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सत्यवादी महाराज हरिश्चन्द्र की अमर कहानी !

May 13, 2017 By Surendra Mahara 15 Comments

सत्यवादी महाराज हरिश्चन्द्र की जीवनी ! Maharaja Harishchandra History In Hindi

Maharaja Harishchandra History In Hindi

चन्द्र टरे सूरज टरे, टरे जगत व्यवहार |

पै दृढ़व्रत हरिश्चन्द्र को, टरे न सत्य विचार ||

सत्य की चर्चा जब भी कही जाएगी, महाराजा हरिश्चन्द्र का नाम जरुर लिया जायेगा. हरिश्चन्द्र इकक्षवाकू वंश के प्रसिद्ध राजा थे. कहा जाता है कि सपने में भी वे जो बात कह देते थे उसका पालन निश्चित रूप से करते थे | इनके राज्य में सर्वत्र सुख और शांति थी. इ

नकी पत्नी का नाम तारामती तथा पुत्र का नाम रोहिताश्व था. तारामती को कुछ लोग शैव्या भी कहते थे. Maharaja Harishchandra की सत्यवादिता और त्याग की सर्वत्र चर्चा थी. महर्षि विश्वामित्र ने हरिश्चन्द्र के सत्य की परीक्षा लेने का निश्चय किया.

सत्यवादी महाराज हरिश्चन्द्र, Raja Harishchandra

  Raja Harishchandra

सत्यवादी महाराज हरिश्चन्द्र के जीवन पर निबंध / Raja Harishchandra Par Essay

रात्रि में महाराजा हरिश्चन्द्र ने स्वप्न देखा कि कोई तेजस्वी ब्राहमण राजभवन में आया है. उन्हें बड़े आदर से बैठाया गया तथा उनका यथेष्ट आदर – सत्कार किया गया. महाराजा हरिश्चन्द्र ने स्वप्न में ही इस ब्राह्मण को अपना राज्य दान में दे दिया.

जगने पर महाराज इस स्वप्न को भूल गये. दुसरे दिन महर्षि विश्वामित्र इनके दरबार में आये. उन्होंने महाराज को स्वप्न में दिए गये दान की याद दिलाई. ध्यान करने पर महाराज को स्वप्न की सारी बातें याद आ गयी और उन्होंने इस बात को स्वीकार कर लिया.

ध्यान देने पर उन्होंने पहचान कि स्वप्न में जिस ब्राह्मण को उन्होंने राज्य दान किया था वे महर्षि विश्वामित्र ही थे. विश्वामित्र ने राजा से दक्षिणा माँगी क्योंकि यह धार्मिक परम्परा है की दान के बाद दक्षिणा दी जाती है. राजा ने मंत्री से दक्षिणा देने हेतु राजकोष से मुद्रा लाने को कहा. विश्वामित्र बिगड़ गये.

उन्होंने कहा- जब सारा राज्य तुमने दान में दे दिया है तब राजकोष तुम्हारा कैसे रहा ? यह तो हमारा हो गया. उसमे से दक्षिणा देने का अधिकार तुम्हे कहाँ रहा ?

महाराजा हरिश्चन्द्र सोचने लगे. विश्वामित्र की बात में सच्चाई थी किन्तु उन्हें दक्षिणा देना भी आवश्यक था. वे यह सोच ही रहे थे कि विश्वामित्र बोल पड़े- तुम हमारा समय व्यर्थ ही नष्ट कर रहे हो. तुम्हे यदि दक्षिणा नहीं देनी है तो साफ – साफ कह दो, मैं दक्षिणा नहीं दे सकता. दान देकर दक्षिणा देने में आनाकानी करते हो. मैं तुम्हे शाप दे दूंगा.

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हरिश्चन्द्र विश्वामित्र की बातें सुनकर दुखी हो गये. वे अधर्म से डरते थे. वे बोले- भगवन ! मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ ? आप जैसे महर्षि को दान देकर दक्षिणा कैसे रोकी जा सकती है ? राजमहल कोष सब आपका हो गया. आप मुझे थोडा समय दीजिये ताकि मैं आपकी दक्षिणा का प्रबंध कर सकूँ.

विश्वामित्र ने समय तो दे दिया किन्तु चेतावनी भी दी कि यदि समय पर दक्षिणा न मिली तो वे शाप देकर भस्म कर देंगे. राजा को भस्म होने का भय तो नहीं था किन्तु समय से दक्षिणा न चुका पाने पर अपने अपयश का भय अवश्य था.

उनके पास अब एक मात्र उपाय था कि वे स्वयं को बेचकर दक्षिणा चुका दे. उन दिनों मनुष्यों को पशुओ की भांति बेचा – ख़रीदा जाता था. राजा ने स्वयं को काशी में बेचने का निश्चय किया. वे अपना राज्य विश्वामित्र को सौंप कर अपनी पत्नी व पुत्र को लेकर काशी चले आये.

काशी में राजा हरिश्चन्द्र ने कई स्थलों पर स्वयं को बेचने का प्रयत्न किया पर सफलता न मिली. सायं काल तक राजा को शमशान घाट के मालिक डोम ने ख़रीदा. राजा अपनी रानी व पुत्र से अलग हो गये. रानी तारामती को एक साहूकार के यहाँ घरेलु काम – काज करने को मिला और राजा को मरघट की रखवाली का काम. इस प्रकार राजा ने प्राप्त धन से विश्वामित्र की दक्षिणा चुका दी.

तारामती जो पहले महारानी थी, जिसके पास सैकड़ो दास – दासियाँ थी, अब बर्तन माजने और चौका लगाने का कम करने लगी. स्वर्ण सिंहासन पर बैठने वाले राजा हरिश्चन्द्र शमशान पर पहरा देने लगे.

जो लोग शव जलाने मरघट पर आते थे, उनसे कर वसूलने का कार्य राजा को दिया गया. अपने मालिक की डांट – फटकार सहते हुए भी नियम व ईमानदारी से अपना कार्य करते रहे. उन्होंने अपने कार्य में कभी भी कोई त्रुटी नहीं होने दी.

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इधर रानी के साथ एक ह्रदय विदारक घटना घटी. उनके साथ पुत्र रोहिताश्व भी रहता था. एक दिन खेलते – खेलते उसे सांप ने डंस लिया. उसकी मृत्यु हो गयी. वह यह भी नहीं जानती थी कि उसके पति कहाँ रहते है.

पहले से ही विपत्ति झेलती हुई तारामती पर यह दुःख वज्र की भांति आ गिरा. उनके पास कफ़न तक के लिए पैसे नहीं थे. वह रोटी – बिलखती किसी प्रकार अपने पुत्र के शव को गोद में उठा कर अंतिम संस्कार के लिए शमशान ले गयी |

रात का समय था. सारा श्मशान सन्नाटे में डूबा था. एक दो शव जल रहे थे. इसी समय पुत्र का शव लिए रानी भी शमशान पर पहुंची. हरिश्चन्द्र ने तारामती से श्मशान का कर माँगा.

उनके अनुनय – विनय करने पर तथा उनकी बातो से वे रानी तथा अपने पुत्र को पहचान गये, किन्तु उन्होंने नियमो में ढील नहीं दी. उन्होंने अपने मालिक की आज्ञा के विरुद्ध कुछ भी नहीं किया.

raja harishchandra

  महाराजा हरिश्चन्द्र और तारामती

उन्होंने तारामती से कहा- शमशान का कर तो तुम्हे देना ही होगा. उससे कोई मुक्त नहीं हो सकता. अगर मैं किसी को छोड़ दूँ तो यह अपने मालिक के प्रति विश्वासघात होगा.

उन्होंने तारामती से कहा- अगर तुम्हारे पास और कुछ नहीं है तो अपनी साड़ी का आधा भाग फाड़ कर दे दो, मैं उसे ही कर में ले लूँगा.

तारामती विवश थी. उसने ज्यो ही साड़ी को फाड़ना आरम्भ किया, आकाश में गंभीर गर्जना हुई. विश्वामित्र प्रकट हो गये. उन्होंने रोहिताश्व को भी जीवित कर दिया.

विश्वामित्र ने हरिश्चन्द्र को आशीर्वाद देते हुए कहा- तुम्हारी परीक्षा हो रही थी कि तुम किस सीमा तक सत्य एवं धर्म का पालन कर सकते हो. यह कहते हुए विश्वामित्र ने उन्हें उनका राज्य ज्यो का त्यों लौटा दिया.

महाराज हरिश्चन्द्र ने स्वयं को बेचकर भी सत्यव्रत का पालन किया. यह सत्य एवं धर्म के पालन का एक बेमिसाल उदाहरण है. आज भी महाराजा हरिश्चन्द्र का नाम श्रद्धा और आदर के साथ लिया जाता है.

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मुझे उम्मीद है की आपको ये Article जरूर पसंद आया होगा.

निवेदन- आपको All information about Raja Harishchandra in hindi – Raja Harishchandra ka jeevan parichay / राजा हरिश्चंद्र का इतिहास व कहानी आर्टिकल कैसा लगा हमे अपने कमेन्ट के माध्यम से जरूर बताये क्योंकि आपका एक Comment हमें और बेहतर लिखने के लिए प्रोत्साहित करेगा.

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Comments

  1. Shankar Deb says

    July 26, 2020 at 10:02 pm

    Bad

  2. Akash says

    March 28, 2020 at 12:35 pm

    This story is very good I have seen this story after 14 years, I am very happy I thank you

  3. Narendra Singh Chauhan says

    December 30, 2018 at 8:38 pm

    इतना अच्छा लगा की कब आंखोँ से आंसु आ गये।।। इसका मतलब कुछ करुणा अभी मुझमें शेष है।

  4. Rajesh says

    December 2, 2018 at 8:39 pm

    Aap hame jo bhi inspiration gyan dete hai. Uske hm aabhari hai.

  5. Subhash Yadav says

    November 10, 2018 at 11:15 am

    STORY SE HUM SEEKH LEKAR HAMARE JEEVAN ME VIAVHAR ME ACHARAN ME UTARE TO HI SAHI AURTHO ME USE PADNE KA FAYADA HAI VARNA HUM JO MOBILE AUR FRENDS ME APNA BESHKIMATI VAKT GAWA RAHE HAI VAHI ACHHA HAI

  6. Surendra Mahara says

    June 10, 2018 at 8:38 am

    Thankyou For Commenting here.

  7. ROHTASH says

    June 9, 2018 at 3:34 pm

    SATYAWADI RAJA HARISHCHANDER KI KAHANI BHOT ACHHI LGI,MAINE BACHPAN ME SCHOOL ME YE KAHANI PDDI THHI,AAJ 35 SAAL KE BAD MAINE YAD KIYA KI KIS TRAH RAJA NE APNE JIVAN ME SATYA KE LIYA,APNI PATNI SE BHI DAH SANSAR KE LIYE PAISE MAANGE ,YE JANTEE HUYE BHI KI VO UNKI PATNI H.BHOT ACCHHI LGI KAHANI,ISS KAHANI KO AAP AUR JYDA DISCRIBE KRENGE TO ACHHA RHEGA,BECAUSE BHOT SHORT ME KAHANI KO NIPTA DIYA GYA H. BY THE WAY VERY NICE STORY SIR, I APPRICAITE ..THANK YOU .

  8. Jitendra kumar says

    May 27, 2018 at 10:20 am

    Muje bhout achcha laga

  9. Jeewan says

    April 21, 2018 at 11:44 pm

    अद्भुत

  10. Harkaran Chauhan says

    April 8, 2018 at 7:33 am

    satya ki jit hoti hai

  11. Toni singh says

    March 29, 2018 at 8:01 pm

    Nice

  12. Jyoti Agarwal says

    December 19, 2017 at 8:03 pm

    Great story.

  13. shailesh says

    December 6, 2017 at 11:42 am

    i love it manikarnika smshan ghat

  14. Arjun says

    May 28, 2017 at 11:35 am

    ??keep writing dost

  15. Anonymous says

    August 26, 2016 at 1:30 pm

    21st century is on peak. nobody is interested to read such a beautiful story of raja harishchandra. I read so many post on several blogs but very few are dedicated to write and publish truthful things. everyone in blogging industry is focussing to gain money and other physical stuffs while this blog is working for a decent niche. thanks and I am proud to be the first commentor for this story. keep writing dost.

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