गोस्वामी तुलसीदास जी के अनमोल दोहे ! Goswami Tulsidas Dohe In Hindi Meaning
Goswami Tulsidas Dohe In Hindi Meaning
श्रीरामचरितमानस और विनय पत्रिका जैसे सर्वश्रेष्ठ कृतियों के रचयिता महान कवि गोस्वामी तुलसीदास का जन्म सन 1497 में राजापुर गाँव उत्तर प्रदेश में आत्माराम दुबे नाम के एक प्रसिद्ध ब्राह्मण के घर में हुआ था.
इनकी माता का नाम हुलसी था. इनके जन्म के दो दिन बाद ही इनकी माता का देहांत हो गया. पैदा होने के साथ ही राम का नाम लेने के कारण इनका नाम रामबोला पड़ा.
तुलसीदास जी ने अपनी जिंदगी में 12 ग्रन्थ लिखे. जिसमे महर्षि वाल्मीकि की रामायण का अवधी भाषान्तर श्रीरामचरितमानस प्रमुख है. वे संस्कृत भाषा के साथ – साथ हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक थे. इनके काव्य रामचरितमानस को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ 100 लोकप्रिय काव्यों में 46वाँ स्थान प्राप्त है.
Goswami Tulsidas Dohe In Hindi Meaning
गोस्वामी तुलसीदास जी के दोहे हिंदी अर्थ सहित
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार |
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ||
हिन्दी अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं कि हे मनुष्य, अगर तुम भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहते हो तो मुखरूपी द्वार की जीभरुपी दहलीज़ पर राम – नाम रूपी मणिदीप को रखो.
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु |
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास ||
हिन्दी अर्थ : राम का नाम कल्पतरु अर्थात मनचाहा पदार्थ देनेवाला और कल्याण का निवास यानि मुक्ति का घर है, जिसको स्मरण करने से भाँग सा (निकृष्ट) तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया.
तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ||
हिन्दी अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं कि सुंदर वेष देखकर न केवल मूर्ख बल्कि चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाते हैं. सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान है लेकिन आहार साँप का है.
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु |
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ||
हिन्दी अर्थ : शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का कार्य करते हैं कहकर अपने को नहीं जनाते. शत्रु को युद्ध में उपस्थित पा कर कायर ही अपने प्रताप की डींग मारा करते हैं.
सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि |
सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ||
हिन्दी अर्थ : स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता वह हृदय में खूब पछताता है और उसका अहित अवश्य होता है.
मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक |
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||
हिन्दी अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं कि मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने – पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन – पोषण करता है |
सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||
हिन्दी अर्थ : गोस्वामीजी कहते हैं कि मंत्री, वैद्य और गुरु – ये तीन अगर भय या लाभ की आशा से अर्थात हित की बात न कहकर प्रिय बोलते हैं तो (क्रमशः) राज्य, शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है.
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर |
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ।।
हिन्दी अर्थ : गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं. किसी को भी वश में करने का यह एक मन्त्र होता हैं इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे.
सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि |
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि ||
हिन्दी अर्थ : जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं दरअसल, उनका तो दर्शन भी उचित नहीं होता.
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान |
तुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्राण ||
हिन्दी अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं कि मनुष्य को दया कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि दया ही धर्म का मूल है और इसके विपरीत अहंकार समस्त पापों की जड़ होती है.
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great collection
apne bahut hi achhi jankari di hai
tulsidas ji ke dohe bahut hi achhe lge thank you