घर की फाइनेंसियल प्लानिंग कैसे करे ! 10 तरीके How To Make Successful Financial Planning In Hindi
घर का आर्थिक नियोजन कैसे करे How To Make Successful Financial Planning In Hindi
जिस प्रकार किसी देश की अर्थव्यवस्था को सँभालने के लिये आय-व्यय का लेखा-जोखा रखते हुए आर्थिक नियोजन (Financial Planning) किया जाता है ठीक वही छोटे रूप में घरेलु अर्थव्यवस्था के प्रबन्धन में भी किया जाता है, आइए घर के आर्थिक नियोजन के कुछ नुस्खों को समझते-आज़माते हैं.
How To Make Successful Financial Planning In Hindi
1. प्रत्येक परिजन की आय के समस्त स्रोतों व आकस्मिक आमदनियों का समयबद्ध लेखन :
यह इसलिये जरुरी है ताकि पूँजीगत उपलब्धता सटीकता से पता रहे और कितनी Income आपके पास है उसका पता लग जाए जिससे आपको प्रॉपर डाटा इकट्ठा मिल सके.
2. प्रत्येक परिजन के सभी पूर्व निर्धारित व आकस्मिक खर्चों का विवरण :
हर बार प्रत्येक परिजन के प्रत्येक खर्चे को लिखित में रखना आवश्यक है भले ही वह 2 रुपयों से कम ही क्यों न हो. इस प्रकार छोटे-बड़े सभी परस्पर जवाबदेह होंगे एवं यह अच्छी आदत बनी रहेगी।
3. फ़िज़ूलखर्चे व सहज व्यय में अन्तर करें :
सन्तान मेले में झूला झूलने को बोले जो उसकी बाल-सुलभ इच्छा का दम न घोंटें, इसे फ़िज़ूलखर्ची न समझें. डिस्काउंट, Offer के नाम पर अनावश्यक चीज़ों को घर में भर लेना फ़िज़ूलखर्ची है तथा दुपहिया के बजाय कार की चाह, किराये के मकान-दुकान के बजाय अपने स्वामित्व की चाह विलासिता है।
4. कर्जें में पड़कर घरेलु कलपुर्जे न बिखरायें :
कर्जा हमेशा बुरा ही कहा जा सकता है, भारी विवशता आन पड़ी हो तो भी मूलभूत आवश्यकता की पूर्ति के ही लिये कर्ज लें तो ठीक फिर भी माना जा सकता है। भूखण्ड, भवन, वाहन इत्यादि ख़रीदने के लिये कभी कर्ज न लें। जितनी चादर उतने पैर पसारें।‘…बाकी का Loan मिल जायेगा ’ ऐसा न सोचें।
5. आर्थिक निर्णय भी सबसे पूछकर करें :
आर्थिक निर्णय कई घरों में आन्तरिक क्लेश-कलहों के कारण बनते रहे हैं। बिन-पूछे आर्थिक अपेक्षा करने लगने, ” मैंने तुम्हें पालकर तुम पर जो अहसान किया है बदले में तुम 1 लाख नहीं दे सकते ?“ जैसी घोषित-अघोषित उक्तियों से घर में कलहों की कतार बनते एवं अच्छे-ख़ासे रिश्ते दरकते समय नहीं लगता।
अतः यदि कोई आर्थिक अपेक्षा रखनी ही हो तो सम्बन्धित व्यक्ति से पूछ लें एवं उसकी लिखित अनुमति प्राप्त करें एवं हो सके तो पूर्ण अग्रिम भुगतान से ही कार्य करें तथा इतने सब के बाद भी स्मरण रखें कि व्यक्ति की मनः स्थिति व परिस्थिति बदलते समय नहीं लगता इसलिये अनिश्चिता की सम्भावना व तत्सम्बन्धित तैयारी से मुँह न मोड़ें।
आत्मनिर्भर हो जाने के बाद बच्चों को माता-पिता से यथासम्भव आर्थिक अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए तथा बच्चों को पैदा करना माता-पिता की इच्छा थी एवं उनका पालन उनका उत्तर दायित्व, इसलिये ‘अहसान जताने’की अथवा ‘रिटर्न माँगने’ का कोई औचित्य नहीं है; धनराशि न मिलने पर मुँह बनाने की आवश्यकता नहीं है।
6. कम में जीवन बिताना :
व्यर्थ की चीज़ें भर-भरकर घर में जीवन दूभर बनाते लोगों को समय नहीं लगता। तनिक साफ़ मन से सोचें एवं डायरी में सूचीबद्ध करते रहें कि कौन-कौन-सी वस्तुएँ वास्तव में जरूरत हैं एवं कौन-कौन-सी वस्तुओं के बिना भी सहज जीवन-निर्वाह सम्भव है। जिनके बिना भी सहज जीवन-निर्वाह सम्भव है उन्हें किसी निर्धन को दान कर दें अथवा विक्रय कर दैवें।
उपहार व अतीत के अवशेषों के रूप में सामग्रियों को सहेजने के नाम पर बर्बाद करने अथवा व्यर्थ रखने के बजाय किसी ज़रूरतमंद अथवा पात्र व्यक्ति को सौंप दें तो उस वस्तु की उपयोगिता भी बनी रहेगी एवं उस व्यक्ति के लिये भी ठीक होगा एवं आपके जीवन से अनावश्यक हटने से आपका जीवन भी तुलनात्मक रूप से हल्का हो जायेगा.
प्रायः सभी घरों में कुर्सियाँ, सजावटी सामान, डिब्बे, चटाइयाँ, पेनस्टैण्ड, जूते-चप्पल इत्यादि अनावश्यक संख्या में रखे होते हैं तथा Sofaset इत्यादि तो एक की संख्या में भी अनुपयोगी रहते हैं।
दो T.V. Set, बर्तनों के अनावश्यक सेट्स (न जाने बरसों बाद किस अनिश्चित समय के लिये बटोर के रखे हुए) इत्यादि को हटायें तो पायेंगे कि जिन कमरों में जगह कम पड़ रही थी रातों रात उनका क्षेत्रफल बढ़ा हुआ कैसे नज़र आने लगा तथा कन्जस्टेड अनुभव बीते समय की बात हो गये, अब हर समय ताज़गी व हल्कापन अनुभव होने लगेगा।
7. घर का खाना :
घर पर खाना बनाये जाने के बावजूद कई घरों में अनेक सदस्य बाहर खाना खा लेते हैं. इस स्थिति में उन्हें समझना होगा कि वे खाने का अपमान कर रहे हैं तथा यदि घर का खाना स्वाद रहित लगता हो तो खाना बनाने वाले व्यक्ति का दायित्व है कि वह अलग तरीके से खाना बनाये, परिवर्तन लाये।
8. नियन्त्रित खरीदारी :
ताज़ी सामग्रियों को उपलब्धतानुसार कभी भी ख़रीदा जा सकता है किन्तु अन्य घरेलु सामग्रियों को यथासम्भव महीने में एक बार एक दिन सब मिल-जुलकर जाकर ख़रीदें, न कि Mood हुआ तो Chips चबा लिये, मन किया तो बाल्टी उठा लाये, कुछ सोचा तो डिब्बे ले आये।
क्षणिक आवेश अथवा तात्कालिक इच्छा को रोककर यदि बाद में विचार करें तो पता चल ही जायेगा कि हम तो जबरन उस चीज़ को ख़रीदने की सोच रहे थे, अच्छा हुआ कि उसे नहीं ख़रीदा। उपभोक्तावादी सोच, बाज़ारू विज्ञापनों एवं औद्योगिकीकरण की चकाचैंध में व्यक्ति आवश्यकता की कम, इच्छा की अधिक चीज़ें, सेवाएँ ख़रीदता है।
9. औपचारिक आयोजनों से दूरी बरतें :
कभी रिश्तेदारी तो कभी बरसों के सम्बन्धों की आड़ में कितने खर्चे ऐसे हैं जिनसे बचा जा सकता था, सामाजिक अवस्था, ” लोग क्या कहेंगे ” जैसी निरर्थक बातें सोच-सोचकर व्यक्ति अपने जीवन का बड़ा भाग, काफ़ी श्रम व धन अनावष्यक रूप से ही खर्च कर देता है, ख़ुद बताओ पिछले साल उसे तुमने बर्तन, नोटों का लिफ़ाफ़ा, कपड़े दिये क्या उसे सही में उनकी आवश्यकता थी ?
देना ही था तो पूछकर दैनिक रसोई में प्रयुक्त सब्जियों के बीज देते, देने का मन ही था तो जगह व व्यवस्था आदि की पूछताछ करके कोई पेड़ उपहारित कर देते। इस प्रकार उपहार सस्ता भी व सार्थक भी होता।
इसी प्रकार अपने घर अथवा अन्यत्र अपनी ओर से कोई आयोजन करना ही है तो समाज व रिश्ते-नाते क्यों देखना, बस सीधा-सरल किन्तु सार्थक आयोजन भी तो किया जा सकता है। भरे-भराये पेटों में दस तरह के व्यंजन डालने का क्या लाभ ?
जो कार्य 5 लोगों (अपने जैसे अथवा ज़रूरतमंद) को बुलाकर किया जा सकता है उसके लिये 50 लोगों को बुलाने अथवा टेंट, दरी लगवाने की क्या जरुरुत ? दिखावे से दूरी बनाकर चलें तो जीवन, समय, श्रम व धन इन चारों की बड़ी बचत हो जायेगी।
10. सादा जीवन उच्च विचार :
आडम्बरों, विलास व इच्छाओं के आकाश में संतोष रूपी मेघ नहीं हुआ करते; मृगमरीचिका के पीछे भागने से किसका भला हुआ है ! जीवन ऐसा हो कि सीमित में संतोष हो जाये, व्यर्थ का ढेर न लगायें.
न मन में, न घर में। आपको किसी से स्पद्र्धा नहीं करनी है। विचार उन्नत कोटि के होने चाहिए, भौतिक सेवाओं व उत्पादों का पीछा करना तत्काल प्रभाव से बन्द करें।
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milind says
thanks bro
milind says
good bro
Jay Mishra says
शायद ही किसी ने आज तक इस टॉपिक पर पोस्ट लिखी होगी वाकई बड़े कमाल की और काम की पोस्ट है इसमें सभी बातें व्यवहारिक और निजी अनुभव द्वारा लिखी गई लगती हैं इनमें से कुछ पॉइंट्स का अनुसरण करना थोड़ा कठिन जरूर है जैसे हम अपने फिजूलखर्ची को तो रोक सकते हैं परंतु यदि किसी अन्य सदस्य से इस बारे में पूछा जाए तो उसके हिसाब से उसके सारे खर्चे बिल्कुल आवश्यक हैं परंतु यदि सभी बातों को अमल में लाया जाए तो निश्चित रूप से जिंदगी स्वर्ग बन सकती है
Yash chauhan says
Very nice sir,
Aaj aapne paise ki shi value krna sikha diya..
Great!!