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कित्तूर रानी चेन्नम्मा की जीवनी व इतिहास !

October 11, 2021 By Surendra Mahara 1 Comment

कित्तूर रानी चेन्नम्मा की जीवनी व इतिहास ! Rani Chennamma Biography In Hindi

कर्नाटक प्रान्त में एक छोटा सा क़स्बा है कित्तूर. यह धारवाड़ और बेलगाँव के बीच बसा है. एक बार की बात है, बेलगाँव के काकति नामक स्थान पर नरभक्षी बाघ का आतंक फ़ैल गया. जन – जीवन संकट में था.

उस समय कित्तूर में राजा मल्ल्सर्ज का शासन था. वे आखेट प्रिय थे. राजा उस समय काकति आये तो उन्हें बाघ के आतंक की सूचना मिली. राजा तुरंत बाघ की खोज में निकले. सौभाग्य से बाघ का पता शीघ्र ही चल गया और राजा ने उस पर बाण चला दिया.

बाघ घायल होकर गिर गया. राजा तुरंत बाघ के निकट पहुंचे, लेकिन यह क्या ? बाघ पर एक नहीं दो – दो बाण गिरे थे जबकि राजा ने एक ही बाण चलाया था. राजा आश्चर्य में पड़ गया. तभी उसकी दृष्टि सैनिक वेशभूषा में सजी एक सुन्दर कन्या पर पड़ी. राजा को समझते देर न लगी कि दूसरा बाण कन्या का ही है.

राजा को देखते ही कन्या कुद्ध स्वर में बोली, ” आपको क्या अधिकार था जो आपने मेरे खेल में विघ्न डाला. राजा कुछ न बोल सका. वह मन ही मन कन्या की वीरता और सौन्दर्य पर मुग्ध होकर उसे देखता रह गया.

इतने में राजा के अन्य साथी भी आ गये. राजा ने उन्हें बताया कि बाघ इस वीर कन्या के बाण से आहात होकर मरा है. सभी लोग कन्या की वीरता की सराहना करने लगे.

कित्तूर रानी चेन्नम्मा , Rani Chennamma

  कित्तूर रानी चेन्नम्मा

राजा ने उस वीर कन्या के विषय में जानकारी की. उसे ज्ञात हुआ की वह काकति के मुखिया की पुत्री चेन्नम्मा है. राजा ने मुखिया से उसकी वीरपुत्री का हाथ माँगा. मुखिया ने हाँ कर दी और वह वीर कन्या कित्तूर की रानी चेन्नम्मा ( Rani Chennamma) बन गई. राजा मल्ल्सर्ज ने सन 1782 से 1816 तक लगभग 34 वर्ष कित्तूर के छोटे से राज्य पर शासन किया.

वे रानी चेन्नम्मा की राजनैतिक कुशलता से अत्यंत प्रभावित थे. राज्य के शासन प्रबंध में वे रानी की सलाह लिया करते थे. पेशवा द्वारा धोखे से बंदी बना लेने के कारण राजा मल्ल्सर्ज को बहुत समय तक बंदीगृह में रहना पड़ा जिससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया.

कित्तूर लौटते – लौटते वह अंतिम साँसे गिनने लगे. रानी चेन्नम्मा ने राजा की रात – दिन सेवा की, स्वस्थ करने का हर सम्भव प्रयास किया किन्तु क्रूरकाल से वह बच नहीं पाई.

रानी चेन्नम्मा का सौभाग्य लुट गया, पर उन्होंने मनोबल नहीं टूटने दिया. उन्होंने कित्तूर की स्वाधीनता की रक्षा को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया. यह ऐसा समय था जब अंग्रेज कित्तूर की वीरभूमि पर अपना अधिकार करने के लिए प्रयत्नशील थे.

राजा मल्ल्सर्ज के बाद कित्तूर की गद्दी पर उनका पुत्र शिवलिंग रुद्र्सर्ज बैठा. रूद्रसर्ज अस्वस्थ रहता था जिसके कारण शीघ्र ही उसकी भी मृत्यु हो गई. अब कित्तूर के सम्मुख उत्तराधिकारी का संकट आ खड़ा हुआ.

अंग्रेज चाहते थे कि रानी किसी उत्तराधिकारी को गोद न ले. रानी चेन्नम्मा अंग्रेजो की चाल समझ गई. उन्होंने प्रण किया कि वे जीते जी कित्तूर को अंग्रेजो के हवाले नहीं करेंगी.

रानी चेन्नम्मा ने ब्रिटिश अधिकारियों को अपना मंतव्य बार – बार स्पष्ट कर दिया किन्तु वे अपनी चाले चलते रहे. कुद्ध होकर रानी ने कित्तूरवासियों को सचेत करते हुए अपने सरदारों और दरबार के अधिकारियों के सामने आवेशपूर्ण घोषणा की – ” कित्तूर हमारा है. हम अपने इलाके के स्वयं मालिक है. अंग्रेज कित्तूर पर अधिकार कर उस पर शासन करना चाहते है “.

वे निश्चय ही भ्रम में है. कित्तूर के लोग स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दे सकते है. हमारा एक सिपाही उनके दस – दस सिपाहियों के बराबर है. कित्तूर झुकेगा नहीं, वह अपनी धरती की रक्षा के लिए अंतिम क्षण तक लड़ेगा.

रानी की ओजपूर्ण वाणी का सटीक प्रभाव पड़ा. दरबारियों एवं जनता में जोश की लहर दौड़ गई. सब एक स्वर में चिल्ला उठे- कित्तूर की जय, रानी चेन्नम्मा की जय.

अंग्रेजो को कित्तूर की स्वाधीनता खटक रही थी. अंग्रेज कलेक्टर थैकरे ने 23 दिसम्बर सन 1824 को कित्तूर पर घेरा डाल दिया. उसके सिपाही किले में घुसने की कोशिश करने लगे.

रानी चेन्नम्मा के सरदार गुरु सिछिप्पा ने भी अपने वीर सिपाहियों को आदेश दिया कि उन्हें कुचल डाले, खदेड़ भगाएँ. पल भर में कित्तूर के वीरों ने अंग्रेजी सेना का तहस – नहस कर दिया.

अंग्रेजी सेना के लगभग 40 लोग बंदी बना लिए गये. बंदी बनाये गए लोगो में कुछ अंग्रेज सैनिक, कुछ स्त्रियाँ तथा बच्चे भी थे. रानी चेन्नम्मा ने सैनिकों को तो बंदीगृह में ला दिया किन्तु स्त्रियों तथा बच्चों को वह राजमहल के अतिथिगृह में ले आई.

शत्रुपक्ष को सूचना दे दी गयी कि उनके बच्चे व स्त्रियाँ सुरक्षित है, जब चाहे उन्हें वापस ले जाएँ. रानी के इस उदारतापूर्ण व्यवहार से शत्रुपक्ष बहुत प्रभावित हुआ. थैकरे भी इस व्यवहार से प्रभावित हुए बिना न रह सका. वीरता और उदारता का ऐसा अदभुत संगम बहुत कम देखने को मिलता है.

अंग्रेजो के साथ हुए इस अल्पकालीन युद्ध में रानी को जो विजय मिली वह उनकी शक्ति का प्रथम संकेत थी. पराजय के बाद कलेक्टर थैकरे ने कई बार प्रयास किया कि वह रानी से मिलकर उन्हें अंग्रेजो की अधीनता स्वीकार करने को विवश करे, किन्तु उसके सभी प्रयास विफल रहे. हारकर कलेक्टर थैकरे ने कित्तूर के दुर्ग की ओर अपनी तोपें लगवा दी.

उसने कित्तुरवासियों को चेतावनी दी कि अगले दिन प्रातः काल तक दुर्ग का द्वार न खोला गया तो दुर्ग को तोपों से उड़ा दिया जायेगा. रानी  को इस चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ और वह अपनी तैयारियों में जुटी रही.

अगले दिन प्रातः एक बार फिर 24 मिनट का समय दुर्ग का द्वार खोलने के लिए दिया गया. अंग्रेज सैनिकों को पूरी उम्मीद थी कि द्वार खुल जायेगा. ठीक 24 मिनट के बाद एक झटके से दुर्ग का द्वार खुला.

जो दृश्य था, वह अंग्रेजो की कल्पना से परे था. कित्तूर के सिपाही विद्युत् गति से अंग्रेजी सेना पर टूट पड़े. रानी चेन्नम्मा किले के परकोटो पर खड़ी सेना का संचालन कर रही थी.

कमर में सोने की पेटी, पेटी में लटकती म्यान, दाहिने हाथ में चमचमाती नंगी तलवार और बाएं हाथ में घोड़े की लगाम. रानी चेन्नम्मा का यह रूप उनके साहस और संकल्प का परिचय दे रहा था. कित्तुर के वीरों ने गुप्त द्वार से निकल – निकलकर दुश्मनों को मौत के घाट उतरना शुरू कर दिया.

अंग्रेजी सेना इस आक्रमण के लिए तैयार नहीं थी. अंग्रेजी सेना के पैर उखड़ गये और सैनिक भयभीत होकर भाग खड़े हुए. अपने सैनिको को भागता देख थैकरे ने अपना घोड़ा दुर्ग की ओर बढाया. कित्तूर का वीर सैनिक बालप्पा रानी के पास ही खड़ा था. उसने निशाना साधा और थैकरे को परलोक पहुँचा दिया. अंग्रेजी सेना में हाहाकार मच गया.

थैकरे के अतिरिक्त अन्य कई बड़े अधिकारी और सैनिक मारे गये. यह एक निर्णायक युद्ध था जिसमे रानी चेन्नम्मा ने विजय प्राप्त की. कित्तूर के निकट धारवाड़ नामक स्थान पर उस समय बहुत बड़ी संख्या में अंग्रेज सैनिक और अधिकारी विद्यमान थे. उन्हें इस समाचार पर विश्वास ही नहीं हुआ कि कित्तूर के मुट्ठी भर वीरों से अंग्रेजी सेना को मुँह की खानी पड़ी.

उन्होंने तुरंत अपने सभी सैनिक अड्डो पर यह समाचार भेज दिया. कई देशी राजाओ और मराठो को भी अंग्रेजी ने अपनी ओर मिलाने की कोशिश की. एक बार पुनः दलबल एकत्र कर अंग्रेजो ने कित्तूर रियासत पर आक्रमण की योजना बनाई.

अंग्रेजो ने रानी चेन्नम्मा की अधीनता स्वीकार करने के लिए अनेक प्रलोभन दिए, जिन्हें रानी ने ठुकरा दिया. वीर रानी किसी भी कीमत पर कित्तूर की स्वाधीनता बेचने को तैयार नहीं थी. इन प्रस्तावों पर वह अत्यंत कुद्ध हुई. यद्यपि रानी के पास सैन्य बल कम था, फिर भी वह युद्ध के लिए तैयार थी.

जब अंग्रेजो की दाल किसी भी प्रकार नहीं गली तो अंततः उन्होंने दिसम्बर 1824 को पुनः कित्तूर पर हमला कर दिया. वीर रानी अपने सैनिको को उत्साहित करती रही. लगभग 5 दिन तक युद्ध चला.

कित्तूर दुर्ग के बाहर का मैदान वीरों की लाशों से पट गया. 5 दिसम्बर सन 1824 को प्रातः कित्तूर के ध्वस्त किले के परकोटे पर अंग्रेजो का झंडा ”यूनियन जैक” फहराने लगा. एक स्वर्णिम अध्याय का अंत हो गया.

वीर रानी चेन्नम्मा बंदी बना ली गयी. उन्हें लगभग 5 वर्ष तक बेलहोंगल के किले में बंदी बनाकर रखा गया. 2 फरवरी सन 1826 को रानी की मृत्यु हो गई. उनकी वीरता, साहस, पराक्रम तथा देशभक्ति कित्तूरवासियों के लिए प्रेरणा स्रोत सिद्ध हुई.

हालाँकि रानी चेन्नम्मा का देश – प्रेम हेतु उत्सर्ग वर्षो पूर्व की घटना है तथापि कित्तूर दुर्ग के खंडहरों को देखकर आज भी उनकी गौरव गाथा सहसा ही याद हो आती है.

बेलहोंगल में बना रानी चेन्नम्मा स्मारक तथा धारवाड़ में बना कित्तूर चेन्नाम्मापार्क रानी की वीरता, त्याग और उत्सर्ग की याद दिलाते है. देशप्रेम और उत्सर्ग का यह ऐसा उदाहरण है जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता.

Read Also: Maharaja Ranjeet Singh Biography In Hindi

रानी चेन्नम्मा से जुड़े सवाल – जवाब

प्रश्न : कित्तूर की महारानी कौन थी ?
उत्तर : कित्तूर की महारानी रानी चेन्नमा ((Rani Chennamma)) थी.

प्रश्न : रानी चेन्नम्मा का जन्म कब हुआ ?
उत्तर : रानी चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्तूबर सन 1778 को हुआ था.

प्रश्न : रानी चेन्नम्मा का जन्म कहाँ हुआ ?
उत्तर : रानी चेन्नम्मा का जन्म कित्तूर, कर्नाटक में हुआ था.

प्रश्न : रानी चेन्नम्मा के पिता का नाम क्या था ?
उत्तर : रानी चेन्नम्मा के पिता का नाम धूलप्पा था.

प्रश्न : रानी चेन्नम्मा के माता का नाम क्या था ?
उत्तर : रानी चेन्नम्मा के माता का नाम पद्मावती था.

प्रश्न : रानी चेन्नम्मा का विवाह किस्से हुआ ?
उत्तर : रानी चेन्नम्मा का विवाह राजा मल्लसर्ज से हुआ.

प्रश्न : कर्नाटक की वीर महिला कौन है ?
उत्तर : कर्नाटक की वीर महिला महारानी चेन्नमा थी.

प्रश्न : रानी चेन्नम्मा का निधन कब हुआ ?
उत्तर : रानी चेन्नम्मा का निधन 21 फरवरी सन1829 को हुआ.

प्रश्न : रानी चेन्नम्मा किस वंश समुदाय से थी ?
उत्तर : रानी चेन्नम्मा काकातीय राजवंश (लिंगायत समुदाय) की थी.

प्रश्न : रानी चेन्नम्मा क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर : रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजो के खिलाफ जंग लड़ी थी.

प्रश्न : चेन्नम्मा शब्द का अर्थ क्या है ?
उत्तर : चेन्नम्मा शब्द का मतलब होता है – सुन्दर महिला.

यह भी पढ़े : दुष्यन्त पुत्र भरत की अनोखी कहानी

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Comments

  1. Hemalata Thite says

    July 5, 2017 at 1:44 pm

    bahut accha laga. pura padh liya, lekin ek bat nahi samzi, aapne likha hai, angrejoen marathe sath lekar rani ka bimod karne chale. wakai marathe taiyyar ho gaye?

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