आज का भटकता इंसान ! Aaj ka Bhatkta Insan Poem In Hindi
मर गई है मेरी संवेदनाएँ
मुझे किसी के दुःख से दुःख नहीं होता है
चोटिल हो या घायल हो,
उसके घाव पर लाल दवा नहीं लगा सकता मैं.
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सच कहूँ तो थोड़ा स्वार्थी हो गया हूँ
बस ! अपने काम से काम रखता हूँ
मानवता नाम की कोई चीज नहीं है मुझमे,
इसलिए उजाले से भागे जा रहा हूँ अँधेरे में.
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शहर भले ही आज रोशनी से चकाचौंध है
पर मन में अँधेरा और सन्नाटा है
परहित को भूल कर स्वहित में लगा हूँ,
पता नहीं चलता की मैं सोया हूँ या जगा हूँ.
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जैसे मैं अपने स्वार्थ में हुआ अँधा हूँ,
जैसे आदमी बुरा हूँ मैं, इंसान गन्दा हूँ.
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अपने भाषण में लम्बी – लम्बी बातें करता हूँ
दूसरो को सीखाता हूँ, खुद नहीं सीखता हूँ
परोपकार, उपकार शब्द जैसे अर्थहीन हो,
मेरे ह्रदय मेरे अंदर जैसे छिन्न – बिन हो.
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वेदना किसी की मुझे सुनाई ना दे
करुणा मेरे अंदर कही दिखाई ना दे
आज कितना बदल गया हूँ,
अपने कर्तव्य से फिसल गया हूँ.
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पड़ोस के काका को दवाई नहीं लाकर देता,
चिड़ियों को दाना नहीं मुठ्ठी भर देता.
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आज मैं भूल गया हूँ
अपनी संस्कृति और सभ्यता को
खोया जा रहा हूँ आभासी दुनिया में,
झूठलाने लगा हूँ अपनी वास्तविकता को.
– राज कुमार यादव
Hindi Poem “आज का भटकता इंसान” यह कविता हमें भेजी है राज कुमार यादव जी ने गोपालगंज, बिहार से. राज कुमार यादव एक स्टूडेंट है और इनकी क्लास Isc ii year है. 15 जून सन 2000 को जन्मे राज कुमार गोपालगंज, बिहार में रहते है. राज कुमार जी को लिखने का बहुत शौक है.

Raj kumar Yadav
Raj kumar Yadav
Email : rajkumaryadav.rky123@gmail.com
नयीचेतना.कॉम में ” आज का भटकता इंसान कविता – Aaj ka Bhatkta Insan Poem In Hindi ” Share करने के लिए राज कुमार जी का बहुत-बहुत धन्यवाद. हम राज कुमार जी को बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनायें देते है और उम्मीद करते है की उनकी अन्य रचनाएँ आगे भी इस ब्लॉग पर प्रकाशित होंगी.
राज कुमार यादव जी की अन्य कवितायेँ पढ़े : हिन्दी कविता संग्रह
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Bahut acchi hai yah kavita ,
Ham logon aapke hi blog pe acche-acchi kavita padhne ko multi hai.air kahi air kisi bhi blog pe nahi hota hai.
Aapka blog khaas aur unique hai
Kasam we