बुढ़ापे की तैयारियाँ कैसे करे ? How To Prepare For Old Age In Hindi
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How To Prepare For Old Age In Hindi
सर्वप्रथम को वृद्धावस्था को अभिशाप मानना बन्द करें। बुढ़ापा तो एक प्रकार से बचपन को पुनः जी लेने का अवसर है। किशोरावस्था व युवावस्था तो समाज में घुड़दौड़ में बीत गयी, अब शान्ति व एकान्त से सुखी जीने की बेला आयी है.
यहाँ बुढ़ापे की तैयारियों व लाभों का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है जिससे जीवन के इस अन्तिम पड़ाव को न्यूनतम दुःखद व अधिकतम सुखद बनाया जा सकता है.
How To Prepare For Old Age In Hindi
1. भावनात्मक उठापटक के लिये तैयार रहें
बुढ़ापा आने पर आपको अनुपयोगी मान लिया जायेगा इस बात के लिये मानसिक रूप से तैयार रहें; स्त्रियाँ तो प्रायः पेंशन भी नहीं लातीं इसलिये इन्हें और भी अधिक व्यर्थ माना जा सकता है.
जब तक माता-पिता युवा रहते हैं तो संसार व परिजन उन्हें आर्थिक निवेशक (पिता को) व केयरटेकर (माता को) समझते हैं परन्तु पुरुष के सेवानिवृत्त होते व स्त्री की कार्यक्षमता घटते ही इन दोनों को पारिवारिक व सामाजिक रूप से निरुपयोगी समझ लिया जाता है.
इस कारण कभी विचलित न होयें, सन्तानों से अपेक्षाएँ न रखें; समय बदल जाने पर सन्तानों का मन भी बदल सकता है। पहले माँ-पापा, माँ-पापा कहते-कहते पीछे-पीछे दौड़ने वाला बेटा कब ‘मुझे आप दोनों के लिये फ़ुर्सत नहीं है’ बोलने लगे कौन जाने ?
आपने उसे पैदा किया यह आपकी इच्छा का उत्पाद था, उसे पाला वह आपका उत्तरदायित्व था, आपने उस पर कोई ‘अहसान’ नहीं किया, उससे ‘रिटर्न’ की उम्मीद न रखें। मन में कोई बोझा न रखें।
2. बुढ़ापा तो फ़िल्टर है
सेवानिवृत्त होते अथवा बूढ़ा होना आरम्भ होते ही अपने-परायों में भेद नज़र आने लगता है। दोस्त-दोस्त कहकर पीछे पड़े रहने व सामुदायिक समारोहों में बुलाने वाले लोग पके बालों अथवा झुर्रियों वाले चेहरे को बुलाना पसन्द नहीं करते, सेवानिवृत्त व्यक्ति से अधिक आर्थिक लाभ मिलने की आशा भी नहीं रखी जाती.
इस प्रकार घर-बाहर, रिश्तेदार व संगी-साथियों की पोल-पट्टी खुल जाती है कि कौन किस स्वार्थ के आधार पर जुड़ा हुआ था. यह तो अच्छी बात है कि अब असलियत सामने आने लगी। हताश नहीं बल्कि हर्षित होएँ।
3. बचत व आर्थिक तैयारी
आर्थिक स्वावलम्बी बने रहें, वसीयत इस प्रकार तैयार करें कि आजीवन हम पति-पत्नी की देखभाल उत्कृष्ट तरीके से किये जाने पर ही हमारी चल-अचल सम्पत्तियाँ सन्तानों के पास हस्तान्तरित होंगी, अन्यथा नहीं।
जब तक हाथ-पैरों में थोड़ी जान व मन में कुछ सामर्थ्य बचा हो तो व्यर्थ न बैठें, अपनी सीमा में कुछ आर्थिक गतिविधियाँ करते रहें, आर्थिक व ग़ैर-आर्थिक रूपों में कुछ न कुछ सकारात्मक करते रहें, अपने अनुभवों व ज्ञान की गठरी को पड़े-पड़े गलने न दें।
4. बच्चों के बहकावों में न आयें
” मुझे व्यापार के लिये कुछ राशि चाहिए ” जैसी इमोशनल ब्लेकमेलिंग में आकर अपनी सम्पत्ति व बुढ़ापे की पोटली दाँव पर न लगायें, ‘जो नहीं है’ उसे पाने के प्रयास में ‘जो है’ उसे खतरे में न डालें। जितनी चादर उतने पैर पसारें की कहावत गाँठ बाँधें रहें। अनिश्चित भविष्य के चक्कर में अपने वर्तमान को संकटग्रस्त न करें। निवेश के नाम पर शंकाओं का प्रवेश न होने दें।
5. अतीत-वर्तमान-भविष्य में चैन न खोयें
अतीत के झरोखे याद कर-कर के, वर्तमान को तौलकर अथवा भविष्य से आकांक्षाओं में चैन की नींद को क्यों खपाना, ईश्वर ने जिसे जितना दिया है वह काफ़ी है, मन को द्वंद्वों से मुक्त करें, जो हुआ, जो हो रहा है एवं जो होगा प्रभु – इच्छा के अधीन ही होगा एवं भगवान कभी कुछ ‘ग़लत’ नहीं होने दे सकता, भरोसा तो रखें।
6. चिकित्सात्मक तैयारियाँ
वैसे तो सभी को किन्तु विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों को अपनी समस्त चिकित्सात्मक जाँच-रिपोट्र्स, मेडिकल व फ़ार्मा पर्चे इत्यादि को सँभालकर एक फ़ाइल बनाकर सदा के लिये सँजोकर रखना चाहिए क्योंकि छोटी-मोटी लगने वाली कई बीमारियाँ भी कारण-प्रभाव सम्बन्ध के रूप में परस्पर जुड़ी हो सकती हैं.
स्वास्थ्यगत भविष्य को यथासम्भव सुरक्षित कर लेना चाहते हों तो हर चिकित्सात्मक अतीत को सँभालकर रखें।
इसी के साथ समय-समय पर सोनोग्रॅफ़ी व रक्त-परीक्षण भी कराते रहें ताकि आन्तरिक अंगों की कार्यप्रणाली को परखा जा सके एवं किसी विकृति का लक्षण दिखने पर समय रहते उपचार आरम्भ करते हुए वृद्धावस्था जनित समस्याओं को अल्पतम रखा जा सके।
7. रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ायें
रासायनिक व डिब्बाबंद खाद्यों के बजाय स्थानीय व देसी ताजे खाद्य-पेय अपनायें. दालचीनी, सौंठ, हींग, अजवायन, काली मिर्च, लौंग इत्यादि को पेय व आहार में बढ़ायें क्योंकि इनमें उपस्थित एण्टिआक्सिडेण्ट्स आपके रक्त को शुद्ध करते रहेंगे एवं वार्द्धक्य-जन्य समस्याओं का प्रभाव कम होगा. इस विषय में रोग-प्रतिरोधक क्षमता कैसे बढ़ायें अवश्य पढ़ें।
8. अब तो जीवन की यथार्थता समझें
इतिहास में वाल्मीकि जब मार्ग में चलते लोगों को लूट लिया करते थे तो एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजर रहे थे तो वाल्मीकि ने लूटने की दृष्टि से उन पर आक्रमण किया तो नारद ने पूछा कि ऐसा क्यों करते हो, वाल्मीकि ने कहा कि अपने परिजनों की पूर्ति के लिये।
देवर्षि नारद ने बोला कि पूछ के आओ कि क्या वे तुम्हारे पाप-फलभोग में भी तुम्हारा साथ निभायेंगे, पूछने पर उसके परिजन बोले कि हम तुम्हारे पापकर्मों का फल भोगते समय तुम्हारे साथ नहीं होंगे।
इस प्रकार वाल्मीकि का हृदय-परिवर्तन हो गया एवं नारद से क्षमायाचना की तथा इस प्रकार मोह-माया की निरर्थकता का बोध होने पर वाल्मीकि जीवन के सच्चे सुख के मार्ग पर बढ़ गये एवं रामायण के रचयिता कहलाये, यह बताने का प्रयोजन यह है कि जीवन की सार्थकता परिवार, धन, प्रसिद्धि इत्यादि में नहीं है, ईश्वर के सिवाय और कुछ पाने योग्य है ही नहीं.
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