Bachendri Pal Biography In Hindi
शेरपा तेनजिंग द्वारा एवरेस्ट विजय के ठीक 31 वर्ष बाद एक बार फिर भारतीयों ने एवरेस्ट विजय का इतिहास रचा. यह अवसर था किसी भारतीय महिला द्वारा एवरेस्ट शिखर पर पहुँचने का. 23 मई सन 1984 का दिन सम्पूर्ण भारत एवं विशेषकर नारी जगत के लिए गौरव और सम्मान का दिन था. इसी दिन प्रथम भारतीय महिला बछेन्द्रीपाल ने एवरेस्ट की चोटी पर कदम रखा.

बछेन्द्रीपाल
बछेन्द्रीपाल के जीवन पर निबंध
उत्तर काशी (उत्तराखंड) के नाकुरी गांव में जन्मी बछेन्द्री पाल ने साहस और दृढ़ निश्चय का परिचय देते हुए एवरेस्ट शिखर तक पहुँचने में सफलता प्राप्त की. इन्हें बचपन से ही पर्वत बहुत आकर्षित करते थे. जब ये एम. ए. की पढाई कर रही थी. उनके मन में पर्वतराज हिमालय की सबसे ऊँची चोटी एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने की इच्छा बलवती हुई. अपने इस स्वप्न को पूरा करने के उद्देश्य से इन्होने नेहरू पर्वतारोहण का प्रशिक्षण प्राप्त किया.
इन्होने बड़ी लगन, मेहनत से पर्वतारोहण के गुर सीखे और कुशलता प्राप्त की. एवरेस्ट यात्रा से पूर्व, इन्होने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान द्वारा आयोजित ” प्री एवरेस्ट ट्रेनिंग कैम्प – कम – एक्सपिडिशन ” में भी भाग लिया.
इन तैयारियों के बाद ये एवरेस्ट पर चढ़ाई के लिए तैयार थी. परन्तु इतनी तैयारियों के बाद भी यह सुनिश्चित नहीं था कि ये एवरेस्ट पर चढ़ने में सफल हो सकेंगी या नहीं क्योंकि बछेन्द्री पाल से पहले भी कई महिला पर्वतारोही एवरेस्ट पर चढ़ने का असफल प्रयास कर चुकी थी.
बछेन्द्री पाल व उनके सहयोगियों द्वारा एवरेस्ट पर चढ़ने की पहली योजना 16 मई सन 1984 को बनाई गई थी. यह योजना दिल्ली की कुमारी रेखा शर्मा ने बनाई थी. वे पाल से आगे जाने वाले दल की सदस्या थी. किन्तु सहसा बर्फीला तूफान आ जाने के कारण इन्हें अपनी योजना रद्द करनी पड़ी.
आख़िरकार 23 मई सन 1984 को वह शुभ दिन आ गया जिसका स्वप्न पाल ने बचपन से देखा था, अपने लक्ष्य को पाने के लिए कठिन परिश्रम से प्रशिक्षण प्राप्त किया था. उन्होंने पर्वत विजय करके ये सिद्ध कर दिया कि महिलायें किसी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं है. उनमे साहस और धैर्य की कमी नहीं है. अगर महिलायें ठान ले तो कठिन से कठिन लक्ष्य भी प्राप्त कर सकती है.
एवरेस्ट विजय अभियान में बछेन्द्री पाल को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. यह साहसिक अभियान बहुत जोखिम भरा था. इसमें कितना जोखिम था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अंतिम चढ़ाई के दौरान उन्हें साढ़े 6 घन्टे तक लगातार चढ़ाई करनी पड़ी. इनकी कठिनाई तब और बढ़ गई जब इनके एक साथी को पांव में चोट लग गई. इनकी गति मंद पड़ गई थी तब ये पूरी तेजी से आगे नहीं बढ़ सकती थी.
फिर भी ये हर कठिनाई का साहस और धैर्य से मुकाबला करते हुए आगे बढती रही. अंततः 23 मई सन 1984 को दोपहर एक बजकर सात मिनट पर वे एवरेस्ट के शिखर पर थी इन्होने विश्व के उच्चतम शिखर को जीतने वाली सर्वप्रथम पर्वतारोही भारतीय महिला बनने का अभूतपूर्व गौरव प्राप्त कर लिया था.
एक प्रेसवार्ता में जब सुश्री बछेन्द्री पाल से यह पूछा गया कि ” एवरेस्ट पर पहुंचकर आपको कैसा लगा ? ” इन्होने उत्तर दिया-” मुझे लगा मेरा एक सपना साकार हो गया ”
एवरेस्ट विजय के पहले सुश्री बछेन्द्री पाल एक महाविद्यालय में शिक्षिका थी. लेकिन एवरेस्ट की सफलता के बाद भारत की एक ‘आयरन एंड स्टील कंपनी’ ने इन्हें खेल सहायक की नौकरी की खुद पेशकश की. इन्होने इस आशा के साथ यह प्रस्ताव स्वीकार किया कि यह कंपनी इन्हें और अधिक पर्वत शिखरों पर विजय पाने के प्रयास में सहायता सुविधा तथा प्रेरणा प्रदान करती रहेगी.
इस समय सुश्री बछेन्द्री पाल ‘टाटा स्टील एडवेंचर फाउन्डेशन’ नामक संस्था में नयी पीढ़ी के पर्वतारोहियों को प्रशिक्षण देने का कार्य कर रही है.
महिलाओ द्वारा पर्वतारोहण का सिलसिला बछेन्द्री पाल के बाद रुका नहीं. उनसे प्रेरणा पाकर हरियाणा के इंडोतिब्बत पुलिस बल के अधिकारी पद पर कार्यरत सुश्री संतोष यादव ने सन 1992 और 1993 में लगातार दो बार एवरेस्ट की सफल चढ़ाई की.
ऐसी महान पर्वतारोही को हमारा सलाम !
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धन्यवाद !
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thanks सुरेन्द्र सर आपके इस आर्टिकल से मुझे bachendri पाल जी के बारे में बहुत कुछ जानने का मौका मिला आशा करता हूँ की आप आगे भी ऐसी ही स्टोरी शेयर करते रहेंगे |
जी हाँ जमशेद जी. हम छोटी कक्षाओ में इनके बारे में पढ़ चुके है. इतना बहुमूल्य कमेंट करने के लिए आपका धन्यवाद।
महान पर्वतारोही बछेंद्री पाल के बारे में हमें स्कूली दिनों से ही बहुत कुछ पढ़ने को मिला है। वह सचमुच साहस की मूर्ति हैं। हमें उन पर गर्व है।