कोविड 19 से पनपे कुप्रभाव व सुप्रभाव Covid 19 Benefit Disadvantage In Hindi
Covid 19 Benefit Disadvantage In Hindi
जब विश्व में कोविड 19 छाया है तब चारो ओर समस्याओं, विडम्बनाओं का भँवर घिर आया है. हर तरफ़ बस विरोधाभासों की छाया है। यहाँ ऐसी कई समस्याओं का विवरण समाधान सहित पेश किया जा रहा है जिन्हें विभिन्न देशो की सरकारें व जनता भोग रही हैं.
Covid 19 Benefit Disadvantage In Hindi
1. मज़दूर प्रवास और पलायन :
निर्धनता को बचपन में अभिशाप पढ़ाया जाता है, कोविड-काल में यह दिख भी रहा है। मज़दूर घर के आर्थिक हालात से मजबूर होकर दूसरे शहर, देश तक चले जाते हैं, वहाँ भी जैसे-तैसे अपना जीवन-यापन कर पाते हैं एवं परिश्रम से कमाया धन घर भेजते हैं परन्तु कोविड के कारण उन्हें कार्य-शहर में भी बेरोज़गारी झेलनी पड़ी, भारतबंदी के दौरान अस्थायी रूप से तो बाद में नियोक्ताओं का कारोबार सिमटने से स्थायी रूप से वापस घर बैठना पड़ा।
वैसे महीनों, सप्ताहों तक प्रवास एवं कुछ दिन परिवारवास मजदूरों का भाग्य रहा है परन्तु इस स्थिति को आसानी से बदला जा सकता है यदि समस्त नियोक्ता एवं सरकारें इसके लिये कटिबद्ध हो जायें।
जैसे कि किसी समान कौशल मजदूरी वाले दो व्यक्ति भोपाल से उत्तराखण्ड जाकर कार्य करते हों एवं उसी कौशल मजदूरी वाले दो अन्य व्यक्ति उत्तराखण्ड से भोपाल आकर कार्य करते हों तो सबका विवरण तैयार करते हुए भोपालवासियों को भोपाल में एवं उत्तराखण्डवासियों को उत्तराखण्ड में कार्य करने प्रेरित किया जा सकता है।
2. आत्महत्याएँ :
यह कोरोना-काल सचमुच कई लोगों के जीवन में काल बनके बरपा है। बेरोज़गारी, पारिवारिक तनाव, आर्थिक उठापटक, सामाजिक-आर्थिक अनिश्चितताओं के चलते आत्मघाती कदम उठाने वाले बढ़ते जा रहे हैं।
परिजनों व आसपास के लोगों को चाहिए कि वे विशेष रूप से ऐसे लोगों से बातचीत करते रहें जो परिवार से दूर अथवा अकेले अथवा होस्टल सरकारी आवास में रह रहे हैं, क्या जाने आपके दो मीठे बोल उनके मन से अवसाद का विष घोल बाहर बहा दें।
3. बढ़ती स्पद्र्धा एवं घटता वेतन :
वैसे तो यह व्यावसायिक प्रथा जैसी बना ली गयी है कि जहाँ कार्य के योग्य लोग अधिक व आवश्यकता कम होती है वहाँ नियोक्ता की इच्छा का वर्चस्व हो जाता है एवं योग्य व्यक्तियों को अपनी कठपुतलियाँ बना सकता है एवं कम वेतन में काम करना मजदूरों व अन्य व्यक्तियों की मजबूरी हो जाती है क्योंकि स्पर्धा को देखकर लोग सोचते हैं कि कम वेतन में हमने हामी न भरी तो नियोक्ता अन्य उपलब्ध को नियुक्त कर लेगा जो कम वेतन में आसानी से आ जायेंगे।
इस समस्या से बचने के लिये न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण व दृढ़ निगरानी सहित ऐसे कौषलों के विकास पर ज़ोर दिया जा सकता है जो वहाँ कम हों किन्तु उनकी माँग अधिक हो तथा नियोक्ताओं को भी अपने कर्मचारियों के आवागमन व रहने इत्यादि की व्यवस्था स्वयं अपनी ओर से करनी चाहिए।
4. नौकरी से निकाला जाना :
कोविड-19 को कोहराम ही ऐसा रहा कि विभिन्न देशो व राज्यों में की गयी बन्दी से कई कल-कारखाने आज से हमेशा के लिये बन्द कर दिये गये क्योंकि सप्लाई चैन इस तरह टूटी कि सूक्ष्म व लघु उपक्रम क्या मध्यम उद्योगों को भी मजदूर व कच्चे माल मिलने बन्द हो गये अथवा ग्राहक बहुत घट गये। स्थानीय सरकारों को चाहिए कि वे स्थानीय जनों के सहज कौशलों को निखारकर विक्रय इत्यादि की व्यवस्था स्वयं करे तथा व्यावसायिक प्रवाह को अनवरोध बनाये रखने पर नज़र रखे।
5. ऋणप्रदाताओं का बोलबाला :
उधारी देने वाले साहूकार हों अथवा बैंकिंग प्रणाली इन्हें पता नहीं क्यों ‘कल्याणकारी’ जैसा समझा जाता है, ग़रीबों का मसीहा, डूबते का सहारा और भी न जाने क्या-क्या कह दिया जाता है परन्तु वास्तविकता को समझने का प्रयास क्यों नहीं किया जाता।
ऋण उपलब्ध कराने वाली ये प्रणालियाँ इस स्वार्थ के आधार पर कार्य करती हैं कि व्यक्ति संगठन की कुल चल-अचल सम्पत्तियों के अनुपात में इतना मुँहमाँगा ऋण उस दे दिया जाये कि जिसे यदि वह समय रहते चुका न भी पाया तो इन प्रणालियों को कोई जोख़िम न हो, ब्याज सहित उस व्यक्ति संगठन की गिरवी रखी सम्पत्ति अपने कब्ज़े में कर ली जायेगी, घर की नीलामी सहित, और क्या ! ये प्रणालियाँ अमीरों के लिये, अमीरों की अमीरी बढ़ाने के लिये, निर्धनों का पैसा अमीरों के खाते तक ले जाने के लिये एवं अपनी सुख-सुविधाएँ बढ़ाने ब्याज खाने के लिये कार्य करती हैं।
किसी वास्तविक ज़रूरतमंद भूमिहीन मज़दूर को कौन ऋण देगा, उसके पास है क्या गिरवी रखने को? ऋण तो उन अमीरों के लिये होता है जिनके पास पहले से काफ़ी कुछ हो जो अपनी मूलभूत आवश्यकता नहीं बल्कि विलास (चैपहिया-क्रय इत्यादि) अथवा निवेश (व्यापार बढ़ाने, भूखण्ड क्रय इत्यादि) के लिये ऋण लेते हैं, इन्हें ऋण की आवश्यकता है ही नहीं, जिन निर्धनों को ऋण की आवश्यकता वास्तव में है उनके पास गिरवी रखने को कुछ नहीं इसलिये बैंकों इत्यादि की उनमें कोई रुचि नहीं होती, कलियुग की बड़ी विडम्बना।
इसके लिये शासन को निर्धनों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये ठीक से व निःस्वार्थ रूप में सामने आना चाहिए (जैसे कि इलाज का कोटेशन देखकर राशि सरकारी चिकित्सालय में सीधे हस्तान्तरित करना) एवं बैंकों इत्यादि द्वारा विलासादि के लिये व्यापारियों व अन्य धनियों को ऋण देने से रोकना चाहिए।
उपभोक्तावाद, बाज़ारवाद व पूँजीवाद को मिटाने की ओर बढ़ना चाहिए, विभिन्न वस्तुओं व उत्पादों की चाहत बढ़ाने वाले अनावष्यक विज्ञापनों पर लगाम कसनी चाहिए, सीमित में संतोष, जितनी चादर उतरे पैर पसारो वाली पुरानी सार्थक कहावतों को लागू करना चाहिए, न कि उधारी करो, घीं पियो की चार्वाक मानसिकता का समर्थन करना चाहिए। देश का सकल घरेलु उत्पाद बढ़ाने के नाम पर अनावश्यक सेवाओं व उत्पादों के उत्पादन व प्रयोग को बढ़ावा देने के बजाय हतोत्साहित करना चाहिए।
6. मनुष्यों से पालतु व वन्यजीवों को संक्रमण का ख़तरा :
विभिन्न देशो के चिड़ियाघरों में कुछ ऐसे प्रकरण सामने आये हैं जब मानवों से पशुओं को कोरोना हो गया हो। अतः अत्यन्त सावधानी बरतें कि पालतू व वन्य जीवों को आपके कारण संक्रमण न हो तथा यदि उनमें कोई लक्षण दिखे तो तुरंत पशु चिकित्सक से जाँच करायें। पशुओं के पास कम जायें, जब जाना आवश्यक हो जाये तो मुख पर रुमाल बाँधकर जायें।
7. अवसाद-उन्मूलन :
कोरोना हो अथवा कोई भी विषय यदि अवसाद व चिंता हो तो भी जीवन में कई सकारात्मकताएँ हैं जिनका विचार किया जा सकता है. ऐसे ही यहाँ कोरोना के पाँच सुप्रभाव दर्शाए जा रहे हैं जिन्हें ध्यान में रखकर इस कोरोना काल में भी आशा की किरणें नज़र आने लगेंगी।
कोरोना के कारण हुए सुप्रभाव :
वर्तमान में वैश्विक रूप से छायी महामारी कोरोना की हानियों को तो विभिन्न देश गिना ही रहे हैं किन्तु आइए तनिक इस महामारी से हुए सकारात्मक परिवर्तनों का भी विचार करें जिससे कोराना जनित निराशा व अवसाद से उबरने में भी सहायता होगी.
1. मितव्ययिता : लोग विलासी व अनावश्यक सेवाओं व उत्पादों से दूर रहना सीख गये.
2. औपचारिकता से दूरी : हाथ मिलाने व गले मिलने सहित अन्य प्रकार से आमने-सामने सम्पर्क में आने से व्यक्ति कोरोना सहित अन्य ढेरों संक्रमणों से अनजाने में ही ग्रसित होते रहते हैं तथा शारीरिक स्पर्श से व्यक्ति की मानसिक ऊर्जा का भी क्षय होता, कोरोना के कारण यह सब कुछ कुछ सीमा तक तो रुका.
3. अनावश्यक यात्राओं पर विराम : पारिवारिक, रिश्तेदारी, व्यर्थ की घुमक्कड़ी इत्यादि में लगने वाले समय, श्रम व धन से बचाव हुआ.
4. विभिन्न प्रदूषण में कमी : पर्यटन-सबन्धी गतिविधियों, परिवहन व यातायात सहित घर के बाहर निकलने से भी व्यक्ति जाने-अनजाने में प्रदूषण करता फिरता है, इन सबसे कुछ बचाव.
5. जैव-विविधता संरक्षण : घरों में मनुष्यों के रहने से वन्य जीवों को स्वच्छन्द विचरण व स्वतन्त्र जीवनयापन के लिये बड़े क्षेत्र मिलने लगे एवं वे मानसिक रूप से अधिक संतोष अनुभव करने लगे कि उन्हें मानवों का अमानवीय हस्तक्षेप अब उतना नहीं झेलना पड़ रहा.
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