मैं खुल के जी रहा हूँ I am Living Open Poem In Hindi
पूछते हो जानकर क्यों ये गरल मै पी रहा हूँ
इस तरह की जिन्दगी को क्यों भला मैं जी रहा हूँ
जानते हो क्या मिलेगा इस तरह की सादगी में
क्या कभी गुलशन खिलेगें इन विरानी वादगी में.
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जानते हो जिन्दगी एक जंग है मैं जी रहा हूँ
हो तुम्हें अमृत मुबारक ये गरल मैं पी रहा हूँ
सादगी का जाम पीकर तृप्त हूँ प्यासा नहीं हूँ
मैं स्वयं की सौम्यता हूँ मंच की भाषा नहीं हूँ.
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राग रस में डूबना क्या जिन्दगी का लक्ष्य होगा
क्या नहीं प्राचीनतम् परिधान का परिपक्ष होगा
क्या विषम ज्वाला जलाती ही रहेगी बस्तियों को
क्या कभी ये छू सकेगी इन महल की मस्तियों को.
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क्या कभी इन्सान में इंसानियत का भान होगा
क्या कभी वो कर्म से ईमान से इन्सान होगा
स्नेह के धागों में मैं स्वजनों के रिश्ते सी रहा हँ
मुस्करना ज़िन्दगी है मुस्कराकर जी रहा हूँ.
-सुशील पाण्डेय
यह बेहतरीन हिंदी कविता हमें भेजी है सुशील कपाण्डेय जी ने. हम सुशील जी के उज्जवल भविष्य की कामना करते है और उम्मीद करते है की उनके बेहतरीन हिंदी कविता फिर इस ब्लॉग पर प्रकाशित हो. धन्यवाद सुशील जी.
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Dhanyawad sushil sir,
Anupam rachna
HY
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