फ्लोरेंस नाइटिंगेल की सफलता की कहानी Florence Nightingale Biography In Hindi
बहुत समय पहले इंग्लैंड में एक महिला रहती थी जिसको फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुकारते थे. वह एक नर्स के रूप में बहुत प्रसिद्ध हो गयी थी. उसने बीमार लोगो को ठीक करने के लिए बहुत सारा कार्य किया. फ्लोरेंस नाइटिंगेल एक अच्छे परिवार में पैदा हुई थी. उनका नाम इटली के शहर के नाम पर था जहाँ पर 12 मई सन 1820 को वह पैदा हुई थी. फ्लोरेंस इंग्लैंड में जवान हुई. घर पर ही उसे उसके पिता ने पढाया. उसने अंग्रेजी, इटैलियन, लैटिन, जर्मनी, फ्रेंच, इतिहास और दर्शन सीखा.
फ्लोरेंस ने अपनी बहिन और माता-पिता के साथ अनेक देशो की यात्रा की. उसने अपने लिए बहुत सारे लेख लिखे. एक दिन उसने लिखा, ” आज ईश्वर मुझसे बोला और मुझे अपनी सेवा में बुलाया. उसने जीवन में कुछ उपयोगी कार्य करने का पक्का इरादा किया. फ्लोरेंस दुसरे लोगो की मदद करना चाहती थी. वह एक नर्स बनना चाहती थी लेकिन उसके माता -पिता और उसकी बहिन उसे नर्स नहीं बनने देना चाहते थे.
उसके माता-पिता उसकी एक धनी आदमी से शादी करके उसे आराम की जिंदगी में स्थिर करने की आशा करते थे. उन दिनों में अच्छे परिवारों की महिलाएं नर्स नहीं बनती थी. उन्हें बहुत कम धन मिलता था. उनका किसी के द्वारा भी बहुत आदर नहीं होता था. उन दिनों में अस्पताल अच्छे नहीं थे. वे गंदे स्थान थे. बिस्तरों पर चादर नहीं बदली जाती थी और रोगियों को कभी भी साफ नहीं किया जाता था. अस्पताल में नर्सो को लकड़ी के कटघरे में रोगी के रोगी कक्ष से बाहर सोना पड़ता था.
फ्लोरेंस ने इन सब की परवाह नहीं की. उसने चुपचाप नर्स बनने की योजना बना ली. उसे पहला मौका तब मिला जब उसकी दादी बीमार हो गई. फ्लोरेंस उसके साथ ही रही और उसकी देखभाल की. धीरे-धीरे उसने पास के गांव के गरीब लोगो की मदद करनी शुरू कर दी. फ्लोरेंस ने जल्दी ही जान लिया की वह अपना कार्य ठीक प्रकार से नहीं कर पा रही थी. उसने अपना कार्य करने के लिए प्रशिक्षण नहीं लिया था.
इसलिए दवाओ के विषय में किताबे पढना शुरू कर दिया. कुछ सालो बाद उसे जर्मनी जाने का मौका मिला. वहां एक अस्पताल में नर्सिंग सीखने के लिए मौका मिला. जब वह इंग्लैंड वापिस लौटी तो वह एक संस्था ‘केयर ऑफ़ द सिक’ की सुपरिंटेंडेंट बन गयी. उसने नर्सो को प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया और प्रसिद्ध हो गयी.
सन 1854 में क्रीमियन लड़ाई शुरू हो गयी. सरकार ने फ्लोरेंस को एक संस्था ‘संटरी इन टर्की’ भेजा. वह चालीस नर्सो की टीम की इंचार्ज बनाई गई. संटरी में अस्पताल, लड़ाई में घायल सिपाहियों से भरा था. फ्लोरेंस ने अस्पताल की हालत सुधारने के लिए बहुत सख्त प्रयास किया.
उसने अस्पताल की सफाई की और नया रसोईघर बनाया जो अच्छा खाना देता था. अपने ही धन से उसने रोगियों के लिए नई चादरे और कपडे ख़रीदे. रोगियों की बाते सुनने में वह घंटो समय बिताती थी. उसने उन्हें खुश और आराम से रखने का भरसक प्रयत्न किया. रात्री में वह एक चिराग के साथ, एक बिस्तर से दुसरे बिस्तर पर जाती थी. इसी से उसका नाम ‘लेडी विद द लैम्प’ पड़ गया.
फ्लोरेंस ने इतना सख्त परिश्रम किया की वह बहुत बीमार हो गयी. लेकिन उसके इंग्लैंड जाने से इंकार कर दिया. सन 1860 में उसने नर्सो के लिए नाइटिंगेल स्कूल खोल दिया. उसके प्रयत्नों के फलस्वरूप सारे देश में नर्सो का आदर होने लगा.
फ्लोरेंस नाइटिंगेल 13 अगस्त सन 1910 को लन्दन में गुजर गयी. नर्सिंग के इतिहास में वह एक महानतम प्राणी है.
तो दोस्तों ! यह था फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जीवन – परिचय इसमें हमने उनके जीवन के लगभग सभी अंशो को टच किया है. उम्मीद करते है की आपको फ्लोरेंस नाइटिंगेल की बायोग्राफी जरुर पसंद आई होगी.
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Nughtingale bahut hi acchi leady thi wo logo ki sewa krte thi
बहुत ही उम्दा ……… Very nice collection in Hindi !! 🙂