भीगी बिल्ली : स्वामी विवेकानन्द के जीवन का प्रेरक – प्रसंग
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- भीगी बिल्ली : स्वामी विवेकानन्द के जीवन का प्रेरक – प्रसंग
- Bhigi Billi : Swami Vivekanand Ke Jeevan Ka Prerak – Prasang
- वे काफी देर तक महिला के बारे में गन्दी और ऊटपटांग बातें करते रहे. वे अंग्रेजी में बात कर रहे थे और वह भारतीय महिला अंग्रेजी जानती नहीं थी. इसलिए वह चुप रही.
- उन दिनों भारत अंग्रेजो का गुलाम था. अंग्रेजो का भारतीयों से दुर्व्यवहार करना आम बात थी. लोग उनका विरोध करने का साहस नहीं करते थे. विरोध न करने के कारण अंग्रेजो का हौसला बढ़ा.
- अब वे महिला को परेशान करने में उतर आये. वे कभी उसके बच्चे का कान उमेट देते. कभी उसके गाल पर चुटकी काटते. कभी महिला के बाल पकड़कर झटका देते.
- स्वामी विवेकानन्द उन दोनों अंग्रेजो की बातें सुन और समझ रहे थे. अगला स्टेशन आने पर महिला ने डिब्बे के दूसरी ओर बैठे पुलिस के एक भारतीय सिपाही से अंग्रेजो की शिकायत की.
- सिपाही आया और अंग्रेजो को देखकर चला गया. अगले स्टेशन से ट्रेन चलनी शुरू हुई तो अंग्रेजो ने फिर महिला और उसके बच्चे को तंग करना शुरू कर दिया.
- अब स्वामी विवेकानन्द से नहीं रहा गया. वे समझ गये थे की ये ऐसे नहीं मानने वाले है. वे अपने स्थान से उठे और दोनों अंग्रेजो के सामने जा कर खड़े हो गये.
- उनकी सुगठित काया को देखकर दोनों अंग्रेज सहम से गये. विवेकानन्द ने पहले तो बारी – बारी उन दोनों के आँखों में झाँका. फिर अपने दायें हाथ की कुर्ते की आस्तीन ऊपर समेटी और हाथ मोड़कर उन्हें अपने बाजुओ की सुडौल और कसी हुई मांसपेशियां दिखाई. फिर वे आकर अपने स्थान पर बैठ गये.
- अब अंग्रेजो ने तत्काल महिला व उसके बच्चे को परेशान करना बंद कर दिया. यही नहीं अगला स्टेशन आते ही वे भीगी बिल्ली की तरह चुपचाप उठे और दूसरे डिब्बे में जाकर बैठ गये.
- स्वामी विवेकानन्द के जीवन की इस सच्ची घटना से सीख :
- दोस्तों ! स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व बहुत ही आकर्षक था. वो किसी भी जुल्म के सामने झुकते नहीं थे. हमें इस प्रेरक प्रसंग से जरुर यह सीखना चाहिए कि अगर हमारे साथ या हमारे सामने कभी भी किसी के साथ कोई अत्याचार या जुल्म हो रहा हो तो हमें उसके खिलाफ तत्काल आवाज उठानी चाहिए.
- अगर हम उस अत्याचार को सहते रहेंगे तो अत्याचार करने वालो को इससे प्रोत्साहन मिलेगा और उनके अत्याचार बढ़ते जायेंगे. एक देश और समाज का नागरिक होने के नाते हमारा यह फर्ज बनता है कि हम जुल्म को सहे नहीं बल्कि उसके खिलाफ लड़ें.
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- *. स्वामी विवेकानन्द की जीवनी
- *. स्वामी विवेकानन्द का विश्व प्रसिद्ध शिकागो भाषण
- *. स्वामी विवेकानन्द की प्रेरक बातें !
- मुझे उम्मीद है की आपको ये कहानी जरूर पसंद आई होगी.
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Bhigi Billi : Swami Vivekanand Ke Jeevan Ka Prerak – Prasang
एक बार स्वामी विवेकानन्द कही जा रहे थे. उन्ही के डिब्बे में एक महिला अपने बच्चे के साथ यात्रा कर रही थी. उसी डिब्बे में दो अंग्रेज भी सफ़र कर रहे थे. थोड़ा ही समय बीता था की अंग्रेज उस महिला को परेशान करने लगे.
वे काफी देर तक महिला के बारे में गन्दी और ऊटपटांग बातें करते रहे. वे अंग्रेजी में बात कर रहे थे और वह भारतीय महिला अंग्रेजी जानती नहीं थी. इसलिए वह चुप रही.
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युगपुरुष स्वामी विवेकानन्द |
उन दिनों भारत अंग्रेजो का गुलाम था. अंग्रेजो का भारतीयों से दुर्व्यवहार करना आम बात थी. लोग उनका विरोध करने का साहस नहीं करते थे. विरोध न करने के कारण अंग्रेजो का हौसला बढ़ा.
अब वे महिला को परेशान करने में उतर आये. वे कभी उसके बच्चे का कान उमेट देते. कभी उसके गाल पर चुटकी काटते. कभी महिला के बाल पकड़कर झटका देते.
स्वामी विवेकानन्द उन दोनों अंग्रेजो की बातें सुन और समझ रहे थे. अगला स्टेशन आने पर महिला ने डिब्बे के दूसरी ओर बैठे पुलिस के एक भारतीय सिपाही से अंग्रेजो की शिकायत की.
सिपाही आया और अंग्रेजो को देखकर चला गया. अगले स्टेशन से ट्रेन चलनी शुरू हुई तो अंग्रेजो ने फिर महिला और उसके बच्चे को तंग करना शुरू कर दिया.
अब स्वामी विवेकानन्द से नहीं रहा गया. वे समझ गये थे की ये ऐसे नहीं मानने वाले है. वे अपने स्थान से उठे और दोनों अंग्रेजो के सामने जा कर खड़े हो गये.
उनकी सुगठित काया को देखकर दोनों अंग्रेज सहम से गये. विवेकानन्द ने पहले तो बारी – बारी उन दोनों के आँखों में झाँका. फिर अपने दायें हाथ की कुर्ते की आस्तीन ऊपर समेटी और हाथ मोड़कर उन्हें अपने बाजुओ की सुडौल और कसी हुई मांसपेशियां दिखाई. फिर वे आकर अपने स्थान पर बैठ गये.
अब अंग्रेजो ने तत्काल महिला व उसके बच्चे को परेशान करना बंद कर दिया. यही नहीं अगला स्टेशन आते ही वे भीगी बिल्ली की तरह चुपचाप उठे और दूसरे डिब्बे में जाकर बैठ गये.
स्वामी विवेकानन्द के जीवन की इस सच्ची घटना से सीख :
दोस्तों ! स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व बहुत ही आकर्षक था. वो किसी भी जुल्म के सामने झुकते नहीं थे. हमें इस प्रेरक प्रसंग से जरुर यह सीखना चाहिए कि अगर हमारे साथ या हमारे सामने कभी भी किसी के साथ कोई अत्याचार या जुल्म हो रहा हो तो हमें उसके खिलाफ तत्काल आवाज उठानी चाहिए.
अगर हम उस अत्याचार को सहते रहेंगे तो अत्याचार करने वालो को इससे प्रोत्साहन मिलेगा और उनके अत्याचार बढ़ते जायेंगे. एक देश और समाज का नागरिक होने के नाते हमारा यह फर्ज बनता है कि हम जुल्म को सहे नहीं बल्कि उसके खिलाफ लड़ें.
स्वामी विवेकानन्द से जुड़े इन Articles को भी जरुर पढ़े :
*. स्वामी विवेकानन्द के अनमोल विचार
*. स्वामी विवेकानन्द की जीवनी
*. स्वामी विवेकानन्द का विश्व प्रसिद्ध शिकागो भाषण
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bhut acha story hai
atya char ko rokna chahiye ye kafi aacha nirnay
यदि नहीं किया हमने अत्याचार का विरोध
तो यु ही पल पल सहते जाएंगे हम अत्याचारीयो का क्रोध का प्रकोप
बहुत ही प्रेरणादायक कहानी थी.
ऐसी ही आम जिंदगियो से जुडी कहानीयाँ पढ़ कर ही हमे हमारी आम जिंदगियो में होने वाली बुरी चीजों से लड़ने की शक्ति व प्रेरणा मिलती हैं.
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सुरेन्द्र महरा जी 🙂
आपने सही कहा ज्योति जी.
बहुत बढ़िया प्रेरणादायक कहानी। अत्याचार का विरोध करना ही चाहिए। नहीं तो, अत्याचारियो के हौसले और बुलंद होते है।
bahot hi badiya prernadayak kahani hai. Sahi me swami vivekanand ka vyaktitva bahot hi aakarshak tha.
आपका धन्यवाद अमूल जी.
Bahut acchi aur prernadayak kahani…..sach hai ki yadi hamare samne koi atyachar ho raha hai to turant hame awaj uthani chaiye……very thanks for sharing this story…..