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सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग Log Kya Kahenge

January 2, 2021 By Surendra Mahara 1 Comment

सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग Sabse Bada Rog Kya Kahenge Log

Table of Contents

  • सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग Sabse Bada Rog Kya Kahenge Log
    • Sabse Bada Rog Kya Kahenge Log
      • 1. अपने विचार के औचित्य को परखें :
      • 2. सलाह के क्रियान्वयन व परिणाम में कौन भागीदार :
      • 3. लोगों की बातों में क्यों आना :
      • 4. कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना :
      • 5. सुनें सबकी करें अपने मन की –
      • 6. जितने लोग उतना ज्ञान :
      • 7. अपने परायों की प्रतिक्रियाएँ :
      • 8. अपनों के भेष में छुपे परायों को पहचानें :
      • 9. अपेक्षाएँ न रखें :

Sabse Bada Rog Kya Kahenge Log

हेलो दोस्तों ! भारत के नंबर वन हिन्दी हेल्पिंग ब्लॉग नयीचेतना.कॉम पर आपका स्वागत है. आप सभी Readers का प्यार व कमेंट्स हमें आपके लिए नया आर्टिकल लिखने के लिए बहुत प्रेरित करते है. हमें उम्मीद है की आप सभी का साथ हमें आगे भी मिलता रहेगा.

आज के समय में कोई यदि कुछ अच्छा करना भी चाहे तो स्वयं ही आपके मन में यह विचार आ जाता है की – लोग क्या कहेंगे ? जब भी आप कुछ बड़ा और नया काम करने की सोचते है तो हर किसी के मन में यह विचार आखिर आ ही जाता है की क्या कहेंगे लोग.

इस सोच के कारण कई बार तो लोग वह काम या अपने उस विचार पर अमल करना ही छोड़ देते है जो उन्हें ख़ुशी दे सकता है और उन्हें सफल बना सकता है, किन्तु इस विचार के कारण आप कुछ करने से पहले ही हिम्मत हार जाते है.

वैसे चलो अभी आप ही बतायें कि कौन होते हैं ये लोग ? परिजन, रिश्तेदार, तथाकथित मित्र, सहकर्मी या अन्य परिचित या अपरिचित। इनकी कोई शक्ल तो नहीं होते पर लोगो के आने वाले Comment से जो हमें डर लगता है वह डर है – क्या कहेंगे लोग. क्यों लगता है यह रोग व कैसे करें इसका निवारण इस विषय में चलिए विस्तृत प्रकाश डालते हुए विवेचन करते हैं.

Sabse Bada Rog Kya Kahenge Log

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Log Kya Kahenge

1. अपने विचार के औचित्य को परखें :

आपको इस बात पर ध्यान रखना चाहिए की आप जो कर रहे है वह आपके लिए कितना जरुरी है व आपकी Life के लिए कितना अहम होने वाला है, उससे आपकी लाइफ कितनी बदल सकती है.. क्या यह कार्य प्रभु के अनुकूल है, क्या यह कार्य करके परमात्मा को अर्पित किया जा सकता है ? इन question के उत्तर आपकी अन्तरात्मा यदि ‘हाँ’  में कहे तो परिवार-समाज-संसार की सोच व प्रतिक्रियाओं से आपको क्या मतलब ?

2. सलाह के क्रियान्वयन व परिणाम में कौन भागीदार :

एक-एक चुटकी हल्दी-आटा चेहरे पर लगाकर स्नान करना वास्तव में हितकारी रहता है (इसे आप अपनाते रहें) परन्तु इसमें भी सुनने वाले आपत्ति जताते हैं। यह दवा खाकर सिर पर बाल उगायें, रात को यह खाकर पेट साफ रखें जैसी सलाहें बाँटते फिरने वाले लोगों ने क्या स्वयं के सिर पर इस प्रकार बाल उगाये हैं ?

यदि हाँ तो भी बिना किसी वैज्ञानिक अनुसंधान वे ऐसा दावा कैसे कर सकते सब पर यह समान रूप से प्रभावी होगी ? लोगो की सलाहे तो बस सलाह होती है भले उन्हें उस सब्जेक्ट सेरिलेटेड कुछ भी Knowledge न हो.

अपने परामर्श के क्रियान्वयन में वे क्या साथ निभायेंगे अथवा परिणाम विपरीत निकलने पर उसे साथ भोगने के बजाय वे पलायन तो नहीं कर जायेंगे ? क्या आपको उन सबसे ये प्रश्न नहीं करने चाहिए ?

3. लोगों की बातों में क्यों आना :

हम लोग कई बार दुसरे लोगो को कुछ ज्यादा ही अटेंशन दे देते है जिस कारण हम लोगो की बातो को सुनकर उन्हें ही सच्चाई समझ लेते है. अधिकांश लोग न तो आपके अपने होते हैं, न ही आपसे उनका किसी प्रकार का सम्बन्ध होता है.

ये लोग आपके दुःख में भागीदार भी नहीं होने वाले, आपके सुख को मनाने की चाह में ये Free के भोज के लिये जरुर आ धमकेंगे तो फिर ऐसे लोगों की जली-कटी बातें क्यों सुनना आपके जीवन में जिनकी कोई भूमिका है ही नहीं ?

4. कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना :

आप कुछ भी कर लो चाहे वह अच्छा है या बुरा उससे रिलेटेड लोगो ने कोई न कोई बाते तो जरूरी करनी है. आप उन्हें रोक नहीं सकते क्योंकि ज़माना है जाली लोग तो कुछ न कुछ बोलेंगे ही. इसे एल कहानी से समझते है.

इससे जुडी पिता-पुत्र की एक कहानी है, ये दोनों एक गधे के साथ कहीं से आ रहे थे व बेटा गधे पर बैठा था, कुछ लोगों ने कहा कि कैसे मूर्ख हैं कि पिता पैदल चल रहा है, वह भी गधे पर बैठ सकता है.. यह सुनकर वह भी गधे पर बैठ गया, फिर कुछ दूर अन्य लोग बोले कि कैसे अज्ञानी हैं दोनों बाप-बेटे एक गधे पर लद गये.

यह सुनकर पिता-पुत्र दोनों उतरकर चलने लगे. कुछ दूर बढ़ने पर फिर कुछ लोगों ने बोला कि तीनों अलग-अलग क्यों चल रहे हैं तो फिर पिता ने उस गधे को अपने कँधों पर उठाकर आगे की यात्रा तय की। आशय यह कि आप चाहे जो कर लें कोई न कोई कुछ न कुछ अड़ंगा अवश्य डालेगा, हर किसी की बातें मन से पकड़कर क्यों कार्य करना ?

5. सुनें सबकी करें अपने मन की –

आप कुछ भी करे या आपको औरो की सुननी भी है तो सुने किन्तु सुनने के बाद करे अपने मन की ही. सुनने में, विशेष रूप से बड़े-बुज़ुर्गों, अनुभवियों व Expert की बातें सुनने में हो सकता है कि कोई हर्ज़ न हो परन्तु अनुभवियों के अनुभव प्रायः उनके निजी पूर्वाग्रहों से जुड़े होते हैं और तथाकथित विशेषज्ञ भी बहुमत के आधार पर परामर्श प्रदान कर दिया करते हैं. अपनी अन्तरात्मा से पूछें कि उनका अनुसरण कर लेने में कौन-सी भलाई है?

6. जितने लोग उतना ज्ञान :

मतलब यह है की जितने मस्तिष्क उतनी मतियाँ, उतने दृष्टिकोण लेकिन सत्य सदा एक होता है, लगातार कर्म करने का आपका निर्णय आपको करना है. दृष्टिकोण व मत प्रस्तुत करने वाले तो दूर से देखते रहते हैं. क्या वे आपके निर्णय के परिणाम में आपको सँभालने आगे आयेंगे ? नहीं ना ! तो फिर क्यों हर जगह घूम-घूमकर उनके विचारो से प्रभावित होकर आप अपना निर्णय बनाने में आमादा रहते हैं ?

मतलब आप जितने लोगो की बाते सुनेंगे आपको उनकी बातो में काफी ज्यादा मतभेद नजर आ जायेगा Means की हर कोई अपना अलग अलग Opinion देगा जिससे आपको सही डिसीजन लेने में दिक्कत हो सकती है.

7. अपने परायों की प्रतिक्रियाएँ :

जिस प्रकार चूहे व अन्य पशुओं के छोटे बच्चों में यदि कोई किसी स्थान पर ऊपर चढ़ रहा हो तो उसके नीचे या आसपास वाला बच्चा खेल-कूद में उसकी पूँछ पकड़कर उसे नीचे गिरा देता है, यहाँ तक तो ठीक है क्योंकि यह सीखने-सिखाने की जरूरी व हानि रहित बात हुई परन्तु मनुष्यों में यह भाव रहता है कि न हम किसी को कुछ अच्छा करने देंगे, न ही स्वयं करेंगे.

इस कारण आप कितनी भी पुनीत योजना ले आयें, दोष निकालने वाले आपको कतार में खड़े ही तैयार मिलेंगे। उनकी बेकार की बातो से प्रभावित होकर आप सही दिशा में बढ़ रहे अपने पाँव क्यों पीछे खींच लेते हैं ? ऐसा करना ठीक नहीं.

8. अपनों के भेष में छुपे परायों को पहचानें :

आपके हितचिंतकों के नकाब में कई विरोधी आपके आसपास जमे हो सकते हैं जो आपके उन निर्णयों में तो सहयोग कर सकते हैं जो उनके लिये लाभकारी लगें परन्तु आपके निष्काम सद्कर्म में वे आपके शत्रु-सा व्यवहार कर सकते हैं. इनसे बचकर चलना क्या सरल नहीं ? इसलिए ऐसे शुभ चिंतको से दूर ही रहे.

9. अपेक्षाएँ न रखें :

वृक्षारोपण करना हो या घायल पशु को Hospital पहुँचाना, अपने आसपास के परिचितों व अपरिचितों से चर्चा कर तत्काल सही निष्कर्ष पर पहुँचने का प्रयास किया जा सकता है परन्तु ऐसा न हो सके तो अपेक्षाओं व क्रिया-प्रतिक्रिया की शृंखला सहित इन सबसे बने जी के जँजाल से दूर रहें.

स्वयं पहल करें, अपनी इच्छाशक्ति व अपने संसाधनों के दम पर स्वयं आगे बढ़ें व अवरोधों को पार कर वह करें जो आपको करना चाहिए। अब से ऐसा ही करेंगे ना ?

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Comments

  1. Sree dev says

    January 10, 2021 at 4:48 pm

    you right very gud topic on major problems

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