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रावल रतन सिंह का इतिहास व जीवन-परिचय

February 21, 2022 By Surendra Mahara 1 Comment

रावल रतन सिंह का इतिहास व जीवन-परिचय | Rawal Ratan Singh History in Hindi

रावल रतन सिंह के बारे में पढ़ने से पहले यह समझ लेना अत्यधिक आवश्यक है कि सन् 1303 में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा चित्तौड़ पर किया गया आक्रमण एक ऐतिहासिक घटना थी किन्तु रावल रतन सिंह व रानी पद्मावती की कहानी का कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है।

आधुनिक इतिहासविदों ने भी इसे अप्रामाणिक ही माना है। मुख दर्पण द्वारा खिलजी को दिखाने के सन्दर्भ में भी विवरणों में विरोधाभास एवं पदमावती के विवाह के विवरणों का विरोधाभास इस आलेख में नज़र आ जायेगा।

गुहिल वंश के वंशज रतन सिंह इस वंश की शाखा रावल से सम्बद्ध थे। महाराजा रतन सिंह के विषय में अधिक जानकारियाँ सोलहवीं शताब्दी के सूफ़ी कवि मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा लिखी गयी कविता ‘पदमावती’/‘पदमावत’ नामक पुस्तक/महाकाव्य में मिलती हैं जिसे सन् 1540 में अवधी बोली में रचा गया था।

Rawal Ratan Singh History in Hindi

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रावल रतन सिंह के अन्य नाम – रत्नसिंह, रतनसेन, रतन सिंह।

रावल रतन सिंह का जन्म-मरण – तेरहवीं शताब्दी के मध्य अथवा अन्त में जन्म एवं चौदहवीं शताब्दी के आरम्भ में सन् 1303 में मृत्यु (पद्मावत के अनुसार)

जन्मस्थली एवं मरणस्थली – दोनों चित्तौड़/चित्रकूट का किला (वर्तमान का चित्तौड़गढ़)

रावल रतन सिंह के मृत्यु का कारण : रावल रतन सिंह की सेना पराजित होने के बाद देवपाल संग एकाकी युद्ध में। वहीं दूसरी ओर मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा लिखी गयी कविता ‘पदमावती’ के अनुसार रतन सिंह का मरण दिल्ली की राजगद्दी के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के हाथों हुआ था।

‘पदमावती’ नामक काव्यमयी पुस्तक के अनुसार राजा रतन सिंह के राज्य-दरबारियों में राघव चेतन नामक एक संगीतज्ञ था जो काला जादू करता था, यह बात जानकर रतन सिंह ने राघव को गर्दभ (गधे) पर बैठाकर पूरे राज्य में घुमाया।

इस अपमान से कुपित राघव ने दिल्ली के सुल्तान के माध्यम से प्रतिशोध की ठानी। सुल्तान खिलजी को उकसाने के लिये राघव ने पदमावती के सौन्दर्य के बारे में खिलजी को बताया जिसके बाद पदमावती को पाने की लालसा में खिलजी ने रतन सिंह से दोस्ती का दिखावा करने का सोचा एवं रतन सिंह के सामने उसकी पत्नी पदमावती को देखने की इच्छा जतायी। रतन सिंह ने खिलजी की इस इच्छा को मान भी लिया एवं रानी पदमावती के चेहरे की छवि को दर्पण के माध्यम से खिलजी को दिखा दिया।

रानी पदमावती रतन सिंह के इस निर्णय से खिन्न थी फिर भी पत्नीधर्म निभाते हुए रतन सिंह की बात अपनी कुछ शर्तों के साथ मान ली। रानी के सौन्दर्य की झलक देखकर खिलजी ने अपने सैनिकों द्वारा रावल रतन सिंह का अपहरण उन्हीं के महल से करवा लिया.

पदमावती ने रतन सिंह के दो वफ़ादारों ‘गोरा’ एवं ‘बादल’ को भेजकर रतन सिंह को अलाउद्दीन से मुक्त कराया। रावल रतन सिंह को बचाने के इस प्रयास में गोरा तो खिलजी के सैनिकों से जूझते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ तथा बादल व रतन सिंह चित्तौड़ पहुँच पाये।

जब रतन सिंह दिल्ली में बंदी था तब चित्तौड़ के पड़ौसी राज्य कुंभलनेर का राजा देवपाल भी रानी पदमावती की ओर आकर्षित हो गया, इस आकर्षण में बँधकर राजपूत राजा देवपाल ने एक दूत भेजकर रानी पदमावती को विवाह का प्रस्ताव भेज डाला । इसी घटनाक्रम के दौरान रतन सिंह के स्वतन्त्र होने के बाद खिलजी ने आक्रमण कर रतन सिंह के किले को चारों ओर से घेर लिया।

ऐसा कहा जाता है कि किले को बाहर से घेर लेने के कारण कोई वस्तु न तो किले के बाहर ले जायी जा सकती थी, न ही बाहर से भीतर लायी जा सकती थी। किले के भीतर का भण्डार धीरे-धीरे समाप्ति की ओर बढ़ने लगा। किले की प्रतिकूल होती स्थितियों को भाँपते हुए रतन सिंह ने किले के बाहर निकल खिलजी से युद्ध का निर्णय कर लिया एवं रतन सिंह का यह अन्तिम युद्ध साबित हुआ।

रतन सिंह की पराजय व मृत्यु के बाद उसकी पत्नी पदमावती ने राज्य की कई अन्य राजपूतानी स्त्रियों व सखियों सहित जलकर जौहर कर लिया। मेवाड़ पर आक्रमण के सन्दर्भ में एक अन्य विवरण में उल्लेख मिलता है कि इस आक्रमण का मुख्य कारण एक महत्त्वपूर्ण सत्ताकेन्द्र के रूप में मेवाड़ को नियन्त्रणाधीन करना था, न कि रानी पदमावती को पाना।

रावल रतन सिंह का गृहनगर/राज्य – मेवाड़ (मेदपाट) राज्य

रावल रतन सिंह का शासन-काल – सन् 1302-03, हिन्दी महाकाव्य ‘पदमावत’ के कारण इनकी ख्याति रही जिसके अनुसार रानी पद्मावती अथवा पदमावती इनकी पत्नी थी। कुछ इतिहासविदों का आकलन है कि ये 1301 ईसा में सिंहासनारूढ़ हुए थे।

रावल रतन सिंह तेरहवीं शताब्दी के आरम्भ में मेवाड़ के क्षत्रिय राजपूत शासक थे जिसकी राजधानी चित्तौड़ थी।

रावल रतन सिंह के पिता – बप्पा रावल के वंश के/गुहिलौत/गुहिला राजवंश के अन्तिम शासक रावल रतन सिंह के पिता ‘रावल समरसिंह’ थे।

रावल रतन सिंह का पत्नी से पतन

‘पद्मावत’ के अनुसार हीरामणि नामक एक तोते ने पदमावती के सौन्दर्य के बारे में रतन सिंह को बताया था जिसके कारण उससे विवाह करने की योजना से यह सोलह सहस्त्र सैनिकों संग समुद्र पार कर सिंहल साम्राज्य की ओर अर्थात् श्रीलंका की तरफ़ चल दिया।

इसमें रतन सिंह पराजित हुआ एवं बन्दी बना लिया गया। रतन सिंह को फाँसी दी ही जाने वाली थी कि उपस्थित लोगों को पता पड़ा कि यह रतन सिंह वास्तव में चित्तौड़ का राजा है।

यह सुनने के बाद गंर्धवसेन से अपनी पुत्री पदमावती का विवाह रतन सिंह से कराने का निर्णय किया एवं रतन सिंह के साथ आये सोलह सहस्त्र सैनिकों का भी विवाह सिंहल साम्राज्य की सोलह सहस्त्र पदमनियों से सम्पन्न करवा दिया।

एक अन्य विवरण के अनुसार पदमावती के पिता राजा गंधर्वसेन ने पदमावती का विवाह सम्पन्न कराने के लिये एक स्वयंवर आयोजित करने का निर्णय कर लिया। नागमति सहित 13 रानियाँ होने पर भी राजा रतनसिंह इस स्वयंवर में चले आये एवं महाराजा मलखान सिंह को पछाड़कर पद्मावती से अपना चौदहवाँ विवाह किया एवं इसके बाद पन्द्रहवाँ विवाह नहीं किया।

रावल रतन सिंह का पतन

सन् 1303 में अलाउद्दीन खिलजी के किये आक्रमण में इनका परिवार व शासन सब नष्ट हो गया। इतने कम शासन के बाद आये भाटों की गाथाओं में इनका नाम ही दिखायी देना बन्द हो गया और तो और – इन्हीं स्रोतों पर मुख्यतया आधारित होने से कर्नल टाड के राजस्थान-इतिहास सम्बन्धी ग्रंथों में इनका नाम नहीं मिलता।

उनके स्थान पर अत्यन्त भ्रामक रूप से भीमसिंह से इनकी पत्नी रानी पद्मावती का सम्बन्ध जोड़ा दिया गया था। सुख्यात् इतिहासविद् महामहोपाध्याय रायबहादुर गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने कर्नल टाड की भूल स्पष्ट करते हुए रावल रतन सिंह का उल्लेख स्पष्ट किया है।

ओझा जी ने भ्रांति-निवारण करते हुए यथार्थ स्थिति प्रकट की कि रावल समरसिंह के बाद उसका पुत्र रत्नसिंह चित्तौड़ में सत्तारूढ़ हुआ।

उसे शासन करते हुए कुछ महीने बीते ही थे कि दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया एवं छः महीने से अधिक अवधि तक संघर्ष के बाद उसे किला मिला।

नारीमोह से सर्वनाश तक की यात्रा

रावल रतन सिंह की पत्नी पद्मावती के सौन्दर्य की चर्चाओं से आकर्षित हो दिल्ली का तत्कालीन बादशाह अलाउद्दीन खिलजी पद्मावती को वस्तु के समान पाने के लिये आतुर हो उठा एवं चित्तौड़ दुर्ग की ओर एक विशाल सेना लेकर चढ़ाई कर दी।

चित्तौड़ को महीनों तक इसने घेरे रखा किन्तु चित्तौड़ की रक्षार्थ नियुक्त राजपूत सैनिकों की शूरवीरता के आगे इस दीर्घावधिक युद्ध के बावजूद चित्तौड़ किले में वह घुस न सका।

अब अलाउद्दीन खिलजी ने कूटनीति रची एवं अपना दूत रतनसिंह के पास भेजकर संदेशा भिजवाया – ” आपकी रानी के सौन्दर्य के बारे में हमने बहुत सुन रखा है इसलिये हमें सिर्फ़ एक बार रानी का मुँह दिखा दें, हम घेरा उठाकर दिल्ली लौट जायेंगे।

ऐसा संदेश सुन रतनसिंह क्रोध से भर उठे परन्तु रानी पद्मावती ने दूरदर्शिता बरतते हुए अपने पति रतनसिंह को समझाया – ” मेरे कारण चित्तौड़ के सैनिकों का रक्त व्यर्थ बहाना बुद्धिमत्ता नहीं ।

अलाउद्दीन की विशाल सेना से मेवाड़ की छोटी सेना को एवं इस प्रकार मेवाड़ की प्रजा को बचाने के लिये रानी ने मार्ग दर्शाया कि यदि अलाउद्दीन मेरा मुख देखने को इतना ही लालायित है तो दर्पण में मेरा प्रतिबिम्ब देख सकता है।

समरसिंह के बाद करणसिंह का राज्याभिषेक लिखा है परन्तु करणसिंह (कर्ण) समरसिंह के बाद नहीं बल्कि उससे 8 पीढ़ी पहले हुआ था।

इन Hindi Biography को भी अवश्य पढ़े :

  • कबीर दास  का जीवन परिचय
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  • आचार्य चरक की जीवनी

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Comments

  1. Ankit says

    February 22, 2022 at 9:04 am

    Very nice , all information are totally covered.

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