महर्षि सुपच सुदर्शन की जीवनी Mahrshi Supach Sudarshan Life Essay In Hindi
महाभारत काल मे ही महर्षि वेद व्यास के साथ महर्षि सुपंच सुदर्शन का नाम भी लिया जाता है. वे एक वैष्णव संत थे. इनका जन्म लगभग 3290 ईसा पू. फाल्गुन माह कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को वाराणसी के एक दलित परिवार में हुआ था. इनका बचपन का नाम सुदर्शन था. वे सुपंच के नाम से भी जाने जाते थे.
महर्षि सुपंच सुदर्शन की शिक्षा – दीक्षा आचार्य करुणामय द्वारा हुई. इनका मन बचपन से ही भक्ति में अधिक लगता था. वे दैनिक क्रियाओ को करने के बाद घंटो भजन और पूजा में लगे रहते थे.
Mahrshi Supach Sudarshan Life Essay In Hindi
महर्षि सुपंच सुदर्शन एक उच्च कोटि के संत थे. उन्होंने जो शिक्षाएं दी वो आज भी ग्रहण करने योग्य है.
महर्षि सुपंच सुदर्शन के अनमोल वचन
* ईश्वर से डरो, इंसान से नहीं.
* बुद्धि, बल, रूप, सौन्दर्य और धन का घमंड मत करो.
* संसार का सुख भोगने में ही मत लगे रहो.
* सदैव दूसरो का उपकार करो.
* परलौकिक आनंद की प्राप्ति का भी प्रयास करो.
* स्वाभिमान की हर कीमत पर रक्षा करो.
महर्षि सुपंच सुदर्शन के आराध्य देव भगवान श्रीकृष्ण थे. इनका सारा जीवन परोपकार को समर्पित था. दीन, दुखी व असहाय जन उनके पर शरण पाते थे. महर्षि सुपंच सुदर्शन का आश्रम इतवा जनपद के पंचनदा टीले पर स्थित है.
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द्वापर युग में परमात्मा कबीर जी (करुणामय) द्वारा अपने शिष्य बाल्मिकी भक्त सुपच सुदर्शन के रूप में पांडवों की “राजसूय अश्वमेघ यज्ञ” को पूर्ण करना व शंख का बजाना ।
• कबीर साखी ग्रंथ (साधु को अंग , मान को अंग) 📌
कबीर, मान बड़ाई कूकरी , संतन खेदी जान ।
पांडव यज्ञ पावन भया , सुपच विराजै आन ।।
कबीर, कुलवंता कोटिक मिले , पंडित कोटि पचीस ।
सुपच भक्त की पनहि में , तुलै न काहू शीश ।।
कबीर, जाकी धोति अधर तपै , ऐसे मिले असंख ।
सब रीषियन के देखतां , सुपच बजाया घंट ।।
कबीर, साहिब का बाना सही , संतन पहिरा जानि ।
पांडव जग पूरन भयो , पच विराजे आनि ।।
कबीर, साधु दरस को जाइये , जेता धरिये पांय ।
डग डग पै असमेध यज्ञ , कहें कबिर समुझाय ।।
• संत गरीबदास जी वाणी (अचला का अंग) 📌
गरीब, सुपच रूप धरि आईया , सतगुरु पुरुष कबीर ।
तीन लोक की मेदनी , सुर नर मुनिजन भीर ।।
गरीब, सुपच रूप धरि आईया , सब देवन का देव ।
कृष्ण चन्द्र पग धोईया , करी तास की सेव ।।
गरीब, पांचैं पंडौं संग हैं , छठ्ठे कृष्ण मुरार ।
चलिये हमरी यज्ञ में , समर्थ सिरजनहार ।।
गरीब, सहंस अठासी ऋषि जहां , देवा तेतीस कोटि ।
शंख न बाज्या तास तैं , रहे चरण में लोटि ।।
गरीब, पंडित द्वादश कोटि हैं , और चैरासी सिद्ध ।
शंख न बाज्या तास तैं , पिये मान का मध ।।
गरीब, पंडौं यज्ञ अश्वमेघ में , सतगुरु किया पियान ।
पांच पंडौं संग चलें , और छठा भगवान ।।
गरीब, बाज्या शंख सुभान गति , कण कण भई अवाज ।
स्वर्ग लोक बानी सुनी , त्रिलोकी में गाज ।।
• संत गरीबदास जी वाणी (पारख का अंग , चौपाई) 📌
गरीब, करि द्रौपदी दिलमंजना , सुपच चरण जी धोय ।
बाजे शंख सर्व कला , रहे अवाजं गोय ।।
गरीब, द्रौपदी चरणामृत लिये , सुपच शंक नहीं कीन ।
बाज्या शंख असंख धुनि , गण गंधर्व ल्यौलीन ।।
गरीब, फिर पंडौं की यज्ञ में , संख पचायन टेर ।
द्वादश कोटि पंडित जहां , पडी सभन की मेर ।।
गरीब, द्वादश कोेटि पंडित जहां , और ब्रह्मा विष्णु महेश ।
चरण लिये जगदीश कूं , जिस कूं रटता शेष ।।
गरीब, बालमीक के बाल समि , नाहीं तीनौं लोक ।
सुरनर मुनिजन कृष्ण सुधि , पंडौं पाई पोष ।।
गरीब, बाल्मीक बैंकुठ परि , स्वर्ग लगाई लात ।
संख पचायन घुरत हैं , गण गंर्धव ऋषि मात ।।
गरीब, पंडित द्वादश कोटि थे , सहिदे से सुर बीन ।
संहस अठासी देव में , कोई न पद में लीन ।।
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आप की जानकारी अभी तक जानने में सही है
मध्यप्रदेश के जबलपुर से प्रकाशित समाचारपत्रों में महाषि सुपच सुदर्शन की जन्मतिथि कातिक पूणिमा माह नवम्बर में दर्शाई गई है क्या सही है?