रिश्ते को मजबूत बनाने के 12 टिप्स How To Make Strong Relationships In Hindi
How To Make Strong Relationships In Hindi
दोस्तों, हमारे लिए हमारा Relation बहुत ही बहुमूल्य होता है.. वह रिश्ता चाहे पेरेंट्स – बच्चो का हो, दोस्तों का हो, पति – पत्नी का हो या दो प्रेमियों का हो, वह हमारे लिए बहुत ख़ास होता है. इसलिए रिश्ते की खुशबू को बनाये रखना हमारे लिए बहुत अहम होता है.
जब हम रिश्ते में होते है तब तकरार का होना एक आम बात है तो ऐसे मुश्किल भरे समय में अपने रिश्ते को बचाने के लिए आपको बड़े संयम से चलना चाहिए और अपने तकरार को कभी भी समस्या न बनने दे.
आपके लिए आपका रिश्ता बहुत कीमती होता है.. इसलिए जब भी ऐसा समय आता है जब आपका रिश्ता मुश्किल में होता है तब आप अपनी लाइफ में कुछ Tips को फॉलो करे और अपने रिश्ते को बड़े प्यार से संभाले.. ऐसे ही कुछ टिप्स हम आपके साथ Share कर रहे है तो इस Article को अंत तक जरुर पढ़े.
How To Make Strong Relationships In Hindi
1. रिश्ते में पारदर्शिता बरतें :
अपारदर्शिता उस अँधेरे गलियारे के समान होती है जहाँ संदेह, शंका व अस्पष्टता सहित शक रूपी सड़न उत्पन्न हो सकती है, फिर इस संकट वाले समय में सम्बन्ध की मधुरता मलिन हो जाती है।
मोबाइल हो या फिर किससे कहाँ मिलना, कब क्या कर रहे है इन चीजो में पारदर्शिता रहे तो रिश्ते में बड़ी मजबूती आती है। बताना अच्छा है, बताने से भी अच्छा पूछना होता है। ध्यान रहे सामने वाला व्यक्ति सच्चा, अच्छा व वास्तव में विश्वसनीय हो तभी यह ‘पूछकर करने’ वाली बात लागू करें।
2. हर विवाद को मिलकर सुलझाये :
छोटे-छोटे व कम महत्त्वपूर्ण विषयों में छोटे-मोटे मतभेद हों तो चलेगा परन्तु जीवनधाराओं व समग्रता में मनभेद नहीं बना लेना चाहिए। हम सब उसी एक परमात्मा के अंश हैं।
किन्हीं दो व्यक्तियों में यदि बड़े व महत्त्वपूर्ण विषयों में यदि विरोधाभास हो भी तब भी इन 4-6 विषयों के विष को अपने सम्बन्ध में न घुलने दें। आपस में उलझकर उन विषयों में अपनी योजनाओं, सदविचारो को गर्त में न जानें दें जहाँ आप अपने, एक-दूसरे के अथवा किसी तीसरे के लिये कुछ अच्छा कर सकते हैं।
कोई भी विवाद दबाकर न रखें, खुल के सामने आयें, सबसे पहले एक-दूसरे के सिर पर हाथ रखकर या शपथ करें कि आपसी चर्चा का परिणाम चाहे जो भी हो, निष्कर्ष जिस पक्ष में जाये आप दोनों उन विषयों के परिणामों को अपने सम्बन्धों के बीच दरार या दूरी में बदलने नहीं देंगे और सम्बन्ध की सकारात्मकता व मधुरता तनिक भी क्षीण न होने पायेगी।
फिर चर्चा आरम्भ करें किन्तु हर बात पूरी सुनें एवं सामने वाले की कोई बात काटें नहीं तथा फिर बिन्दुवार अपनी बात पूरी करें तथा क्रोध न करें। हर बिन्दु के विषय में दोनों पक्ष अपने मत प्रस्तुत कर दें फिर अगले बिन्दु पर बढ़ें। अहं न हावी होने दें। सामने वाले की किसी बात से यदि कोई हानि भी हुई हो तो उस हानि से अपने सम्बन्ध को कमज़ोर न होने दें, हानियों को आधार बना सम्बन्ध की बुनियाद को दरकने न दें।
एक-एक विषय में हर तर्क-वितर्क को चुन-चुनकर अपने रिश्ते के बीच से निकाल फेंकें ताकि वह प्रसुप्त बीज जैसे भीतर बना न रहे एवं कोई मनमुटाव अथवा ” इसने मुझे हरा दिया ” जैसा भाव न रखें। सम्बन्ध को विजय-पराजय की रणभूमि न बनायें।
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3. दूसरों की बातों में न आयें :
आग लगाने वाले बहुत मिलते हैं किन्तु बुझाने वाले कम होते जाते हैं। किसी तीसरे से कुछ सुन भी लिया तो उसकी हाँ में हाँ न मिलायें बल्कि अपने उस सम्बन्धी से जाकर आमने-सामने खुलकर सच्चाई का पता लगायें।
कई बार व्यक्ति के बोलने, बोलने के तरीके, सुनने के तरीके, मानसिक प्रोसेसिंग के स्तर व मानसिक निष्कर्ष में भिन्नता होती है जिससे मूल इरादा अपना स्वरूप खोकर कुछ और अर्थ दर्शाते हुए अनर्थकारी सिद्ध हो सकता है, इसलिये कही-सुनी बातों अथवा बात-बात पर अपने सम्बन्ध के आधार को डगमगाने न दें।
4. संवादशील बने रहें :
हर स्थिति में संवाद के महत्त्व को कायम रखे, चाहे जो कुछ हो जाये कभी संवादहीन मत होना। अपने या सामने वाले के मन में दबी बात भी रिश्ते में गैंगरीन की ओर बढ़ सकती है, हर विरोध को जड़ से काटते हुए आगे बढ़ें, संवादहीनता के खरपतवार को खोद-खोदकर व खोज-खोजकर जला डालें।
बालि यदि सुग्रीव की पूरी बात सुनता तो पूरा कुटुम्ब दरकने से बच जाता। यह न सोचें कि बात करने से बात बिगड़ेगी तो उन बातों में पड़ने से क्या लाभ ! इसलिये वास्तव में ‘परिणाम न दिखने’ पर भी नयी-पुरानी सब बातें जारी रखें, विरोधी विषयों में भी।
5. अपने मन में कुछ भी पूर्वाग्रह न लगाये :
अब रिश्ते में कुछ न बचा, ”यह दरार अब भरी नहीं जा सकती, ”टूटा धागा जुड़कर भी अब पहले जैसा नहीं हो सकता जैसी दूरीवर्द्धक बातो को छोड़ दें। ‘मन से पकड़कर बैठेंगे तो आपको ये भ्रांतियाँ वास्तविक लगने लगेंगी.
अतः यह परम सत्य स्वीकारें कि ‘अलगाव रूपी बुराई’ को मन से उखाड़ फेंकने पर सब कुछ पहले जैसा या सम्भव है कि पहले से भी बेहतर हो सकता है, सब आपके मन पर निर्भर व मन आपकी आत्मा पर जो कि उस शुद्ध परम सत्ता का अंश है जिसने महा पापी अँगुलिमाल एवं डकैत वाल्मीकि को भी हृदय से अपना लिया।
वास्तव में मन बड़ा चंचल होता है व मान्यताओं पर चलता है, इसे कहीं से भी पकड़कर कभी-भी कहीं भी लगाया जा सकता है, पूर्ण मनोयोग से सही राह पर लगायें।
6. पूछताछ को शंका न समझें :
आपसे सवाल करने वाले को शत्रु न मान ले। ” तुम्हें उससे क्या ” ऐसा बोलकर उसका अपमान न करें। आपके प्रति उसके स्नेह व चिंता की अवमानना न करें। सच्चे मार्गदर्शक बहुत कम होते हैं, बिरलों को ही नसीब होते हैं, यदि ऐसा कोई आपके जीवन में हो तो उसे कभी दूर न जाने दें, हर विषय को बीच से मिटा दें, अपनत्व वर्द्धक दिशा में बढ़ें।
7. मेरा तेरा जैसी सोच को दूर करें :
एकोअहं द्वितीयो नास्ति ( मैं एक हूँ, द्वितीय कोई नहीं है), तत्त्वमसि ( वह तुम हो जिसका संकेत हुआ कि भगवान तुम हो, अर्थात् सब परमात्मा के अंश हैं), अहं ब्रह्मास्मि (मैं ब्रह्म अर्थात् परमात्मा हूँ, यदि हम अहंकार को तज दें एवं निष्पक्षता से विचार करें तो आप पायेंगे कि कहीं भी ‘दो’ का तो अस्तित्व ही नहीं होता।
‘मैं-तू’ का विलगाव मिटा देंगे तो स्वयं को सही साबित करने, सामने वाले को ग़लत साबित करने की चाह भी मिट जायेगी। जहाँ ये दूरीवर्द्धक चाहें मिट जायेंगी वहाँ रिश्ता पटरी पर लौटने की राहें स्वतः मिल जायेंगी।
जग के पालक विष्णु व संहारक शिव स्वयं भी एक हैं (हरिहर रूप में), ब्रह्माण्ड के आधार शिव व शक्ति भी अर्द्धनारीश्वर रूप में वास्तव में एक ही हैं तो फिर हम क्यों ‘तू अलग मैं अलग, मेरा अलग जीवन, रुचि व अरुचि इत्यादि मनगढ़ंत उलझनों में रिश्तो को बर्बाद करने पे तुले रहते हैं ?
विरोधाभासी विषयों के चश्मे उतारकर देखें तो आपको परस्पर ढेरों समताएँ नज़र आ जायेंगी जिन पर चलकर आप समग्र जीवन सार्थक करने की ओर सहजता से कदम बढ़ा सकते हैं।
8. क्षमाभाव रखें :
यदि सामने वाला व्यक्ति हावी होना चाहे, आपको ग़लत साबित करना चाहे तो भी आप अपनी तरफ़ से दूरी न बनायें, न बढ़ायें, बस हर दूरी मिटाने की ओर बढ़ते चलें। जहाँ पर आप क्षमा कर सकते हो क्षमा किया करे.
9. सब मेरे अनुकूल हो ऐसा न सोचें :
आपका सच्चा हितैषी (यदि ऐसा कोई आपके जीवन में हो तो) वह आपका प्रबल समालोचक भी होगा क्योंकि वह आपके तथाकथित मित्रों या परिजनों जैसे आपकी बातों में हामी भरने के बजाय आपके मंगल की कामना करता होगा, वह चाटुकार नहीं है।
आचार्य चाणक्य की कई बातें चंद्रगुप्त मौर्य को कड़वी लगती थीं परन्तु उस तथाकथित कड़वाहट में चंद्रगुप्त व समूचे राष्ट्र के भविष्य के रोगों की औषधियाँ निहित थीं।
10. परफेक्शन की चाह को नशा न बनायें :
मेरी उससे, अब उससे नहीं पटती, मैं वैसा नहीं हूँ इत्यादि व्यर्थ की धारणाओं में सम्बन्ध की मजबूती को ढीली न पड़ने दें। स्वयं के अथवा सामने वाले के सर्वगुणसम्पन्न होने अथवा आपसी सटीक मिलान की कामना बुरी नहीं परन्तु इसके चक्कर में ” मेरी इससे नहीं बनेगी, इसकी राह अब अलग हो चुकी है या अलग है ” जैसी बातों में न पड़ें।
11. अनुकूलता या अवसर की प्रतीक्षा छोड़ आज स्वयं पहल करें :
मामला ठण्डा पड़ जाने, बाद में सब ठीक हो जायेगा, कल देखते हैं या वह व्यक्ति मेरी बात समझता या मानता ही नहीं तो उससे क्यों उस विषय में बोलूँ’ जैसी स्थितियों से उबरकर आगे आयें एवं भेदों को भुला एकत्व की ओर बढ़ें।
12. अन्तर व दोष खोजना बन्द करें :
” बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिला
कोई, जो स्वयं को देखा तो सबसे बुरा मैं निकला “
याद रखें, दूध के धुले आप (मान लेते हैं कि कुछ समय के लिये हैं) हों तो भी सामने वाले में बुराई व भेद ढूँढने की कुचेष्टाएँ न करें। कोई भी इन्सान Perfect नहीं होता, हर किसी में कोई न कोई कमी जरुर होती है.
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