रोग प्रतिरोधक क्षमता कैसे मजबूत करें How To Boost Immune System In Hindi
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How To Boost Immune System In Hindi
रोगों, संक्रमणों व विविध प्रकार की अन्य व्याधियों से दूर रहने की शक्ति शरीर में पहले से होती है जिसे मजबूत रखना हमारे हाथ में है। इस कलियुग में दूषित खान-पान व रोगप्रद जीवनशैली सहित अहितकर रहन-सहन के कारण दिनचर्या को अप्राकृतिक बना दिया गया है जिससे आजकल लोग जल्दी बीमार पड़ रहे हैं, मन के साथ शरीर की भी सहनशीलता घट रही है.
ऐसी स्थितियों में शरीर व मन क्रमश व्याधियों व आधियों की चपेट में शीघ्र आ जाते हैं एवं उतनी शीघ्रता से उबर नहीं पाते। आधि का अर्थ मानसिक विकृतियाँ है कई बार ये भी शारीरिक रोगों से जुड़ी पायी जाती हैं।
यहाँ ऐसी प्रक्रियाओं, दिनचर्या व जीवनशैली सहित पदार्थों व पौधों का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है जिनसे मानव की रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती जाती है. रोगप्रतिरोधक क्षमता (Immune System) को मजबूत करने वाली प्रक्रियाएँ, दिनचर्या एवं जीवनशैली.
How To Boost Immune System In Hindi
1. कोमलांगी बनकर न रहें –
आजकल बड़े भी कोमल बनकर रहते हैं एवं बच्चों को भी कोमलांगी बना देते हैं, ठण्ड से बचने के प्रयास में गुनगुने पानी का प्रयोग एवं ग्रीष्म में फ्रि़ज का पानी ये सभी प्रकृति से विपरीत मार्गी व्यवहार है.
वास्तव में गुनगुने पानी से नहाने वालों, गर्मी से तेज धूप से बचने व ठण्ड में गर्माहट की तलाश में घूमने व धूप में ही निकलने वालों सहित आरओ पानी पीने, सन्स्क्रीन लगाने इत्यादि आदतों वाले व्यक्तियों की मानसिक व शारीरिक सहनशीलता भी क्षीण हो जाती है तथा प्रतिरक्षा-तन्त्र दुर्बल होते जाता है जबकि Nature के निकट, उसके अनुकूल रहने वाले, मिट्टी में नंगे पैर चलने व धूप-पानी सहर्ष सहन करने वाले मन व तन दोनों से तुलनात्मक रूप में मजबूत रहते हैं, उन पर रोग व अन्य व्याधियों का प्रकोप कम होता है (जैसे कि खेतिहर किसान व देश के मजदूर).
अतः प्रकृति के प्रतिकूल भागना बन्द करें, खुले मन से बदलते मौसम का स्वागत करें, मिट्टी से बैर न रखें, ठण्ड में भी बिन स्वेटर चलें, गर्मी में दिन में बाहर निकलें, हो सकता है कि आरम्भ में कुछ दिन यह सब कठिन लगे परन्तु एकाध सप्ताह में ही आदत पड़ जायेगी एवं अपने भीतर सहनशीलता की वृद्धि आपको स्पष्ट नज़र आने लगेगी.
दिसम्बर-जनवरी में भी ठण्डे पानी से नहा पायेंगे (अभी तो मार्च अथवा अक्टूबर में भी ठण्डे पानी से नहाने के नाम पर कँपकँपी उठने लगती होगी), दिनचर्या के कार्यों से तेज धूप में बिन सुरक्षा के निकलने से भी लू लगनी भी कम हो जायेगी क्योंकि अब प्रकृति के अनुकूल चलने की आदत हो चली होगी.
अब बाहर का पानी पीने पर पेट ख़राब होने जैसी विसंगतियाँ कम हो जायेंगी क्योंकि खुले मैदान में नंगे पैर चलने व घाट-घाट का पानी पीने से व खुलेपन से एवं आसपास के सूक्ष्मजीव इत्यादि के प्रति आपके शरीर में नैसर्गिक प्रतिरोध विकसित हो जाने से आप नैसर्गिक रूप से टीकाकृत हो चुके होंगे.
अभी तो ज़रा-सी धूप-पानी व खुले में कुछ खा लेने से भी कुछ-न-कुछ हो जाता है क्योंकि आपने अपने शरीर को सीमिति-सुरक्षित गतिविधियों के भीतर एक Comfort Zone में बाँध रखा है जिससे बाहर कोई भी घटना होने (जैसे कि बाहर का पानी पीने इत्यादि) को शरीर सरलता से स्वीकार नहीं कर पाता क्योंकि उसे यह सब नया अथवा अलग लगता है जबकि इसे इन सबकी आदत हो जानी चाहिए थी।
बच्चों को बहुत सुविधाप्रद, अनुकूल स्थितियों में रखने से वे वास्तविक जीवन के खुले परिवेश में नहीं रह पाते, जैसे कि बचपन से ही धूल-मिट्टी से दूर पाले जाने वाले व्यक्ति कई प्रकार के जीवाणुओं (बैक्टीरिया) से घुले-मिले नहीं होते जिससे भविष्य में उनका सामना इन जीवाणुओं से होने पर उनका प्रतिरक्षा-तन्त्र इन्हें सहन नहीं कर पाता, इस सम्पूर्ण स्थिति को आजकल ‘हायजीन हायपोथीसिस’ कहा जा रहा है।
2. शारीरिक सक्रियता नैसर्गिक रूप से बनाये रखें – ‘ तोंद कैसे घटायें ’, ‘ सूर्यनमस्कारः लाभ व विधि ’ , ‘ योग का महत्त्व एवं आसन ’ नामक आलेख अवश्य पढ़ें।
3. कपूर, जावित्री, इलायची, लौंग को पीसकर कपड़े की एक बिल्कुल छोटी-सी पोटली में जेब में रखें एवं समय-समय पर सूँघते रहें ताकि श्वसन-तन्त्र एवं प्रतिरक्षा-तन्त्र दोनों अच्छे रहें।
4. ब्रह्ममुहूर्त में जागरण हो।
5. नित्य स्नान करें।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले पदार्थ व पौधे –
1. हींग : इसके नैसर्गिक प्रति जैविक गुणों को दाल में इसे मिलाने मात्र से प्राप्त किया जा सकता है, अचार इत्यादि में मिलायी हींग पाचक भी होती है।
2. अदरख व सौंठ : सब्जियों का स्वाद बढ़ाने के अतिरिक्त पाचन-तन्त्र व प्रतिरक्षा-तन्त्र के भी लिये सहायक है क्योंकि यह जीवाण्विक (बैक्टीरियल) व कवक (फ़ंगल) संक्रमणों से बचाव करता है एवं सौंठ सूजन कम करने में भी सहायता करती है।
3. तेजपत्ता : पुलाव व सब्जियों सहित दालों में भी साबुत तेजपत्ता डालने का चलन सदियों से रहा है। पार्थेनोलिड नामक पादप-पोषक की उपस्थिति से तेजपत्ता सूजन-रोधी के रूप में कार्य करता है।
4. दालचीनी : दालचीनी नामक पेड़ की संक्रमण-सूजनरोधी छाल को दुचलकर अथवा पीसकर मसाले के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
5. लहसुन : हींग के समान लहसुन में भी गंधक (सल्फ़र) की बढ़ी हुई मात्रा होती है जिससे इनकी गंध तेज लगती है तथा इसी कारण ये दोनों ही पाचन व त्वचारोगों को ठीक करने में सहायक हैं। लहसुन सर्दी व विषाणुओं के विरुद्ध अत्यन्त प्रभावी पाया गया है।
6. पिप्पली : इसमें पाये जाने वाले पिपॅरीन, पेरियोंगुमीन अथवा पिप्लेर्टिन, डाईहायड्रो-स्टिग्मॅस्टेराल से श्वसन-तन्त्र ठीक रहता है।
7. कालीमिर्च : उदर वायुनाशक कालीमिर्च जीवाणुरोधी होने से प्रतिरक्षा-तन्त्र को भी सुदृढ़ करती है।
8. मुलहठी : दुकान से इसे घर लाकर सन्सी अथवा सिल्ला-लुड़िया में इसे दरदरा पीसकर अथवा इसके कुछ सेण्टीमीटर्स के टुकड़े करकर चबाने अथवा चाय में डालने से सर्दी-ज़ुकाम व गलेसम्बन्धी समस्याओं में राहत मिलती है।
9. हल्दी : एंटिसेप्टिक प्रभावों वाली यह हल्दी छोटी-मोटी चोट-मोच में लगाने के साथ दूध व सब्जियों में डालकर खाने में उपयोगी है।
10. नीम : विभिन्न प्रकारों के रोगाणुओं व कीटाणुओं की नाशक नीम की कुछ पत्तियाँ रोज़ चबा-चबाकर खायी जा सकती हैं एवं नीम इत्यादि जड़ी-बूटियों से निर्मिल हर्बल साबुन का प्रयोग कर सकते हैं।
11. अमृता (गिलोय) : डाल से लग सकने वाली यह बेल घर पर लगायें एवं बुखार आदि में इसकी टहनियों के टुकड़ों को उबालकर काढ़ा पीयें।
12. कढ़ीपत्ता मीठी लीम : कोलेस्टॅराल, एनीमिया, मधुमेह, एलर्जिक रिएक्शन, तनाव सहित जले के घाव तक को ठीक करने में सहायक कढ़ीपत्ता संक्रमण रोकता है एवं मुक्त मूलकों को दूर भगाता है।
13. अजवायन : इसके छोटे-से दानों में रेशे, खनिज, विटामिन्स व एण्टिआक्सिडेण्ट्स बहुल मात्राओं में होते हैं जिनसे ये अपच, अम्लीयता, कान, दाँत, ज़ुकाम के उपचार में उपयोगी हैं।
14. जीरा : पोटेशियम व लौह के होने के अतिरिक्त भी जीरा प्रतिरक्षा-तन्त्र के लिये विशेष उपयोगी रहता है क्योंकि इसमें एण्टिआक्सिडेण्ट्स की प्रचुर मात्रा मुक्त मूलकों से लड़ने एवं इस प्रकार संक्रमणों का जोख़िम घटाने में सहायक है।
15. गेहूँ के जवारे सहित फल व सब्जियों के रस, गेहूँ के जवारे में जस्ता, सेलेनियम, आयोडीन व कैल्शियम होने से ये व्यक्ति के रोगी शरीर तक को ठीक करने में सहायता करते हैं, बहुत सारी सब्जियाँ व फल ऐसे हैं जिनके रस के कई रोग-प्रतिरोधी पोषक तत्त्व शरीर को शीघ्र सुलभ हो जाते हैं जिनके कारण संक्रमणों से निपटने में सहायता होती है।
16. अंकुरित अनाज – साबुत दालें व अनाज आजकल बड़े शहरों में अलग से डेयरी-दुकानों में उपलब्ध कराये जाते हैं, आप चाहे तो स्वयं भी विभिन्न अनाजों के मिश्रण को रातभर पानी में भिगोकर सुबह किसी मोटे कपड़े अथवा पतले कपड़ों की पर्तों में खिड़की अथवा अन्य हवादार व हो सके तो कुछ धूप भी पड़े ऐसे स्थान पर लटकायें एवं दो-तीन दिन तक नियमित रूप से भिगोते रहें तो अंकुरित अन्न आप स्वयं तैयार कर सकते हैं.
अंकुरण के कारण कच्चा अन्न स्वादिष्ट तो हो ही जाता है एवं साथ ही में ऐसे अन्य कई पोषक तत्त्व अधिक परिमाणों में सरलता से शरीर को उपलब्ध हो जाते हैं जो पकाने-चुड़ाने की Process में गायब हो जाते अथवा घट जाते हैं। पाचन, श्वसन सहित शरीर के अन्य सभी तन्त्रों के लिये आवश्यक खनिज लवण व विटामिन्स भी अंकुरित अनाजों व दालों से सहज सुलभ हो जाते हैं जो रक्त शोधक होने से प्रतिरक्षा-तन्त्र को सुदृढ़ बनाने में अपनी-अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाते हैं।
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Rogo kaa samana karne ke liye humari body me immunity ki aavsykta to rehati hi he lekin ab jab humare desh me corona virus ke cases itne badh rahe he or lakho ki sankhya me log isse sankrimit ho gaye he , kafi sare logo ki isse mout bhi ho gai he tab iski aavysykta or badh gai he.
Aapke dwara di gai yah jaankari logo ko apni immunity badhane me kaafi help kar sakati he.