्थित करके उससे कुछ कार्य-प्रदर्शन करवाये जायें.
सैकड़ों-हज़ारों मील दूर बैठे विशेषज्ञ उन्हें परखें एवं केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो से अधिक सटीक प्रश्नोंत्तर भी करते रहें ताकि किसने कितना सीखा अथवा किसे कितना आता है चुन-चुनकर इसकी नाप-तौल की जा सके एवं कोई अपात्र आगे के स्तर पर न बढ़ाया जा सके (जैसा कि अभी देखने में आता है कि व्यक्ति उपाधिधारी तो कहलाता है किन्तु वास्तविक समझ-बुद्धि उसमें नहीं होती)।
उपरोक्त उपाय कोरोना-काल तक सीमित स्तर पर नहीं बल्कि समग्रता में अपनाये जायें क्योंकि शैक्षणिक संस्थानों में व्यर्थ के जमघट का कोई औचित्य नहीं, वर्तमान शिक्षा व परीक्षा-प्रणाली विभिन्न आशंकाओं व विसंगतियों से भरी-पूरी है.
सीमित समय में हर शिक्षार्थी में भविष्य के लिये उपयोगी एवं प्रामाणिक प्रायोगिक शिक्षा का समावेश करना है तो ऊपर प्रदर्शित उपाय ही उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं जिनसे शिक्षार्थियों सहित समूचे शिक्षातन्त्र के समय, श्रम व धन की भी भारी बचत होगी तथा वास्तविक बौद्धिक विकास तेज हो पायेगा।
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Pk says
Good knowledge
Healthlekh says
You Write a serious topic on online education.. we appriciate it