योग का महत्त्व एवं आसन Importance of Yoga Asana Essay In Hindi
Importance of Yoga Asana Essay In Hindi
योग के महत्त्व को जानने की चेष्टा करने से पूर्व इसकी परिभाषाओं को आत्मसात् कर लेना आवष्यक है जो एक बिन्दु पर आकर ठहरती हैं.. मोक्ष। यहाँ हम अवलोकन करेंगे योग के महत्त्व, कुछ सरल आसनों एवं प्राणायाम सहित कुम्भक, रेचक इत्यादि क्रियाओं का ताकि योग-प्राणायाम को समझकर आगे बढ़ सकें एवं अपने आप को योग में ढाल सकें।
महर्षि पतंजलिकृत योगसूत्र के अनुसार ‘योगष्चित्तवृत्तिनिरोध’ अर्थात् चित्त की वृत्तियों का रुकना योग कहा जाता है। चँचल मन के भटकने व इन्द्रियों के विषयों में उलझने को रोक कर अपने इस मन (चित्त) को संसार से हटाकर परमात्मा में एकाग्र करना ही योग का लक्ष्य है। जो व्यक्ति इन्द्रियों व विषयों से मन को हटाने के अभ्यास व वैराग्य में तेजी लाते हैं वे योग की स्थिति शीघ्र प्राप्त कर सकते हैं।
योग-साधना में अविचल (बिना डगमगाये) से संलग्न होने का मूल कारण श्रद्धा (भक्तिपूर्ण विश्वास) ही है। श्रद्धा की कमी हो तो साधक की उन्नति में विलम्ब होता है, साधन के लिये किसी अन्य योग्यता अथवा विशिष्ट परिस्थिति की आवश्यकता नहीं है।
योग के आठों अंगों को समझकर जब योग की दिशा में बढ़ते हैं तो इसे अष्टांग योग कहते हैं जिसमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि हैं। आसनों को समझने से पहले समस्त आठ अंगों को ग्रहण करना आवश्यक है, अन्यथा योगासन इत्यादि विषय अधूरे ही रह जायेंगे.
Importance of Yoga Asana Essay In Hindi
1. यम के ये पाँच यम हैं – अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (आठों प्रकार के मैथुनों.. सब प्रकार से कामविषयक स्मरण, श्रवण, कथन, प्रेक्षण, केलि, श्रृंगार, गुह्यभाषण व स्पर्ष का पूर्णाभाव) एवं अपरिग्रह (संग्रह का अभाव)।
2. नियम के नियम भी पाँच हैं – शौच (मन-तन व परिवेश को सदैव शुद्ध रखना), संतोष (कर्तव्य पालन करते हुए कर्मफल के प्रति संतुष्ट रहना), तप, स्वाध्याय (अध्यात्मविषयक पुस्तकों का पठन-पाठन) एवं ईश्वर -शरणागति।
3. आसन – निश्चल (बिना हिले-डुले) व सुखपूर्वक बैठने को आसन कहा गया है, हठयोग में आसनों के कई भेद हैं परन्तु वास्तव में साधन जिस आसन में अधिकतम अवधि तक स्थिर हो बैठ सके वही उसका उपयुक्त आसन कहा जा सकता है.
श्रीमद्भगवद्गीता में किसी आसन-मुद्राविशेष का नाम नहीं है, बस यह कहा गया है कि शरीर, गला व सिर एक सीध में हों। आसन में शरीर की स्थिरता इन्द्रिय समूह शरीर को रोक लेने व ईश्वर में लगाने में सहायक है।
4 प्राणायाम – प्रश्वास निश्वास की प्रक्रिया को अनियमितता से संतुलित तारतम्य में स्थापित करने को प्राणायाम कहा गया है. ये चार हैं – बाह्यवृत्ति अथवा रेचक (प्राणवायु को नासिका से बाहर निकालकर जितने समय तक सहजता से रोका जा सके), आभ्यन्तरवृत्ति अथवा पूरक (इसमें प्राणवायु को भीतर ग्रहण करके यथाशक्ति अधिकतम सुखद अवधि तक रोके रखा जाता है).
स्तम्भवृत्ति अथवा कुम्भक (किसी क्षणविशेष में जितना प्राणवायु भीतर व जितना प्राण वायु बाहर है उसे उसी अवस्था में ज्यों का त्यों अधिकतम सहज अवधि तक रोके रखना), चतुर्थ अथवा मूल प्राणायाम (इसमें मन की चंचलता शान्त होने से व इष्ट चिंतन में रत् होने से प्राणगति स्वमेव अवरुद्ध हो जाती है). ध्यान रखने योग्य यह है कि प्राणायाम के भी हर प्रकार में अपने इष्ट का मंत्र अवश्य रहे।
5. प्रत्याहार – मन व इन्द्रियों को शुद्ध करते हुए इन्द्रियों की बाह्यवृत्ति को सब ओर से समेटकर मन में विलीन करने को प्रत्याहार की संज्ञा दी जाती है। अब मन से भी संसारी विषयों के विचारों को सर्वथा हटा देना है। अब मन इन्द्रियगत विषयों में विचलित न होकर शाश्वत में टिकने लगता है।
6. धारणा – प्राणायाम तक योग का अभ्यास करने से ऐसी योग्यता आ जाती है कि मन को जहाँ चाहें वहाँ लगा सकते हैं, जैसे कि आकाश में दिख रहे तारे पर भी नेत्रों को मन सहित एकाग्र कर सकते हैं, अर्थात् मन में कुछ भी धारित कर सकते हैं, मन को प्रभु में स्थिर करें।
7. ध्यान – चित्त प्रभु में लग जाने के बाद समस्त वृत्तियाँ भी उसी एक परमात्मा में अडिग रहें यह ध्यान है।
8. समाधि – जब प्रभु में ही चित्तैकाग्र हो जाये कि किसी विषय का भान न रह जाये एवं फिर चित्त व इसकी वृत्तियों का भी सर्वथा लोप होकर ‘मैं’ भी शून्य होकर परमसत्ता में एकाकार होने की अनुभूति करने लगे तो उसे समाधि कहते हैं।
कुछ सर्वोपयोगी सरल आसन एवं प्राणायाम
1. शवासन : इसमें पीठ के बल भूमि पर चटाई अथवा सूत्री वस्त्र बिछाकर अथवा कुछ न मिले तो गोबर लिपी अथवा अन्य स्वच्छ समतल भूमि पर लेट जाना है। शरीर को सीधा लेटाना है एवं हाथ पैरों को सीध में रखकर एकदम ढीले छोड़ दें एवं आकाश पर किसी स्थान पर अथवा नेत्र बन्द कर भृकुटियों (भौहों) के मध्य ध्यान एकाग्र करने का प्रयास करें।
2. कई आसनों के सम्मिलित आसन हेतु ‘ सूर्य नमस्कार – लाभ व विधि’ नामक आलेख पढ़ें।
3. कपालभाति प्राणायाम : इसमें सीधे बैठकर तेजी से गहरी साँसें लेते हुए पेट को फुलाया एवं तेजी से साँस छोड़ते हुए पेट को पिचकाया जाता है, यह आसन नाड़ियों सहित साँस के रोगों में बड़ा उपयोगी है।
4. पद्मासन : बुद्ध व महावीर को इस आसन में बैठे सबने देखा होगा, इस आसन में मेरुदण्ड सहित कमर के ऊपरी भाग को पूर्णतया सीधे रखा जाता है।
योगासन का महत्त्व एवं लाभ
कई मानसिक व शारीरिक लाभों सहित आत्मिक उत्थान का विवरण तो पहले ही स्पष्ट हो गया होगा, वैसे योगासन विभिन्न आधियों (मानसिक रोगों) व व्याधियों (दैहिक रोगों) के लिये अत्यधिक उपयोगी पाये गये हैं.
1. रक्तचाप को सामान्य करने में एवं समूचे शरीर में रक्त-परिसंचरण सुचारु रहने लगता है
2. मन को शान्त रखने में
3. चिंता व दुःख के कारणों को निर्मूल करने में
4. हृदयरोगों के शमन में
5. शरीर के विभिन्न अंगों, जोड़ों व माँसपेषियों की सक्रियता बढ़ती है
6. श्वसन-तन्त्र के विकारों से राहत होने में उपयोगी
7. पाचन तन्त्र एवं आन्तरिक ग्रंथियों की षिथिलता दूर होती है
8. रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है
योगा आसन करते हुए सावधानियाँ
1. शरीर के विविध अंगों को आड़ा-तिरछा बेतरतीब मोड़ना कोई आसन नहीं है, आसन विशेषज्ञ को देखकर नियन्त्रण योग्य स्थिति में करें।
2. यदि रीढ़ की हड्डी अथवा आन्तरिक अंगों का कोई रोग अथवा अन्य किसी प्रकार की विशेष विकृति हो तो जटिल आसनों का अभ्यास बिल्कुल न करें, शवासन तो कोई भी कर सकता है।
तो दोस्तों यह लेख था योग का महत्त्व एवं आसन और फायदे – Importance of Yoga Asana Essay In Hindi, Yoga Asana Ka Mahtv Par Nibandh Hindi Me. यदि आपको यह लेख पसंद आया है तो कमेंट करें। अपने दोस्तों और साथियों में भी शेयर करें।
@ आप हमारे Facebook Page को जरूर LIKE करे ताकि आप मोटिवेशन विचार आसानी से पा सको. आप इसकी वीडियो देखने के लिए हमसे Youtube पर भी जुड़ सकते है.
योग बच्चे बूढ़े और जवान हर किसी के लिए आवश्यक है बताए गए आसन व प्राणायाम सरल व लाभदायक है ।
Yoga is most important exercise physically and mentally fit of our body