धनी व्यक्ति कैसे बने ? Garib Se Amir Insan Kaise Bane
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Garib Se Amir Insan Kaise Bane
व्यक्ति वित्तैषणा से ग्रसित रहते हैं, अर्थात् धन की इच्छा धन प्राप्ति का प्रयोजन मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति अथवा परहित के साधन के लिये हो तब तो ठीक है, अन्यथा यह नाश का कारण बनता है।
धन प्राप्ति व प्रयोग दोनों ही धर्म संगत होने चाहिए, अन्यथा मानव के 6 शत्रुओं यानी काम, क्रोध, लोभ.. में तीसरे स्थान पर ‘लोभ’ को गिना जाता है। पुरुषार्थ-चतुष्ट्य में धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष में भी जो-जो धर्म के अनुकूल हो वही मोक्ष तक ले जा सकता है, अन्यथा सब कुछ बन्धन में डालेगा, ‘अर्थ’ तो कई ‘अनर्थों’ का मूल बन जाता है.
वैसे धर्म से सीधे मोक्ष तक पहुँचा जा सकता है, वह भी अधिक सरलता से। मोक्ष तक जीवन व शरीर के सहज निर्वाह के लिये जितना धन आवश्यक व तर्कसंगत हो उसे पाने अथवा धनाढ्य जीवन जीने के कुछ उपाय यहाँ दर्शाए जा रहे हैं.
Garib Se Amir Insan Kaise Bane
1. बचत की आदत
बिजली, पानी इत्यादि की बचत करते हुए बहुत बड़ी राशि मासिक स्तर पर बचायी जा सकती है। कमरे में कोई न हो तो पंखा बन्द रखें, बिजली चार्जिंग न करने पर तार निकाल स्विच बन्द रखें इत्यादि सरल माध्यम ऐसे हैं कि जिनसे कोई भी बचत कर सकता है. यह राशि मासिक रूप से सैकड़ों से हज़ारों रुपयों तक हो सकती है.
इसी प्रकार सबसे पहले यह बतायें कि आप डीज़ल-पेट्रोल हर बार फ़ुल टैंक क्यों नहीं भरवाते ? पहले अपने आपको जवाब दें फिर आगे पढ़ें। जब बाद में भरवाना ही है तो अभी ही भरवायें ताकि आपका समय बचेगा (दोबारा-तिबारा भरवाने के लिये प्रायः दो-तीन किलोमीटर्स दूरी तय करनी आवश्यक हो सकती है).
इन कुछ किलोमीटर्स अथवा मीटर्स अतिरिक्त चलने से खर्च होने वाला धन भी बचेगा (जरुरी नहीं कि जहाँ आप जाने / जहाँ से आने वाले हों वहाँ मार्ग में पम्प मिल ही जाये, मिल भी गया तो यहाँ लिखित अन्य घाटे तो उठाने ही पड़ेंगे), भीड़ का हिस्सा बनने से बचाव होगा. गाड़ी रोकने, चालू करने में होने वाला प्रदूषण रुकेगा, अधिक ईंधन होने से गाड़ी की चलायमान स्थिति अच्छी रहेगी, श्रम बचेगा।
2. स्थानीय कारीगरों को एकजुट कर उनका विक्रय-माध्यम बन जायें
‘स्थानीय के लिये प्रखर होए’ (Vocal For Local), ‘भारत में करें निर्माण’ (Made In India), स्वदेशिता जैसी बातें न भी सोचते हों तो भी स्थानीय स्तर पर कार्यरत इन कारीगरों के कार्यों, छायाचित्रों, उत्पादों, सेवाओं, फ़ोन नम्बर्स इत्यादि को इनसे पूछ-पूछकर एक डायरी में मैण्टैन करके रखें.
कि मैं एक विवरण या डाटाबेस बना रही या बना रहा हूँ जिसके माध्यम से हम सब एक साथ होकर सम्भावित ग्राहकों तक पहुँचकर कमायी बढ़ा सकते हैं तथा सम्भावित ग्राहकों तक सेवाओं व उत्पादों की उपलब्धता की जानकारी पहुँचाना मेरा कार्य होगा।
आप चाहें तो एक ब्लाग (जिसे बनाने के लिये विशेषज्ञीय सेवा की आवश्यकता नहीं होती, कोई भी व निःशुल्क बना सकता है, यदि न बना पा रहे हों तो इण्टरनेट – दुकान के चालक से बनवा लें, लगभग 15-20 मिनट्स का एक बारगी कार्य है), उसमें यह सम्पूर्ण विवरण पोस्ट कर दें तथा सम्भावित ग्राहकों को SMS के रूप में इस Blog का Link मैसेज कर दें.
” मिट्टी, बाँस की उपयोगी व आकर्षक सामग्रियों के लिये …… इस लिंक को देखकर जरुर सम्पर्क करें, मैं आपके द्वारा इच्छित वस्तु आपके घर तक पहुँचाऊँगा “। ध्यान रखें कि ब्लाग एक बार बनाकर छोड़ देना पर्याप्त है, बारम्बार Online होने की कोई आवश्यकता नहीं.
ऑफलाइन सुखी रहने के उपाय अवश्य पढ़ें। यह सम्पूर्ण विवरण एक Hard copy फ़ाइल बनाकर अपने पास भी रखें। मोबाइल में डूबे रहने की आदत छोड़कर स्थानीय कारीगरों को इस प्रकार एकजुट करने का कार्य करेंगे तो आपको पता चलेगा कि व्यर्थ बैठने में बजाय थोड़ा-सा चल-फिर लेने से एवं नाममात्र के श्रम से ही आपने अपने व दूसरों के लिये कितना कुछ कर लिया, वह भी लाखों के निवेश के बिना।
3. विलासिता को त्यागें
जितनी चादर उतरे पैर पसारें , माया महाठगिनी जैसी कहावतों का महत्त्व समझें. यदि दुपहिया में कार्य अच्छे से संचालित हो रहा है तो चैपहिया की चाह क्यों ? किराये के मकान में ठीक ठाक रह ही रहे हैं तो अचानक ‘अपने मकान’ की चाहत कहाँ से आ गयी ?
(सुविधा व आवश्यकतानुसार मकान बदलने की सरलता किराये के मकान में ही रहती है, स्वयं के मकान के लोभ में ढेरों हानियाँ साथ रहती हैं). कभी त्यौहारी ख़रीद्दारी तो कभी Discount Offer के फेर में पड़कर घर को अनावश्यक वस्तुओं से भरने का क्या प्रयोजन ?
जरूरी सामग्रियों को सूचीबद्ध करने के लिये कागज़ पर लिखकर दुकान व बाज़ार जाने के बजाय दो-तीन वस्तुओं के लिये बार-बार शापिंग करने से पेट्रोल व समय नहीं खप रहा ?
यदि उत्पाद की आवश्यकता सदा रहेगी (जैसे कि दंतमंजन, तेल, साबुन, दाल इत्यादि) तो कम-कम मात्रा व छोटे डिब्बों में ख़रीदने के बजाय अधिक मात्राओं व बड़े डिब्बों में ख़रीदें.
इससे आने-जाने का समय व खर्चा तो बचेगा ही एवं साथ में बड़े पैकेट या अधिक मात्रा के कारण सामग्री तुलनात्मक रूप से सस्ती भी पड़ सकती है तथा पैकेजिंग में प्रयुक्त प्लास्टिक व पालिथीन में भी कमी आयेगी जिससे पर्यावरण में अपशिष्ट कम बनेगा।
4. दिखावा कभी न करें
कभी स्वयं के, कभी तथाकथित मित्रों तो कभी रिश्तेदारों के जन्मदिवस या अन्य आयोजनों के नाम पर हज़ारों रुपये उड़ा देने वाले लोग जब पारिवारिक मूलभूत आवश्यकता अथवा सामाजिक दायित्वपूर्ति के दौरान स्वयं के बारे में ऐसा कहते पाये जाते हैं तो बड़ा आश्चर्य होता है – ” आजकल कड़की व पैसों की तंगी चल रही है यार ! तथाकथित सामाजिक मान व सोशल स्टेटस अथवा आर्थिक यश कीर्ति में रखा क्या है ?
पैसे देखकर भिनकने वाले मच्छरों से ऐसी आस नहीं रखी जा सकती कि वे आपके शोक में भविष्य में साथ निभाने आयेंगे। बड़े से बड़े किसी भी (स्मरण रखें- किसी भी) आयोजन में 10 से अधिक लोग, 2000 से अधिक रुपये खर्चने कैसे आवश्यक हो सकते हैं ?
अब तक कितने आयोजनों में आपने कितने रुपये खर्च किये, ईमानदारी से कुल जमा यहाँ लिखें …………………. उधारी लेना तो अवांछनीय होता ही है किन्तु यदि पहले से अपने पास अतिरिक्त धनराशि हो तो उसे बचत के रूप में रखें अथवा किसी पुनीत प्रयोजन से खर्च करें, औपचारिकताओं अथवा सामाजिक दिखावे, मौज-मस्ती में न बर्बाद होने दें।
वृक्षारोपण में अथवा पशुसेवा में राशि लगायें तो सार्थक व औचित्यपूर्ण होगा, जैसे कि रामफल अथवा लाल अमरूद जैसे कम दिखने वाले पौधे क्रय करके मंदिरों इत्यादि के कर्ता – धर्ताओं से पूछकर लगायें, इनके आकर्षण में वे मना नहीं कर पायेंगे एवं वृक्षारोपण-जागरण भी सम्भव हो जायेगा।
5. निर्व्यसन हों
उस व्यक्ति को निर्धन अथवा ‘कम आमदनी, खर्चा ज़्यादा’ कैसे माना जा सकता है जो गुटखे व धूम्रपान इत्यादि में प्रतिदिन 100 रुपये खपा देता है, इसे बचाकर उसकी बचत देखें तो 3000 रुपये प्रतिमाह की बचत की जा सकती है.
बस ये ग़लत आदतें छोड़ देने मात्र से क्या यह 3000 रुपयों की अतिरिक्त कमायी के समकक्ष नहीं ? वार्षिक कमायी हुई ना 36000 रुपयों की |
Thank You For Giving Me Your Valuable Time !
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