एक मजदूर – Labour Poetry In Hindi
पसीने से तर-बतर,
घर से निकल दोपहर,
जा रहा है..
उसका क्या कसूर है?
क्योंकि वो बस एक मजदूर है,
बस यहीं उसका कसूर है,
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भूखा-प्यासा रात-दिन,
जेब खाली पैसों बिन,
वो करता जा रहा है काम,
एक पल न कर आराम,
सतत स्वेद से तन उसका भरपूर है,
क्योंकि वो बस एक मजदूर है,
–
बच्चों को है पालता,
परिवार को संभालता,
हर बला को टालता,
तकलीफों से है वास्ता,
उसका दुखभरा है रास्ता,
कड़ी मेहनत करने पर वह मजबूर है,
क्योंकि वो बस एक मजदूर है,
–
सुनता है वो जमाने के ताने,
न सुनता उसकी कोई न उसकी कोई माने,
न समझे उसको कोई न कोई उसको पहचाने,
मेहनत ईमानदारी से करता न कोई बहाने,
बच्चों को पढ़ाता,
न मेहनत करवाता,
–
उन्हें पढ़ा लिखा अच्छा ऑफ़िसर बनाता,
खुद भरी धूप में रिक्शा चलाता,
जख्म कितने सहता न किसी से बताता,
मजबूरी में करता मजदूरी मजदूर कहलाता,
कैसा किस्मत का खेल और कैसा दस्तूर है
क्योंकि वो बस एक मजदूर है,
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मजबूती से वो खड़ा,
मुसीबतों से वो बड़ा,
चुनौतियों से वो लड़ा,
कभी नही वो डरा,
सच में उसका बस इतना ही कसूर है,
क्योंकि वो बस एक मजदूर है
-शिवांकित तिवारी “शिवा”
युवा कवि एवं लेखक
सतना (म.प्र.)
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सच में उसका बस इतना ही कसूर है क्योंकि वो बस एक मजदूर है आप ने जो कविता लिखी है ये बहुत सुंदर है |