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चारों वेदों का सम्पूर्ण सार 4 Vedas Full Detail Summary In Hindi

February 8, 2022 By Surendra Mahara Leave a Comment

चारों वेदों का सम्पूर्ण सार 4 Vedas Full Detail Summary In Hindi

Table of Contents

  • चारों वेदों का सम्पूर्ण सार 4 Vedas Full Detail Summary In Hindi
    • 4 Vedas Full Detail Summary In Hindi
      • उपवेद – चारों वेदों में प्रत्येक वेद का एक उपवेद होता है :
        • ऋग्वेद :
        • यजुर्वेद :
        • सामवेद :
        • अथर्ववेद :
      • समस्त वेदों के सारभूत तत्त्व :
      • ईश्वर :
      • आत्मा :
      • धर्माधर्म :
      • तीर्थ एवं त्यौहार :
      • पंचमहायज्ञ :
      • बलिवैष्वदेव :
      • छः नित्यकर्म :

4 Vedas Full Detail Summary In Hindi

वेदों को भगवान् की वाणी, इस प्रकार अपौरुषेय कहा गया है। वेदशब्द ‘विद्’धातु से व्युत्पन्न हुआ है जिसका आशय जानने से है। वेद वास्तव में ज्ञानराशि है।

इस ज्ञानराशि के विभाजन : ऋक, यजु व साम से बने तीन वेद वेदत्रयी कहलाये जबकि आगे चलकर वेद के चार भाग हुए, अथर्व चैथा वेद कहलाया।

वेदलक्ष्य : समस्त वेदों का उद्देष्य हृदय से मलों को मिटाना, मन को एकाग्र करना व चंचलता का नाश तथा अज्ञान दूर कर प्रभु प्राप्ति है।

वेद-विभाग : प्रत्येक वेद में साधारणतया तीन विभाग होते हैं. संहिता, ब्राह्मण व उपनिषद्, इन तीनों का विवरण निम्नानुसार है :

संहिता : देवी-देवताओं की आराधनाओं से सम्बन्धित मंत्रभाग, यज्ञ के सस्वर उच्चरित मंत्रों को ऋचा कहा जाता है।

ब्राह्मणगंरथ : ब्राह्मणग्रंथों में वर्णित यज्ञों का सम्बन्ध स्वर्ग प्राप्ति से है। ब्राह्मणग्रंथो के भी तीन भेद हैं – ब्राह्मण, आरण्यक व उपनिषद्।

उपनिषद् आरण्यक : अरण्य में ऋषियों द्वारा प्रतिपादित तत्त्वों का वर्णन करने वाले मंत्र। उपनिषद् भी आरण्यकों के अन्तर्गत हैं। उपनिषदों को वेदों का सार अथवा अन्तिम भाग अथवा वेदान्त कहा जाता है। उपनिषदों में ब्रह्म व आत्मतत्त्व का वर्णन है। उपनिषदों का लक्ष्य ब्रह्मज्ञान से अवगत कराकर जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त कराना है।

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4 Vedas

उपवेद – चारों वेदों में प्रत्येक वेद का एक उपवेद होता है :

ऋग्वेद :

आयुर्वेद (आयुर्वेद में आदि विद्वान् ब्रह्मा, धन्वंतरि, अश्वनीकुमार, पाराशर, चरक, सुश्रुत इत्यादि उल्लेखनीय हैं)। प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में आत्मा-परमात्मा, जीव-प्रकृति, ज्ञान-विज्ञान, जीवन के आदर्श सिद्धान्तों एवं संसार के विभिन्न पदार्थों का विवरण है।

इसमें जल, वायु, सौर व हवन चिकित्साओं सहित मानव-चिकित्सा का भी उल्लेख है। च्यवन ऋषि के पुनर्यौवन का उल्लेख भी इसमें है। ऋग्वेद के मण्डलों के रचयिताओं में अत्रि, भारद्वाज, कण्व व अंगिरा इत्यादि नाम उल्लेखनीय हैं।

यजुर्वेद :

धनुर्वेद (धनुर्वेद के प्रवर्तक आचार्य विश्वामित्र हैं)। यजुर्वेद में यज्ञ-विधियाँ एवं यज्ञों में प्रयुक्त मंत्र हैं। तत्त्वज्ञान का भी वर्णन है। यजुर्वेद में आर्यों के सामाजिक व धार्मिक जीवन पर प्रकाश डाला गया है। यजुष् अर्थात् यज्ञ। यजुर्वेद में उल्लेख है कि मनुष्य प्राप्त ज्ञान का उपयोग मोक्ष प्राप्ति में कैसे करे।

सामवेद :

गान्धर्ववेद (गान्धर्ववेद में गायन, नृत्य व नाट्य के आचार्य क्रमशः नारद, महेष व भरतमुनि हैं)। सामवेद में ऋग्वेद की ऋचाओं का संगीतमय रूप है। यह वेद संगीत शास्त्र का मूल है। सामवेद में आध्यात्मिक उन्नति पर बल दिया गया है।

अथर्ववेद :

अर्थशास्त्र (कुछ ग्रंथों में अथर्ववेद का उपवेद स्थापत्यवेद को कहा गया है)। अर्थशास्त्र के अन्तर्गत 64 कलाओं के आचार्य कई हुए हैं। स्थापत्य के आचार्य विश्वकर्मा कहे गये हैं। थर्व का अर्थ कम्पन है एवं अथर्व का अर्थ अकम्पन।

ज्ञान से श्रेष्ठ कर्म करते हुए जो परमात्मा उपासना में लीन रहता है वही अकम्प बुद्धि को प्राप्त करके मोक्ष का अधिकारी बनता है। अथर्ववेद में रहस्यमयी विद्याओं, चमत्कार इत्यादि का उल्लेख है।

अथर्ववेद में आयुर्विज्ञान विषय में बहुत लिखा गया है। औषधियों एवं जीवाणु विज्ञान का उल्लेख भी इसमें काफ़ी है। अथर्ववेद में स्पष्ट है कि बाद में प्रकृति-पूजा की उपेक्षा की जाने लगी एवं प्रेत-आत्माओं व तन्त्र-मन्त्र पर अनावश्यक ज़ोर दिया जाने लगा। अथर्ववेद में विज्ञान, मनोविज्ञान, समाजषास्त्र, कृषि, गणित, ज्योतिष, भौतिक व रासायनिक शास्त्रों का वर्णन मिलता है।

समस्त वेदों के सारभूत तत्त्व :

ईश्वर :

परमात्मा एक ही है जो विविध आत्माओं के रूप में आंशिक रूपों में अलग-अलग प्रतीत होता है। एकोअहम् द्वितीयो नास्ति अर्थात् मैं एक हूँ, दूसरा नहीं है। तत्त्वमसि अर्थात् तत् (वह) त्वम् (तुम) असि (हो) अर्थात् सब ओर बस परमात्मा ही है। अहं ब्रह्मास्मि, अर्थात् मैं ब्रह्म (परमात्मा) हूँ। इन तीन संस्कृत वाक्यों को वेदीय महावाक्य कहा गया है।

आत्मा :

यह परमात्मा का ही एक अंश है। निर्मलीकरण, आत्म-जागरण की प्रक्रियाओं द्वारा यह अपने मूल स्वरूप को जानते हुए पुनः परमात्मा में एकाकार हो सकता है। परमात्मा के ही समान यह भी अनाद्यन्त (न जन्म, न मृत्यु) है। आत्मा एक शरीर त्याग दूसरा शरीर ग्रहण करती रहती है जब तक कि मोक्ष नहीं मिल जाता।

धर्माधर्म :

जो ईश्वर को प्रिय हो, ईश्वर की ओर ले चले वह सब धर्म एवं अन्य सब अधर्म। धर्म से ही मोक्ष मिल सकता है, अन्यथा आत्मा को जन्मों-जन्म विभिन्न शरीरों में भटकना व कष्ट भुगतना पड़ता है।

तीर्थ एवं त्यौहार :

शक्तिपीठों व ज्योतिर्लिंगों के अतिरिक्त भी कई तीर्थ हैं जहाँ जीवन के दुष्चक्रों से तरने के लिये तीर्थाटन को व्यक्ति जाते हैं एवं सकारात्मक परिवेष में जाकर नकारात्मकताओं से दूर हो जाते हैं।

6 ऋतुओं के बारह मासों के दोनों पक्षों में विविध तीज-त्यौहार होते हैं जो मानव को सार्थकता की डगर पर ले चलने एवं अपने अस्तित्व का बोध कराने के लिये होते हैं, यदि इनके मूलभाव को समझ लिया जाये तो ये आध्यात्मिक उत्साह का संचार कर सकते हैं।

पंचमहायज्ञ :

ब्रह्मयज्ञ (स्वाध्याय अर्थात् वेद-पुराणों का अध्ययन व विचार-विमर्श), पितृयज्ञ (अन्न-जल द्वारा पितरों का तर्पण), देवयज्ञ (देवताओं को लक्षित करके होम करना), भूतयज्ञ (सूक्ष्मजीवों, पेड़-पौधों व चींटी सहित अन्य जीवों को आहार-जल प्रदान करना), भूतयज्ञ के अन्तर्गत अन्न अग्नि में न सौंपकर भूमि पर रखते हैं ताकि आसपास के जीव स्वमेव उसका सेवन कर लें), नृयज्ञ (मानव-यज्ञ) में अतिथि, पथिक व अन्य असहायों को भोजन-पान से संतुष्ट किया जाता है।

बलिवैष्वदेव :

दिनचर्या में हमारे द्वारा कई हिंसाएँ परोक्ष रूप से होने की आशंकाएँ बनी रहती हैं, जैसे कूटना, पीसना, चूल्हे का प्रयोग, पानी भरना व बुहारना, मुख्य रूप से ये पाँच क्रियाएँ करते समय सूक्ष्मजीवों की हिंसा होती ही है।

इन हिंसाओं के प्रायश्चित स्वरूप वैष्वदेव की परम्परा लायी गयी ताकि भूल-चूक से व निश्चय ही प्रतिदिन होने वाली इन गैर-इरादतन हिंसाओं का प्रायश्चित भी अपने आप होता रहे।

बलिवैष्वदेव को पंचमहायज्ञ का लघु रूप कह सकते हैं जिसमें पिपीलिकादि (चींटी इत्यादि कीड़े-मकोड़ों) तक के लिये कुछ आहार नित्यप्रति अलग से रखने को कहा गया है। गौबलि में गाय को आहार प्रदान किया जाता है।

‘बलि’ का तात्पर्य ‘को संतुष्ट’ करना है, जैसे कि गौबलि का आशय पशु हत्या नहीं है, गाय को खाना खिलाने से है। इस प्रकार पक्षियों-गिलहरियों को प्रतिदिन दाना-पानी (पानी प्रतिदिन बदलें एवं साबुत देसी अनाजों का मिश्रण क्रय करके लायें) रखें।

छः नित्यकर्म :

शास्त्रों में स्नान, संध्या, जप, देवपूजा, वैष्वदेव व अतिथि-सत्कार इन छः नित्यकर्मों का उल्लेख है जिनका पालन हर व्यक्ति को करना ही चाहिए। अतिथियज्ञ वास्तव में भूतयज्ञ व बलिवैष्वदेव जैसा होता है.

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