दूसरों का दिल जीतने के लिये क्या करें 21 टिप्स How to Win People Hearts in Hindi
How to Win People Hearts in Hindi
परिवार में परिजन को अथवा कार्यस्थल पर सहकर्मी को मनाना हो अथवा किसी से पुराना बैर मिटाना हो अथवा सम्बन्ध अच्छे करने हों तो समझ नहीं आता कि पहल कैसे की जाये, ईश्वर ने मानव – शरीर में विवेक के लिये मस्तिष्क दिया है जिसमें एक-दूसरे से मन-मुटाव व कलह के लिये कोई स्थान नहीं होना चाहिए, सब ठीक से मिल-जुलकर सौहार्द्र पूर्ण भाव से रहें.
आज या कल न जाने कब किसके साथ क्या हो जाये, कब साथ छूट जाये, मृत्यु भी प्रायः कहाँ बताकर आती है, क्यों न जितना जीवन बचा है वह पूर्वाग्रहों से दूर होकर, हर द्वेष भुलाकर, सीधे व साफ़ मन से सहज भाव से जिया जाये।
हम सभी उस एक परमात्मा के अंश हैं, ऊपर से दिख रहे भेद तो बाहरी व आभासी हैं। मन के मैल मिटाकर सच्चे हृदय से सोचें तो कट्टर विरोधियों के बीच भी ढेरों रुचियों में समानता दिख जायेगी कि दोनों पक्ष कह उठें कि हम तो कितने अधिक एक-दूसरे जैसे ही हैं, इस बात से हम अब तक अनभिज्ञ बस गिने-चुने विषयों में लड़ने बैठे रह गये।
यहाँ हम ऐसे नुस्खों की बात करेंगे जिनसे लोगों का दिल जीता जा सकता है परन्तु ध्यान रहे इनका प्रयोग लड़का-लड़की मानसिकता से अथवा स्वार्थ पूर्ति हेतु अथवा अन्य किसी ग़लत नीयत से अथवा चाटुकारिता के लिये न करें.
How to Win People Hearts in Hindi
1. रूठे परिजन को उसकी कोई बहु-प्रतीक्षित व आवश्यक वस्तु उपहार में दे (यदि वह ना-नुकुर करे अथवा मना करे तो आप विचलित न होना).
2. वह कितना भी नाराज़ हो अथवा आपकी अनदेखी करे आप बुरा न मानें व अपनी ओर से हर बार पहल हमेशा करते रहें.
3. उसके गुणों की चर्चा उसकी मण्डली या परिचितों में भी करें.
4. उसके जीवन में ऐसा कोई सुधार करें जो वह करना तो चाह रहा था परन्तु कर नहीं पा रहा था.
5. मन-मुटाव दूर होने तक उसे कभी अकेला न छोड़ें.
6. उस प्रथम व्यक्ति के बारे में कोई कुछ ग़लत सोचता अथवा बोलता हो तो उस नासमझ व्यक्ति को समझायें कि यह ऐसा नहीं है एवं इस प्रकार अपने इस प्रथम व्यक्ति की छवि सुधारें.
7. आपने उसके प्रति सामने अथवा पीठ पीछे जो कुछ भी ग़लत सोचा व किया सब कुछ उसे खुले मन से बता दें तथा यदि पीठ पीछे अथवा सार्वजनिक रूप से कुछ ग़लत कहा हो तो सबके सामने (तात्कालिक रूप से ऐसा सम्भव न हो तो फ़ोन कर-करके) क्षमा माँगें. ” मैं क्यों झुकूँ ” भाव न आने दें.
8. उसके सुख में हिस्सा लें अथवा न लें परन्तु उसके दुःख में साझेदार अवश्य बनें. उसकी कमज़ोरी व मजबूरी अथवा ज़रूरत का फ़ायदा न उठायें, चाहे उसके अपनों ने साथ छोड़ दिया हो फिर भी आपको उसका सच्चा सँबल बनना है। आपको उसके लिये ऐसा कँधा बनना है जिस पर सिर रखकर वह रो सके, दुःखड़ा बेहिचक सुना सके कि आप उसके प्रति जजमेण्टल नहीं होंगे कि तूने ऐसा क्यों किया जैसे ताने मारने जैसा नहीं करेंगे.
9. उसकी रुचि यदि किसी रचनात्मक गतिविधि में हो तो उस गतिविधि को आयोजित करें एवं उसे भाग लेने के लिये बुलायें (वह न भी आये तो आपको दुःखी नहीं होना है).
10. उसे उसकी क्षमताओं से अवगत करायें.
11. उसे उसके गंतव्य तक पहुँचने के लिये लिफ़्ट दें.
12. उसकी आजीविका में उत्थान के लिये विचार – विमर्श करे.
13. उसके जीवन व उसकी दिनचर्या में सरलता-सहजता लाने के लिये आप क्या-क्या कर सकते हैं यह विचार करें एवं आज़मायें.
14. स्वयं पहल करते हुए उससे आते-जाते संवाद किया करें किन्तु मुस्कान के साथ तथा यदि उसकी प्रतिक्रिया आशानुकूल न भी हो तो भी आपको मुँह नहीं बनाना है.
15. अहंभाव तो बड़ा भारी रोग होता है, इसे जड़ से त्यागें. ” हर बार मैं ही क्यों बात करूँ, उसे भी तो पहल करनी चाहिए, मैं तो कोशिशे करके देख चुका इत्यादि अहंकार व निराशा सूचक विचारों को मिटायें.
16. दोष गिनना बन्द करें, ग़लती उसकी है, मैंने उसका क्या बिगाड़ा, वो दूर रहने की कसम खाये बैठा है जैसे नकारात्मक मनोभावों को कभी न लायें.
17. उसके परिजनों की सहायता करें. उसके अपनों को अपनेपन का सच्चा एहसास करायें, ऐसा बनें अथवा दिखायें नहीं, अर्थात दिखावे के लिये ऐसा न करें.
18. अपने प्रयासों में कमी न आने दें, निरन्तर प्रयत्नों से तो प्रभु प्रसन्न हो जाते हैं, किसी मनुष्य को मनाना कौन-सी बड़ी बात है!
19. किसी सार्थक क्रियाकलाप का आरम्भ करें जिसमें उसकी भूमिका आवश्यक हो एवं वह उसमें मना न कर सके, जैसे कि मैंने चीकू, सिन्दूर, सीताफल व नारियल के 4 पौधे लिये हैं, चलो न कुछ मंदिरों के पुजारियों से पूछकर वहाँ लगा आते हैं, अकेले हिम्मत नहीं पड़ रही.
20. अपनी पसन्द-नापसंद उसपर थोपने के बजाय उसकी पसन्द-नापसंद को दिल से अपनायें. यदि कुछ विषयों में विरोधाभास हो भी तो भी उन विषयों को अपने समग्र सम्बन्धों पर हावी नहीं होने देना है, यह बात आप समझें व उसे भी समझायें.
कई बार ऐसा होता है कि दोनों में सात समानताएँ हैं जिनमें वे आगे साथ में बहुत कुछ हँसी – ख़ुशी कर सकते हैं परन्तु 3 विषमताओं में वे जबरन उलझ जाते हैं जिससे इन विषयों का विष उनकी 7 समानताओं व सुखद भविष्य में घुलने लगता है, इस विष-प्रसार को रोकें.
21. यदि किसी बात से नाराज़गी है अथवा कोई बरसों पुरानी खटपट है तो साथ बैठकर एकान्त में ठीक से व पूर्वाग्रह रहित होकर बात करें तथा हृदय से विनती करें कि मैं ईश्वर की शपथ लेकर कहता हूँ कि अपनी ग़लतियाँ भी मान लूँगा, बस सम्बन्धों को सुधार लेते हैं एवं मैं-तू के भाव से परे उठकर अच्छी दिशा में सामान्य रूप से आगे बढ़ते हैं, बस तुम खुलकर अपना हर भाव बताओ एवं यदि कोई बात दिल से लगाये बैठे हो तो बताओ एवं जो भी सोचते व समझते हो खुलकर बताओ, मैं भी निःशर्त बता रहा हूँ।
कई बार ऐसा भी होता है कि किसी तीसरे व्यक्ति ने पीठ पीछे कुछ बोल दिया हो तो पहला व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से स्पष्टीकरण माँगे बिना ही उसके बारे में धारणा बना लेता है एवं इस प्रकार ग़लतफ़हमियों व नासमझियों का जमाव चलता रहता है जब तक कि दोनों पक्ष एकसाथ आकर खुले मन से सब परिस्थितियाँ व मन: स्थितियाँ ठीक नहीं कर लेते, ऐसा भी सम्भव है कि क्रोध वश अथवा क्षणिक चिड़चिड़ाहट में आकर एक-दूसरे की बुराई करने की आदत पड़ जाती है फिर भी आप पहल करें तो इस गैंगरीन को निकलवाकर समग्र सम्बन्धों को बचाया जा सकता है.
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