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जन्म से मृत्यु तक श्रीकृष्णा की सम्पूर्ण कथा

April 15, 2021 By Surendra Mahara 1 Comment

जन्म से मृत्यु तक श्रीकृष्णा की सम्पूर्ण कथा Lord Krishna Full Story In Hindi

Table of Contents

Lord Krishna Full Story In Hindi

भगवान श्री कृष्ण (Lord Krishna) के जीवन के कई रूपों और कहानियों के बारे में आपने जरुर सुना होगा और कई ऐसी कहानियां प्रचलित है जो बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है. भगवान विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण (Lord Krishna) की जीवन लीलाएँ तो संख्या में बहुत हैं परन्तु सटीक समय बता पाना कठिन है किन्तु विभिन्न स्रोतों से तथ्य जुटाकर सार समेटने का प्रयास किया जा रहा है.

श्रीकृष्णा की जन्मपूर्व तैयारियाँ

पूर्वजन्म में तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् विष्णु ने द्वापरयुग में देवकी-वसुदेव के पुत्र के रूप में जन्म लेने का वर दिया था। देवकी के गर्भ से प्रकट होने से पूर्व विभिन्न देवी-देवताओं ने हर्षित होकर कृष्ण स्तुति की। श्रावण मास में कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र (19/10 जुलाई) में अर्थात् 3228 ईसापूर्व मध्यरात्रि ये जन्मे।

कंस के सैनिकों द्वारा बाँधी बेड़ियाँ महामाया के प्रभाव में खुल गयीं व वसुदेव स्वयं ही अचेत रहकर चलते हुए कृष्ण (Lord Krishna) को मथुरा से नन्द व यशोदा के पास गोकुल छोड़ आये। जन्मसम्बन्धी संस्कार नन्द महाराज के घर गोकुल में ही सम्पन्न किया गया जिसमें गर्ग मुनि ने ‘कृष्ण’ यह नामकरण किया।

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Lord Krishna

Lord Krishna Full Story In Hindi

एक कथानुसार कृष्ण ने 6 दिन की आयु में पूतना-उद्धार किया। शीघ्र ही शकटानुसर को मार गिराया। तृणावर्त का वध किया एवं 3 वर्षायु तक ये गोकुल में ही रहे। श्रीकृष्ण ने Yashoda Mata को अपने मुख में ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के दर्शन करा दिये।

यशोदा उनकी अठखेलियों से परेशान होकर उन्हें बाँध-बाँध दिया करती थीं जिस कारण इनका एक नाम दामोदर पड़ा अर्थात् जिसका पेट बँधा हो, ऐसे ही एक बार ये यशोदा द्वारा ओखली से बाँधे गये थे तो अर्जुन के दो वृक्षों के बीच से निकल गये जिससे ये पेड़ उखड़ गये जिन्हें यमलार्जुन कहा जाता है.

इस प्रकार इन कुबेर पुत्रों नल कुबेर एवं मणिग्रीव की मुक्ति हुई जो एक अभिशाप वश अर्जुन के पेड़ बने हुए थे क्योंकि स्त्रियों संग कामविनोद किये जाने के कारण देवर्षि नारद ने इन्हें वृक्ष हो जाने को अभिशापित कर दिया था।

नन्द जी एवं गोकुल के अन्य वयोवृद्ध जनों ने कंस द्वारा श्रीकृष्ण को मारने बारम्बार भेजे जा रहे राक्षसों के उपद्रवों के कारण वृन्दावन जाने का निर्णय किया जहाँ जाकर श्रीकृष्ण ने बकासुर, अघासुर, वत्सासुर का वध किया।

पाँच वर्षायु में अघासुर-वध एवं ब्रह्माजी का मोहभंग, 6 वर्ष 6 माह की आयु में चीर-हरण लीला (अल्पायु में ही यह समझाने के लिये कि ब्रह्म व जीवात्मा के मध्य माया एक आवरण है जिसे परे करना आवश्यक होता है) की थी।

राधा व कृष्ण के वियोग के समय राधा की आयु 12 वर्ष एवं कृष्ण (Shri Krishna) की आयु 8 वर्ष थी। विभिन्न कथाओं में राधाकृष्ण (Radhakrishna) से 11 माह अथवा 4-5 वर्ष बड़ी होने का उल्लेख है।

सात वर्ष की आयु में महारास लीला रचायी व कनिष्ठा अँगुली से गोवर्द्धन पर्वत उठाया तथा 11 वर्ष 55 दिवस की आयु में कृष्ण मथुरा चले गये जहाँ से उनकी वापसी श्रीराधा, गोप-गोपियों व नन्द-यशोदा के पास तक नहीं हुई।

राधाकृष्ण का प्रेम आध्यात्मिक था, न कि कोई शारीरिक आकर्षण। अधिक विवरण के लिए ‘ राधा-कृष्ण की कहानियाँ ’ नामक आलेख पढ़ें। श्रीकृष्ण ने कालिया-दमन कर यमुना को उसके विष से मुक्त किया। देवराज इन्द्र के दर्प का दलन करने के लिये श्रीकृष्ण ने गोवर्द्धन उठाया एवं अब से गोवर्द्धन-पूजा की जाने लगी। इन्द्र एवं गौ सुरभि ने श्रीकृष्ण का एक अन्य नाम ‘गोविन्द’ रखा।

अक्रूर जी श्रीकृष्ण व बलराम को मथुरा लेकर आये जहाँ कंस ने कृष्ण के प्राणान्त की योजना बना रखी थी। श्रीकृष्ण ने इसी समय मामा कंस का वध करके मथुरावासियों को उसके आतंक से मुक्त करा दिया।

श्रीकृष्णा की 10 से 28 वर्षायु

अब श्रीकृष्ण ने अपने नाना उग्रसेन को मथुरा का राजा बनाया। तदुपरान्त श्रीकृष्ण एवं बलराम अवन्तिपुर में शास्त्रषिक्षार्थ सांदीपनि मुनि के आश्रम में रहे। शिक्षा समाप्ति में श्रीकृष्ण ने गुरु दक्षिणा में सांदीपनि मुनि का पुत्र यमराज से छुड़ाकर ला दिया।

श्रीकृष्णा की 29 से 125 वर्षायु

29 से 125 वर्षायु के मध्य श्रीकृष्ण ने द्वारका स्थापित की, इससे पहले इन्होंने मगधराज जरासंध को सत्रह बार परास्त किया था। रुक्मिणी के आह्वान पर इन्होंने रुक्मिणी का अपहरण कर विवाह किया। यह सब इनकी लीला रही। रुक्मिणी एवं कृष्ण के पुत्र प्रद्युमन के रूप में उस कामदेव का जन्म हुआ जिसे शिवजी ने अपना तृतीय नेत्र खोल भस्म कर दिया था।

श्रीकृष्ण की रानियों की संख्या 16000 से अधिक एवं सन्तानों की संख्या एक लाख से अधिक थी। श्रीकृष्ण इन्द्रप्रस्थ गये एवं पाण्डवों व कुन्ती से भेंट की। श्रीकृष्ण ने नरकासुर का प्राणान्त किया एवं इसके द्वारा अपहृत हज़ारों कन्याओं से विवाह किया ताकि इनपर राक्षस द्वारा छोड़ी हुई का लाँछन न लगे। श्रीकृष्ण ने बाणासुर का भी वध किया जो शिवभक्त था।

राजा नृग (इक्ष्वाकुपुत्र) को अभिशाप मुक्त किया। पौण्ड्रक, काशिराज व सुदक्षिण का वध किया। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण-पूजन से खिन्न होकर शिशुपाल ने श्रीकृष्ण का अपमान किया जिससे इसका भी वध करना पड़ा। श्रीकृष्ण ने साल्वा, दंतावक्र व विदुरथ का वध किया।

श्रीकृष्ण ने अपने द्वार आये सुदामा की भावविभोर होकर सेवा-सुश्रूषा की एवं उसे समृद्ध बना दिया। श्रीकृष्ण ने वसुदेव को दिव्यज्ञान प्रदान किया एवं देवकी के छहों मृत पुत्र लौटाये। श्रीकृष्ण ने अपनी भगिनी सुभद्रा का अपहरण कर विवाह करने का निर्देश अर्जुन को दिया।

श्रीकृष्ण पाण्डवों के शान्ति दूत बन कौरवों के पास हस्तिनापुर गये किन्तु कुटिल शकुनि व दुष्ट दुर्योधन के कारण प्रस्ताव सफल न हो सका एवं महाभारत के युद्ध की स्थिति आ पहुँची। श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथि बने एवं कुरुक्षेत्र के अर्जुन को गीतोपदेश किया। धर्मयुद्ध में पाण्डवों की विजय का वास्तविक नेतृत्व श्रीकृष्ण ने ही किया।

युद्ध के अन्त में जब सोते द्रौपदी-पुत्रों को द्रौणपुत्र अश्वत्थामा ने मार दिया था एवं उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को मारने के लिये ब्रह्मास्त्र चला दिया तो श्रीकृष्ण ने अपने चरित्रबल पर उसे पुनर्जीवित कर दिया जिससे परीक्षित का एक नाम ‘द्विज’ भी है अर्थात् दो बार जन्मा। श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय मित्र व भक्त उद्धव को अपने अन्तिम प्रवचन दिये जिसे उद्धवगीता भी कहा जाता है।

गाँधारी के दिये अभिशाप से यदुवंश का नाश हो गया। अपने जीवनान्त में श्रीकृष्ण सौराष्ट्र के एक वनप्रदेश में विश्राम कर रहे थे कि जरा (जो कि त्रेतायुगीन बालि का पुनर्जन्म था) के हाथों ग़ैर-इरादतन चले तीर के तलवे में लगने से श्रीकृष्ण यह धाम छोड़ अपने वैकुण्ठधाम चले गये।

वैसे भी घटोत्कचपुत्र बर्बरीक के कारण एवं सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अपनी चारित्रिक शक्ति से परीक्षित को जीवित करने के कारण श्रीकृष्ण दुर्बल हो चले थे क्योंकि दिव्यशक्ति का प्रयोग करना ब्रह्मास्त्र का अपमान होता.

अतः श्रीकृष्ण ने अपने चरित्र के बल पर परीक्षित को बचाया था, बिल्कुल साधारण मनुष्य जैसे, इस बात से यह भी सिद्ध होता है कि किसी का भी चरित्रबल कितना अधिक शक्तिशाली हो सकता है। आयें, अपना चरित्र उज्ज्वलतम बनायें।

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Comments

  1. udham singh says

    April 17, 2021 at 9:03 pm

    मुझे आपकी यह पोस्ट पढकर बहुत अच्छा लगा आपकी इस पोस्ट को पढ़कर काफी जानकारी भी मिली

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