उच्चरक्तचाप हाइपरटेंशन हाई ब्लडप्रेशर के लक्षण, कारण एवं निवारण High Blood Pressure Hypertension Cause Treatment in Hindi
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दोस्तों, आज Hypertension यानी High Blood Pressure अपना दायरा धीरे – धीरे बढाने में लगा हुआ है और यह समस्या धीरे – धीरे गंभीर होती जा रही है. उच्चरक्तचाप से पीड़ित लोगो की संख्या बढती जा रही है. इस समस्या से निपटने का आसान तरीका यही है की आपको उच्चरक्तचाप के लक्षणों और कारण का पता होना जरुरी है. आज इस आर्टिकल में हम आपके साथ हाइपरटेंशन से बचाव के आसान उपाय शेयर कर रहे है जो आपको हाइपरटेंशन से हमेशा दूर रखेंगे और आपको फिट बनाये रखेंगे.
High Blood Pressure Hypertension Cause Treatment in Hindi
उच्चरक्तचाप की परिभाषा :
हृदय आक्सीजनयुक्त शुद्ध रक्त को धमनियों के माध्यम से पूरे शरीर में पम्प करता है जिससे धमनियों में स्वाभाविक दबाव उत्पन्न होता है एवं धमनियाँ फैलती हैं किन्तु यदि किसी कारणवश यदि दबाव बढ़ जाये तो उस स्थिति को उच्चरक्तचाप कहते हैं।
उच्चरक्तचाप के लक्षण :
1. सिरदर्द
2. साँसें पूरी न आना
3. नाक से ख़ून बहना
4. चेहरे पर लालिमा छा जाना
5. चक्कर आना
6. मूत्र में रुधिर आना
7. देखने की क्षमता से परिवर्तन
8. सीने में दर्द
उच्चरक्तचाप के कारण :
1. मद्यपान
2. कुछ अवैध ड्रग्स
3. तम्बाकू व हर प्रकार का धूम्रपान
4. अण्डा इत्यादि अन्य समस्त प्रकार के माँस
5. शारीरिक रूप से पर्याप्त सक्रिय न होना
6. वसीय पदार्थ अधिक ग्रहण करना
7. तनाव
8. नमक की अधिकता
9. लम्बे समय से चली आ रही वृक्क (किड्नी) समस्या
10. एड्रिनल या थायराइड विकार
11. सोते समय साँस लेने में परेशानी अथवा नींद में ठीक से साँस न आ पाना
12. मोटापा
13. बुढ़ापा
14. उच्चरक्तचाप का पारिवारिक अतीत अर्थात् आनुवंशिक कारण
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निवारण उपरोक्त कारणों से दूर होने में छिपा है, उपरोक्त आरम्भिक पाँच कारणों से तो तुरंत और हमेशा के लिये आसानी से दूर हुआ जा सकता है; 6, 7 व 8 पर काफ़ी नियन्त्रण रखा जा सकता है एवं बाकी के कारणों को नियन्त्रित रखने के प्रयास किये जा सकते हैं।
वैसे यदि आपको अथवा आपके पूर्वजों को मुधमेह हो अथवा व्यक्ति को गर्भावस्था चल रही हो अथवा कोई सम्बन्धित समस्या अथवा बात हो जिसका कोई लाक्षणिक अथवा कारण-प्रभाव सम्बन्ध किसी प्रकार से उच्चरक्तचाप से हो सकता हो तो भी विशेष सतर्कता बरतने की आवश्यकता है.
चिकित्सक को पूरा ब्यौरा ढंग से समझाना भी आवश्यक है क्योंकि यदि घटनाओं को जोड़कर न देखा जाये तो इलाज का प्रयास विफल हो सकता है या फिर उल्टा असर भी सम्भव है और वैसे भी आजकल तो कई बीमारियाँ ऐसे ढीठ रूपों में सामने आ रही हैं कि बहुत समय तक शरीर में रहने के बाद भी उनके लक्षण सामने नहीं आ पाते या फिर लक्षण तब नज़र आते हैं जब हाई-डोज़ दवाइयाँ भी उन पर बेअसर-सी होने लगती हैं।
उच्चरक्तचाप से पड़ सकने वाले प्रभाव :
1. धमनी-काठिन्य (एथेरोस्क्लेरासिस) : धमनियों का कड़ा हो जाना यानी कि लचीलापन घट जाना।
2. मस्तिष्क को हानि सम्भव क्योंकि उच्चरक्तचाप में मस्तिष्क को आक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पाती।
3. वृक्क-रोग।
4. हृद्वाहिकागत (कार्डियोवॅस्क्युलर) असामान्यताएँ।
उच्चरक्तचाप की जाँच :
वैसे डाक्टर के पास एक छोटा-सा उपकरण होता है जिससे वह आपका रक्तचाप जाँचता है; यदि आपको उच्च रक्तचाप की समस्या बनी ही रहती है तो आप उससे पूछकर एक उपकरण स्वयं भी ख़रीद सकते हैं एवं उससे प्रयोग का परीक्षण प्राप्त कर सकते हैं.
ताकि अचानक रक्तचाप बढ़ने पर आप स्वयं जाँच कर आपातकालीन घरेलु उपाय ( चिकित्सक को फ़ोन करके पूछते हुए ) करते हुए यथाशीघ्र Clinic पहुँच सकें। स्थिति की गम्भीरता का अनुमान लगाते हुए Doctor निम्नांकित जाँचें सुझा सकता हैः
1. मूत्र-जाँच
2. कोलॅस्टेराल स्क्रीनिंग एवं अन्य रुधिर-परीक्षण
3. इलेक्ट्रोकार्डियोग्रॅम से हृदय की वैद्युत्-गतिविधि परखना
4. हृदय अथवा वृक्कों(ग़ुर्दों) का अल्ट्रासाउण्ड
उच्चरक्तचाप का उपचार व बचाव :
1. धीमे-धीमे गहरी साँसें लैवें और धीरे-धीरे छोड़ें
2. पिज्जा, सैण्डविच, पैक्ड ड्रिंक्स या प्रोसेस्ड फ़ूड, इंस्टैण्ट सिंथेटिक पदार्थों, खारे अचार-चटनी, नमकीन, चिप्स (विशेष रूप से आलू के) एवं फ्ऱीज़्ड व रेडी-टू-ईट पदार्थों से यथासम्भव दूरी बरतें; इनमें नमक अथवा सोडियम अधिक रहने की आशंका होती है। चावल व दूध भी हो सके तो कम सेवन करें।
3. बेल्ट, हैयरबैण्ड, आभूषण, वस्त्र इत्यादि समस्त पहनावों को ढीला कर दें;
4. मैदा, शक्कर जैसे रिफ़ाइण्ड पदार्थों का सेवन कम कर दें, वैसे भी मैदा-शक्कर व नमक को तो सफेद ज़हर कहा जा रहा है। शक्कर के बजाय गुड़ व नैसर्गिक मीठे रसों का सेवन किया जा सकता है तथा टेबल-साल्ट के स्थान पर पंच-लवण अथवा काले नमक या फिर सेंधा नमक का प्रयोग किया जा सकता है, हो सके तो प्राकृतिक वस्तुओं को उनके मूल स्वाद में खायें-पीयें, ज़रा-ज़रा-सी बात पर उनमें नमक मिलाने की आदत छोड़ें।
5. यदि थोड़ी-थोड़ी देर में रक्तचाप बढ़ जाता हो अथवा लगातार बढ़ा हुआ हो तो मूत्रल (मूत्रवर्द्धक) पेयों व खाद्यों का प्रयोग करके अतिरिक्त सोडियम को शरीर से निकाला जा सकता है, जैसे कि अजमोदा, जीरा, कलौंजी, अदरख का प्रयोग बढ़ायें किन्तु ध्यान रहे कि पानी की मात्रा भी बढ़ानी है ताकि शरीर में निर्जलीकरण (डिहायड्रेशन) न होने पाये तथा मूत्र-निर्माण लगातार व तेजी से होता रहे।
6. सोडियम के तोड़ के रूप में ऐसे पदार्थों का सेवन बढ़ायें जो पोटेशियम में समृद्ध हों, जैसे कि केला, संतरा व चकोतरा, खरबूजा वर्गीय फल एवं ककड़ी-खीरा, कद्दू, खूबानी, आलू-बुखारा, किसमिस, खजूर, पालक, गोभी, शकरकन्द, मशरूम, मटर, तोरई, हरी पत्तेदार साग-भाजियाँ, टमाटर, सेम, चोकरयुक्त अनाज तथा प्रयास करें कि साबुत अनाजों वाले उत्पादों का सेवन करें, अगर बिस्किट व ब्रेड भी प्रयोग करनी पड़ें तो यथासम्भव साबुत अनाज से निर्मित का क्रय करें।
7. आपातस्थिति हो तो जीवनसाथी से देह की मालिश करायी जा सकती है।
8. योग-ध्यानादि का अभ्यास करें, जैसे कि भँवों के बीच ध्यान एकाग्र कर इष्ट का लगातार स्मरण करें.
उच्चरक्तचाप से बचाव के लिये सावधानियाँ तो बरती जा सकती हैं परन्तु यदि स्थिति थोड़ी-सी भी गम्भीर लगे तो घरेलु चिकित्सा के भरोसे न रहें, फ़ार्मा वाले से बात करके दवाइयाँ तो कभी-भी लेनी ही नहीं हैं।
तुरंत चिकित्सक से मिलें। चिकित्सक के लिखे पर्चे में जितनी आवृत्ति, मात्रा व अवधि के लिये दवाइयाँ लिखी हैं उतनी ही ख़रीदें व नियम से सेवन करें. अपने मन से उसमें घटाना-बढ़ाना न करें तथा दुकान वाले ने कमायी के चक्कर में अधिक मात्रा में (अधिक दिनों की) दवाई लिख दी हो तो उसे तुरंत लौटायें। अतिरिक्त दवाइयाँ लेकर न रखें (यह सोचकर कि ज़रूरत पड़ेगी बिना डाक्टर से पूछे अपने डाक्टर ख़ुद बनकर खा लेंगे).
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