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महान संत कबीर दास की जीवनी !

April 20, 2016 By Surendra Mahara 13 Comments

कबीरदास जी का जीवन – परिचय – Sant Kabirdas Life History In Hindi

Sant Kabirdas Life History In Hindi

कबिरा हरि के रूठते, गुरु के सरने जाय,

कह कबीर गुरु रुठते, हरि नहिं होत सहाय.

                                                कबीर दास

हिन्दू, मुसलमान, ब्राह्मण, शुद्र, धनी, निर्धन सबका वही एक प्रभु है. सभी की बनावट में एक जैसी हवा, खून, पानी का प्रयोग हुआ है |  भूख, प्यास, सर्दी, नींद सभी की जरूरतें एक जैसी है.

सूरज प्रकाश और गर्मी सभी को देता है, वर्षा का पानी सभी के लिए है, हवा सभी के लिए है सभी एक ही आसमान के नीचे रहते है. इस तरह जब सभी को बनाने वाला ईश्वर, किसी के साथ भेद – भाव नहीं करता तो फिर मनुष्य – मनुष्य के बीच ऊँच – नीच, धनी – निर्धन, छुआ – छूत का भेद – भाव क्यों है ?

ऐसे ही कुछ प्रश्न कबीर के मन में उठते थे जिनके आधार पर उन्होंने मानव मात्र को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी | कबीर ने अपने उपदेशो के द्वारा समाज में फैली बुराइयों का कड़ा विरोध किया और आदर्श समाज की स्थापना पर बल दिया.

Sant Kabirdas Life History In Hindi

Kabir Das

कबीर के माता – पिता और जन्म के विषय में निश्चित रूप से कुछ कहना संभव नहीं है. फिर भी माना जाता है कि उनका जन्म सन 1398 ई. में काशी में हुआ था. कबीर का पालन – पौषण नीरू और नीमा नामक जुलाहे दम्पत्ति ने किया था.

इमका विवाह लोई नाम की कन्या से हुआ जिससे एक पुत्र कमाल तथा पुत्री कमाली का जन्म हुआ. कबीर ने अपने पैतृक व्यवसाय (कपड़ा बुनने का काम) में हाथ बँटाना शुरू किया. धार्मिक प्रवृतियो के कारण कबीर रामानंद के शिष्य बन गये.

कबीर पढ़े – लिखे नहीं थे इसलिए उनका ज्ञान पुस्तकीय या शास्त्रीय नहीं था | अपने जीवन में उन्होंने जो अनुभव किया, जो साधना से पाया, वही उनका अपना ज्ञान था | जो भी ज्ञानी विद्वान उनके संपर्क में आते उनसे वे कहा करते थे-

‘तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आँखों की देखी’

सैकड़ो पोथियाँ (पुस्तकें) पढ़ने के बजाय वे प्रेम का ढाई अक्षर पढ़कर स्वयं को धन्य समझते थे. कबीर को बाह्य आडम्बर, दिखावा और पाखंड से चिढ़ थी. मौलवियों और पंडितो के कर्मकांड उनको पसंद नहीं थे.

मस्जिदों में नमाज पढ़ना, मंदिरों में माला जपना, तिलक लगाना, मूर्तिपूजा करना रोजा या उपवास रखना आदि को कबीर आडम्बर समझते थे. कबीर सादगी से रहना, सादा भोजन करना पसंद करते थे. बनावट उन्हें अच्छी नहीं लगती थी. अपने आस – पास के समाज को वे आडम्बरो से मुक्त बनाना चाहते थे.

साधू – संतो के साथ कबीर इधर – उधर घुमने जाते रहते थे. इसलिए उनकी भाषा में अनेक स्थानों की बोलियों के शब्द आ गये है. कबीर अपने विचारो और अनुभवों को व्यक्त करने के लिए स्थानीय भाषा के शब्दों का प्रयोग करते थे. कबीर की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ भी कहा जाता है.

कबीर अपनी स्तःनीय भाषा में लोगो को समझाते, उपदेश देते थे. जगह – जगह पर उदाहरण देकर अपनी बातो को लोगो के अंतरमन तक पहुँचाने का प्रयास करते थे. कबीर की वाणी को साखी, सबद और रमैनी तीनो रूपों में लिखा गया है जो ‘बीजक’ के नाम से प्रसिद्ध है. कबीर ग्रन्थावली में भी उनकी रचनाएँ संग्रहित है.

कबीर की दृष्टि में गुरु का स्थान भगवान से भी बढ़कर है. एक स्थान पर उन्होंने गुरु को कुम्हार बताया है, जो मिटटी के बर्तन के समान अपने शिष्य को ठोक – पीटकर सुघड़ पात्र में बदल देता है. सज्जनों, साधु – संतो की संगति उन्हें अच्छी लगती थी. यद्यपि कबीर की निन्दा करने वाले लोगो की संख्या कम नहीं थी लेकिन कबीर निन्दा करने वाले लोगो को अपना हितैषी समझते थे-

निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय |
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ||

उस समय लोगो के बीच में ऐसी धारणा फैली हुई थी कि मगहर में मरने से नरक मिलता है. इसलिए कबीर अपनी मृत्यु निकट जानकर काशी से मगहर चले गये और समाज में फैली हुई इस धारणा को तोड़ा. सन 1518 ई. में उनका निधन हो गया. कहा जाता है कि उनके शव को लेकर विवाद हुआ. हिन्दू अपनी प्रथा के अनुसार शव को जलाना चाहते थे और मुस्लिम शव को दफनाना चाहते थे.

शव से जब चादर हटाकर देखा गया तो शव के स्थान पर कुछ फूल मिले. हिन्दू – मुसलमान दोनों ने फूलों को बाँट लिया और अपने विश्वास और आस्था के अनुसार उनका संस्कार किया. कबीर सत्य बोलने वाले निर्भीक व्यक्ति थे. वे कटु सत्य भी कहने में नहीं हिचकते थे. उनकी वाणी आज के भेदभाव भरे समाज में मानवीय एकता का रास्ता दिखने में सक्षम है.

यह जरुर पढ़े : सन्त कबीर दास के अनमोल वचन और दोहे

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Comments

  1. Ajay das says

    November 22, 2019 at 1:37 pm

    Kabir saheb ji supreme god hai ek din sbko malum ho jayega thank you

  2. मधु वर्मा says

    August 21, 2018 at 10:23 pm

    कबीर साहब कह कर सम्बोधित किया जाता हैं ।कबीर दास नहीं।
    लोही सद्गुरु कबीर साहेब की शिष्या थीं।
    इन तथ्यों पर ध्यान देने की अवश्यकता हैं।

  3. Lucky Kumar says

    July 27, 2017 at 6:04 am

    Thanks uploader ..it is the best ….or…nothing more details about sant Kabir das ………..it is enough for me…that’s all thank you

  4. Ayan says

    July 20, 2017 at 9:00 am

    Kabir ke updeso ko unke student dharamdas ne likha tha kyonki Kabir hi anpadthe

  5. Ayan says

    July 20, 2017 at 8:58 am

    Kabir ke anpad hone ke karan unke updeso ko unke student dharamdas ne likha tha. Thank you

  6. sukriti singh says

    June 14, 2017 at 4:18 pm

    It is really helpful …???

  7. Surendra Mahara says

    April 19, 2017 at 10:53 am

    ओके जगमीत हम इसे अपडेट करेंगे.

  8. Jagmeet says

    April 19, 2017 at 5:58 am

    Sir mujhe lagta hvki kabirdas ki birth date misprint hui h. 1368 ku jagah 1398 hona chahiye tha. Thank you.

  9. aman nishad says

    December 7, 2016 at 2:56 pm

    It is best for me and thanks to Uploaders

  10. Chhinder Kumar says

    October 28, 2016 at 3:36 am

    I feel kabir is Live God In the World

  11. Surendra mahara says

    June 15, 2016 at 12:43 pm

    धन्यवाद भानू प्रताप जी।

  12. Bhanu Pratap Yadav says

    June 15, 2016 at 12:37 pm

    very nice

  13. Bhanu Pratap Yadav says

    June 15, 2016 at 12:18 pm

    very nice

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