प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना Pradhan Mantri Bhartiya Janaushadhi Pariyojana
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Pradhan Mantri Bhartiya Janaushadhi Pariyojana
गुणवत्तापूर्ण औषधियाँ वाज़िब दामों में सभी को उपलब्ध कराने के लिये, विशेष रूप से निर्धनों व वंचितों को उपलब्ध कराने के लिये ‘जन औषधि स्कीम’ सन् 2008 में संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की केन्द्र सरकार द्वारा लायी गयी थी ताकि ‘जन औषधि मेडिकल स्टोर’ नामक अनन्य आउट्लेट्स के माध्यम से स्वास्थ्य-खर्चों को घटाया जा सके।
जन औषधि अभियान में पहला जन औषधि स्टोर 25 नवम्बर 2008 को खोला गया. यह पहला जन औषधि स्टोर शास्त्री भवन, नयी दिल्ली में आरम्भ किया गया था।
सितम्बर 2015 में भाजपा की केन्द्र सरकार द्वारा ‘जन औषधि स्कीम’ का नामकरण ‘प्रधानमंत्री जन औषधि योजना’ कर दिया गया। नवम्बर 2016 में इस पर और ज़ोर देते हुए पुनर्नामकरण ‘प्रधानमंत्री भारतीय जनौषधि परियोजना’ कर दिया गया।
प्रधानमंत्री भारतीय जनौषधि परियोजना फ़ार्मास्युटिकल्स विभाग द्वारा लाया गया ऐसा अभियान है जिसमें जनता को वाज़िब कीमत पर गुणवत्तापूर्ण औषधियाँ मिल जाती हैं। प्रधानमंत्री भारतीय जनौषधि परियोजना स्टोर्स में जेनरिक दवाइयाँ होती हैं जो कीमत में कम होती हैं किन्तु गुणवत्ता व प्रभावकारिता में branded दवाइयों के समतुल्य होती हैं।
क्या है जेनरिक दवाई ?
जिस प्रकार बेचा जाने वाला दूध तो प्रायः गाय व भैंस का होता है परन्तु उसे विभिन्न कम्पनियों द्वारा अपने-अपने नामों के पैकेट में बेचा जाता है एवं दूध का मूल स्वरूप तो वस्तुतः वही होता है उसी प्रकार जेनरिक व समकक्ष प्रकार की समस्त ब्रांडेड दवाइयों में रासायनिक पदार्थ एवं रासायनिक इत्यादि पदार्थों का संयोजन तो वही होता है परन्तु कम्पनियों की branding के कारण ब्रांडेड नाम अलग-अलग दिखायी देते हैं एवं इन प्रचलित कम्पनी-नामों के कारण एवं पैकेजिंग सहित विस्तृत विपणन (marketing) के चक्कर में उनकी कीमत मूल से कई गुनी अधिक होती है।
वास्तव में जेनरिक दवाई में बिना प्राइवेट कम्पनी, बिना ब्रण्डिंग व बिना विपणन-व्यय के मूल दवाई होती है जिससे इसकी कीमत बहुत कम रहती है। इस प्रकार जेनरिक दवाई ब्रण्ड-नेम दवाइयों की प्रतियों (copies) के समान हैं जिनकी मात्रा, निर्धारित उपयोग, प्रभाव, अनुषंगी प्रभाव- साइड इफ़ेक्ट्स, सेवन-विधि, जोख़िम, सुरक्षा एवं सामथ्र्य मूल औषधि के सटीक समान होता है।
जेनरिक ड्रग ऐसा फ़ार्मास्युटिकल ड्रग होता है जिसमें वे ही रासायनिक घटक होते हैं जो रासायनिक पेटेण्ट्स द्वारा सुरक्षित मौलिक ड्रग्स में होते हैं। मौलिक ड्रग्स के पेटेण्ट्स के expire होने के बाद जेनरिक ड्रग्स को बिक्री की अनुमति मिल जाती है।
Pradhan Mantri Bhartiya Janaushadhi Pariyojana
प्रधानमंत्री भारतीय जनौषधि परियोजना के उद्देश्य
*. भारत के प्रत्येक नागरिक का स्वास्थ्य-खर्चा घटाने के लिये वाज़िब कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण जेनरिक दवाइयाँ उपलब्ध कराना।
*. स्वास्थ्यगत देखभाल में बचत को समर्थ बनाना, विशेषतया निर्धन रोगियों एवं लम्बी अवधियों तक औषधीय प्रयोग-आवष्यकता वाली लम्बी बीमारियों से ग्रसित व्यक्तियों को।
*. जेनरिक दवाइयों के सन्दर्भ में जन-जागृति।
*. चिकित्सकों के माध्यम से जेनरिक दवाइयों की माँग का सृजन, अधिक विशेष रूप से शासकीय चिकित्सालयों के चिकित्सकों को जेनरिक दवाइयाँ prescribe करने के लिये प्रोत्साहित करना।
*. शिक्षा एवं जागृति-कार्यक्रमों के माध्यम से यह जागृति लाना कि ‘अधिक कीमत’ का तात्पर्य ‘उच्चगुणवत्ता’ का होना आवष्यक नहीं होता। सार्वजनिक कार्यक्रमों में शासन, निजी क्षेत्र, स्वयंसेवी संस्थाओं अशासकीय संगठनों, सोसायटीज़, सहकारी निकायों व अन्य संस्थानों को भागीदार करना।
*. सामान्यतः प्रयुक्त सभी जेनरिक दवाइयाँ उपलब्ध कराना जिनमें सभी थिरप्युटिक ग्रुप्स सम्मिलित हों।
*. स्वास्थ्यसम्बन्धी समस्त अन्य उत्पादों को इस योजना के तहत उपलब्ध कराना।
*. ग़ैर-ब्रांडेड गुणवत्तापूर्ण जेनरिक दवाइयाँ पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के माध्यम से वाज़िब कीमतों पर उपलब्ध कराना। उच्चगुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिये औषधियाँ विश्व स्वास्थ्य संगठन (world health organization) की गुड मेनुफ़ेक्चरिंग प्रेक्टिस, करेण्ट गुड मेनुफ़ेक्चरिंग प्रेक्टिस एवं निर्माताओं से लेकर प्रधानमंत्री भारतीय जनौषधि केन्द्रों में रखी जाती हैं।
लायी गयी औषधियों का प्रत्येक बैच यादृच्छिक (random) रूप से सूचीबद्ध नेशनल एक्रडिटेशन बोर्ड फ़ार टेस्टिंग एण्ड केलिब्रेषन लेबोरेटरीज़ एक्रेडिटेड प्रयोगशालाओं में परखा जाता है ताकि औषधियों की गुणवत्ता, सुरक्षा एवं प्रभावकारिता को एवं आवश्यक मानकों से इनकी अनुरूपिता को सुनिश्चित किया जा सके। इन प्रयोगशालाओं द्वारा अभिप्रामाणीकृत कराने के बाद ही औषधियाँ बूथएजेण्ट्स, डिस्ट्रीब्यूटर्स व के पास भेजी जाती हैं।
निर्धनों का सहारा
यह योजना निर्धनों के लिये एक मजबूत सहारा सिद्ध हुई क्योंकि बड़ी तो क्या कभी-कभी तो मध्यम स्तर की बीमारी में भी निर्धन परिवार की आर्थिक नींव डोल जाया करती है। एक सदस्य कुछ दिन जीविका छोड़कर मरीज़ की देखरेख में जुट जाता है, दूसरा परिजन मरीज़ को चिकित्सालय लाने-ले जाने व अन्य व्यवस्थाओं में लग जाता है एवं तीसरा सदस्य घर पर रहकर खान-पान व अन्य घरेलु कार्यों का सम्पादन करता है; इस प्रकार खर्चे लगातार बढ़ते हैं एवं आय के स्रोत कुछ समय के लिये ठप्प पड़ जाते हैं।
इसे कहते हैं – एक तो करेला ऊपर से नीम-चढ़ा। ब्रांडेड दवाओं को ख़रीदने में 300 से 900 रुपयों का खर्च भी किसी निर्धन के लिये भारी पड़ सकता है क्योंकि ऐसा खर्च एक बार का हो तो फिर भी समझ आये परन्तु बार-बार अथवा दीर्घ अवधि तक औषधि-सेवन Necessary हो अथवा बाद में कोई अन्य सदस्य बीमार पड़ जाये तो यह खर्च बना ही रहता है। जनौषधि केन्द्रों के आने से यह खर्चा घटकर लगभग नाममात्र का रह जाता है जिससे चिकित्सा के कारण परिवार पर आर्थिक भार पहले जितना नहीं पड़ता।
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