चिट्ठियां खत्म होती हैं हिन्दी कविता (बृजमोहन स्वामी “बैरागी”) The Letters End Poem In Hindi
चिट्ठियां जेब में रहती हैं
आत्माओं में गहरा अँधेरा और डर
कैसे बताया जाता है किसी को
प्यार और नफरत का मूड होना
खत्म होना, शुरू होने से सस्ता है
मैं अपनी हथेली का स्वाद
अपनी ही जीभ से करता हूं।
और आप यकीन मानिये जहाँपनाह
रोना सर्वनाम से ज़्यादा एक क्रिया है
रोने से वही लोग समझते हैं दर्द
मैं हैरान हूँ
और डरा हुआ हूँ इस कदर
की कभी भी बता सकता हूँ
मैं एक ही बात पर
इक्यासी बार
अटकता हूँ,
जैसे मेरे दिल में छुपे हों कुस्तुन्तुनियां के खज़ाने।
दुनिया के सारे दुःख को इकठ्ठा किया जाए,
एक जगह रख दिया जाए,
तो वह चुल्लू भर उतना ही होगा, जितना एक आदमी में होगा
या उससे थोडा कम।
जेब से चिट्ठियां निकलती है
और खत्म होती हैं चूल्हे में
माँ रखती है उसके ऊपर रोटियां।
तकिया मांगने आये पड़ोसी ने कहा-
तुम गुनहगार हो,
जो तुम्हें नींद नहीं आती ?
यादों के सब जुगनू जंगल में रहते है |
– बृजमोहन स्वामी “बैरागी”
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Hindi Poem “चिट्ठियां खत्म होती हैं ” यह कविता हमें भेजी है बृजमोहन स्वामी “बैरागी” जी ने राजस्थान से. बृजमोहन स्वामी जी हिंदी और राजस्थानी भाषा के विद्वान, कवि एवं लेखक हैं. साहित्य के क्षेत्र में ये कवि बृजमोहन स्वामी “बैरागी” नाम से लिखते हैं. बृजमोहन स्वामी का जन्म 20 जुलाई सन् 1995 को बरवाली, नोहरहनुमानगढ़, राजस्थान में हुआ. Kavi Bairagi के बारे में अधिक जानने के लिए पढ़े : Hindi Biography Of Kavi Bairagi In Wikipedia

बृजमोहन स्वामी “बैरागी”
नयीचेतना.कॉम में “चिट्ठियां खत्म होती हैं कविता ” Share करने के लिए बृजमोहन स्वामी “बैरागी” जी का बहुत-बहुत धन्यवाद. हम बृजमोहन स्वामी “बैरागी” जी को बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनायें देते है और उम्मीद करते है की उनकी कवितायेँ आगे भी इस ब्लॉग पर प्रकाशित होंगी.
Note – – मैं बृजमोहन स्वामी बैरागी 17-10-17 को एतदद्वारा घोसणा करता हूँ की मेरी रचनाऐ मौलिक एवम् स्वरचित हैं ये रचना किसी भी अंतर्जाल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो सकती है, मुझे कोई आपत्ति नही है। लेखक नाम सलंग्न रहने पर किसी भी पत्र पत्रिका में प्रकाशन होने पर मुझे को कोई आपत्ति नही है।
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