भगवान गणेश की 6 प्रसिद्ध गाथाएँ Lord Ganesh Ji Best Stories In Hindi
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Lord Ganesh Ji Best Stories In Hindi
गजाननं भूतगणादिसेवितम् कपित्थजम्बूफल चारुभक्षणम् !
उमासुतं शोकविनाषकारकम् नमामि विघ्नेष्वर पादपंकजम्।।
अर्थात् हे गजाजन ! भूतगणों इत्यादि द्वारा आप सेवित हैं, कबीट व जामुन का फल आपको प्रिय है. पावर्ती-पुत्र होकर आप शोक का नाष करने वाले विघ्नहर्ता हैं, आपके चरण कमलों को मेरा नमस्कार है।
पंचदेव ( गणेश, विष्णु, शिव, देवी एवं सूर्य ) में सम्मिलित पार्वती पुत्र गणेशजी प्रथम पूज्य कहे जाते हैं. किसी भी शुभ कार्य ( गृहप्रवेश, समारोह-उद्घाटन इत्यादि ) में गणेश-पूजन की परम्परा है।
शिवजी के समान इनके पुत्र गणेशजी भी सीधे-साधे एवं शीघ्र मान जाने वाले कहलाते हैं जिनकी पूजा कठिन अथवा श्रम साध्य बिल्कुल नहीं होती एवं ये शीघ्र रुष्ट भी नहीं होते.
Lord Ganesh Ji Best Stories In Hindi
यहाँ हम मूशक वाहन गणेश जी से जुड़ी 6 गाथाओं का उल्लेख कर रहे हैं जिनमें श्रीगणेश का महत्त्व परिलक्षित होता है :
1. उत्पत्ति :
शिव के तो अनेक गण हैं परन्तु माता पार्वती के पास एक भी नहीं. एक बार स्नान के समय पार्वती के मन में एक गण व पुत्र की इच्छा उत्पन्न हुई। इन्होंने अपनी काया से उबटन निकाल उसे एक शिशु के रूप में मूर्तिमान कर दिया।
इस प्रकार उसे जीवन प्रदान किया तो एक बालक दिखायी दिया जिसे पार्वती ने पुत्ररूप में मोदक बनाकर खिलाये जो गणेश को बहुत पसन्द आये तथा पार्वती स्नान हेतु चली गयीं एवं विनायक गणेश को द्वार पर खड़े रहने का आदेश दिया कि मेरे स्नान सम्पन्न करने से पूर्व कोई भीतर न आये।
2. गजमुख :
उपरोक्त घटना के बाद उपरोक्त घटना के बाद गणेश पार्वती के स्नानघर के द्वार पर पहरेदारी कर रहे थे तो शिव ने भीतर प्रवेश करना चाहा। फिर शिव पार्वती के स्नानघर के द्वार पर पहरेदारी कर रहे थे तो शिव ने भीतर प्रवेश करना चाहा।
फिर शिव व गणेश के मध्य युद्ध किया जाने लगा, शिव जी के हाथों त्रिशूल से गणेश जी का शिरोच्छेद हो गया, तदुपरान्त पार्वतीमाता कुपित होकर प्रलय की हुंकार भरने लगीं.
देवी-देवताओं के अत्यधिक आग्रहों के बाद पार्वती बोलीं कि मेरा पुत्र यदि पुन र्जीवित हो जाये तो मैं अपना क्रोध नियन्त्रित कर लूँगी। गणेश जी के शरीर में उस एैरावत का मुख लगाया गया जो इन्द्र के अभिशाप वश एक सामान्य हाथी बनकर धरती पर घूम रहा था व मुक्ति की प्रतीक्षा कर रहा था।
समुद्रमंथन से निकले एैरावत को स्वर्ग की अप्सराओं का नृत्य व विलास में देवों का डूबे रहना तनिक भी नहीं भाता था, इसलिये विरोध किया तो देवराज इन्द्र ने उसे दुत्कारकर धरती पर अभिशापित कर दिया था। तत्पश्चात पार्वतीपुत्र गणेश के शरीर में मस्तक के रूप में स्थान पाकर एैरावत का मान देवों से अधिक हो गया।
3. पृथ्वी की परिक्रमा :
एक बार की बात है जब कुछ व्यक्तियों के मन में शंका होने लगी कि क्या गणेश को लाढ़-प्यार में ही प्रथमपूज्य बना दिया गया है अथवा वास्तव में वे इस पदवी के अधिकारी हैं. इस सम्बन्ध में अपने दोनों पुत्रों ( कार्तिकेय व गणेश ) की पात्रता परखने की दृष्टि से शिव-पार्वती ने उन दोनों की परीक्षा लेने की ठानी।
दोनों से कहा गया कि शीघ्रातिशीघ्र पृथ्वी की परिक्रमा करके आयें। कार्तिकेय अपने वाहन मयूर के साथ तीव्र वेग से उड़ चले परन्तु गणेश ने सोचा कि धीमी गति से चलने वाले मूषक पर सवार होकर वे कहाँ तक जा पायेंगे।
इस प्रकार उन्होंने विचार किया कि सन्तान के लिये तो उसके माता-पिता ही समूची सृष्टि होते हैं, इस कारण गणेश ने अपने पिता-माता शिव-पार्वती की परिक्रमा की एवं कहा कि मैंने पृथ्वी की परिक्रमा कर ली है।
जब कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा कर लौट आये तो गणेष की जय-जयकार से अचम्भित होकर वास्तविकता जानी। आयु में छोटे होने के बावजूद गणेश की बुद्धिमत्ता से उनकी पात्रता सिद्ध हो गयी।
4. द्वापर में वेदव्यास के लेखक :
महर्षि वेदव्यास महाभारत की समस्त घटनाओं के साक्षी रहे हैं, इन्होंने सम्पूर्ण महाभारत को लिपिबद्ध करने का विचार किया। सुयोग्य लिपिक की खोज श्रीगणेश के मिलने से समाप्त हुई परन्तु श्रीगणेश की शर्त थी कि ये लिखना कभी नहीं रोकेंगे, यदि रुकना पड़ा तो ये आगे नहीं लिखेंगे। इस कठिन शर्त में वेदव्यास ने भी अपनी शर्त जोड़ दी कि मेरी वाग्धारा कभी नहीं रुकेगी परन्तु श्रीगणेश बिना समझे कुछ नहीं लिखेंगे।
जब व्यासजी को आगे के विषय में कुछ विचारने की आवश्यकता होती तो वे एक श्लोक दृष्टकूट बोल दिया करते जिसे समझने में श्रीगणेश को जितना समय लगता उतने में वेदव्यास आगे का विषय तैयार कर लेते।
इस प्रकार प्रति सौ श्लोकों के उपरान्त एक दृष्टकूट पद आता है। सतत् प्रवाह को बनाये रखने के प्रयास में जब कलम व लेखनी टूट गयी तो श्रीगणेश ने स्वयं अपना दाँत तोड़कर उसकी लेखनी बना ली।
5. कुबेर का अहंकार-भंग :
एक बार कुबेर धनादि समृद्धि के अहंकार में डूबा जा रहा था, उसने अहं में चूर हो शिव परिवार को भोज में आमंत्रित किया किन्तु किसी न किसी रूप में सभी ने जाने से मना कर दिया एवं अन्ततः गणेश जी को भेजा गया.
गणेशजी कुबेर के अहं को तोड़ना चाहते थे, ये खाते गये, खाते गये, कुबेर व्यंजन-फल बुलवाते गये, बुलवाते गये, फिर अन्ततोगत्वा कुबेर की सम्पदा व कोष में रिक्तता छा गयी। गणेशजी ने कहा कि मेरा पेट तो अभी भरा नहीं तो कुबेर ने अहंकार त्याग गणेश जी से क्षमा माँगी।
6. दूर्वा से उदर हुआ शीतल :
एक बार अनलासुर के अत्याचार से देवगण, ऋषि-मुनि, पशु-पक्षी इत्यादि असहनीय पीड़ा में पड़ गये तो गणपति व अनलासुर के मध्य भीषण युद्ध में गणपति ने अनलासुर को निगल लिया.
इससे इनके पेट में तीव्र जलन होने लगी, विविध उपचारों में लाभ न होता देख कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गाँठ बना गणपति को खिलायीं, इस प्रकार इनके उदर की जलन शान्त हो गयी।
श्रीगणेश का वर्णन अनेक ग्रंथों में उपलब्ध है जिनमें अथर्ववेद, स्कन्द पुराण, मत्स्य पुराण, कूर्म पुराण, वराह पुराण, अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण, वायु पुराण, गणेशोपनिषद, गणेश पुराण, ब्रह्मपुराण, ब्रह्मवैवत्र्तपुराण, महाभारत, मुद्गल पुराण, शिव पुराण, उपनिषद् ग्रंथ, गणेश गीता, गणपति सम्भव, नारद पुराण, लिंग पुराण, मार्कण्डेय पुराण, श्रीमद्भागवद्पुराण, कल्कि पुराण, भविष्य पुराण सम्मिलित हैं।
गणेशजी की गाथाएँ बहुसंख्य हैं, जैसे कि दीपावली में महालक्ष्मी के संग श्रीगणेश का पूजन किया जाता है क्योंकि ऐसा मानकर चला जाता है कि यदि बुद्धि के आगमन से पहले ही लक्ष्मी आयीं तो व्यक्ति का पतन हो सकता है, इसलिये श्रीगणेश बुद्धि लाते हैं, फिर महालक्ष्मी आयें तो व्यक्ति सम्पत्ति के कारण विपत्ति में नहीं पड़ेगा एवं बुद्धि उस सम्पत्ति को सँभाले रखेगी व सम्बन्धित अनिष्टों से बचायेगी।
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kitni sunadar kahani hai mujhe acha laga ganpati bappa k baare mai jaan kar!
WAAH KITNI SUNDAR KAHANI HAI MUJHE GANPATI BAPPA K BAARE MAI OR JAAN KAR KHUSHI HUI!
धन्यवाद आपने मेरे कॉमेंट को जगह दी🙏
बहुत अच्छी कहानी लिखी है आपने..
ज्ञानवर्धक कहानी…. बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर आप ऐसी ज्ञान की बाते लिखते रहिये |