जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है ? What Is Real Purpose Of Life In Hindi
What Is Real Purpose Of Life In Hindi
देश काल-परिवेश जो भी हो जीवन के वास्तविक उद्देष्य के बारे में सभी सोचते होंगे अथवा जरुर सोचना चाहिए। धन, प्रतिष्ठा, परिवार इत्यादि को जीवनोद्देष्य न समझें। श्वान व शूकर भी अपने व परिजनों के शरीर-निर्वाह के लिये बहुत कुछ कर लेते हैं।
ये तो भोगयोनि हैं किन्तु मानव कर्मयोनि है, अर्थात् मानवजन्म एक अवसर है जिसमें जन्मों के संचित कर्मफल काटने के साथ ही नवीन कर्म भी किये जा सकते हैं। कैसे नवीन कर्म ? निष्काम सद्कर्म।
मानव रूप ऐसा स्वर्णिम अवसर है जिसे पाने के लिये देवता भी मचलते रहते हैं क्योंकि पुण्यभोग के उपरान्त वे भी स्वर्ग से पतित हो जाते हैं परन्तु मानव को वह अधिकार सहज ही प्राप्त है कि वह इसमें निष्काम सद्कर्म करते हुए मोक्ष (जीवन-मरण के बन्धन से मुक्ति) प्राप्त कर सकता है.
इस प्रकार मोक्ष व निष्काम सद्कर्म एक ही जैसी बात हुई क्योंकि निष्काम सद्कर्म के बिना मोक्ष सम्भव नहीं तथा मोक्ष नहीं तो इसका मतलब न जाने कितने जन्म-जन्मान्तर तक पुनः भिन्न-भिन्न शरीरों में भटकना, दुःखों के भयावह भँवर में घिरना इत्यादि। यहाँ यह दर्शाने का प्रयास किया जा रहा है कि निष्काम सद्कर्म करते हुए मोक्ष का मार्ग सरल कैसे किया जाये.
What Is Real Purpose Of Life In Hindi
1. इष्टदेव मंत्र का सतत् उच्चारण
जैसे कि यदि आपके इष्टदेव नारायण हैं तो आप आजीवन चौबीसों घण्टे हर क्षण ‘ऊँ नमो नारायणाय’ का मानसिक व वाचिक उच्चारण करते रहें एवं सदैव उन्हें अपने समीप प्रत्यक्ष अनुभव करने का प्रयत्न करें, जीवन के अन्य समस्त कार्य आपके लिये द्वितीयक हों।
2. भूतयज्ञ
हर मौसम में गिलहरियों व पक्षियों के लिये मिट्टी के एक सकोरे में नित्य पेयजल भरें तथा दूसरे सकोरे में वह अनाज मिश्रण जो आप हाट या दुकान वाले से यह कहकर लाने वाले हैं. ” समस्त देसी साबुत अनाजों का मिश्रण तैयार कर दीजिए “। यह आपका दायित्व है एवं प्रकृति का ऋण उतारने का एक माध्यम भी तथा आपके द्वारा दैनिक रूप से हो जाने वाले पंचसूना-दोष का निवारण भी।
घर में चूल्हा, चक्की,सिलबट्टा, झाड़ू, ओखली व घड़ा इन पाँच क्रियाओं में जीव हत्याएँ हो जाती हैं जिनके निवारण के लिये काकबलि (कौऐ को रोटी), गौबलि (गाय को ग्रास) व चींटियों को निवाला डालने इत्यादि की व्यवस्थाएँ भारत में सनातनकाल से हैं।
चक्की इत्यादि उपरोक्त पाँच कारणों के आधुनिक रूपों से भी ये जीव हिंसाएँ परोक्षतः होती हैं (अर्थात् पंचसूना-दोष)। वैसे भी जन्म-जन्मान्तर से हम न जाने कितने पापों की भारी गठरी लेकर घूम रहें हों, नित्य उपरोक्त कार्यविधि से वह गठरी थोड़ी-बहुत हल्की तो हो ही जायेगी। दोनों सकोरों को धोकर साफ रखना याद रहे।
3. भगवद्स्तुति
सदैव ईश्वर की संस्कृत स्तुतियों को सानुवाद लिखते रहें, पढ़ते-सुनाते रहें। नित्य कम से कम दो बार पूजन करें। घर पर भी एक क्षेत्र छोटे-से मंदिर जैसा बना लें। यहाँ एवं बाहर भी सदैव अच्छी व सकारात्मक गतिविधियों में सक्रिय होए तथा अथाह नि: शर्त प्रेम व निश्छल भक्तिभावपूर्वक जीवन का हर क्षण व कण बस प्रभु में लगाते बस उसी ओर चलते रहें।
4. याचक के साथ जरूरतमंद का भी ध्यान रखें
द्वार पर आये याचक को खाली हाथ न लौटा कर भरपेट भोजन-जल अथवा अन्य प्रकार से यथाक्षमता उसकी सहायता करके ही लौटायें परन्तु स्मरण रखें कि यह पर्याप्त नहीं है, ज़रूरतमंदों को खोज-खोजकर उनकी यथाशक्ति सहायता करें। भावनाओं में बहकर धन सौंपने अथवा अपरिचित को अपना घर दिखा देने जैसे जोख़िम न उठायें।
भोजन, चिकित्सा इत्यादि तात्कालिक मूलभूत जरूरत-पूर्ति का प्रबन्ध करते हुए स्थानीय स्वयंसेवी संस्थाओं व प्रशासन तक उसे सकुशल पहुँचायें। जैसे कि पूरी ज़िम्मेदारी के साथ उस घायल पशु को चिकित्सालय पहुँचायें, अपनी गाड़ी पर अथवा आसपास पास से आटो, ट्राली अथवा अन्य सहायताएँ अपने बल पर प्राप्त करते हुए।
5. जीविका कैसी हो
ऐसी जिसमें आपका न्यूनतम समय खपे, आपकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाये, साईं इतना दीजिए जामें कुटुम्ब समाय, मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाये। हो सके तो पेड़-पौधों अथवा पशु-पक्षियों अथवा अन्य ज़रूरतमंदों की सेवा-सुश्रूषा से जुड़ी जीविका हो।
6. न खाली बैठें, न व्यर्थ कुछ करें
मोबाइल और तथाकथित मित्रों, रिश्तेदारों व परिजनों का मोह त्यागकर जीवन में सार्थकता का विचार करें कि अब तक का जीवन तो जैसा बीतना था बीत गया परन्तु अब जीवन का हर मिनट सार्थक ही बीते। ऐसे हर व्यक्ति, विचार व विषय को सदा के लिये त्याग दें जो आपको सीधे ईश्वर तक न ले जा सकता हो।
हर समय कभी मंत्रलेखन तो कभी ईश्वर का ध्यान करते रहें, कभी आसपास के लोगों से मिल-जुलकर (कि मैं आपका पसंदीदा पेड़ लाकर लगा सकता हूँ बशर्ते आप उसकी देखरेख व नियमित सिंचन की ग्यारण्टी लें) अथवा अकेले ही स्थान-स्थान पर वृक्षारोपण के लिये निकल जायें, दिनचर्या का एक बड़ा भाग आसपास के लोगों से व्यर्थ चर्चाओं में खप जाता है, इससे अब बचें।
7. अहिंसक बनें
विशुद्ध शाकाहारी बनें एवं रेशम, चर्मोत्पाद, शहद इत्यादि से दूर रहें। पाँव के नीचे कोई चींटी भी न मसलाये यह सावधानी बरतें।
8. सात्त्विकता लायें
भोजन-पान से लेकर चाल-चलन, रहन-सहन, पहनावा एवं आचार-विचार सबमें सादगी व पवित्रता हो। मन-वचन-कर्म सब शुद्ध सात्त्विक रखें चाहे परिस्थितियाँ जैसी भी हों। संसार (परिवार, समाज) चाहे जैसी भी प्रतिक्रिया करे आपको कुछ अनुचित करना तो दूर, अनुचित सोचना भी नहीं है।
9. स्वयं से प्रश्न करना सीखें
कोई भी विचार अथवा कर्म करने से पहले परमात्मा को साक्षी मानकर स्वयं से पूछें. इसे करके क्या प्रभु प्रसन्न होंगे ? ” क्या यह इतना पवित्र कर्म-विचार है जिसे मैं ईश्वर को अर्पित करना चाहूँ अथवा क्या वे इसे सहर्ष स्वीकार करेंगे ?
इनके उत्तर यदि आपकी अन्तरात्मा ‘नहीं’ में बोले तो उस दिशा में वैचारिक रूप से भी आगे न बढ़ना। मन-बुद्धि को ईश्वर में ऐसे तल्लीन कर दें कि आप ऐसे हर कार्य प्रति अनिच्छुक हो जायें जो आपको सीधे परमात्मा से न मिलाये।
‘मैं‘ व ‘मेरा’ इत्यादि को छोड़कर प्रभु को ही सर्वस्व समझकर बस उसी कि लिये जियें, उसके के लिये वे कर्म करें जो वह आपसे करवाना चाहता है जिनका उल्लेख यहाँ किया जा चुका है एवं जिसके लिये आपको मानव-जन्म मिला है। परमधाम में प्रभुचरणों से बड़ा सच्चा सुख, शाश्वत आनन्द कुछ और न तो कभी हो सकता था, न हो सकता है एवं न ही कभी हो सकेगा।
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