आधुनिक समाज की घुड़दौड़ से कैसे बचें How to Avoid Rat Race Start Living In Hindi
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How to Avoid Rat Race Start Living In Hindi
जब हम आधुनिक समाज की बात करते हैं तो हर तरफ़ पद-प्रतिष्ठा, धन-सम्पत्ति इत्यादि के लिये भीषण आपा धापी नज़र आती है, सांसारिक प्रगति के नाम पर हर कोई सिद्धान्तों व आदर्शो से समझौते करते हुए एवं कुछ भी करने की सीमा पर आकर बस भौतिक उद्देश्य बनाकर उन्हें प्राप्त करने की दिशा में हर सम्भव प्रयास करने में जुटा दिखता है फिर चाहे उसमें कोई सार्थकता, सकारात्मकता, औचित्य न हो।
आइए विश्लेषण करते हैं कुछ घुड़दौड़ों के प्रकारों व उनके निवारणों का :
How to Avoid Rat Race Start Living In Hindi
1 प्रतियोगिता परीक्षा :
किसी कोर्स ( तात्कालिक रूप से आसपास प्रसिद्ध ) में अध्ययन अथवा किसी प्रशासनिक या बहुराष्ट्रीय कम्पनी की रिक्त में सम्मिलित होने के लिये व्यक्ति अपनी स्वाधीनता, सादापन, जीवन के सच्चे सुख, सहजता सबकुछ दाँव पर लगा देता है; इस घुड़दौड़ में अन्ततोगत्वा अशान्ति ही हाथ लगती है क्योंकि न तो सिस्टॅम ईमानदारी से उसे काम करने देगा.
वास्तव में कोई ट्रांस्फर, कोई पारिवारिक अपहरण की धमकी देगा, ढीठ सिस्टॅम, अधीनस्थ, उच्चपदस्थ कर्मचारियों, अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों के असहयोग, फ़ण्ड की कमी, लेट-लतीफ़ी के सामने वह लाचार हो जायेगा ) अथवा व्यक्ति
स्वयं भ्रष्टाचारी बन जायेगा।
इन सब तैयारियों में जितना समय व श्रम खर्च किया उसका 4 प्रतिशत् भी यदि स्वरोज़गार अथवा अन्य प्रकार के जीविकोपार्जन में किया होता तो भेड़चाल से दूर शायद कोई आरामदायक व संतोषप्रद ठौर-ठिकाना मिल गया होता। निःस्वार्थ प्रकृति-सेवा का सच्चा सुख कबके समझ गये होते।
स्थानीय, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय होड़ में क्या रखा है ? हर विजयी किसी का हक मारकर खायेगा, एक के तथाकथित गिरने छूटने से ही दूसरा तथाकथित उठेगा, ‘जब जागो तभी सवेरा’, उठो और प्रतियोगिताओं से परे अपना आत्म परिष्कार करो।
2. धन की भूख :
बहुमत को सच मानकर हर कोई और ! और !! और !!! पैसा के पीछे भाग रहा है, पता सबको है कि माटी की काया माटी में मिल जानी है, कौन सोने की गठरी पकड़ जा पाया है, पैसा तो बस माया है इत्यादि किन्तु क्रियान्वयन की बात आये तो सब अधिक से अधिक धन सीमित समय में येन-केन प्रकारेण पाने व कमीशनबाज़ी, जालसाज़ी, दूसरों की भावनाओं का लाभ उठाने की दौड़ में चल पड़ते
हैं।
अपने लिये नहीं, परिवार के लिये कमाते हैं’ बोलने वालों को समझना होगा कि पूत कपूत तो क्यों धन संचय, अर्थात् कुसंतान हुई तो सब बर्बाद कर देगी (उसके लिये धनसंचय का क्या लाभ ?) तथा सुसंतान हुई तो ख़ुद खा-कमा लेगी (उसे धन की क्या आवश्यकता ?).
इसलिये जितनी चादर उतरे पैर पसारो, सीमित में संतोष, ” साईं इतना दीजिये जामे कुटुम्ब समाय, मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाये ” जैसी सर्वोपयोगी कहावतों को ध्यान में रखें एवं सहज-सुखी जीवन संतोष के साथ बितायें। अनगढ़, अज्ञात भविष्य के लिये वर्तमान का पेट काटना कहीं से तार्किक नहीं लगता।
3. ऊँचे ओहदे या बड़ा आदमी बनने की चाहत :
तथाकथित बड़ा आदमी या ऊँचा ओहदा होता क्या है ? एक कपोल-कल्पित कल्पना, वास्तव में कुछ नहीं; यथार्थ में सब समान हैं; शिक्षा, एकॅड्मिक स्कोर्स, विभिन्न पुरस्कार, धन, बल, सत्ता, पद इत्यादि के आधार पर लोगों स्वयं को तौलना अतिमूर्खता दृष्टिकोण हैं।
धन व प्रतिष्ठा आदि की माया में पराये भी अपने बन आते हैं एवं यह माया हटते ही अपने भी पराये हो जाते हैं। अतः व्यर्थ के ढकोसले व ढर्रों से परे अपने अस्तित्व को स्वीकारें व सहेजें. तन्त्र का ग़ुलाम न बनें।
कुछ लोग जाग रहे हैं, लाखों डालर्स के वार्षिक वेतन वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की चाकरी छोड़ स्वदेश आकर छोटा-मोटा कामकाज़ अथवा कोई स्थानीय नौकरी कर रहे हैं.
ऊँचे व सुविधाभोगी शासकीय-प्रशासकीय पदों को स्वेच्छा से त्याग आम आदमी का सुख तलाश रहे हैं क्योंकि ये समझने लगे हैं कि ” पराधीनता सपनेहुँ सुख नाहीं ” यानी सच्चे सुख का सम्बन्ध पद आदि से नहीं होता।
छोटे-बड़े आदमी या ऊँचे-नीचे ओहदे जैसा कुछ होता ही नहीं बल्कि ये तो बस मनगढ़ंत धारणाएँ हैं। राजनीति को तो प्रतिष्ठा व धन की खान समझा जाता है तो फिर क्यों कई राजनेता अपनी सन्तानों को राजनीति में नहीं आने देता चाहते.
उनकी सन्तानें राजनीति से स्वयं क्यों दूरी बनाये रखना चाहती हैं ? क्यों धनाढ्य व्यापारी का पुत्र पिता के व्यापार में नहीं जाना चाह रहा अथवा पिता स्वयं उसे दूर रखना चाह रहा है ?
तथाकथित ऊँचे ओहदों पर बैठे तथाकथित बड़े आदमियों में से किसी के भी मन में शान्ति, सुख, संतोष के चिह्न क्यों नहीं दिखते ? क्योंकि वहाँ कुछ है ही नहीं, मारा-मारी, लूटापट्टी, हर समय हड़कँप, चिंता, चकाचैंध, स्पर्धा इत्यादि में प्रसन्नता का भाव कहाँ से आयेगा ?
4. दूर के ढोल सुहावने :
जो जहाँ है उसका तिरस्कार करने पर आमादा रहता है (मेरा देश, आवास, नौकरी ख़राब) परन्तु जहाँ नहीं है उस ओर आकर्षित होता है (काश ! उस देश, आवास, नौकरी में होता). दूर के ढोल सुहावने होने का ही नतीजा है कि व्यक्ति को दूर की चीज़ें मधुर लगती हैं. उनसे ईर्ष्या करता है और इसी के साथ अपनी स्थितियाँ-परिस्थितियाँ बुरी प्रतीत होने लगती हैं और वह हीन भावग्रस्त रहता है।
वास्तव में दूर ढोल वाले के आसपास के व्यक्तियों या उन परिस्थितियों में जी रहे लोगों से पूछें तो हो सकता है कि उन्हें हमारी स्थितियाँ भायें और वे उनकी अपनी स्थितियों से भागना चाह रहे हों क्योंकि हो सकता है वे स्वयं कष्टकारी यथार्थताओं में रह रहे हो।
‘बस-कण्डक्टर’ को एयर होस्टेस का काम मनभावन लग सकता है परन्तु अनिश्चित दिनचर्या में 5 महीनों से बिन पेमेण्ट के काम कर रही एयरहोस्टेस अपना दुःख यात्रियों तक को नहीं बता पाती।
कई भारतीय प्रशासनिक इत्यादि सेवाएँ बहुत हाई-प्रोफ़ाइल और गरिमापूर्ण कहलाती हैं (जिनका नाम हम यहाँ नहीं लेना चाह रहे) परन्तु वहाँ के लोगों से जब कोई मीडिया-पर्सन गुपचुप तरीके से पूछताछ करता है तो पता चलता है कि ‘सबको सुखी व संतुष्ट’दिखा रहे वे व्यक्ति भीतर से कितने घुँट रहे व जैसे-तैसे जीवन बस काट रहे होते हैं।
भूखण्ड का ‘स्वामी’ किसान खेत बेचकर अपने बच्चे को शहर में पढ़ाकर इंजीनियर बनाते हुए किसी सरकारी प्राइवेट कम्पनी का ‘नौकर’बनाये तो क्या इसे प्रगति कहेंगे ?
अपने गृहक्षेत्र में रहकर 8 हज़ार मासिक कमाने वाला व्यक्ति ‘यहाँ कमायी कम है’ बोलकर दूसरे शहर जाकर 20 हज़ार कमाये व किराया व भोजन आदि में खर्च कर कुल 5 हज़ार बचाये तो इसे क्या ‘फ़ायदे का सौदा’ कहा जा सकता है ? इस विषय में ‘ ईर्ष्या और हीनभावनाः मानवजाति के नाश के दो मुख्य आधार‘ आर्टिकल जरुर पढ़ें।
5. लोकप्रियता का लोभ :
पुरुष तथाकथित बाडी-बिल्डिंग, जिमिंग जैसी वस्तुत : हानिप्रद गतिविधियों एवं स्त्रियाँ मेक-अप की विषैली पर्तों की ओट में अधिकाधिक लोगों की नज़रों में भाने की लिए मेहनत करती रहती है.
अभिभावक अपने बच्चों के शैक्षणिक अंक दूसरों में दिखाकर वाहवाही बटोरने में लगे हैं. किशोर बड़ों व अपने संगी-साथियों के बीच स्टण्ट कर अथवा अन्य निरर्थक प्रयासों से अपनी धाक जमाने को आतुर हैं. हर कोई न जाने क्यों और किस लोकप्रियता के पीछे भाग रहा है, सब जानते हैं कि प्रतिष्ठा इत्यादि वास्तव में कहने मात्र की ही बात होती है.
यथार्थ में कोई किसी को नहीं पूछता, कुछ कमाना है तो असहायों की निष्काम सेवा कर उनके मन से अच्छी दुआएँ कमाओ। बड़े से बड़े राजनेता, अभिनेता, उद्योगपति, खिलाड़ी तक की लोकप्रियता अगले चुनाव, फ़िल्म, तिमाही, मैच में धूल-धुसरित होने की आशंका हमेशा मँडराती रहती है, दो कौड़ी के ऐसे सामाजिक व अन्तर्राष्ट्रीय मान-सम्मान का क्या करना है ?
तो दोस्तों यह लेख था आधुनिक समाज की घुड़दौड़ से कैसे बचें – How to Avoid Rat Race Start Living In Hindi, Chuha Daud Se Kaise Bache Hindi Me. यदि आपको यह लेख पसंद आया है तो कमेंट करें। अपने दोस्तों और साथियों में भी 25 Way To Personal Hygiene Tips In Hindi शेयर करें।
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