दाँतों की सड़न के लक्षण कारण बचाव व उपचार के तरीके Cavities Dental Caries Causes Symptoms Treatment In Hindi
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Cavities Dental Caries Causes Symptoms Treatment In Hindi
दोस्तों, आज दाँतों की सड़न की समस्या बहुत गंभीर बढती जा रही है. हमारे आसपास ही ऐसे लोग मिल जाते है जो दांतों के सड़ने या कीड़ा लगने की समस्या से पीड़ित होते है. हमारी थोड़ी सी लापरवाही हमारे दांतों को नुकसान पहुंचा देती है.
इससे बचने का यही तरीका है की कुछ भी खाना या गलत आदतों से आपको दूर रहना चाहिए. कुछ भी खाने से पहले यह निश्चित कर ले की इससे आपके दांतों को कोई नुकसान न हो.
आपको इस आर्टिकल में हम दाँतों की सड़न के लक्षण, कारण, बचाव व उपचार के तरीके बताएँगे जिससे आपको अपने दांतों की सेफ्टी करने में हेल्प मिलेगी और आप अपने दांतों को सड़न से बचा पाएंगे.
Cavities Dental Caries Causes Symptoms Treatment In Hindi
दाँतों की सड़न दो रूपों में होती देखी जाती है :
1. डेण्टल केरीज़ / केविटी / डीके
2. एसिड इरोज़न
डेण्टल केरीज़ / केविटी / डीके :
ये साधारणतया दाँतों के ऐसे भाग में केन्द्रित रहती हैं जहाँ सफाई कठिन हो। इनका निर्माण तब होता है जब खाने के साथ आयी शुगर या मण्ड को मुख के बैक्टीरिया द्वारा अम्ल में बदल दिया जाता है जिससे दाँतों की सतह ढँक जाती है – इस प्रकार बनी बैक्टीरियल पर्त को डेण्डल प्लेक कहते हैं जो कि चिपचिपी व रंगहीन होती है एवं जब इसका टार्टर बन जाता है तो इसका रंग अधिकांशतया भूरा या फ़ीका पीला हो जाता है।
बैक्टीरिया दंत सतहों पर लार के अवयवों से जुड़ जाते हैं जिससे बना प्लेक दाँतों में अटक जाता है। समय बीतने के साथ प्लेक में बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न अम्लों से इनेमल टूट सकता है एवं केविटी बन जाती है जिसमें दंत विशेषज्ञ द्वारा भरायी करने की आवश्यकता हो सकती है।
एसिड इरोज़न :
एसिड इरोज़न समूची दंत-सतह पर होता है जो अम्ल के सामने खुली हो। यह दाँत के इनेमल की सतह पर आन्तरिक कारक (जैसे कि आमाशय के अम्लों) के कारण हो सकता है अथवा बाहरी कारकों (खाद्य व पेय के अम्लों) के कारण।
अम्ल के कारण नर्म पड़कर इनेमल समय के साथ दुर्बल हो सकता है जिससे यह पीला अथवा फीका लगने लगे। यहाँ तक कि दाँत साफ़ व स्वच्छ हों तब भी एसिड-इरोज़न अनुभव हो सकता है। एसिड इरोज़न से दाँत आसानी से संवेदनशील बन सकते हैं।
दाँतों का इनेमल फिर से नही बन पाता, इसलिये एसिड इरोज़न दाँतों के लिये एक जोख़िम होता है। समय बीतते-बीतते एसिड इरोज़न से इनेमल की मोटाई घट सकती है एवं दाँतों की आकृति, गठन व रूप में परिवर्तन आ सकता है, इन सबसे भी दाँत संवेदनशील हो सकते हैं। चूँकि खाली आँख़ों से इसे देख पाना सरल नहीं, दंतरोग विज्ञानी ही दंत-एनेमल पर एसिड इरोज़न के प्रभावों का सटीक आकलन कर सकता है।
ध्यान रखें कि दंतरोगविज्ञानी या कोई भी इनेमल-इरोज़न को ठीक नहीं कर सकता क्योंकि इनेमल अपने आप फिर से बन ही नहीं सकता। इसीलिये महत्त्वपूर्ण यह है कि अपने दाँतों को बचाने के लिये आप स्वयं सावधानियाँ बरतें।
दाँतों की सड़न के लक्षण :
1. दाँतों, दाढ़ व मसूढ़ों में दर्द
2. दाँतों, दाढ़ व मसूढ़ों में दबाव अनुभव होना अथवा थोड़ा-सा चबाने पर भी अधिक दाब अनुभव होना
3. दाँतों, दाढ़ व मसूढ़ों का रंग बदलना अथवा उनकी बनावट में कोई परिवर्तन या निशान नज़र आना
4. दाँतों, दाढ़ व मसूढ़ों में संवेदनशीलता जो कि साधारण खाने-पीने में होने लगी हो अथवा कुछ ठण्डा अथवा गर्म खाने-पीने में संवेदनशीलता असामान्य रूप से बढ़ी हुई अनुभव होना
5. संक्रमित भाग के आसपास मवाद जमना
6. पेट के अम्ल के कारण सीने में जलन दाँतों की सड़न का कारण भी हो सकती है एवं लक्षण भी।
दाँतों की सड़न के कारण :
1. कुछ दवाइयाँ, जैसे कि लार कम आये इस प्रकार की दवाइयाँ
2. सोडा का उपयोग करते रहना
3. शराब का सेवन करना
4. धूम्रपान करना
5. सिगरेट तम्बाकू का उपयोग करना
6. अम्ल के कारण सीने में जलन
7. दाँतों की साफ़-सफ़ाई ठीक से न करना
8. सोते समय कुछ खा-पीकर बिना पानी पीये सो जाना
9. चाय-कॉफी अथवा अन्य शुगर्स-कार्बोहाईड्रेट्स वाले पदार्थ, विशेष रूप से मीठे तरलों को चुस्कियाँ लेते हुए पीना
10. दाँतों में कुछ फँस जाये तो मंचन-कुल्ला न करना
11. विटामिन-सी की कमी
12. विटामिन-डी की कमी
13. दाँतों को ब्रश से बहुत समय तक घिंसना
14. स्वयं को मधुमेह अथवा पेट सम्बन्धी रोग अथवा आनुवंशिक अतीत में ऐसा कुछ जो आपके दंत स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा या कर सकता हो
दांतों को सड़ने से बचने के उपाय या बचाव :
1. विटामिन-डी के लिये दुग्धोत्पादों का सेवन करें एवं धूप में भी कार्य किया करें।
2. विटामिन-सी की मात्रा बढ़ाने के लिये संतरा-नारंगी वर्गीय फलों का सेवन बढ़ायें।
3. मुलहठी कुचलकर चबायें जो कि स्थानीय किराना-दुकानों में छोटी-छोटी लकड़ियों जैसे उपलब्ध हो सकती है। इसे चबाना सम्पूर्ण मुख-स्वास्थ्य सहित पेट, गले व सर्दी-खाँसी-ज़ुकाम में भी उपयोगी रहता है।
4. पानी अधिक पियें.
5. टाफी, चोकोलेट, आईसक्रीम इत्यादि की मात्रा व आवृत्ति कम रखें, बच्चों से भी बातें मनवाने के लिये Chocolate का लालच न दें। यदि मिठास का सेवन करना हो तो नेचुरल मिठास (फल, मूँगफली-गुड़पट्टी, गन्ना इत्यादि) का सेवन करें।
6. सोडा न पीयें।
7. मद्यपान न करें।
8. धूम्रपान से दूर रहें।
9. किसी भी रूप में तम्बाकू का प्रयोग न करें।
10. चबाकर खाये जाने वाले कच्चे पदार्थ खायें, जैसे कि सलाद व मूली-गाजर,गन्ने इत्यादि ताकि दाढ़-दाँत-मसूढ़ों की नैसर्गिक मालिश भी हो जाये एवं यदि कहीं कोई खाने का टुकड़ा फँसा हो तो वह भी निकल जाये।
11. बर्फ़ न चबायें, विशेष तौर पर बच्चों को भी इस आदत से बचायें।
12. Chips इत्यादि अत्यधिक Procesed Food अधिक न खायें एवं जब भी खायें तो पानी भी पीयें ताकि उसके टुकड़ो को यथासम्भव मुँह से दूर किया जा सके।
13. रात को सोने से पहले कुल्ले करने की आदत बनायें, कभी-कभी सरसों अथवा नारियल के तैल की कूछ बूँदे मिलाकर भी कुल्ले करें जो दाँत सहित त्वचा स्वास्थ्य के लिये भी उपयोगी रहेंगे।
14. हल्दी व नमक का मिश्रण बनाकर अँगुली द्वारा इससे रोजाना मंजन करें।
15. आर-ओ इत्यादि मशीन-फ़िल्टर्ड पानी के बजाय सादा पानी पीयें ताकि शरीर को आवश्यक खनिज लवण उस पानी के माध्यम से आपको मिल सकें।
16. कुल्ले व गरारे लेने के लिये सादे पानी में नमक के साथ ही कभी-कभी उसमें कुछ बूँदें नारियल व सरसों के तैल की मिलायें।
17. 3 से 5 साल में अपने आप दंत चिकित्सक के पास जाकर डेण्टल क्लीनिंग करायें क्योंकि अन्य किसी भी प्रकार से दाँतों के भीतरी हिस्सों की सफाई हम नहीं कर सकते तथा मेडिकल डेण्टल क्लीनिंग के दौरान कोई भी सम्भावित अथवा छुपी समस्या भी खुलकर सामने आ पायेगी।
दाँतों की सड़न का उपचार :
उपचारादि के लिये अपने आप अथवा किसी के कहने से कोई प्रयोग न करते हुए सीधे दंतरोग-चिकित्सक से मिलें जो दाँतों के एक्सरे इत्यादि जाँचों के बाद दाँतों के सम्बन्धित उपचार के साथ निम्नांकित में से कोई उपचार सुझा सकता है : सर्वप्रथम तो आप स्वयं ही उसे कहें कि वह आपकी डेण्टल क्लीनिंग करे.
फ़्लुओराइड उपचार- अधिक फ़्लुओराइडयुक्त टूथपेस्ट से मंजन (यदि वह ऐसा पर्चे में लिखे तो).
फ़िलिंग्स- जब केविटी या केरी इनेमल को पार कर गयी हो तो उस खालीपन को साफ कर उसकी भरायी कर दी जाती है; इसके लिये ढलुआँ सोना अथवा चाँदी का प्रयोग किया जा सकता है जिसके लिये अपने दंत चिकित्सक से बात करनी होगी.
क्राउन – यह कस्टम-फ़िटेड कवरिंग या ‘कॅप’ है जिसे उस दाँत के ऊपर रखा जाता है जो डीके से अत्यधिक प्रभावित हो चुका हो.
रूट केनाल्स – दाँत की आन्तरिक सामग्रीः पल्प तक टूथ डीके पहुँच जाये तो रूट-कॅनाल आवश्यक हो सकता है.
दाँत निकालना – बहुत ज़्यादा बुरी तरह डीके हो चुके, सड़-गल चुके दाँत को निकाल देना ही बेहतर होगा।
तो दोस्तों यह लेख था दाँतों की सड़न के लक्षण कारण बचाव व उपचार के तरीके – Cavities Dental Caries Causes Symptoms Treatment In Hindi, Daanto Ko Safe Kaise Rakhe Hindi Me. यदि आपको यह लेख पसंद आया है तो कमेंट करें। अपने दोस्तों और साथियों में भी शेयर करें।
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