Scam 1992 क्या था ? मेहता स्टाक मार्केट 1992 घोटाला Scam 1992 The Harshad Mehta Story In Hindi
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Scam 1992 The Harshad Mehta Story In Hindi
सन् 1992 भारतीय इतिहास की अर्थव्यवस्था में एक काले दाग जैसा है। महा घोटालेबाज़ हर्षद मेहता (Harshad Mehta) नामक एक ब्रोकर इस घोटाले के केन्द्र में रहा। पनेली मोती, राजकोट में एक गुजराती जैन परिवार में 29 जुलाई 1954 को जन्मा मेहता अपना पूरा नाम हर्षद शान्तिलाल मेहता लिखता था।
सन् 1976 में इसने मुम्बई के लाजपत राय कालेज से बी.काम. किया एवं आगामी आठ वर्षों तक अलग-अलग भूमिकाओं वाली नौकरियाँ कीं, इस दौरान शेयर बाज़ार में यह रुचि लेने लगा एवं कुछ वर्ष बाद नौकरी छोड़ ब्रोकरेज संस्था से जुड़ गया।
सन् 1984 में मेहता एक ब्रोकर के रूप में बाम्बे स्टाक एक्स्चेन्ज का सदस्य बन गया एवं इसने सहयोगियों के वित्तीय सहयोग से अपनी स्वयं की कम्पनी ‘ ग्रोमोर रिसर्च एण्ड एसेट मैनेजमेण्ट ’ खोल ली जब BSE ने Brokers Card की नीलामी की थी।
मेहता ने सन् 1986 से सक्रिय रूप में ट्रेड शुरु कर दिया. 1990 की शुरुआत तक बहुत सारे प्रसिद्ध लोग इसकी संस्था में निवेश एवं इसकी सेवाओं का उपयोग करने लगे थे। इस अवधि में विशेषतया 1990-1991 के दौरान Media ने मेहता को अत्यधिक महिमा मण्डित कर दिया एवं हर्षद मेहता को ‘द बिग बुल’ (The Big Bull) कहलाने लगे।
Scam 1992 The Harshad Mehta Story In Hindi
क्या किया था भ्रष्टमन हर्षद मेहता ने
1. कई निवेशकों के चहेते बने बैठे इस व्यक्ति ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की Receipt का प्रयोग करते हुए स्टाक-कीमतों में हेर-फेर की थी।
2. मेहता ने बैंकिंग प्रणाली से 1000 करोड़ रुपयों का गबन करते हुए बाम्बे स्टाक एक्स्चेन्ज पर स्टाक्स ख़रीदे।
3. अप्रैल -1991 से अप्रैल -1992 के बीच सेंसेक्स (Sensex) में उछाल जारी रहा एवं 274 प्रतिशत रिटर्न मिला और Sensex 1194 पाइण्ट्स से 4467 पाइण्ट्स तक जा पहुंचा। यह Index के लिये सर्वाधिक वार्षिक रिटर्न रहा।
4. घोटाला तब सामने आया जब भारतीय स्टेट बैंक ने सरकारी सिक्युरिटीज़ में कमी देखी। छानबीन में ऐसा प्रदर्शित हुआ कि मेहता ने प्रणाली में 3500 करोड़ रुपयों की हेर-फेर कर ली थी। 6 अगस्त 1992 को (घोटाला उजागर होने के बाद) बाज़ार में भारी गिरावट दर्ज की गयी एवं दो वर्ष तक गिरावट छायी रही।
5. सन 1992 में मेहता को कारावास सुनाया गया।
6. सन 1995 में इसने यह कहते हुए माहौल में फिर से विवाद फैला दिया कि मैंने प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव को एक करोड़ रुपयों का दान किया है एवं सत्तारूढ़ दल कांग्रेस द्वारा मुझे कारावास मुक्त कर दिया जाना चाहिए।
7. 31 दिसम्बर 2001 को कारावास में कार्डियक अरेस्ट आने से चिकित्सालय में मेहता की मृत्यु हो गयी।
8. बाद में एक अन्य स्टाक-ब्रोकर केतन पारेख (Ketan Parekh) से पूछताछ में कुछ बातें सामने आयीं कि पारेख ने स्टाक-कीमतों में हेर-फेर करने के लिये बैंक व प्रमोटर फ़ण्ड्स का प्रयोग किया है। पारेख भी बाद में दोष सिद्ध हुआ एवं इसे ट्रेडिंग (Trending) से निषिद्ध कर दिया गया।
9. 23 अप्रैल 1992 को द टाइम्स आफ़ इंडिया (The Times Of India) में एक स्तम्भ में हर्षद मेहता के घोटाले को पत्रकार सुचेता दलाल (Sucheta Dalal) सामने लायीं। केतन पारेख मामले में भी खोजबीन करने वाली पत्रकार सुचेता दलाल इन दोनों में समानताएँ देखकर चकित हो गयी क्योंकि ये दो घोटाले अत्यधिक एक से थे एवं 10 वर्ष की अवधि में कर लिये गये थे।
हर्षद मेहता से जुड़े अन्य विवरण
1990 के दशक तक भारत में बैंकों को इक्विटी (Banks Equity) बाज़ारों में निवेश की अनुमति नहीं थी। मेहता ने चालाकी से बैंकिंग प्रणाली की पूँजी झपट ली एवं इस धनराशि को शेयर बाज़ार में खपा दिया। इसने बैंकों को ब्याज की उच्च दरों का वचन तक दे दिया जबकि इसके निजी खाते में धन हस्तान्तरित करने को बैंकों से बोला, अन्य बैंकों से उनके लिये सेक्युरिटीज़ ख़रीदने के भ्रमजाल में उलझाते हुए।
उस समय सेक्युरिटीज़ ख़रीदने के लिये एवं अन्य बैंकों से बाण्ड्स (Bonds) Forward कराने के लिये बैंकों को ब्रोकर्स के पास जाना पड़ता था। इस घोटाले में बैंक-रिसीप्ट को भी एक बड़े साधन के रूप में इस्तेमाल किया गया।
रेडी फ़ारवर्ड डील में सेक्युरिटीज़ असलियत में बेक एण्ड फ़ारवर्ड बेक नहीं की जाती थीं। इसके बजाय ऋण प्राप्तकर्ता (अर्थात् सेक्युरिटीज़ का विक्रेता) बैंक-रिसीप्ट सेक्युरिटीज़ के क्रेता को देता था। बैंक-रिसीप्ट से सेक्युरिटीज़ की बिक्री की पुष्टि होती थी।
यह विक्रेता बैंक द्वारा मिले धन के लिये पावती के रूप में कार्य करती थी। इसी कारण इसका नाम बैंक-रिसीप्ट (Bank Receipt) पड़ा। इसमें क्रेता को सेक्युरिटीज़ देने का वचन हुआ करता था। इसमें यह भी कहा गया होता था कि इस अवधि के बीच विक्रेता क्रेता के भरोसे में सेक्युरिटीज़ को धारण कर रहा है। इस उद्देष्य से मेहता को बैंकों की आवश्यकता थी जो फ़र्जी बैंक-रिसीप्ट्स जारी कर सकें।
किसी साधारण रेडी फ़ारवर्ड डील में एक कमीशन के बदले में एक ब्रोकर द्वारा दो बैंक एक साथ ला दिये गये होते थे। ब्रोकर को न तो नगदी सँभालनी होती थी, न ही सेक्युरिटीज़ सँभालनी पड़ती थीं. वैसे इस मामले में ऐसा नहीं किया गया जिससे घोटाला बना। इस कपट-प्रबन्ध के उजागर होने के बाद बैंकों ने अपना धन वापस माँगना शुरु कर दिया जिससे व्यवस्था लड़खड़ा गयी।
मेहता के विरुद्ध बाद में 72 आपराधिक आरोप लगाये गये एवं 600 से अधिक सिविल कार्यवाही मुकदमे दर्ज कराये गये। 90 कम्पनियों के 2.8 मिलियन्स शेयर्स से अधिक को ग़लत काम में लेने के आरोप में मेहता व इसके भाइयों को 9 नवम्बर 1992 को केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (SEBI) द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया। भारत में तत्कालीन प्रधानमंत्री को रिश्वत देने का आरोप भी मेहता पर लगाया गया।
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Surendra ji apne bahut achhi jankari share ki .