असफल लोगों की 10 सबसे बड़ी ग़लतियाँ 10 Mistakes Of Failure People In Hindi
Table of Contents
- 1 असफल लोगों की 10 सबसे बड़ी ग़लतियाँ 10 Mistakes Of Failure People In Hindi
- 1.1 10 Mistakes Of Failure People In Hindi
- 1.1.1 1. पहल न करना :
- 1.1.2 2. बिना सोचे कर डालना :
- 1.1.3 3. मैं तो कुछ बड़ा ही करूँगा ” की मनोस्थिति ले डूबती है :
- 1.1.4 4. उधारी का बोझ :
- 1.1.5 5. अहंकार व हीनभाव जैसे अवरोध :
- 1.1.6 6. निराशा :
- 1.1.7 7. शीघ्रता के बजाय हड़बड़ी :
- 1.1.8 8. संकोच :
- 1.1.9 9. कर्मचारियों व सहयोगियों पर डिपेंड हो जाना :
- 1.1.10 10. अप्रामाणिक स्रोतों पर भरोसा :
- 1.1 10 Mistakes Of Failure People In Hindi
असफल लोगों की 10 सबसे बड़ी ग़लतियाँ 10 Mistakes Of Failure People In Hindi
विफलता के कारणों को गिनाने से पहले हम सफलता की परिभाषा समझ लें तो बेहतर होगा, यहाँ हम व्यावसायिक कार्य अथवा कुछ अच्छा करने की योजना को साकार करने की बात कर रहे हैं। सोचे-समझे विचार अथवा योजना की पूर्ति हो जाने को सफलता कह दिया जाता है.
वैसे सफलता की परिभाषाएँ व पैमानों को समझना कठिन है क्योंकि हर व्यक्ति अपने अनुसार उन्हें गढ़ लेता है। फ़िलहाल हम उन 10 व्यापक व प्रमुख ग़लतियों की चर्चा करते हैं जो विफल लोग करते हैं, इनका उल्लेख इसलिये आवश्यक है ताकि अन्य लोग इन्हें न दोहरायें.
10 Mistakes Of Failure People In Hindi
1. पहल न करना :
अधिकांश व्यक्ति पहल ही नहीं करते, कोई पंडित के कहने पर शुभ अवसर तलाशता है तो कोई किसी अनुकूल अवसर की ओर देखता रहता है. कोई परिस्थितियों पर दोषारोपण करता है तो कोई स्वयं को हीन माने बैठा रहता है.
इस प्रकार ” अभी मैं तैयार नहीं हूँ “, ” अभी मेरा वक्त नहीं आया “, ” कहीं कोई गड़बड़ हो गयी तो, कहीं कुछ हो गया तो !” इत्यादि विचार व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोके रखते हैं। अतः न भूलेंः शुभस्य शीघ्रम्। यह सीधी-सी बात समझ लेना भी पर्याप्त रहेगा कि कार्य शुभ हो तो समय की शुभता अथवा अनुकूलता नहीं देखी जाती।
2. बिना सोचे कर डालना :
विशेष रूप से कई Startup व व्यापारिक उद्यम आरम्भ में ही दम तोड़ देते हैं क्योंकि अहंकार वश व्यक्ति अच्छे से विचार-विमर्ष के बिना ही वहाँ उतर जाता है. विषय कोई भी हो साधारणतया लाभ – हानि के समस्त सम्भावित तर्कों व उनके तोड़ों के बारे में सोचकर चलना होता है। भविष्य के संकटों की पूर्व योजना व उप योजना तैयार रखनी चाहिए।
उदाहरण स्वरूप नया व्यापार व स्वरोज़गार आरम्भ करने से पहले Market Analysis जरुर करें, लोगों की रुचियाँ जानें व हो सके तो अग्रिम भुगतान प्राप्त करके शुरुवात कर लें।
निम्नांकित पंक्तियाँ उल्लेखनीय हैं :
बिना विचारे जो करै, सो पाछे पछिताय।
काम बिगारै आपनो, जग में होत हँसाय।।
जग में होत हँसाय, चित्त में चैन न पावै।
खान-पान सन्मान, राग-रंग मनहिं न भावै।।
कह गिरिधर कविराय, दुःख कुछ टरत न टारे।
खटकत है जिय मांहि, कियो जो बिना बिचारे।।
3. मैं तो कुछ बड़ा ही करूँगा ” की मनोस्थिति ले डूबती है :
कई लोग पहले से ही यह अनुमान मन में बसाये बैठते हैं कि मैं तो कुछ छोटा या सामान्य करूँगा ही नहीं, इस कारण व्यक्ति अधिक पूँजी की आस में बैठ जाता है अथवा जोख़िम अनावश्यक रूप से उठा लेता है अथवा उसके व्यावसायिक प्रतिस्पर्धी आगे बढ़ जाते हैं एवं वह पिछड़ जाता है।
छोटे पैमाने पर कार्य करने को बुरा अथवा कमतर न मानें, बहुत सारे ऐसे प्रसिद्ध व्यापारी हैं जिन्होंने अपनी व्यापारिक यात्रा की शुरुआत साईकल अथवा पैदल यात्रा कर मौखिक रूप से बोल-बोलकर उत्पाद-बिक्री से की थी।
4. उधारी का बोझ :
अधिक लाभ, अधिक प्रचार-प्रसार अथवा धूम-धड़ाके भरी शुरुआत के चक्कर में व्यक्ति परिचित व अपरिचित व्यक्तियों या संगठनों से अनौपचारिक या औपचारिक ऋणों के कुचक्र में जा फँसता है, वह ‘जो नहीं है उसे पाने की चाह में जो है उसे दाँव पर लगा देता है’, ‘जितनी चादर उतने पैर पसारें’ के विरुद्ध जाता है एवं इस प्रकार हो सकता है कि इन सबसे उबरने व पहले जैसी ‘ सामान्य स्थिति ’ में लौटने में ही उसे बरसों लग जायें।
इस प्रकार हो सकता है कि वह चलते व्यापार से बाहर आना चाहेगा अथवा देर बाद मिली व्यापारिक सफलता के बाद सोचेगा कि मैंने क्यों इतना समय इसमें खपा दिया।
5. अहंकार व हीनभाव जैसे अवरोध :
ज्ञान के कम होने पर भी अहंकार या फिर खुद को बुद्धिमान समझ बैठने की भूल अपने व अपनों के लिये बड़ी भयावह हो सकती है तथा हीन भावना को अहंकार का विलोमार्थी कहा जाता है किन्तु इसमें भी व्यक्ति अपनी योग्यता का उपयोग नहीं कर पाता क्योंकि वह स्वयं को व अपनी क्षमताओं को कम आँक रहा होता है जिससे अपने भीतर की असीमित प्रतिभा के जागरण अथवा परिष्कार की आवश्यकता को अनुभव ही नहीं कर पाता।
6. निराशा :
प्राथमिक प्रयासों में वांछित परिणाम नज़र न आयें तो व्यक्ति निराश हो सकता है जिससे अनदेखी सम्भावनाओं का दोहन नहीं कर पाता। लोगों को आपके उत्पाद व सेवाएँ लेने के लिये यदि आपके लगभग सभी प्रयास अब तक फलदायी न रहे हों तो भी ऐसा न सोच बैठें कि आप कभी खर्च नहीं कर सकते। हो सकता है कि पुराने तरीके से पुनप्रयास अथवा नये तरीके से प्रयास में मनोवांछित अथवा आशातीत परिणाम प्राप्त हो जायें।
7. शीघ्रता के बजाय हड़बड़ी :
जल्दी करना अच्छा है किन्तु ज़ल्दबाज़ी हानिकारक हो सकती है। अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित हुए बिना युद्ध में नहीं कूदा जा सकता किन्तु ऐसा भी न हो कि आलस्य ही इतना कर दिया कि गदा-निर्माण में ही 3 माह लग गये।
8. संकोच :
अपनी नयी शुरुआत से लोगों को अवगत कराने, आरम्भिक अवस्था में अपनी सेवाएँ व उत्पादों को खरीदने हेतु उन्हें प्रेरित करते समय व्यक्ति का संकोच उसे आगे बढने से रोके रखता है। ” कोई क्या सोचेगा ” ,एकदम से मना कर दिया तो ,मैं कैसे समझाऊँगा ,अरे ये तो ग्राहक नहीं बन सकता ऐसे ख्याल व्यक्ति को कुछ करने ही नहीं देते।
9. कर्मचारियों व सहयोगियों पर डिपेंड हो जाना :
इससे व्यक्ति दुसरो पर डिपेंड हो जाता है एवं बिना मेहनत के ही ऐसी अपेक्षा करने लगता है कि बाकी सब अन्य सँभाल लेंगे। ऐसे में व्यक्ति अपने जमे जमाये धंधे या कार्य को डुबाता जाता है जिस कारण एक दिन वह बर्बाद हो जाता है.
10. अप्रामाणिक स्रोतों पर भरोसा :
व्यावसायिक कार्य हो, अपने निजी जीवन का कोई निर्णय करना हो अथवा दिनचर्या की किसी जिज्ञासा की पूर्ति की बात हो व्यक्ति प्रायः विश्वास – अयोग्य सन्दर्भों की बात में आ जाता है, लोगों के पूर्वानुभवों के आधार पर अपना भविष्य देखने लगता है अथवा सुनी-सुनायी बातों में आकर निर्णय करने की ओर बढ़ जाता है अथवा तथाकथित विशेषज्ञीय सलाह को सर्वोपरि मान बैठता है मानो वे प्रसिद्ध Expert भविष्य दृष्टा हों।
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