घरेलु यंत्रों के स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभाव Home Appliances Side Effects On Health In Hindi
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Home Appliances Side Effects On Health In Hindi
आराम, सुविधा व लाभों को गिना-गिनाकर बेचे व ख़रीदे गये घरेलु यंत्रोपकरणों (Home Appliances Disadvantage) के स्वास्थ्यगत दुष्प्रभावों को यदि आप समझ लेंगे तो उनसे दूर होने का मन चाहेगा, चाहे जितनी सावधानियाँ बरत लो अधिक व कम हानि तो होनी है.
बिजली से चलने वाले यह सारे उपकरण (Home Appliances) दिखने में जितने फैंसी होते है उतना ही ज्यादा ये आपकी हेल्थ के लिए नुकसानदायक होते है.
चाहे आप फ्रिज की बात कर ले या फिर बात कर ले ए. सी की ये हमें कुछ देर के लिए आराम तो देते है लेकिन इनके Side – Effects भी बहुत आते है तो चलिए इस आर्टिकल में आज इन्ही बारीकियों पर नजर डालते है तो Post अंत तक जरुर पढ़े ताकि आपका ध्यान भी इस और जा सके.
रूम-हीटर (Room Heater) –
1. नमी का नाश – यह वायु से नमी को हटा देता है। फिर सूखी वायु से त्वचा में रूखापन आता है। त्वचा यदि संवेदनशील हुई तो खुजली व लालिमा आ सकती है एवं संक्रमण को बढ़ावा मिल सकता है। छोटे बच्चों की कोमल त्वचा व नाक को और अधिक हानि पहुँचनी सम्भव, बच्चों में नाक से ख़ून आने की आशंका।
2. घर में विष बढ़ना – कार्बन-मोनोआक्साइड (Carbon Monoxide) से मस्तिष्क व अन्य अंगों को क्षति पहुँच सकती है। हर प्रकार के हीटर से अस्थमारोगियों सहित स्वस्थ व्यक्तियों में भी अनेक श्वसनरोगों की सम्भावना बढ़ती है।
3. जलने की दुर्घटना – छूने से अथवा निकट बैठने से त्वचा का जलना व गम्भीर अनदेखी क्षति भी सम्भव, अपने लेन्सेज़ व स्पेक्टेकल्स (Lenses And Spectacles) को बिल्कुल दूर रखें, अन्यथा इनकी आण्विक संरचना बदल सकती है एवं कार्निया का ऊतक जल सकता अथवा क्षतिग्रस्त हो सकता है जब भी आप उन्हें बाद में भी पहनेंगे।
4. ताप में उतार-चढ़ाव – कमरे के भीतर एक निष्चित तापक्रम बनाये रखने अथवा घटाने-बढ़ाने अथवा बाहर आपके निकलने से आपके शरीर में होने वाला तापीय अनियमन भी प्रतिरक्षा तन्त्र को दुर्बल बना छोड़ता है जिससे सीज़्नल कोल्ड व Flu की आशंका बढ़ती है।
कमरे में पानी का कटोरा रखते, खिड़की-दरवाजे खुले रखते, तापक्रम निर्धारित रखते, निर्माता द्वारा वर्ष में उसे कम से कम दो बार जाँच व Servicing कराते हुए एवं उसे बच्चों व बुज़ुर्गों की पहुँच से दूर लगवाते हुए हानियों को अधिक बढ़ने से अवश्य रोका जा सकता है किन्तु समाप्त नहीं किया जा सकता।
Home Appliances Side Effects On Health In Hindi
वातानुकूलित्र (Air Conditioned) –
1. नेत्रों में सूखापन – आँख़ों में विभोभ (Irritation) व धुँधली दृष्टि सहित खुजली व जलन सम्भव।
2. निर्जलीकरण – नमी सोख ली जाने से एवं कम तापक्रम में रहने से कमरे में सूखापन छा जाता है जिससे शरीर व त्वचा में आवश्यक नमी की कमी हो जाती है। त्वचा सूखने लगती है, खुजली व केश सबन्धी समस्याएँ, शरीर में आन्तरिक निर्जलीकरण भी सम्भव।
3. सि रदर्द – वातानुकूलित्र क्षेत्र के भीतर व बाहर आते-जाते समय शरीर का ताप-नियमन सामान्य नहीं रह पाता, माइग्रैन की स्थिति भी और बिगड़ सकती है।
4. संक्रमण – नासिका पथ में सूखेपन से श्लेष्म-कला (Mucus-membrane) विषाण्विक संक्रमणों को आकर्षित कर सकती है।
5. श्वसनसमस्याएँ – वातानुकूलित्र से नासिका व कण्ठ की सामान्य कार्यप्रणाली में व्यवधान आ जाते हैं। सहज श्वसन-पथ अवरुद्ध हो सकता है व श्लेष्म झिल्ली में सूजन आ जाती है। फेफड़े भी प्रभावित होते हैं।
6. तामसिकता – वातानुकूलित्र में निद्रा-तन्द्रा, आलस्य आदि में वृद्धि की आशंका रहती है। ऐसे माहौल में उत्पादकता क्षीण हो ही जाती है। नैसर्गिक संवातन का अपना महत्त्व है।
7. अस्थमा एवं एलर्जीज़ – वातानुकूलित्र की सफाई बारम्बार करनी आवश्यक होती है, वैसे कितनी भी सफाई कर लो फिर भी अस्थमा-अटैक की आशंका बनी ही रहती है तथा उसके भीतर फँसे व फैल रहे प्रदूषकों से एलर्जीज़ (Allergies) भी सम्भव।
रेफ्रि़जरेशन (Refrigeration) –
रेफ्रि़जरेण्ट विषाक्तता उन रसायनों से आती है जिनके माध्यम से ठण्डक उत्पन्न की जा रही होती है। फ़ेरान (फ़्लुओरिनेटेड हायड्रोकार्बन्स) स्वादहीन व अधिकांशतया गंधहीन गैस है जो कोशिकाओं व फेफड़ों तक पहुँचती आक्सीजन को कम कर देती है।
साँस-सम्बन्धी समस्याएँ, चक्कर, मति-विभ्रम, दुःस्वप्न, व्याकुलता, मितली-उल्टी, सुस्ती, फेफड़ों में तरल-जमाव अथवा ख़ून-रिसाव, अंग-क्षति, मनोविक्षिप्ति, आकस्मिक मृत्यु तक सम्भव।
कुछ अणु तो शरीर में भीतर वसा-अणुओं में प्रवेश कर जाते हैं व वसीय ऊतक में आसानी से जमा होने लगते हैं। यकृत व मस्तिष्क को हानि होनी भी सम्भव।
फ्रि़ज में रखे खाने की सूक्ष्मजैविक बढ़त धीमी अवश्य हो सकती है किन्तु रुकती नहीं है एवं साथ में अन्य खाद्यसामग्रियों के सूक्ष्मजीवों का पारस्परिक मिश्रण भी हो जाता है, वैसे भी फ्रि़ज में रखा पानी स्वास्थ्य के लिये चिकित्सात्मक रूप से उपयोगी नहीं माना जाता एवं खाद्यों के पोषक तत्त्व भी घट जाते हैं।
माइक्रोवेव आवेन (Microwave oven) –
1. पोषक-हानि – आण्विक हलचल से खाद्य पदार्थ के पोषक तत्त्व गम्भीर स्थिति तक नष्ट हो जाते हैं।
2. माता में दूध कम बनना
3. विटामिन-बी12 के स्तर में कमी
4. कैन्सरकारक-उत्पत्ति – प्लास्टिक में खाने को रखने से भी खाने में कार्सिनोजेन बन जाते हैं।
5. रुधिर की बनावट में बदलाव – माइक्रोवेव (Microwave) में गर्म किये दूध व सब्जियों को खाने से शरीर में लालरक्त कोशिकाओं में कमी एवं श्वेतरक्त कोशिकाओं व कोलॅस्टेराल (Cholesterol) में बढ़त देखी गयी है। नान-आयोनाइज़िंग विकिरण से भी रुधिर एवं हृदय-दर में परिवर्तन सम्भव।
वाशिंग मशीन (Washing Machine) –
1. सूक्ष्मजैविक संक्रमण – वाशिंग मशीनों का आन्तरिक भाग कई जीवाणुओं के पनपने का स्थान हो सकता है जो कपड़ों के माध्यम से मानव-शरीर तक पहुँच सकते हैं। इसके अतिरिक्त वाशिंग मशीन में कई कपड़े एकसाथ डाले जाते हैं एवं अलग से उतने साफ़ भी नहीं निकल पाते जितने कि हाथों से धोये।
2. आलस्य-वर्द्धन – वाशिंग मशीन (Washing Machine) के कारण व्यक्ति की शारीरिक सक्रियता घट जाती है एवं आराम-तलबी छाती जाती है।
वेक्यूम-क्लीनर (Vacuum cleaner) –
वेक्यूम-क्लीनर्स (Vacuum Cleaners) कुछ ब़ारीक़ धूल व जीवाणुओं को वायु में वापस उगल देते हैं जिनसे संक्रमण फैल सकते हैं तथा एलर्जीज़ सम्भव।
ज्यूसर (The Juicer) –
1. रेशे विभिन्न कारणों से पेट ही नहीं बल्कि पूरे शरीर के लिये बहुत Necessary होते हैं परन्तु रस में इनका अभाव होता है।
2. धातु इत्यादि से घर्षण के कारण रस में उनके कण आ जाते हैं।
डिह्यूमिडिफ़ायर (Dehumidifier) –
वायु को और अधिक सुखा देता है। अन्य के अतिरिक्त न्यूमोनिया जैसी स्थितियाँ और बिगड़ सकती हैं। एग्ज़िमा (Gzima) व अन्य त्वचारोगों सहित केश समस्याओं की भी आशंका।
एयर-ह्यूमिडिफ़ायर (Air-Humidifier) –
1. संक्रमण – जीवाणुओं व कवकों (फ़फूँदी) का पनपना, लेगियोनेला प्न्यूमोफिला नामक जीवाणु लेगियोनॅरे-रोग का कारण बनता है जो कि प्न्यूमोनिया का गम्भीर रूप है। कभी न जाने वाले श्वसन-रोग हो सकते हैं।
2. ध्वनि प्रदूषण
3. अत्यधिक नमी
4. सफेद धूलि – आसपास पानी की सूक्ष्म बिन्दुकें (Doorplates) घूमने से उनमें एकत्र खनिज घर में यहाँ-वहाँ जमते रहते हैं जो त्वचा, बाल व साँस में आने को अच्छा नहीं कहा जाता।
जनरेटर (Generator) –
पावर जनरेटर से कार्बन-मोनोआक्साइड वातावरण में घुल जाती है। बन्द भवन इत्यादि में पावर जनरेटर्स का उपयोग अधिक हानि पहुँचाता है क्योंकि पर्याप्त संवातन न रहने से दूषित गैस साँस के माध्यम से अधिक मात्रा में फेफड़ों तक पहुँचती है।
कपड़ा आयरन (Cloth Iron) –
1. मनोविभ्रम – कपड़ों में प्रेस करने वाले यदि कभी Press न करवायें तो हीनभाव अथवा ‘कोई क्या सोचेगा’ जैसे भ्रमों में पड़कर कुछ का कुछ सोचने लगते हैं।
2. स्टीम आयरन क्लीनर विषाक्तता – चिलेटिंग एजेण्ट विषाक्तता, मिनरल डिपाज़िट रिमूवर विषाक्तता भी सम्भव, चिलेटिंग एजेण्ट्स ऐसे रासायनिक यौगिक होते हैं जो धातु के आयन्स से अभिक्रिया करके स्थिर व जल-विलयशील संकुल (पानी में घुलनशील काम्प्लेक्स) बना लेते हैं।
स्टीम आयरन्स को साफ करने में प्रयुक्त पदार्थ को स्टीम आयरन क्लीनर कहते हैं जिसकी विषाक्तता तब सामने आती है जब स्टीम आयरन क्लीनर शरीर में प्रवेश कर जाता है।
स्टीम आयरन क्लीनर में चिलेटिंग एजेण्ट्स के अतिरिक्त हायड्राक्सीएसीटिक अम्ल, फ़ास्फ़ोरिक अम्ल, सोडियम हायड्राॅक्साइड व गन्धक अम्ल भी होता है। ये सब वायु में घुलकर मानव की त्वचा व नाक से शरीर में पहुँच जाते हैं। स्टीम आयरन स्प्रे (Steam iron spray) में भी बहुत से रसायन निकलकर वायु में फैल जाते हैं।
Home Appliances Side Effects On Health In Hindi
वाटर हीटर (Water Heater ) –
इलेक्ट्रिक वाटर हीटर (Water Heater) से मिले गुनगुने पानी में प्न्यूमोनिया करने वाला सूक्ष्मजीव व अन्य रोगप्रद सूक्ष्मजीव पाये जाने की सम्भावना अधिक रहती है क्योंकि गुनगुना पानी उन्हें पनपने में सहायता करता है। भौतिक बनावट के कारण गैस अथवा आइल-पावर्ड हीटर्स के बजाय इलेक्ट्रिक वाटर हीटर्स से संक्रमण होने की आशंका अधिक होती है।
समस्त प्रकार के वाटी-हीटर्स किसी-न-किसी प्रकार से हानिप्रद रहते हैं, वैसे तो ग़र्म अथवा कुनकुना पानी प्रयोग करने वालों की मौसमी व शारीरिक-मानसिक सहनशीलता सहित रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी घटती रहती है।
एयर-प्यूरिफ़ायर (Air Purifiers) –
1. एयर-प्यूरिफ़ायर के रूप में कई ओज़ोन-जनरेटर्स बाज़ार में बेचे जा रहे हैं। निर्माता ऐसे दावे करते हैं कि उत्पन्न इस ओज़ोन से समस्त जीवाणु व विषाणु नष्ट हो जायेंगे एवं दुर्गन्ध मिटेगी परन्तु वस्तुत: इतनी कम ओज़ोन ऐसा नहीं कर पाती।
जितनी अधिक मात्रा ऐसा कर सकेगी वह मात्रा मनुष्यों के लिये बहुत ख़तरनाक हो जायेगी। ओज़ोन वास्तव में फुफ्फुस-विक्षोभक (लंग-इर्रिटेण्ट) होती है एवं इससे अस्थमा, दम घुटना इत्यादि जैसी समस्याएँ सम्भव हैं।
2. एयर आयोनाइज़र से आवेशित आयन्स वायु में उत्सर्जित होते हैं जिनसे जीवाणु व विषाणु दीवार पर चिपक जाते हैं, अर्थात् मिटते अथवा नष्ट होते नहीं। इनमें भी उपोत्पाद (बायप्रोडक्ट) के रूप में ओज़ोन बनती है।
3. यूवी एयर-प्यूरिफ़ायर – इनमें ओज़ोन निकलने के साथ ही क्षतिग्रस्त यूवी बल्ब वायु में पारद (Mercury) को फैला सकते हैं।
4. हेपा फ़िल्टर्स – बहुधा यूवी फ़िल्टर्स व एयर आयोनाइज़र्स को मिलाकर हेपा फ़िल्टर बना दिया जाता है जो कि और हानिप्रद संयोजन है।
सीलिंग फ़ेन (Ceiling Fan) –
1. घुटन – पंखे से मुख, नासिका व गले में सूखापन हो सकता है। इस कारण श्लेष्मा का अतिउत्पादन सम्भव है जिससे सिरदर्द, बन्द नाक, गले में सूजन एवं खर्राटे भी सम्भव।
2. एलर्जीज़ – पंखों की हवा में आसपास पड़ी धूल-खेन आदि वायु में सरलता से घुलती जाती है। नाक बहना, छींक, नेत्रों में पानी अथवा साँस लेने में कठिनता सम्भव।
3. नेत्रों व त्वचा का सूखापन
4. पेशी-दर्द – एक ही हवा बारम्बार घूम-घूम के आने से पेशियों में तनाव व असहजता हो सकती है।
डिमिनरलाइज़्ड वाटर (Demineralized Water) –
1. रिवर्स आस्मोसिस – आर.ओ. नामक एक वाटर-प्युरिफ़िकेशन टेक्निक (Water-purification technique) में Pressurized water एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली के माध्यम से गुजारा जाता है जिसमें कुछ रोगप्रद, अशुद्धियाँ व मानवोपयोगी खनिज आयन तक फँसकर वहीं रुक जाते हैं। इस प्रकार ऐसा पानी सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम व अन्य महत्त्वपूर्ण विलीन ठोसों से वंचित हो जाता है। यह कौन-सा लाभ हुआ ?
2. कम खनिज अंश अथवा कम TDS (टोटल डिज़ाल्व्ड साल्ट्स) वाला पानी पीने से हमारे शरीर की समस्थिरता (होमियोस्टेसिस) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मूत्र व पसीने के माध्यम से शरीर के खनिज बाहर निकल जाते हैं किन्तु यदि उनकी पूर्ति नैसर्गिक रूप से अपने आप न हो तो आवष्यक खनिजों की कमी होने से खनिजीय असंतुलन हो जाता है.. हार्मोन स्रावण, वृक्क व अस्थि-खनिज घनत्व आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं।
सोडियम, कैल्शियम, क्लोराइड, पोटेशियम आयन्स जैसे आवश्यक खनिज तत्त्वों की कमी से रुधिर का नाज़ुक परासरणी (आस्मोटिक) दाब विघ्नित हो जाता है एवं वैद्युत् अपघट् य (इलेक्ट्रोलाइट)-असंतुलन हो जाता है। ऐसे में आरओ डिमिनरलाइज़्ड पानी के सेवन से शरीर आवश्यक पोषकों से और वंचित रह जाता है। परिणामस्वरूप सिरदर्द, कमज़ोरी, पेशियों में ऐंठन, हृद्-स्पन्दन में अनियमितता इत्यादि आशंकाएँ छा जाती हैं।
3. हृद्वाहिकीय (कार्डियोवॅस्क्युलर), तन्त्रिकाविज्ञानी (न्यूरोलाजिकल) व परिवर्द्धनात्मक विकार – पानी भले ही कैल्शियम व मैग्नीशियम का मुख्य स्रोत न हो फिर भी अनुसंधान में ऐसा स्पष्ट हुआ है कि कैल्शियम व मैग्नीशियम की कमी वाला पानी पीने से हृद्वाहिकागत रोगों का जोख़िम बढ़ जाता है, बच्चों में अस्थिभंग (Fracture), समयपूर्व प्रसव, जन्म के समय कम भार का बच्चा, कुछ न्युरोडिजनरेटिव विकृतियों इत्यादि की आशंका बढ़ जाती है।
4. अस्थि-सामथ्र्य, रक्तचाप व रक्त-निर्माण में हानि – Human Body को जिन खनिजों व सूक्ष्म पोषकों की आवश्यकता अपनी सामान्य कार्यप्रणाली के लिये दैनिक रूप से होती है उनमें से अनेक की पूर्ति नैसर्गिक जल के माध्यम से हो जाती है जो खनिजों में समृद्ध हो अथवा उन पौधों के सेवन से हो जाती है जो उस पानी से युक्त मिट्टी में उगे हों। शोधों में स्पष्ट हुआ है कि पानी के खनिजों को शरीर शीघ्र अवशोषित कर लेता है।
आज के जंकफ़ूड (Junk Food) खाने वाले समय में तो खनिज तत्त्वों की कमी पहले से ही बड़ी दयनीय हो चली है। कैल्शियम की कमी से अस्थियाँ भंगुर (आसानी से टूट जाने वाली) हो जाती हैं, मैग्नीशियम व पोटेशियम की कमी से उच्चरक्तचाप की आशंका उपजती है तथा लौह की कमी से रुधिर-निर्माण की प्राकृतिक प्रक्रिया बाधित होने लगती है।
5. दीर्घकालिक वृक्करोग व जठरान्त्रीय विकारों का जोख़िम – शरीर के परिसंचरण तन्त्र के लिये क्षाराम्लस्तर (PH मान) लगभग सात के आसपास अथवा अधिक (कुछ क्षारीय) होना आवष्यक होता है परन्तु R.O. Filtration Process से निकला पानी अम्लीय होता है। ऐसा पानी पीते-पीते वृक्क (गुर्दे) सम्बन्धी विकारों एवं पेट व आँत की समस्याओं का जोख़िम बढ़ता है।
ऋग्वेद में पेयजल के गुण सहस्राब्दियों पहले ही बता दिये गये हैं – जो स्पर्श में शीतल (ध्यान रहे कि यांत्रिक अथवा Coldrink नहीं), स्वच्छ, दिखने वाला, जरूरी खनिजों व सूक्ष्ममात्रिक तत्त्वों से युक्त पोषणमान वाला एवं सामान्य क्षाराम्ल-परास से युक्त हो।
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