श्री हनुमान जी द्वारा सिखायें गये 10 पाठ – 10 Life Lessons From Lord Hanuman In Hindi
10 Life Lessons From Lord Hanuman In Hindi
विभिन्न धर्म कार्यों विशेष तौर पर रामकाज में श्रीहनुमान ने सहायक की भी भूमिकाएँ कई बार निभायी हैं. वैसे भी अवतार तो होते ही हैं दुष्टों के नाश व सज्जनों के उद्धार के लिये। श्रीहनुमान बिना भेदभाव के अनेक रूपों में सबकी सहायता करते घूमते हैं.
ये सदैव धर्म के कर्म करते रहते हैं एवं धर्मकर्म में कोई कार्य छोटा अथवा महत्त्वहीन नहीं होता. उदाहरण के लिए सेवक के रूप में श्रीहनुमान रामजी के पास छत्र लिये खड़े दिखते हैं तो कभी सुग्रीव के सचिव पद की शोभा बढ़ाते दिख पड़ते हैं, कभी सीता के अन्वेषक की बड़ी भूमिका निभाते हैं तो कभी संजीवनी बूटी सहित पूरा का पूरा पहाड़ उठा लाकर एक समयाबद्ध सहयोगी बन जाते हैं।
लंका के द्वार से श्रीराम के शत्रु की सेना का निरीक्षण कर लेते हैं, कभी विभीषण से छल-कपट किये बिना लंका में राम के गुप्तचर बन जाते हैं। ऐसे हैं हमारे श्रीहनुमान जो दुष्टों के लिये संकट किन्तु भक्तों के लिये संकटमोचक हैं.
मॉरिशस, फ़िज़ी व थाईलैण्ड में भी हनुमान भक्तों को पता है कि अमंगल हरने वाले मंगल स्वरूप श्रीहनुमान की गदा एवं पुच्छ शत्रुओं के लिये विकराल काल के समान आयुधों का कार्य करती है। श्रीहनुमान की गति ऐसी मानो वायु स्वयं इनके लिये वाहन हो परन्तु वास्तव में वायु तो क्या मन से भी तीव्र है इनकी गति जिसकी तुलना किससे की जाये ?
10 Life Lessons From Lord Hanuman In Hindi
श्रीहनुमान जी का वज्र अंग नामकरण
जब बालरूप में पवनसुत हनुमान सूर्य को कोई फल समझ खाने के लिये गगन में उड़ चले तो उनके मुख में सूर्य के प्रवेश करते ही चारो ओर अंधकार छाने लगा जिससे सभी देवता चिंतित हो गये।
कुपित इन्द्र ने अपना वज्र पवनसुत के मुख पर दे मारा जिससे सूर्य उनके मुख से निकल गये एवं पवनसुत मूर्छित हो गये। पवनदेव ने अपने औरस पुत्र को मूर्छित देख क्रोध वश पृथ्वी से प्राणवायु का प्रवाह खींच लिया एवं समस्त वृक्ष व जन्तु समुदायों के प्राण सूखने लगे.
भूल का अनुभव होते ही देवराज इन्द्र ने क्षमायाचना की एवं हनुमान को आशीर्वाद दिया कि इनके शरीर का हर अंग वज्र-सा सुदृढ़ हो जायेगा। इस प्रकार इनका नामकरण ‘वज्रांग’ के रूप में किया गया।
केसरीसुत का नाम ‘हनुमान’ भी इसीलिये पड़ा क्योंकि हनु (जबड़े) के कारण इनके मुखमण्डल की शोभा बढ़ गयी। कम्बोडिया में एवं दक्षिण-पूर्वी देश इण्डोनेशिया के बाली द्वीप में अंजनासुत की वज्रांगबली के रूप में पूजा की जाती है जिसे भाषायी सरलीकरण के कारण अनेक स्थानों पर बजरंगबली बोल दिया जाता है।
जाम्बवन्त द्वारा श्रीहनुमान को शक्ति का अहसास दिलाना –
बाल्यावस्था में श्रीहनुमान अत्यधिक चंचल थे, कभी अकस्मात् मुनियों की गोद में जाकर बैठ जाते तो कभी तपस्यारत् ऋषियों के बाल खींचकर भाग जाते, इस प्रकार अपने बल को न सँभाल पाने वाले श्रीहनुमान ऋषि-श्राप से अपना बल तब तक के लिये भूल गये जब तक कि रामकाज साधने में उन्हें बल की जरूरत न आन पड़े.
सीता खोज के समय विशाल समुद्र को लांघना मुश्किल प्रतीत होने पर जब वानर-भालू निराश हो गये तो श्री जाम्बवन्त जी ने हनुमानजी को उनकी विस्मृत शक्तियों से अवगत करा दिया एवं इस प्रकार वे वायुमार्ग द्वारा लंका पहुँच सीताजी का पता लगा आये।
उपकृत गोवर्द्धन –
माता सीता का पता चलने के बाद जब समुद्र पर सेतु-निर्माण की बात आयी तो दक्षिण के समस्त पर्वत सेतु में लग गये, फिर हिमालय के निकट द्रोणाचल में गोवर्द्धन नामक विस्तृत पर्वत से श्रीहनुमान की भेंट हुई जो श्रीहरि के मयूर मुकुटी वंशीधर श्रीकृष्ण अवतार की प्रतीक्षा कर रहे थे, श्रीहनुमान के आगमन का कारण ज्ञात होते से ही ये उनके साथ रामसेतु बनाने के पुनीत कार्य में जुड़ने के लिये सहर्ष तत्पर हो गये एवं श्रीहनुमान उन्हें उठाकर आकाश मार्ग से दक्षिण की ओर आने लगे.
यह सोचकर गोवर्द्धन मन ही मन अत्यन्त प्रफुल्लित हो रहे थे कि मुझे हरि-अवतारी श्रीराम के दर्शन तो होंगे ही एवं साथ ही मुझ पर उनके चलने से उनके चरण कमलों के स्पर्श का सौभाग्य भी मुझे सहज सुलभ हो जायेगा.
परन्तु सीतासेतु (रामसेतु) के निर्माण का कार्य तब तक सम्पन्न हो गया एवं श्रीराम ने यत्र-तत्र उपस्थित वानरों के माध्यम से संदेसाभिजवाया कि जो-जो जिस-जिस पाषाण इत्यादि सामग्री को लेकर आ रहा है वह उसे वहीं रखकर समुद्र तट पर पहुँचे क्योंकि सेतु निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है.
यह सुनकर गोवर्द्धन को दुःखमग्न देख श्रीहनुमान ने कहा कि मेरे श्रीराम अपने भक्तों को निराश नहीं करते, मैं उनसे आपके सन्दर्भ में निवेदन करूँगा, श्रीहनुमान ने गोवर्द्धन को व्रजधरा पर रख दिया जहाँ कि यह अभी तक है।
राम से यह निवेदन करने पर श्रीहनुमान ने राम का सन्देश गोवर्द्धन को कह सुनाया कि द्वापर युग में अपने कृष्णावतार में वे गोवर्द्धन के फल-पर्ण इत्यादि का सेवन करेंगे एवं अपनी मुख्य लीलाभूमि उसे बनायेंगे. इस प्रकार सोने पे सुहागा वाला सन्देश सुन गोवर्द्धन हर्ष से ओत-प्रोत हो श्रीकृष्ण के जन्म लेने की प्रतीक्षा करने लगे।
रक्षक श्रीहनुमान-
वैसे तो श्रीहनुमान स्वयं संकटमोचक अवष्य हैं परन्तु परोक्ष रूप से भी ये सज्जनों की रक्षा करते हैं, जैसे कि वाली के भय से भागते सुग्रीव को इन्होंने ऋष्यमूक पर्वत पर जाने का सत्परामर्ष दिया क्योंकि एक बार निर्दय दुन्दुभि से युद्ध के समय वानरराज वाली ने दुन्दुभि को मारकर इसका शव दूर उछाल दिया था.
जिसके रक्त के छींटे ऋष्यमूक पर्वत में आश्रम में मतंगमुनि को जाकर लगे, इस घटना के कुपित होकर मतंग मुनि ने वाली को अभिषाप दिया कि यदि इस क्षेत्र में तुम्हारा आना हुआ तो वह तुम्हारे जीवन का अन्तिम दिन होगा।
श्री हनुमानजी द्वारा रावण को प्रदान आध्यात्मिक उपदेश
रावणपुत्र मेघनाद ने हनुमानजी पर ब्रह्मपाष फेंका तो ये चाहते तो बड़ी सरलता से उसे निष्प्रभावी कर सकते थे परन्तु मेघनाद को ब्रह्मदेव द्वारा प्रदत्त वर का मान रखने व रावण को सुधारने का एक प्रयत्न करने के लिये ये स्वयं ही बँधने का स्वांग रचते हुए मेघनाद के साथ-साथ रावण की सभा में चले आये। श्रीहनुमान इतने करुणावान हैं कि अपने इष्ट श्रीराम के परमशत्रु राक्षसराज रावण के भी हित की चिंता की।
उस सभा में भी अपने स्वभाववश पूर्ण निर्भय रहते हुए वे रावण को समझाते हैं कि परमात्मा का अंश होने से तुम्हारी भी आत्मा शुद्ध ही है किन्तु अहंकारवश तुम क्यों अपने पतन की ओर बढ़ रहे हो.
यदि कल्याण चाहते हो तो माता सीता ससम्मान श्रीराम को सौंप दो एवं उनके चरणों में गिर पड़ो, मेरे श्रीराम अत्यन्त दयालु हैं, वे तुम्हें भी क्षमा कर देंगे, अन्यथा इस संसार-सागर से तुम्हें कभी मुक्ति नहीं मिल पायेगी, जन्म-जन्मान्तर तक तुम्हें मोक्ष न मिल सकेगा।
दूत श्रीहनुमान –
राम के दूत हनुमान कभी युद्ध तो कभी शान्ति तो कभी सहयोग के लिये दूत के रूप में कार्य करते रहे हैं। साहस व सटीकता से राम-संदेश सुनाना इन्हें भली प्रकार आता है। शत्रु के गढ़ में घुसकर भी ये मर्यादा का पालन करते हैं।
संधि कर्ता श्रीहनुमान –
इधर-उधर भटक रहे सुग्रीव से श्रीराम को मिलाने वाले श्रीहनुमान ही हैं, इस प्रकार इन्होंने एक संधि करायी जिसमें राज्य पाने में सुग्रीव की सहायता श्रीराम ने की एवं फिर सीता खोज में श्रीराम की सहायता सुग्रीव ने।
Read Also – Shri Ram Par Kavita
भक्त श्रीहनुमान –
श्रीराम-भक्ति में नित प्रति डूबे रहने वाले श्रीहनुमान भक्ति की साक्षात् प्रति मूर्ति हैं, भोलेनाथ शिव के रुद्रावतार श्रीहनुमान रुद्रावतारी होने के बावजूद कितने सीधे हैं इस विषय में कहा जाता है कि सीताजी को अपनी माँग में सिन्दूर लगाता देख एक बार श्रीहनुमान ने प्रश्न किया कि आप सिन्दूर क्यों लगाती हैं तो सीताजी बोली कि स्वामी श्रीराम की दीर्घायु के लिये तो फिर क्या था ?
श्रीहनुमान ने सोचा कि माता सीता के द्वारा अपनी माँग में थोड़ा-सा सिन्दूर लगाने से यदि मेरे श्रीराम दीर्घायु होंगे तब तो मैं अपने पूरे शरीर पर सिन्दूर लगा लूँगा जिससे श्रीराम अमर हो जायेंगे।
पाठकगण ध्यान रखें कि वास्तविक सिन्दूर का एक पौधा होता है जिससे सिन्दूर बनता है, बाज़ार में मिलने वाला सिन्दूर प्राय: रासायनिक होता है। शुद्ध सिन्दूर के साथ इन्हें शुद्ध घीं व चोला भी चढ़ाने की परम्परा है।
ऐसा कहीं-कहीं पढ़ा होगा कि एक बार श्री राम के मूलरूप श्रीविष्णु ने अपने सुदर्षन चक्र व गरुड़ सहित लक्ष्मीजी के अहंकार का दमन करने की ठानी किन्तु इतने समर्थ व सक्षम के अभिमान को दूर तो निरभिमानी भक्त ही कर सकता था.
इस प्रकार विष्णुजी ने गरुड़ को कहा कि श्रीहनुमान को ले आओ तो गरुड़ स्वभाववश तेज उड़ान भरते हुए हनुमानजी के पास पहुँचे एवं श्रीहरि का कथन कह सुनाया एवं अभिमान वश अपनी पीठ पर बैठने का आग्रह किया मानो ये श्रीहनुमान से भी अधिक गति से वैकुण्ठ पहुँच सकते हैं.
गरुड़ के देखते-ही-देखते हनुमानजी वायु में ओझल हो गये एवं वैकुण्ठद्वार पर आ पहुँचे जहाँ सुदर्शन से उन्हें रोका व अनुमति के बिना भीतर न जाने को कहा तथा श्रीहनुमान ने सुदर्शन को मुख में दबा लिया एवं भीतर प्रवेश किया एवं सुदर्शन को उगल दिया तथा गरुड़ भी आ गये, साथ ही साथ लक्ष्मीजी शृ्रंगारित हो वैकुण्ठ में बैठी दिखीं तो श्रीहनुमान बोल पड़े कि यह दासी कौन है जिसपर आपका इतना अनुग्रह है।
इष्ट श्रीहनुमान –
कलियुग में भगवन्नाम की बड़ी महिमा है, राम का नाम लेते ही हनुमान भी साथ हो लेते हैं एवं हनुमान का नाम लेते ही श्रीराम की भी कृपा मिल जाती है। सरयू में देहावसान से पहले ही श्रीराम हनुमान को कह गये थे कि धरती पर जब तक मेरा नाम रहेगा तुम भी अस्तित्वमान रहोगे। भूत-प्रेत-पिशाच व हर प्रकार की अशुभता से मुक्ति के लिये हनुमान-चालीसा कई हिन्दू पुरुषों के जेब में रखी मिल ही जायेगी।
किसी एकान्त अँधियारे स्थान में यदि खड़खड़ाहट जैसी आवाज़ भी सुनायी दे जाये तो लोग ‘जय हनुमान ज्ञान गुन सागर…..’ हनुमान-चालीसा का पाठ आरम्भ कर देते हैं एवं भयभीत से निर्भय हो जाते हैं।
तो दोस्तों यह लेख था श्री हनुमान जी द्वारा सिखायें गये 10 पाठ, 10 Life Lessons From Lord Hanuman In Hindi, 10 lessons taught by shri Hanuman hindi Me. यदि आपको यह लेख पसंद आया है तो कमेंट करें। अपने दोस्तों और साथियों में भी शेयर करें।
@ आप हमारे Facebook Page को जरूर LIKE करे ताकि आप मोटिवेशन विचार आसानी से पा सको. आप इसकी वीडियो देखने के लिए हमसे Youtube पर भी जुड़ सकते है.
Leave a Reply