बोले कम और कहे ज्यादा हिंदी मोटिवेशनल कहानी
Table of Contents
- बोले कम और कहे ज्यादा हिंदी मोटिवेशनल कहानी
- एक मुर्ख बिना सोचे – समझे कुछ भी बोल देता है, पर एक बुद्धिमान सोच – विचार कर ही कुछ कहता है.
- शिव खेड़ा
- जो मन में आये, वही बोलने से बाद में आदमी को वह सुनना पड़ता है, जो उसे पसंद नहीं होता. बोलने और व्यवहार करने में चतुर बने. इसका तात्पर्य यह है कि हम कुछ कहते वक्त अपने शब्दों का चुनाव होशियारी और समझदारी से करे.
- साथ ही इस बात का अनुमान भी हमें होना चाहिए कि उस बोलने का क्या परिणाम निकलेगा. अगर हम यह अनुमान लगाने में सक्षम होंगे, तो हम आसानी से विचार कर सकते है कि हमें क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं बोलना चाहिए.
- बोलने की कला और व्यवहार कुशलता के बगैर प्रतिभा हमेशा हमारे काम नहीं आ सकती. शब्दों से हमारा नजरिया झलकता है. शब्द दिलों को जोड़ सकते है, तो हमारी भावनाओ को चोट भी पहुंचा सकते है और रिश्तों में दरार भी पैदा कर सकते है. सोच कर बोले, न की बोल के सोचे. समझदारी और बेवकूफी में यही बड़ा फर्क है.
- आइये इस बात को एक कहानी के माध्यम से समझते है-
- एक व्यक्ति ने एक पादरी के सामने अपने पड़ोसी की खूब निंदा कि. बाद में जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, तो वह पुनः पादरी के पास पहुंचा और उस गलती के लिए क्षमा याचना करने लगा. पादरी ने उससे कहा कि वह पंखो से भरा एक थैला शहर के बीचोबीच बिखेर दे. उस व्यक्ति ने पादरी कि बात सुनकर ऐसा ही किया और फिर पादरी के पास पहुँच गया.
- उस व्यक्ति की बात सुनकर पादरी ने उससे कहा कि जाओ और उन सभी पंखो को फिर से थैले में भरकर वापस ले आओ. वह व्यक्ति थोड़ा हिचका पर पादरी का आदेश मानते हुए उसने ऐसा करने की कोशिश की. काफी प्रयत्न करने के बाद भी वह सभी पंखो जमा नहीं कर सका. जब आधा भरा थैला लेकर वह पादरी के सामने पहुंचा तो पादरी ने उससे कहा की यही बात हमारे जीवन में भी लागू होती है.
- जिस तरह तुम पंख वापस नहीं ला सकते, उसी तरह तुम्हारे कटु वचन को भी वापस नहीं किया जा सकता. उस व्यक्ति का जो नुकसान हुआ है, अब उसकी भरपाई संभव नहीं है. आलोचना का मतलब नकारात्मक बातें करना और शिकायत करना ही नहीं होता बल्कि आलोचना सकारात्मक भी हो सकती है. आपकी कोशिश यह होनी चहिये की आपकी आलोचना से, आपके द्वारा सुझाये विचारो से उसकी सहायता हो जाएँ.
- दोस्तों कई बार देखा गया है कि माँ – बाप के द्वारा बच्चो से की गई बातचीत का ढंग उनके भविष्य कि रूपरेखा भी तय कर देता है. इसलिए घर से लेकर बाहर तक कुछ भी कहने में सावधानी बरतें. यही बात दोस्तों के साथ होने वाली बातचीत में भी लागू होती है और ऑफिस या इंटरव्यू के दौरान भी लागू होती है. इसलिए अगर आप समझ कर बोलेंगे तो हमेशा फायदे में रहेंगे.
- मुझे उम्मीद है की आपको ये कहानी जरूर पसंद आई होगी ।
- निवेदन – आपको Bole kam aur kahe jyaada Hindi prerak kahani यह कहानी कैसी लगी हमे अपने कमेन्ट के माध्यम से जरूर बताये क्योंकि आपका एक Comment हमें और बेहतर लिखने के लिए प्रोत्साहित करेगा .
- # हमारे Facebook Page पर हमसे जुड़े.
एक मुर्ख बिना सोचे – समझे कुछ भी बोल देता है, पर एक बुद्धिमान सोच – विचार कर ही कुछ कहता है.
शिव खेड़ा
![]() |
सोच – समझ कर बोले |
जो मन में आये, वही बोलने से बाद में आदमी को वह सुनना पड़ता है, जो उसे पसंद नहीं होता. बोलने और व्यवहार करने में चतुर बने. इसका तात्पर्य यह है कि हम कुछ कहते वक्त अपने शब्दों का चुनाव होशियारी और समझदारी से करे.
साथ ही इस बात का अनुमान भी हमें होना चाहिए कि उस बोलने का क्या परिणाम निकलेगा. अगर हम यह अनुमान लगाने में सक्षम होंगे, तो हम आसानी से विचार कर सकते है कि हमें क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं बोलना चाहिए.
बोलने की कला और व्यवहार कुशलता के बगैर प्रतिभा हमेशा हमारे काम नहीं आ सकती. शब्दों से हमारा नजरिया झलकता है. शब्द दिलों को जोड़ सकते है, तो हमारी भावनाओ को चोट भी पहुंचा सकते है और रिश्तों में दरार भी पैदा कर सकते है. सोच कर बोले, न की बोल के सोचे. समझदारी और बेवकूफी में यही बड़ा फर्क है.
आइये इस बात को एक कहानी के माध्यम से समझते है-
एक व्यक्ति ने एक पादरी के सामने अपने पड़ोसी की खूब निंदा कि. बाद में जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, तो वह पुनः पादरी के पास पहुंचा और उस गलती के लिए क्षमा याचना करने लगा. पादरी ने उससे कहा कि वह पंखो से भरा एक थैला शहर के बीचोबीच बिखेर दे. उस व्यक्ति ने पादरी कि बात सुनकर ऐसा ही किया और फिर पादरी के पास पहुँच गया.
उस व्यक्ति की बात सुनकर पादरी ने उससे कहा कि जाओ और उन सभी पंखो को फिर से थैले में भरकर वापस ले आओ. वह व्यक्ति थोड़ा हिचका पर पादरी का आदेश मानते हुए उसने ऐसा करने की कोशिश की. काफी प्रयत्न करने के बाद भी वह सभी पंखो जमा नहीं कर सका. जब आधा भरा थैला लेकर वह पादरी के सामने पहुंचा तो पादरी ने उससे कहा की यही बात हमारे जीवन में भी लागू होती है.
जिस तरह तुम पंख वापस नहीं ला सकते, उसी तरह तुम्हारे कटु वचन को भी वापस नहीं किया जा सकता. उस व्यक्ति का जो नुकसान हुआ है, अब उसकी भरपाई संभव नहीं है. आलोचना का मतलब नकारात्मक बातें करना और शिकायत करना ही नहीं होता बल्कि आलोचना सकारात्मक भी हो सकती है. आपकी कोशिश यह होनी चहिये की आपकी आलोचना से, आपके द्वारा सुझाये विचारो से उसकी सहायता हो जाएँ.
दोस्तों कई बार देखा गया है कि माँ – बाप के द्वारा बच्चो से की गई बातचीत का ढंग उनके भविष्य कि रूपरेखा भी तय कर देता है. इसलिए घर से लेकर बाहर तक कुछ भी कहने में सावधानी बरतें. यही बात दोस्तों के साथ होने वाली बातचीत में भी लागू होती है और ऑफिस या इंटरव्यू के दौरान भी लागू होती है. इसलिए अगर आप समझ कर बोलेंगे तो हमेशा फायदे में रहेंगे.
मुझे उम्मीद है की आपको ये कहानी जरूर पसंद आई होगी ।
————————————————————————————————————————–
Tag : kyo bole soch samjh kar, achha bole sukhi rahe, acchevakta ki nishani, bole shabd kabhi wapas nahi aate, inspirational hindi story, motivational story in hindi, hindi best story, hindi rochak kahani, Jo bhi bole soch samjh kar bole shikshaprd hindi kahani, paadri aur vykti, paadri ki kahani
Image Courtecy
निवेदन – आपको Bole kam aur kahe jyaada Hindi prerak kahani यह कहानी कैसी लगी हमे अपने कमेन्ट के माध्यम से जरूर बताये क्योंकि आपका एक Comment हमें और बेहतर लिखने के लिए प्रोत्साहित करेगा .
आपका धन्यवाद प्रदीप जी.
आपका धन्यवाद प्रदीप जी.
hmmmmmmmmm sahi kaha aapne
आपका बहुत धन्यवाद ज्योति जी
प्रेरणादायक अच्छी कहानी।