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केदारनाथ मंदिर का इतिहास

October 31, 2021 By Surendra Mahara Leave a Comment

केदारनाथ मंदिर का इतिहास ! Kedarnath Temple History in Hindi

Table of Contents

  • केदारनाथ मंदिर का इतिहास ! Kedarnath Temple History in Hindi
    • Kedarnath Temple History in Hindi
  • Kedarnath Temple History in Hindi
      • केदारनाथ का मूल उदगम
      • उत्तराखण्ड में लघुचारधामों में से एक केदारनाथ
      • पंचकेदारों में से एक केदारनाथ
      • केदारनाथ निर्माण के ऐतिहासिक विवरण
      • केदारनाथ की यात्रा
      • केदारनाथ मंदिर-माहात्म्य

"केदारनाथ

Kedarnath Temple History in Hindi

केदारनाथ उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक कस्बा व नगर पंचायत है जो हिमालय पर्वतमाला के केदार शृंग में है। केदारनाथ वास्तव में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग है।

मंदिर में धूसर रंग की सीढ़ियों पर पालि अथवा ब्राह्मी लिपि में कुछ उत्कीर्णित है जिसे स्पष्टतया ज्ञात नहीं किया जा सका है फिर भी इतिहासविद डाक्टर शिवप्रसाद डबराल का मानना है कि शैव इत्यादि जन शंकराचार्य के पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं।

सन् 1882 के इतिहास के अनुसार स्पष्ट अग्रभाग के साथ मंदिर एक भव्य भवन हुआ करता था जिसके दोनों ओर पूजन-मुद्रा में मूर्तियाँ थीं।

श्री ट्रेल के अनुसार वर्तमान ढाँचा बाद में विनिर्मित किया गया है जबकि मूल भवन गिरकर नष्ट हो चुके हैं। मंदिर के जगमोहन में द्रौपदी सहित पाँचों पाण्डवों की विषाल मूत्र्तियाँ होने का भी उल्लेख है।

यहाँ की एक झील में हिम तैरते रहते हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि इसी झील से युधिष्ठिर स्वर्ग गये थे। श्रीकेदारनाथधाम से छः किलोमीटर्स दूर चैखम्बा पर्वत पर वासुकि ताल है जहाँ ब्रह्मकमल प्रचुर मात्रा में दिखते हैं तथा इस ताल का जल अतिशीतल लगता है। निकट ही गाँधी सरोवर भी है।

श्रीकेदारनाथ मंदिर समुद्रतल से 3553/3562/3593/3583 मीटर्स ऊँचाई पर अवस्थित है। इस विशाल एवं भव्य मंदिर के निर्माण के विषय में सटीकता से कुछ ज्ञात नहीं है परन्तु विगत एक हज़ार वर्षों से केदारनाथ एक महत्तापूर्ण तीर्थयात्रा के सन्दर्भ में विशेष उल्लेखनीय हो जाता है।

Kedarnath Temple History in Hindi

केदारनाथ का मूल उदगम

केदारनाथ वास्तव में एक ज्योतिर्लिंग है, हिमालय के केदार शृंग पर श्रीहरि विष्णु के अवतार नर एवं नारायण तप कर रहे थे जिससे प्रसन्न होकर आशुतोष शिव प्रकट हुए एवं नर-नारायण के निवेदनानुरूप यहाँ सदा ज्यातिर्लिंग के रूप में वास करने का वर दिया।

उत्तराखण्ड में लघुचारधामों में से एक केदारनाथ

चारधाम यात्रा के आरम्भ के सन्दर्भ में कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं मिला। चारधाम भारत के चार चयनित स्थलों का एक समूह है जिनमें भारत की चार दिशाओं के महान् मंदिर सम्मिलित हैंः पूर्व में पुरी, दक्षिण में रामेश्वरम्, पश्चिम में द्वारका एवं उत्तर में बद्रीनाथ ।

उत्तराखण्ड में भी छोटा चारधाम नाम से चार बड़े मंदिर विख्यात हैं.. बदरीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री एवं गंगोत्री। रुद्रप्रयाग से केदारनाथ का मार्ग मन्दाकिनी नदी के तट के समानान्तर है जबकि बदरीनाथ की ओर जाने का मार्ग अलकनंदा के तट के सापेक्ष जाता है।

पंचकेदारों में से एक केदारनाथ

उत्तराखण्ड में ही पाँच प्रमुख शिवमंदिरों को संयुक्त रूप से पंचकेदार कहा जाता हैः केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर एवं कल्पेश्वर। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के विजयी होने के उपरान्त पाण्डव बंधु-बाँधवों की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिये महादेव शंकर का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे किन्तु शंकरजी उनसे रुष्ट थे.

पाण्डव उनके दर्शन के लिये काशी पहुँचे तो शंकर नहीं मिले। अब वे हिमालय तक चले गये किन्तु शंकर-दर्शन उन्हें वहाँ भी नहीं हुए। शंकर पाण्डवों से दूर होने के लिये अंतर्धान होकर केदार में बस गये थे परन्तु पाण्डव दृढ़ इच्छा के धनी थे, अतः वे उनका पीछा करते-करते केदार भी पहुँच ही गये।

भगवान शंकर ने अब बैल का रूप धारण कर लिया एवं अन्य पशुओं में जाकर सम्मिलित हो गये। पाण्डवों को कुछ शंका हुई तो भीम ने विशाल रूप धरकर पहाड़ों पर अपने पैरा फैला लिये.

अन्य सभी गाय-बैल तो निकल गये किन्तु शंकरजी रूपी बैल पाँव के नीचे से निकलने को तैयार न हुए । भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे परन्तु बैल भूमि में अन्तर्धान होने लगा।

इसी समय भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पाण्डवों की भक्ति व दृढ़ संकल्प देखकर प्रसन्न हुए तथा तत्काल दर्शन दे दिये एवं उन्हें पापमुक्त कर दिया। उसी समय से महादेव शंकर बैल की पीठ के आकृति-पिण्ड के रूप में श्रीकेदारनाथ में पूजे जाते हैं।

ऐसा माना जाता है कि जब शंकरजी बैल के रूप में अन्तर्धान हो रहे थे तो उनके धड़ के ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ जहाँ अब पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएँ तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यमहेश्वर में एवं जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई।

इसी कारण केदारनाथ सहित इन चार स्थलों को अर्थात कुल पाँचों स्थानों को पंचकेदार कहा जाता है जहाँ शिव में भव्य मंदिर हैं।

केदारनाथ निर्माण के ऐतिहासिक विवरण

केदारनाथ के विशाल एवं भव्य मंदिर के निर्माण के विषय में सटीकता से कुछ ज्ञात नहीं है परन्तु विगत एक हज़ार वर्षों से केदारनाथ एक महत्तापूर्ण तीर्थयात्रा के सन्दर्भ में विशेष उल्लेखनीय हो जाता है। केदारनाथ के अतीत के सन्दर्भ में विविध विवरण उपलब्ध हैं –

1. सतयुग में शासन करने वाले राजा केदार के नाम पर इस स्थान का नाम अवश्य केदार पड़ गया। राजा केदार को सातों महाद्वीपों के शासक एवं अत्यन्त पुण्यात्मा राजा के रूप में जाना जाता है जिनकी एक पुत्री व दो पुत्र थे। पुत्रों के नाम कार्तिकेय (मोहन्याल) व गणेश थे।

यहाँ भी गणेश को बुद्धि व कार्तिकेय को शक्ति के राजा देवता के रूप में जाना जाता था। राजा केदार की एक पुत्री वृन्दा थीं जो कि देवी लक्ष्मी की अंशावतार थीं जिन्होंने 60,000 वर्षों तक तपस्या की जिस कारण इस स्थान का भी नाम वृन्दावन पड़ा (एक अन्य वृन्दावन उत्तरप्रदेश में है)।

2. एक मान्यतानुसार वर्तमान मंदिर आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया है जो कि पाण्डवों द्वारा द्वापरयुग में बनवाये गये पहले के मंदिर के निकट है।

3. पाषाण-निर्मित कत्यूरी शैली में निर्मित केदारनाथ मंदिर को पाण्डुवंशी जनमेजय द्वारा निर्मित कराये जाने का भी विवरण उपलब्ध है।

4. एक अन्य विवरण के अनुसार भारत की चारों दिशाओं में एक-एक प्रधान मंदिर को धाम घोषित करने के बाद जगत्गुरु शंकराचार्य ने 32 वर्षायु में श्री केदारनाथ धाम में समाधि ली थी। मंदिर के पृष्ठभाग में शंकराचार्य जी की समाधि है। वर्तमान मंदिर उन्हीं का बनवाया कहा जाता है।

5. ऐसा माना जाता है कि जगत्गुरु शंकराचार्य ने इसका जीर्णोद्धार कराया था।

6. राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह भवन 10-13वीं शताब्दी का है।

7. ग्वालियर से प्राप्त एक राजाभोज-स्तुति के अनुसार यह भवन 1076-99 ईसा के किसी व्यक्ति का बनवाया हुआ है।

जून 2013 का भूकम्प – इसके दौरान प्रबल बाढ़ व भूस्खलन के कारण केदारनाथ मंदिर की दीवारें टूट कर बाढ़ में बह गयीं थीं एवं मंदिर के मुख्य भाग सहित सदियों पुराना गुंबद तो सुरक्षित रहा परन्तु मंदिर के प्रवेश – द्वार सहित समीपवर्ती पूरा क्षेत्र नष्ट हो गया।

केदारनाथ की यात्रा

ऋषिकेश, हरिद्वार अथवा देहरादून तक पहुँचते हुए गौरीकुण्ड पहुँचा जा सकता है। शीतकाल में भारी हिमपात अथवा अन्य समय आकस्मिक रूप से किसी नैसर्गिक आपदा के समय केदारनाथ मंदिर पूर्णतया बन्द कर दिया जाता है जब यहाँ कोई नहीं ठहरता, अतः केदारनाथ यात्रा करने से पूर्व व दौरान स्थानीय सक्षम अधिकारियों व निवासियों के सम्पर्क में रहें।

नवम्बर से अप्रैल तक के छः मासों के लिये भगवान केदारनाथ की पालकी पंचमुखी शिवप्रतिमासहित गुप्तकाशी के निकट उखिमठ नामक एक स्थल पर स्थानान्तरित कर दी जाती है। केदार के लोग भी केदारनाथ से निकलकर आस-पास के ग्रामों में रहने के लिये चले जाते हैं।

केदारनाथ मंदिर-माहात्म्य

उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ व केदारनाथ का नाम सर्वप्रधान तीर्थों में गिना जाता है। केदारनाथ-दर्शन के पश्चात् बदरीनाथ-दर्शन का विशेष महत्त्व दर्शाया गया है। केदारनाथ पथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों का नाष एवं जीवन मुक्ति बतलाया गया है।

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