स्वाइन फ़्लू के लक्षण कारण बचाव व उपचार ! Swine Flu H1N1 Flu Symptoms Cause Info In Hindi
Swine Flu H1N1 Flu Symptoms Cause Info In Hindi
स्वाइन फ़्लू है क्या ?
फ़्लू के नाम से प्रचलित इन्फ़्लुएन्ज़ा एक संक्रामक रोग है जो इन्फ़्लुएन्ज़ा विषाणु से होता है। वैज्ञानिक बोली में बोलें तो यह विषाणु वास्तव में आर.एन.ऐ.-विषाणु होता है। इन्फ़्लुएन्ज़ा विषाणु का ही एक प्रकार ‘इन्फ़्लुएन्ज़ा ऐ विषाणु’ है जो पक्षियों व कुछ स्तनधारियों में फ़्लू का एक मुख्य कारक है।
इन्फ़्लुएन्ज़ा ऐ विषाणु का एक उप-प्रकार H1N1 है जिसे स्वाइन फ़्लू कहा गया। स्वाइन (अर्थात् सुअर-सम्बन्धी) नामकरण इसलिये किया गया क्योंकि प्रयोगषालेय परीक्षण में ऐसा पाया गया कि इस विषाणु में पाये जाने वाले कई जीन उत्तरी अमेरिका में पाये जाने वाले सुअरों के जीन्स के अत्यधिक समान निकले।
2010 से पहले पनपी यह बीमारी पूरे वर्ल्ड में इन्फ़्लुएन्ज़ा महामारी के रूप में फैल गयी। भारत के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार भारत में गुजरात स्वाइन फ़्लू से सर्वाधिक प्रभावित प्रदेश है।
Swine Flu H1N1 Flu Symptoms Cause Info In Hindi
स्वाइन फ़्लू के लक्षण
कई लक्षण सामान्य सर्दी-ज़ुकाम व किसी भी अन्य बुखार जैसे हो सकते हैं (यह भी हो सकता है कि लक्षण समाप्त होकर बाद में वापस उभरने लगें) :
- नाक लगातार बहनी
- अनावश्यक छींकें
- ज़ुकाम
- ज़ुकाम होने के तीन दिन बाद नियूमोनिया हो जाना
- ख़ाँसी/गले में सूजन
- पेशियों में कष्ट व अकड़न
- हर समय आलस्य व थकान-सी अनुभूति
- सिर दर्द अथवा समग्रता में बदन-दर्द
- बुखार रहना व औषधि-सेवन के बाद और बढ़ जाना
- उल्टी-दस्त
- साँस पूरी न ले पाना अथवा साँस लेने में परेशानी अथवा तेज साँस चलना
- सीने अथवा पेट में दबाव अथवा दर्द
- अचानक चक्कर आने लगना अथवा कुछ समझ न आना
- त्वचा नीलाभ अथवा धूसर (ग्रे) पड़ना
- पर्याप्त पानी पीने का मन न होना
- सोकर अपने आप अथवा समय पर न उठना अथवा सामान्य बोलचाल न करना
- लोगों द्वारा साधारण व्यवहार करने पर चिड़चिड़ाना अथवा रोष प्रकट करना
गले व नाक के तरल को प्रयोगशाला में परखकर इस संक्रमण के परीक्षण हेतु पी.सी.आर./मोलेक्युलर सिक्वेन्सिंग/विषाणु- विशिष्ट प्रतिरक्षी का डेमोन्स्ट्रेशन इत्यादि जाँचें उपलब्ध हैं.
यदि स्वाइन फ़्लू होने की पुष्टि हो चुकी हो तो 48 घण्टों में उपचार आरम्भ करना होगा, अन्यथा स्थिति बिगड़ सकती हैं। वैसे भी स्वाइन फ़्लू के लक्षण व्यक्त होने में ही हो सकता है कि एक सप्ताह लग जायें (अर्थात् समझ आने तक सात दिन की देरी पहले ही हो चुकी होगी )।
विशेष रूप से श्वसन, हृदय व मस्तिष्क से सम्बन्धित कोई रोग कभी रहा हो तो चिकित्सक से उसकी चर्चा करें. यदि जाँच में यह रोग पाया गया हो अथवा शंका हो तो भीड़ में जाने से यथासम्भव बचें, विशेषकर संवेदनशील लोगों के सम्पर्क में आने से बचने का प्रयास करें ताकि उन्हें संक्रमण से बचाया जा सके।
स्वाइन फ़्लू से बचाव
1. यह एक संक्रामक रोग है जो एक से दूसरे में तब बड़ी आसानी से फैल सकता है यदि व्यक्ति का रोग-प्रतिरक्षण तन्त्र कमज़ोर हुआ तो। इसी के साथ बच्चों, गर्भवतियों एवं बुज़ुर्गों को भी विशेष सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि इनके फेफड़े व हृदय या तो दुर्बल होते हैं अथवा अतिरिक्त भार ढो रहे होते हैं।
2. हाथ मिलाने का विरोध पहले ‘पाश्चात्य शैली की भेंट’होने से किया जाता था परन्तु अब उसी पश्चिम तक के देश के वैज्ञानिक व चिकित्सक स्वयं स्वीकारने लगे हैं कि हाथ मिलाने से कई संक्रामक रोग फैलते हैं, अतः हाथ मिलाने से बचते हुए स्वाइन फ़्लू सहित अन्य बहुत सारे संक्रामक रोगों से काफ़ी सीमा तक बचा जा सकता है।
3. माँसाहार व खुले में शौच करने वाले लोगों में स्वाइन फ़्लु की आशंका अधिक रहती है।
4. भीड़ भरे स्थानों व चिकित्सालय की साफ़-सफ़ाई में उड़ने वाली धूल-खेन से बचकर चलें क्योंकि स्वाइन फ़्लू एक श्वसन-रोग है; घर की साधारण सफाई के दौरान भी समग्रता में सभी को सावधानी बरतनी चाहिए कि ढंग से झाड़ें व चद्दर इत्यादि पर जमी धूल को झटकार कर घर में न उड़ायें, झटकने वाली सामग्रियों को बाहर ले जाकर झटकें.
5. टीकाकरण एवं एक अँचल से अन्य अँचल में आ रहे व्यक्तियों की शारीरिक जाँच तथा आयातित उत्पादों की जाँच के भी माध्यम से इस रोग के प्रसार से बचाव के प्रयास किये जा सकते हैं। ध्यान रहे कि टीका लगवाकर पूर्णतया निश्चिन्त न हो जायें क्योंकि किन्हीं भी टीकों से रोगों की आशंका घटायी जा सकती है, शून्य नहीं की जा सकती.
6. निज दैहिक स्वच्छता का ध्यान रखना, अपना रुमाल इत्यादि बिन-धोये दूसरे को प्रयोग न करने देना, छींकते या खाँसते समय यदि आसपास कोई हो तो रुमाल नाक/मुख के पास रख के छींकना/खाँसना, कपड़े धोने की अन्तिम धोवन में डिटोल मिलाकर कपड़े निकालना, संदिग्ध अथवा संक्रमित व्यक्ति की सामग्रियाँ (धातु, वस्त्र अथवा अन्य कार्यालयीन व घरेलु सामान) प्रयोग करनी पड़ें तो ठीक से गर्म अथवा गुनगुने पानी से धोकर लें अथवा वह सामग्री उसके प्रयोग के बाद सूखने के कई घण्टों बाद प्रयोग करें क्योंकि कुछ घण्टों तक यह विषाणु वस्तुओं में जीवित रह सकता है।
स्वाइन फ़्लू के उपचार
1. प्रयोगशालेय जाँच में संक्रमण की उपस्थिति की पुष्टि होते से ही सम्बन्धित मान्य शासकीय चिकित्सालय में विधिवत् उपचार आरम्भ करायें. राहत महसूस होने पर औषधियाँ खानी छोड़ नहीं देनी हैं.
अन्यथा इस विषाणु के जीवित अंश प्रतिरोधी (ढीठ/रेसिस्टैण्ट) होते पाये गये हैं जिससे स्थिति भविष्य में और गम्भीर रूप में लौट सकती है, अतः चिकित्सक से पूछे बिना औषधि-सेवन करना बन्द नहीं करना है.
2. लक्षणों की गम्भीरता, उपचार की आवश्यकता के आधार पर चिकित्सालय में भर्ती होना आवश्यक हो सकता है.
3. चाय में हल्दी व काली मिर्च मिलाकर पीयें, अन्य खाद्यों व पेयों में इलायची, लौंग, तुलसी व तिल की मात्राएँ बढ़ायें;
4. पूजन के दौरान कपूर अवश्य जलायें.
5. चिकित्सक ने भी यदि आराम करने को कहा हो तो भी व्यर्थ न बैठें, कुछ-न-कुछ रचनात्मक गतिविधि में मन लगाये रखें, खाली बैठकर यहाँ-वहाँ की सोचने से रोग के लक्षण अक्सर बढ़ जाया करते हैं.
6. प्रचुर मात्रा में तरल पदार्थ (न कि चाय-काफ़ी, मदिरा इत्यादि) पीयें. घर पर बनाये सूप, फल-रस सेवन करें.
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satish says
Vary nice and informative article on swine flue