आस्था और अन्धविश्वास में 17 अन्तर Difference Between Faith Superstition In Hindi
Difference Between Faith And Superstition In Hindi
आस्था व अन्धविश्वास ये दोनों ऐसे विश्वासया ऐसी धारणा से जुड़े विषय हैं जो धार्मिक, साम्प्रदायिक या मानसिक रूप से व्यक्ति सोचता रहा है। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि अन्धविश्वास एवं आस्था के मध्य महीन सीमा रेखा खिंची होती है जिसके इस-उस पार जाते समय असमंजस आ सकता है कि कोई मान्यता आस्था है या अन्धविश्वास। व्यक्ति के विश्वास व भक्ति की प्रगाढ़ता के आधार पर कोई धारणा अन्धविश्वास भी हो सकती है एवं आस्था भी.
जैसे कि किसी पेड़ को छूने से रोगमुक्ति होगी यह प्रायः एक अन्धविश्वास है किन्तु कुछ दुर्लभ व्यक्तियों में भक्ति बल इतना प्रगाढ़ हो सकता है कि वह पेड़ उनके लिये सच में आरोग्यप्रद सिद्ध हो परन्तु ध्यान रहे कि मन में दृढ़ आस्था हो तो किसी पाषाण में से भी प्रभु का साकार प्राकट्य हो सकता है परन्तु यदि श्रद्धा में कमी हो तो गंगा, ज्योतिर्लिंग व शक्तिपीठों में जाने से भी व्यक्ति का मंगल नहीं हो सकता।
परमात्मा कहाँ नहीं है ? सर्वत्र है, घट-घट व्यापी है। ‘गंगा की धारा, पाप काटने की आरा’ समझकर बारम्बार पाप व गंगास्नान करने वाला सुधरेगा नहीं। यहाँ श्वाअन्धविस एवं आस्था में अन्तर समझने के लिये कुछ स्पष्टीकरण किये जा रहे हैं जिनसे स्पष्ट हो जायेगा कि अन्धविश्वासों से दूर रहें व आस्था अच्छी बात है.
Difference Between Faith Superstition In Hindi
1. अन्धविश्वास अधिकांशतया बहुमत प्रधान होते हैं क्योंकि कई लोग वैसी ही सोच रखते हैं जबकि आस्था व्यक्ति विशेष के हृदय की गहराई से जुड़ी मान्यता होती है। एक प्रकार से अन्धविश्वास उथला व सतही होता है जबकि आस्था की जड़ें गहरी व मजबूत होती हैं।
2. अन्धविश्वास में मनगढ़ंत धारणा होती है जो हो सकती है कि मध्यकालीन या आधुनिक कालीन हो जबकि आस्था में सुगठित श्रद्धा सत्यवादी महाराज हरिश्चन्द्र की अमर कहानी ! होती है। इस प्रकार अन्धविश्वास निराधार बातों की भूल-भुलैय्या में भिड़े होते हैं परन्तु आस्था पवित्रता व प्राचीनता लिये होती है।
3. अन्धविश्वास में स्वयं या दूसरों का अहित हो सकता है किन्तु आस्था सर्वथा हितकारी होती है। अन्धविश्वास अनिष्टकारी हो सकता परन्तु आस्था नहीं।
4. अन्धविश्वासों में परस्पर विरोध हो सकता है (जैसे कि कुछ रंगों को कुछ व्यक्ति शुभ मानते हैं तो अन्य व्यक्ति अशुभ) किन्तु आस्था निद्र्वन्द्व होती है।
5. अन्धविश्वासी व्यक्ति चयनित स्थानों को शुभ या अशुभ समझता है जबकि आस्थावान् व्यक्ति सब में ईश्वर का वास समझता है तथा तीर्थ या अन्य कारणों से कुछ स्थानों व घटनाओं को अधिक पवित्र एवं व्यक्ति के कर्मों के अनुसार कुछ मानवीय क्रियाओं को अशुभ समझता है।
उदाहरणार्थ अन्धविश्वासी यहाँ-वहाँ से वृक्ष काट सकता है, मार्ग में पड़ी वस्तुओं को ठोकर मार सकता है परन्तु आस्थावान् पीपल-बरगद के प्रति विशेष विनम्र तो अवष्य रहेगा परन्तु अन्य समस्त सजीव-निर्जीवों के भी प्रति उसका रवैया नर्म व संवेदनशील रहेगा।
6. अन्धविश्वासी तामसी व निरर्थक धारणाओं वाला होगा, जैसे कि मूर्ति का मदिरा पीना इत्यादि जबकि आस्थावान् को बोध रहेगा कि ईश्वर किसी नकारात्मक भाव वाले नहीं हो सकते।
7. अन्धविश्वासी साम्प्रदायिक हो सकता है, जैसे कि केवल मंदिर तक सीमित किन्तु मस्जिद-विरोधी या मस्जिद-समर्थक परन्तु मूर्तिपूजन विरोधी जबकि आस्थावान व्यक्ति ‘सबका मालिक एक’ में विश्वास रखता है।
8. अन्धविश्वासी में चयनित स्थानों, वस्तुओं इत्यादि के प्रति ही श्रद्धा जैसा भाव जागता है जबकि आस्थावान में श्रद्धा सदैव रहती है, किन्हीं स्थानों, वस्तुओं इत्यादि के सन्दर्भ में श्रद्धा अधिक बढ़ जाती है।
9. अन्धविश्वासी कुछ नास्तिक जैसा हो सकता है जबकि आस्थावान् नास्तिक नहीं हो सकता।
10. अन्धविश्वासी अधिक भाग्यवादी हो सकता है जबकि आस्थावान उतना नहीं।
11. अन्धविश्वासी चयनित स्थितियों में शुद्धतावादी बन जाता है जबकि आस्थावान् सदा ही शुद्धता धारण करे रहने का समर्थन करता है।
12. अन्धविश्वासी ईश्वर के भी प्रति लेन-देन या स्वार्थ का भाव रख सकता है परन्तु आस्थावान् तुलनात्मक रूप से थोड़ा-बहुत निष्काम होता है।
13. अन्धविश्वासी तुलनात्मक रूप से सापेक्ष होता है, जैसे कि पीपल को दूर लगा देख शुभ मानता है परन्तु घर के आसपास लगाना अशुभ जबकि आस्थावान् ऐसा भेदभाव नहीं रखता।
14. अन्धविश्वासी का प्रकृति प्रेमी होना आवश्यक नहीं परन्तु आस्थावान को प्रकृति में परमात्मा के दर्षन हो सकते हैं।
15. अन्धविश्वासी कुरीतियों का अंधानुकरण करते हैं एवं अपने जैसे अनुयायियों की संख्या बढ़ती देख उन्हें अजीब तरह के सुख की अनुभूति होती है जबकि आस्थावान् कुरीतियों को नहीं मानते एवं कुरीतियाँ इन्हें ठेस पहुँचाती हैं।
16. अन्धविश्वासियों के जमघट के कारण फैलने वाले अन्धविश्वासों से भाँति-भाँति की सामग्रियों व सेवाओं का बाज़ार तैयार कर लिया गया है (जैसे कि मन्नत या यह चढ़ाने से ऐसा हो जायेगा, ऐसा करेंगे तो वैसा हो जायेगा) परन्तु आस्थावान की भावनाएँ व्यावसायिक नहीं होतीं।
विधि-विधान के साथ पूजन किया जा सकता है परन्तु हर बार ऐसे ही पूजन किया जाये ऐसा आग्रह आस्थावान नहीं रखता, वह मानस पूजन (मन ही मन नैवेद्य इत्यादि प्रभु को अर्पित करते हुए मानसिक आराधना) के महत्त्व को समझता है, श्रीमद्भगवद्गीता में कृष्ण ने भी कहा है कि मन से जो मुझे जो भी अर्पित कर दे मैं प्रत्यक्ष प्रकट होकर उसे ग्रहण कर लेता हूँ। विभिन्न शास्त्रों में मानस पूजा को श्रेष्ठ कहा गया है।
17. अन्धविश्वासी चयनित पेड़-पौधों व जन्तुओं को सदा या कुछ स्थितियों में अपषगुन बोल सकता है परन्तु आस्थावान् को समझ होती है कि सबमें ईश्वर का वास है तो वह जीव अशुभ कैसे हो सकता है ? जीवों को आस्थावान् शुभ मान सकता है परन्तु अशुभ बिल्कुल नहीं !
आस्था व अन्धविश्वास में कुछ अन्तर ऊपर स्पष्ट करने के प्रयास अवश्य किये गये हैं परन्तु किसी एक आधार पर किसी को आस्थावान या अन्धविश्वासी तो बिल्कुल न ठहरायें।
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