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परशुराम अवतार की सम्पूर्ण जानकारी ?

April 22, 2020 By Surendra Mahara 1 Comment

परशुराम अवतार की सम्पूर्ण जानकारी ! Parashurama History Story Jayanti In Hindi

Parashurama History Story Jayanti In Hindi

26 अप्रैल 2020 को परशुराम प्रकट उत्सव है। वैशाख मास में शुक्लपक्ष तृतीया को भगवान् विष्णु ने छटवें अवतार परशुराम के रूप में जन्म लिया। सप्तऋषियों में से एक जमदग्नि ऋषि के पुत्र होने से इन्हें जामदग्न्य भी कहा जाता है। विष्णुपुराणानुसार चैदह मन्वतरों में से वर्तमान सप्तम वैवस्वत मन्वन्तर में कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वमित्र, गौतम, जमदग्नि व भारद्वाज ये सात ऋषि सप्तऋषि हैं।

परशुराम-जयन्ती को ही अक्षय तृतीया अथवा आखा तीज कहते हैं जिसके बारे में ऐसी मान्यता है कि इस तिथि को किये गये पुण्यकर्म के फल का कभी क्षय नहीं होता। परशुराम का विवरण भागवत्पुराण, विष्णु पुराण, रामायण, रामचरित मानस एवं कल्कि पुराण में विस्तृत रूप से मिलता है।

Parashurama History Story Jayanti In Hindi

परशुराम अवतार की सम्पूर्ण जानकारी, Parashurama History Story Jayanti In Hindi

Parashurama

विष्णु-दशावतार में विष्णुदेव के दस प्रमुख अवतार हैं जिनका क्रम इस प्रकार है : मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध व कल्कि। आइए अब विष्णु-अवतारी परशुराम के स्वरूप को निकटता से जानने का सौभाग्य प्राप्त करें.

जन्म से ब्राह्मण, कर्म से क्षत्रिय अमर परशुराम का व्यवहार आरम्भ से ही अत्यधिक न्यायप्रिय है, तनिक भी अनुचित किये जाने का समाचार सुनते ही इन्हें क्रोध आ जाता है। श्रीमद्भागवत अनुसार एक बार पिता जगदग्नि ने माता रेणुका को हवन हेतु जल लाने गंगातट पर भेजा। वहाँ अप्सराओं के संग रमण करते गन्धर्वराज चित्ररथ को देखकर रेणुका उस पर आसक्त हो गयीं.

अपनी योगदृष्टि से यह सब देख जमदग्नि ने कुपित होकर परशुराम को पुकारा, पिता की पुकार सुनते ही परशुराम आये एवं जमदग्नि से उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया एवं रेणुका को मृत्युदण्ड देने का आदेश दिया.

ना-नुकुर करने के बाद अन्ततः न्यायप्रिय व आज्ञाकारी पुत्र परशुराम ने अपनी माता रेणुका का शिरोच्छेद कर दिया क्योंकि परस्त्री, परपुरुषगमन, विवाहपूर्व, विवाहेतर सम्बन्ध की इच्छा भी मानसिक व्यभिचाररूपी महापाप है। जमदग्नि ने प्रसन्न होकर परशुराम से वर माँगने को कहा तो परशुराम ने कहा कि वे उनकी माता को जीवित कर दें एवं उनके मन से इस घटना की स्मृति मिटा दें।

गणेशजी का एकदंत होना :

गणेशजी के एकदन्त होने के विषय में ब्रह्मवैवर्त पुराणानुसार परशुराम शिव-भेंट की इच्छा से आये तो श्रीगणेश ने बिना पूर्वानुमति शिव से मिलने से मना कर दिया तो परशुराम ने कुपित होकर अपने परशु से गणेशजी का एक दाँत तोड़ दिया, तभी से ये एकदन्त कहलाने लगे।

(इतिहासज्ञों के एक पक्ष के अन्य मत अनुसार गणेश जी का दाँत कात्र्तिकेय ये युद्ध में टूटा था व अन्य पक्ष के अनुसार वेदव्यास को सुनते हुए निर्बाध रूप से महाभारत लिखने के लिये इन्होंने स्वयं अपना दाँत तोड़कर उसकी लेखनी बना ली थी)।

अरुणाचल में परशुराम मातृहन्ता होने के पाप के प्रायश्चित एवं इस कारण क्षीण तपोबल को पुनः पाने हेतु ये अरुणाचल प्रदेश निकल गये जहाँ जिस कुण्ड में इन्होंने स्नान व तप किया उसे आज परशुराम कुण्ड कहा जाता है।

सहस्रबाहु का दर्प तोड़ा :

हैहय वंश में जन्मे व माहिष्मति राज्य के राजा कार्तवीर्य सहस्रार्जुन ने दत्तात्रेय से वर पाया था कि युद्ध के समय उसकी भुजाएँ एक हज़ार हो जायेंगी। एक बार जमदग्नि के यहाँ थकी-भूखी सेना सहित सहस्रबाहु आ पहुँचा।

जमदग्नि ने कपिला कामधेनु की सहायता से सबका यथोचित सत्कार किया किन्तु कृतज्ञ होने के स्थान पर अहंकारी सहस्रबाहु जमदग्नि की कामधेनु को बलपूर्वक ले जाने लगा एवं जमदग्नि का अपमान करने लगा।

दिव्य शक्तिशाली माता कामधेनु ने उसके सैनिकों को उठा-उठाकर पटका। अन्ततः सहस्रबाहु ने माता कामधेनु पर प्रहार करना चाहा तो ये बोलीं – ” मैं तो तुझे इसी क्षण परलोक पहुँचा सकती हूँ परन्तु तुझे मिले वरदान की लाज रखते हुए तेरे साथ चल रही हूँ, शीघ्र ही तेरी मृत्यु तेरे पास पहुँच जायेगी “।

आश्रम को अव्यवस्थित देख परशुराम ने क्रोध से भकर गर्जना ही। ये दौड़ते हुए सहस्रबाहु के पास जा पहुँचे एवं दोनों में भीषण युद्ध किया गया, अन्ततः पापी सहस्रबाहु का वध करके माता कामधेनु को परशुराम सम्मान सहित वापस ले आये।

शिव भक्त परशुराम :

परशुराम सदा परशु व धनुष-बाण लिये रहते हैं. परशुराम को यह परशु भगवान शिव से प्राप्त हुआ है जिसके कारण ये राम के स्थान पर परशुराम कहलाने लगे।

रामायण में राम संग परशुराम :

सीता स्वयंवर के समय जब श्रीराम के हाथों प्रत्यंचा चढ़ाने के प्रयास में शिव धनुष टूटा तो परशुराम आ पहुँचे एवं राम पर कोप किया परन्तु शीघ्र ही उन्हें भान हो गया कि ये विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम हैं एवं इन दोनों ने परस्पर नमस्कार किया एवं एक-दूसरे की स्थितियों को समझा एवं परशुराम वहाँ से प्रस्थान कर गये।

महाभारत में परशुराम :

परशुराम ने भीष्म, द्रौण व कर्ण को शस्त्र विद्या सिखायी थी। क्षत्रियों की अहंकार प्रवृत्ति को देखते हुए परशुराम क्षत्रियों को शस्त्रविद्या नहीं प्रदान करते थे परन्तु भीष्म व कर्ण अपवाद हैं।

कर्ण ने ब्राह्मण के रूप में आकर परशुराम से शस्त्र शिक्षा अर्जित की थी परन्तु जब परशुराम को इस वस्तु स्थिति का भान हुआ तो उन्होंने कर्ण को अभिशापित कर दिया कि जब इसे शस्त्रप्रयोग की अत्यधिक आवश्यकता होगी तब यह शस्त्रविद्या तुम भूल जाओगे. जिसके फलस्वरूप महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सामने निर्णायक युद्ध में कर्ण अपनी साड़ी शस्त्रविद्या भूल जाता है.

21 बार क्षत्रियों को संहारा :

परशुराम सत्तारूढ़ क्षत्रियों के अहंकार से अत्यधिक आवेशित होते रहे हैं, प्रजा पर शासन करने की क्षत्रिय जनित कामना से इन्हें बड़ा बैर है। इन्होंने देखा कि क्षत्रियों के कारण संसार का बहुत अहित हो रहा है तथा सहस्रार्जुन-वध का प्रतिशोध लेने उसके सम्बन्धी परशुराम-आश्रम आये व पाया कि परशुराम तो नहीं दिख रहे व इस प्रकार जमदग्नि की हत्या कर दी. इससे भी कुपित होकर परशुराम क्षत्रिय-संहार की रक्तपूरित यात्रा के लिये निकल पड़े।

इस कारण इन्होंने पृथ्वी को 21 बार क्षत्रियविहीन किया। हर बार क्षत्रियों की पत्नियाँ क्षत्राणियाँ जीवित रहती थीं एवं इस प्रकार क्षत्रिय पुनः उत्पन्न हो जाते थे; परशुराम ने पाँच झीलों को रक्त से भर दिया था एवं फिर बाद में महर्षि ऋचीक ने उन्हें इस दिशा में आगे बढ़ने से रोका व परशुराम ने अब यह सब छोड़ तपस्या में ध्यान लगाया।

अष्ट चिरंजीवियों में परशुराम :

अष्ट चिरंजीवी वे लोग है जो इस दुनिया में तब तक ज़िंदा रहेंगे जब तक इस धरती का अस्तित्व रहेगा. मार्कण्डेय ऋषि, दैत्यराज बलि, परशुराम, हनुमान, विभीषण, वेदव्यास, कृपाचार्य, अश्वत्थामा चिरंजीवी हैं. ये सब किसी न किसी वचन अथवा शापादि के कारण पृथ्वी के अस्तित्व तक जीवित रहेंगे।

कल्कि-गुरु परशुराम :

कलियुग (जो अभी चल रहा है) के अन्त में विष्णु कल्कि रूप में आयेंगे एवं अधर्मियों को चुन-चुनकर मारेंगे, सफ़ेद घोड़े पर आरूढ़ व दुष्टों पर तलवार चलाते हुए उनका वह रूप अत्यन्त विकराल होगा। विष्णु के आगामी दसवें अवतार कल्कि के अनेक गुरुओं में से परशुराम भी एक होंगे जो कल्कि के शस्त्र विद्या प्रदाता बनेंगे तथा कहेंगे कि कल्कि शिव-तपस्या कर दिव्यास्त्र प्राप्त करें.

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Comments

  1. shyam kumar says

    April 23, 2020 at 10:38 pm

    Bhagwan Parshuram ki jankari dene ke liye dhanyawad. inke baare m mujhe pata nahi tha.

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