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राधा कृष्ण की कहानियाँ Radha Krishna Famous Stories In Hindi

August 7, 2020 By Surendra Mahara 1 Comment

राधा कृष्ण की कहानियाँ Radha Krishna Famous Stories In Hindi

Table of Contents

  • राधा कृष्ण की कहानियाँ Radha Krishna Famous Stories In Hindi
    • Radha Krishna Famous Stories In Hindi
      • राधा को मिला शाप व निवारण :
      • महारास :
      • अष्टसखी मंदिर :
      • श्रीराधा रास बिहारी मंदिर :
      • निधिवन :
      • राधा की चरण धूलि कृष्ण की प्राण-संजीवनी :
      • राधा देहत्याग :

राधा कृष्ण की कहानियाँ Radha Krishna Famous Stories In Hindi

सर्वप्रथम यह जान लेना आवश्यक प्रतीत होता है कि किसी भी धर्मग्रंथ में राधा के नाम का उल्लेख नहीं है। महाभारत व श्रीमद्भगवत् गीता में भी उनका उल्लेख नहीं।

जयदेव ने पहली बार राधा का उल्लेख किया जिसके बाद श्रीकृष्ण का नाम राधा से जुड़ा हुआ है। यह भी पहले ही स्पष्ट कर दिया जाना तर्कसंगत रहेगा कि राधाकृष्ण का सम्बन्ध अकाम था क्योंकि राधा व कृष्ण के वियोग के समय राधा की आयु 12 वर्ष एवं कृष्ण की आयु 8 वर्ष थी।

Radha Krishna Famous Stories In Hindi

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Radha Krishna

विभिन्न कथाओं में राधा कृष्ण से 11 माह अथवा 4-5 वर्ष बड़ी होने का उल्लेख है। एक विवरण अनुसार कृष्ण ने 6 दिन की आयु में पूतना-उद्धार, पाँच वर्षायु में अघासुर-वध एवं ब्रह्माजी का मोहभंग, 6 वर्ष 6 माह की आयु में चीर-हरण लीला (अल्पायु में ही यह समझाने के लिये कि ब्रह्म व जीवात्मा के मध्य माया एक आवरण है जिसे परे करना आवश्यक होता है) की थी एवं सात वर्ष की आयु में महारास लीला रचायी व कनिष्ठा अँगुली से गोवर्द्धन पर्वत उठाया तथा 11 वर्ष 55 दिवस की आयु में कृष्ण मथुरा चले गये जहाँ से उनकी वापसी श्रीराधा, गोप-गोपियों व नन्द-यषोदा के पास तक नहीं हुई।

राधाकृष्ण का प्रेम आध्यात्मिक था, न कि कोई शारीरिक आकर्षण। 16108 नारियों को कृष्ण की रानियाँ कहा जाता है जिनमें से हज़ारों स्त्रियाँ तो एक राक्षस के बन्धन से कृष्ण द्वारा छुड़ायीं गयीं थीं समाज द्वारा जिन्हें दुत्कारे जाने से बचाने के लिये कृष्ण ने उन्हें अपनी पत्नी घोषित कर दिया था।

राधा का प्रेम सब पर भारी था, यह बात श्रीकृष्ण ने स्वयं रुक्मिणी को बतायी थी। यह भी ध्यान रहे कि भागवत् कथा में कृष्ण के साथ (किन्तु पहले) व अलग से भी राधा का ही नाम लिये जाने की परम्परा-सी है।

राधा का उद्भव : श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति के रूप में राधा का जन्म कृष्ण जन्म से पहले ही भूलोक पर हुआ।

राधा को मिला शाप व निवारण :

नृगपुत्र राजा सुचन्द्र एवं पितरों की मानसी कन्या कलावती ने द्वादश (बारह) वर्षों तक तप करके ब्रह्मदेव से राधा को पुत्री रूप से प्राप्त करले का वर माँगा था जो द्वापर में वृषभानु व कीर्ति के नाम से विख्यात् हुए। द्वापरयुग में श्री वृषभानु एवं कीर्ति के घर पुत्रीरूप से जन्मने से पहले श्रीराधा जब एक बार गोलोक विहारी से रूठ गयीं थीं एवं उसी समय गोप सुदामा आये थे।

राधा का मान सुदामा को प्रिय न लगा। उन्होंने श्रीराधा की भत्र्सना की जिससे कुपित होकर श्रीराधा बोलीं- ” सुदामा ! तुम मेरे हृदय को संतप्त करते हुए किसी असुर समान व्यवहार कर रहे हो, अतः तुम असुरयोनि में जन्म लो !“। सुदामा अत्यन्त आत्र्त स्वर में बोल उठे- ” मुझे असुर योनि प्राप्ति का दुःख नहीं, बस कृष्ण वियोग का कष्ट है, इस वियोग का तुम्हें अनुभव नहीं है, तुम्हें भी यह अनुभव हो.

द्वापरयुग में तुम भी अपनी सखियों संग गोपकन्या के रूप में जन्मोगी व श्रीकृष्ण से विलग रहोगी “। शाप-प्रतिशाप के इस आदान-प्रदान के बाद श्रीराधा को अपनी भूल का भान हुआ एवं ये भयाक्रान्त हो गयीं। एक अन्य कथानुसार श्रीसुदामा के शाप के कारण राधा को कृष्ण से 100 वर्षों का वियोग झेलना पड़ा।

मोर-कुटी : बरसाने के पास यह एक छोटा-सा स्थान है जहाँ कृष्ण ने राधा के कहने पर मयूर के साथ नृत्य-प्रतियोगिता की थी।

महारास :

इसमें काम अथवा दैहिक रुचि का कोई स्थान नहीं, वास्तव में गोपियाँ भक्तिन रूप होकर आती हैं एवं सब कुछ छोड़ प्रभु मिलन के लिये एकत्र होती हैं तथा प्रभु बाधक हर माया को दूर कर आत्मा-परमात्मा के एकाकार हो जाने हेतु लीला रचते हैं ताकि सब भक्तिभाव में ऐसे लीन हो जायें जहाँ अन्य किसी भाव के लिये स्थान ही न रह जाये। ‘गोपी’शब्द का अर्थ यह कहा गया है कि गो (इन्द्रियाँ) व पी (पान करने वाली) अर्थात् जो अपनी समस्त इन्द्रियों से भक्तिरस का ही पान करे वह गोपी है।

अष्टसखी मंदिर :

राधाजी के साथ ही इनकी मुख्य आठ सखियों का उल्लेख मिलता है : ललिता, विषाखा, चित्रा, इन्दुलेखा, चम्पकलता, रंगदेवी, तुंगविद्या एवं सुदेवी। वृन्दावन में इन सखियों को समर्पित अष्टसखी मंदिर है।

श्रीराधा रास बिहारी मंदिर :

यह मंदिर 84 कोस बृज-परिक्रमा करने आये भक्तों के लिये महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यह श्री बाँके बिहारी मंदिर के निकट स्थित है, ऐसा मान्यता है कि श्रीराधा रासबिहारी मंदिर से भक्तों को कभी-कभी कुछ ऐसी पायल-ध्वनियाँ सुनायी दे जाती हैं जो किसी दिव्य धुन के साथ बज रही हों।

निधिवन :

मथुरा के वृन्दावन में यमुनातट पर स्थित निधिवन के बारे में कहा जाता है कि यहाँ प्रति रात्रि श्रीराधाकृष्ण गोपियों संग रास रचाने आते हैं। कहा जाता है कि इसके सभी लगभग 16,000 वृक्ष (वैसे अभी इस से कम संख्या में वृक्ष होने का अनुमान है) असाधारण रूप से आड़े-तिरछे हैं जिनकी डालियाँ नीचे झुकी हुईं व परस्पर गुँथी हुईं हैं, ये वृक्ष वास्तव में गोपियाँ हैं जो अपने वास्तविक रूप में आकर रासलीला करती हैं क्योंकि यहीं पर भगवान् श्रीकृष्ण ने कार्तिक पूर्णिमा की दमकती आभा में रास का आयोजन किया था।

ऐसी धारणा है कि रासलीला देखने वाले भक्तगण पागल, अंधे, मूक-बधिर हो जाते हैं ताकि वे इस महारास के बारे में किसी को व्याख्या न कर सकें। इसी कारण संध्या आरती के उपरान्त लगभग साढ़े सात बजे यहाँ के समस्त पुजारी, भक्तगण व यहाँ के पशु-पक्षी भी यहाँ से चले जाते हैं एवं परिसर के मुख्यद्वार पर ताला जड़ दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ जो भी रात्रिकाल में ठहर जाता है एवं महारास के दर्शन कर लेता है वह सांसारिक बन्धनों से मुक्ति पा लेता है।

राधा की चरण धूलि कृष्ण की प्राण-संजीवनी :

एक बार श्रीकृष्ण ने रोगी होने का स्वांग रचा। सभी वैद्यों द्वारा किये उपचार के प्रयास अप्रभावी रहे। पूछे जाने पर श्रीकृष्ण ने कहा- ” मेरे प्रिय की चरण धूलि ही मुझे नीरोग कर सकती है “।

रुक्मिणी इत्यादि रानियों ने अपने प्रिय को चरणधूलि देकर पाप का भागी बनने से मना कर दिया परन्तु राधाजी को प्रिय कृष्ण की पीड़ा का समाचार व उपाय ज्ञात होते से ही चरणधूलि सौंपते हुए बोलीं-” भले मुझे सौ नरकों के पाप भुगतने पड़ें परन्तु अपने प्रिय को मैं कष्ट में नहीं देख सकती “।

राधा देहत्याग :

एक कथानुसार राधा का अन्तकाल निकट आने पर श्रीकृष्ण उनसे मिलने गये थे, राधा से उन्होंने कहा कि कुछ माँग लो परन्तु राधा कुछ न बोलीं एवं कृष्ण द्वारा पुनः ऐसा बोले जाने पर राधा ने उन्हें बाँसुरी बजाने को कहा। सुरीली धुन में श्रीकृष्ण दिन रात बाँसुरी बजाते रहे जब तक कि राधा आध्यात्मिक रूप से कृष्ण में विलीन नहीं हो गयीं।

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Comments

  1. Dk says

    September 8, 2020 at 10:13 pm

    Nice story

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