गोपाल कृष्ण गोखले की प्रेरक जीवनी Gopal Krishna Gokhale Life Essay in Hindi
Gopal Krishna Gokhale Life Essay in Hindi
” मुझे भारत में एक पूर्ण सत्यवादी आदर्श पुरूष की तलाश थी और वह आदर्श पुरूष मुझे गोखले की रूप में मिला. उनके ह्रदय में भारत के प्रति सच्चा प्रेम और वास्तविक श्रद्धा थी. वे देश की सेवा करने के लिए अपने सारे सुखो और स्वार्थ से परे रहे. ”
महात्मा गाँधी ने ये शब्द गोपाल कृष्ण गोखले के लिए कहे थे, जिन्होंने अपना सारा जीवन देश और समाज की सेवा में अर्पित कर दिया.
Gopal Krishna Gokhale Life Essay in Hindi

Gopal Krishna Gokhale
गोपाल कृष्ण गोखले के जीवन पर निबंध
गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई सन 1866 को रत्नागिरी के कोटलुक गांव में हुआ. उनके पिता कृष्णराव व माता सत्यभामा थी. माता – पिता अत्यंत सरल स्वभाव के थे. उन्होंने गोखले को बचपन से ही देश – जाति के प्रति निष्ठा, विनम्रता जैसे गुणों की शिक्षा दी.
पिता की असमय मृत्यु के कारण गोखले को शिक्षा प्राप्त करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. बड़े भाई गोविन्द 15 रूपये महीना की नौकरी करते थे.
जिसमे से वे हर माह 8 रूपये गोखले को भेजने लगे ताकि उनकी शिक्षा में व्यवधान न पड़े. गोखले यह अनुभव करते थे की भाई किस कठिनाई से उनकी सहायता कर रहे है.
अत्यंत संयमित जीवन व्यतीत करते हुए उन्होंने साधनों के अनुरूप अपने को ढाला. ऐसा समय भी आया जब वे भूखे रहे और उन्हें सड़क की बत्ती के नीचे बैठकर पढाई करनी पड़ी. इन कठिन परिस्थितयो में भी उनका सम्पूर्ण ध्यान पठन – पाठन में लगा रहा.
सन 1884 में उन्होंने मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की. गोखले का अंग्रेजी भाषा पर असाधारण अधिकार था.
गणित और अर्थशास्त्र में उनकी अद्भुत पकड़ थी जिसके बल पर वे तथ्यो व आकड़ो का विश्लेषण और उनकी विवेचना विद्तापूर्ण ढंग से करते थे. इतिहास के ज्ञान ने उनके मन मेव स्वतंत्रता व प्रजातंत्र के प्रति निष्ठा उत्पन्न की.
स्नातक होने के पश्चात् गोखले भारतीय प्रशासनिक सेवा, इंजीनियरिंग या वकालत जैसा लाभदायक व्यवसायों में जा सकते थे.
किन्तु इस विचार से की बड़े भाई के ऊपर और आर्थिक बोझ न पड़े उन्होंने इन अवसरों को छोड़ दिया. वे सन 1885 में पुणे के न्यू इंग्लिश कॉलेज में अध्यापन कार्य करने लगे. इस कार्य में उन्होंने स्वयं को जी – जान से लगा दिया और एक उत्कृष्ट शिक्षक साबित हुए.
अपने स्नेहपूर्ण व्यवहार और ज्ञान से वे छात्रो के चहेते बन गये. उन्होंने अपने सहयोगी एन. जे. बापट के साथ मिलकर अंकगणित की एक पुस्तक संकलित की जो अत्यंत लोकप्रिय हुई. इस पुस्तक का अनेक भाषाओ में अनुवाद हुआ.
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अध्यापन के रूप में गोखले की सफलता देखकर बाल गंगाधर तिलक व प्रोफ़ेसर गोपाल गणेश आगरकर का ध्यान उनकी ओर गया. उन्होंने गोखले को मुंबई स्थित ‘डेकन एजुकेशन सोसाइटी’ में सम्मिलत होने का आमन्त्रण दिया. गोखले सन 1886 में इस सोसाइटी के स्थायी सदस्य बन गये.
गोपाल कृष्ण गोखले ने 20 वर्ष तक शिक्षक के रूप में कार्य किया. उनके एक मित्र पटवर्धन जो की कानून के छात्र थे उनसे वकालत करने का आग्रह करते थे. गोखले ने उनसे कहा :
” तुम मालामाल हो जाओ और गाडियों में घूमो. मैंने तो जीवन में एक साधारण पथिक की तरह चलने का निश्चय किया है ”
शिक्षक रहते हुए गोखले ने गणित, अंग्रेजी, अर्थशास्त्र और इतिहास जैसे सभी विषयों को पढाया. उनमे इस सभी विषयों को समान रूप से पढ़ाने की दक्षता थी. इसी कारण उन्हें ” जन्मजात प्राध्यापक ” कहा जाता था.
सन 1886 में 20 वर्ष की उम्र में गोपाल कृष्ण गोखले ने सक्रिय रूप से समाज सेवा और राजनीति में प्रवेश कर लिया. इससे पूर्व ‘डेकन एजुकेशन सोसाइटी’ में अपनी गतिविधियों के कारण वे सार्वजनिक जीवन से सम्बंधित उत्तरदायित्व वहां करने की कला में महारथ हासिल कर ही चुके थे.
उन्होंने ‘अंग्रेजी हुकूमत के अधीन’ विषय पर कोल्हापुर में अपना प्रथम भाषण दिया. अभिव्यक्ति और भाषा प्रवाह के कारण इस भाषण का जोरदार स्वागत हुआ.
गोखले लोगो में राष्ट्रीयता की भावना जगाने के लिए शिक्षा को आवश्य मानते थे. उनकी मान्यता थी की शिक्षा ही राष्ट्र को संगठित कर सकती है.
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गोखले विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए सामाजिक जीवन में चेतना का संचार करते रहे. सन 1898 से 1906 के बीच वे पुणे नगरपालिका के सदस्य तथा बाद में अध्यक्ष भी रहे. लोग अपनी विभिन्न समस्याएं लेकर उनसे मिलते और वे सभी समस्याओ को व्यवहारिक ढंग से सुलझाते.
गरीबो की स्थिति में सुधार के लिए सन 1905 में गोखले ने ” सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी ” की स्थापना की. शीघ्र ही यह संस्था समाज सेवा करने को तत्पर युवा, उत्साही और निस्वार्थ कार्यकर्ताओ का प्रशिक्षण स्थल बन गई. इनमे अधिकांश कार्यकर्ता स्नातक थे.
इस संस्था के प्रमुख उद्देश्य थे :
* आदिवासियों का उत्थान करना.
* बाढ़ व अकाल पीडितो की मदद करना.
* स्त्रियों को शिक्षित करना और विदेशी शासन से मुक्ति के लेकर संघर्ष करना.
कार्यकर्ताओ पर गोखले का अत्यंत गहरा प्रभाव था, जिसे देखकर किसी ने टिप्पणी की थी- ” केवल एक गोखले से ही हमारी रूह कांपती है. उसके जैसे बीसियों और बन रहे है, अब हम क्या करेंगे ?”
गोखले के जीवन पर महादेव गोविन्द रानाडे का प्रबल प्रभाव था. वे सन 1887 में रानाडे के शिष्य बन गये. रानाडे ने उन्हें सार्वजनिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में 15 वर्ष तक प्रशिक्षित किया और ईमानदारी, सार्वजनिक कार्यो के प्रति समर्पण व सहनशीलता का पाठ सुनाया.
गाँधी जी जब दक्षिण अफ्रीका से भारत आये तो गोखले से मिले. वे गोखले के विनम्र स्वभाव तथा जन जागरण हेतु किये गये प्रयासों से अत्यंत प्रभावित हुए.
गाँधी जी ने गोखले को अपना ”राजनैतिक गुरु” मान लिया. गाँधी जी कहते थे,” गोखले उस गंगा का प्रतिरूप है, जो अपने ह्रदय – स्थल पर सबको आमंत्रित करती रहती है और जिस पर नाव खेने पर उसे सुख की अनुभूति होती है.
गाँधी जी ने गोखले से स्वराज प्राप्ति का तरीका सीखा. गोखले भी गाँधी जी की सादगी और दृढ़ता से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें बड़े भाई सा आदर देने लगे.
सन 1886 में गोखले इंडियन नेशनल कांग्रेस में सम्मिलत हो गये. उन्होंने कांग्रेस के मंच से भारतीयों के विचारधारा, सपनो और उनकी महत्वकांक्षाओं को अपनी तर्कपूर्ण वाणी और दृढसंकल्प द्वारा व्यक्त किया. सन 1905 में गोखले कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में लाला लाजपतराय के साथ इंग्लैंड गये.
उन्होंने ब्रिटिश राजनेताओ और जनता के सामने भारत की सही तस्वीर प्रस्तुत की. अपने 45 दिन के प्रवास के दौरान उन्होंने विभिन्न शहरो में प्रभावपूर्ण 45 सभाओ को संबोधित किया. श्रोता मन्त्र – मुग्ध होकर उन्हें सुनते. निःसंदेह गोखले भारत का पक्ष प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने में सर्वाधिक सक्षम नेता थे.
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अलीगढ कॉलेज अंग्रेजो और अंग्रेजी राज्य के समर्थको तथा राष्ट्रीय कांग्रेस के विरोधियो का गढ़ माना जाता था, किन्तु वहां भी राष्ट्रवादी छात्रो का एक प्रभावशाली समूह था.
गोखले के विचारो की अलीगढ के छात्रो पर इतनी गहरी छाप थी की जब गोखले वहां भाषण देने पहुंचे तो वहां छात्रो ने उनकी बग्घी के घोड़े हटा दिए और स्वयं बग्घी में जुत गये, वे बग्घी को खींचते हुए ‘गोखले जिंदाबाद’, ‘हिन्दुस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगते हुए स्ट्रेची हाल तक ले आये.
गोखले ने समाज सेवा को अपने जीवन का परम लक्ष्य बना लिया था. सन 1898 में मुंबई में प्लेग का प्रकोप हुआ.
उन्होंने अपने स्वयंसेवकों के साथ दिन – रात प्लेग पीड़ितों की सेवा की. साम्प्रदायिक सदभाव को बढ़ाने के लिए उन्होंने भरसक प्रयास किये. उन्होंमे सरकार से मादक पदार्थो की बिक्री खत्म करने का अनुरोध किया.
वे अधिकाधिक भारतीयों को नौकरी देने, सैनिक व्यय को कम करने तथा नमक कर घटाने की मांगे निरन्तर उठाते रहे.
उन्होंने निःशुल्क व अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा को प्रारम्भ करने, कृषि तथा वैज्ञानिक शिक्षा को बढ़ावा देने तथा अकाल राहत कोष का सही ढंग से इस्तेमाल करने हेतु सरकार पर बराबर दबाव बनाये रखा.
दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले भारतीयों के प्रति गोखले की अत्यधिक सहानभूति थी. अपने उन बन्धुओ पर होने वाला अन्याय उन्हें अपने ऊपर हुआ अन्याय लगता था.
गाँधी जी के निमंत्रण पर वे सन 1912 में दक्षिण अफ्रीका गये. ऐसा पहली बार हुआ था जब कोई भारतीय राजनेता प्रवासी भारतीयों की स्थिति को परखने के लिए भारत से बाहर गया. उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की सरकार से जातीय भेद – भाव को समाप्त करने का आग्रह किया.
गोखले देश की आजादी, सामाजिक सुधार और समाज सेवा हेतु अथक परिश्रम करते रहे. निरंतर श्रम से उनका स्वास्थ्य गिरने लगा. उन्हें मधुमेह और दमा ने घेर लिया.
19 फरवरी सन 1915 की रात को 10 बजकर 25 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली. उन्होंने आकाश की ओर आँखे उठाई और हाथ जोड़कर प्रभु को प्रणाम करते हुए सदा के लिए आँखे मूंद ली.
गोखले कृष्ण गोखले अपने कार्यो और आदर्शो के कारण सदा अमर रहेंगे.
धन्यवाद !
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mansik tanab