अपनेपन की भावना हिंदी कविता- Apnepan Ki Bhawna Hindi Kavita
खत्म होती जा रही है अपनेपन की भावना,
फूल भी भेजते है लोग कागज का बना.
कहने को तो हम साथ-साथ रहते है
मगर किसी को नहीं कहते है दिल से अपना.
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नींद से जागते ही पैसों के बारे में सोचते है,
हर रोज अपने मानवीय मूल्यों को भूलते है.
हर वक्त व्यस्त रहना चाहते है आभासी दुनिया में,
भूल जाते है हम सारे वो, है जो असली दुनिया में.
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क्या जी रहे है अपना जीवन ? एक बार सोचना.
खत्म होती जा रही है अपनेपन की भावना,
फूल भी भेजते है लोग कागज का बना.
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छोटी-छोटी बातों पे किशोर घर से भाग जाते है,
थोड़ी डांट-फटकार पे मां-बाप से जबान लड़ाते है.
शिक्षकों के लिए बच्चों के मन से प्यार कहां गया ?
जो सब था हमारे पुरखों में वो संस्कार कहां गया ?
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अपने जीवन में पुरातन मूल्यों को उतार ना !
खत्म होती जा रही है अपनेपन की भावना,
फूल भी भेजते है लोग कागज का बना.
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भूलते जा रहे है सब एक-दूसरे से मिलना-जुलना,
नमस्ते-सलाम कहते नहीं, भूल गये गले मिलना.
इंटरनेट वाली दुनिया में आनलाइन सब होता है,
आनलाइन धोखाधड़ी, अब तो आनलाइन होता है.
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On Facebook Friends सारे, रियल में लगाव ना,
खत्म होती जा रही है अपनेपन की भावना,
फूल भी भेजते है लोग कागज का बना.
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कहने के लिए दुनिया आज ग्लोबल हो गई,
मगर लोगों के बीच की दूरियां डबल हो गई.
पास होके भी अब कोई पास नहीं रहता हैं,
नेट की स्पीड में जीवन ये तो बहता है.
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जहरीला हो गया है मौसम ये सुहावना,
खत्म होती जा रही है अपनेपन की भावना,
फूल भी भेजते है लोग कागज का बना.
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रोशनी में नहाए गलियां सारी ,नुक्कड़ सारे,
बल्ब से सजे रहते है सारे चौक-चौराहे और चौबारे.
दिन और रात में अब ज्यादा फर्क ना रहा,
घर का कोना-कोना है इन दिनों जगमगा रहा.
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मगर सबके दिल में बस रहा है एक अंधेरा घना,
खत्म होती जा रही है अपनेपन की भावना,
फूल भी भेजते है लोग कागज का बना.
Raj kumar Yadav
Blog: rozaana.wordpress.com
Email : rajkumaryadav.rky123@gmail.com
राज जी की कई कवितायेँ नयीचेतना में पब्लिश हो चुकी है. राज कुमार यादव जी की अन्य कवितायेँ पढ़े : हिन्दी कविता संग्रह
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bhut achi hai sir