खोती हुई इंसानियत – Losing Humanity Poetry In Hindi
क़त्ल हुआ और यह शहर सोता रहा
अपनी बेबसी पर दिन-रात रोता रहा ।।1।।
भाईचारे की मिठास इसे रास नहीं आई
गलियों और मोहल्लों में दुश्मनी बोता रहा ।।2।।
बेटियों की आबरू बाज़ार के हिस्से आ गई
शहर अपना चेहरा खून से धोता रहा ।।3।।
दूसरों की चाह में अपनों को भुला दिया
इसी इज्तिराब में अपना वजूद खोता रहा ।।4।।
जवानी हर कदम बेरोज़गारी पे बिलखती रही
सदनों में कभी हंगामा,कभी जलसा होता रहा ।।5।।
बारिश भी अपनी बूँदों को तरस गई यहाँ
और किसान पथरीली ज़मीन को जोता रहा ।।6।।
महल बने तो सब गरीबों के घर ढ़ह गए
और गरीब उन्हीं महलों के ईंट ढ़ोता रहा ।।7।।
-Salil Saroj
नयीचेतना.कॉम में “ खोती हुई इंसानियत कविता – Losing Humanity Poetry In Hindi ” Share करने के लिए सलिल सरोज जी का बहुत-बहुत धन्यवाद. हम सलिल सरोज जी को बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनायें देते है और उम्मीद करते है की उनकी कवितायेँ आगे भी इस ब्लॉग पर प्रकाशित होंगी.
सलिल सरोज के बारे में :
आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरीकॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)।
इनका प्रयास :
Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका”कोशिश” का संपादन एवं प्रकाशन, “मित्र-मधुर”पत्रिका में कविताओं का चुनाव।सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश।
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bhai mene aap mail send kr diya dwara check kr lena bhai g
bhai saab ji aap bahut achi lekh likh te ho bhai
thanks