बीरबल साहनी की प्रेरणादायक जीवनी Birbal Sahni Life Biography in Hindi
Birbal Sahni Life Biography in Hindi
उसका बस्ता डाक टिकटों, कंकड़-पत्थरो का छोटा-मोटा संग्रहालय लगता था. पौधे इकट्ठा करना और पतंग उड़ाना उसे बहुत प्रिय थे. डाक टिकट संग्रह करने की धुन के चलते अक्सर वह आधे रास्ते तक जाकर पोस्टमैन को पकड़ लेता, ताकि उनके भाई-बहिन या कोई और टिकट न ले लें.
बचपन की इन रूचियो ने धीरे-धीरे वनस्पतियों और भुभर्ग के विस्तृत अध्ययन का रूप ले लिया और संसार के सामने ऐसी प्रतिभा का उदय हुआ जिसे प्रोफसर बीरबल साहनी के नाम से ‘भारतीय पुरा-वनस्पति का जनक’ माना जाता है.

Birbal Sahni
प्रोफसर बीरबल साहनी के जीवन पर निबंध
प्रोफसर बीरबल साहनी का जन्म 14 नवम्बर सन 1891 को पंजाब के भेड़ा (ब्रिटिश भारत) नामक कस्बे में हुआ. इनके पिता का नाम रुचिराम साहनी था जो गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर में रसायन विज्ञान के प्राध्यापक थे और माता ईश्वरी देवी कुशल गृहिणी थी. बीरबल की पेड़-पौधो तथा भूगर्भ में रुचि देखकर पिता ने उन्हें बचपन से ही विज्ञान की आवश्यक जानकारियाँ देना शुरू किया.
बीरबल स्वभाव से बड़े निर्भीक थे. उन्हें जो बात गलत लगती, उसका विरोध करते. बी.एस.सी. की परीक्षा देते समय बीरबल ने पाया की परीक्षा के एक प्रश्न-पत्र में पिछले वर्ष के ही सारे प्रश्न पुनः पूछ लिए गये है. उन्होंने यह बात परीक्षक को बताई. जब परीक्षक ने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया तो विरोध स्वरूप वे कक्षा से बाहर चले गये.
उनकी देखा-देखी में अन्य छात्र भी परीक्षा भवन से बाहर चले गये. इसका अर्थ यह नहीं था की बीरबल को वे प्रश्न आते नहीं थे बल्कि उन्हें तो यह बात बेतुकी लगी पिछली परीक्षा के ही प्रश्न फिर से क्यों पूछ लिए गये. बाद में विश्वविद्यालय ने उनकी बात को न्यायसंगत माना और नवीन प्रश्न-पत्र के साथ दुबारा परीक्षा हुई.
इसके बाद सन 1911 में बीरबल साहनी कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पढने के लिए लन्दन चले गये.
यह भी पढ़े: मदन मोहन मालवीय के जीवन पर निबन्ध
वहां वे बड़ी सादगी से रहते. उन्हें अध्ययन हेतु 90 रूपये वार्षिक छात्रवृति मिलती थी. जिसमे वे अपना सारा खर्च चलाते थे. कैंब्रिज में बीरबल साहनी प्रोफ़ेसर सिवर्ड के संपर्क में आये और उन्हें अपना गुरु मान लिया. प्रोफ़ेसर सिवर्ड भी अपने इस होनहार शिष्य को अत्यंत स्नेह देते थे.
लन्दन की डी.एस.सी. (डॉक्टर ऑफ़ साइंस) की उपाधि प्राप्त कर बीरबल साहनी सन 1916 में भारत लौट आये और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान के प्रोफ़ेसर नियुक्त हुए.
उस समय बैठने के लिए उनके पास अलग कमरा भी नहीं था. वह बरामदे के एक कोने में बैठकर अपना काम करते. वहां वरिष्ठ अध्यापक स्नातक कक्षाओ को पढाना अपनी शान के खिलाफ मानते थे.
इसके विपरीत प्रो. बीरबल साहनी स्नातक कक्षाओ के अध्यापन पर विशेष जोर देते थे. वे छात्रो से अत्यन्त स्नेह करते तथा हर समय उनकी सहायता को तत्पर रहते. छात्र भी उनकी उदारता, विद्वता और सादगी से अत्यन्त प्रभावित रहते. काशी के बाद श्री साहनी लखनऊ आ पहुंचे.
यह भी पढ़े: महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की प्रेरक जीवनी
प्रोफेसर साहनी शोध के लिए प्राप्त सामग्री व अपने शोध-पत्रों को बड़ी सावधानी से रखते थे. जब वे लखनऊ में थे उन्ही दिनों गोमती नदी में भयानक बाढ़ आई. बाढ़ का पानी बड़ी तेजी से घर में घुसने लगा.
घर के सभी सदस्य जहाँ घरेलु सामान और फर्नीचर की सुरक्षा में लगे थे, वहीँ प्रोफेसर साहनी अपने शोध-पत्रों और एक खोज में प्राप्त फाँसिल (जीवाश्म) के टुकडो को सँभालने में व्यस्त थे.
प्रोफेसर साहनी को भारतीय पुरा-वनस्पति का जनक माना जाता है. उन्होंने बिहार की राजमहल पहाडियों में अत्यन्त महत्वपूर्ण फान्सिल-पेंटोजायली की खोज की. इस प्रकार का दूसरा नमूना अभी तक नहीं मिल पाया है.
क्या है फाँसिल (जीवाश्म) –
अनेक पेड़-पौधो, जीव-जंतु आदि लाखो वर्षो से भूकंप आदि के कारण चट्टानों व पत्थरों के बीच दबे रहते है. समय बीतने पर धीरे-धीरे इनकी छाप इन पत्थरो तथा चट्टानों पर पड़ जाती है. इसी बनावट के छुपे हुए पत्थरो को जीवाश्म या फान्सिल कहते है. वनस्पति विज्ञान के अंतर्गत इन जीवाश्म का अध्ययन किया जाता है.
अध्ययन द्वारा पता लगाया जाता है की हजारो लाखो वर्ष पूर्व पेड़-पौधा या जंतु किस प्रकार का था व उस समय की भू-वैज्ञानिक परिस्थितयां कैसी थी. हमारे दैनिक जीवन की चीजो- शीशा, मिटटी का तेल, कोयला और खनिज आदि की खोज में भी जीवाश्म अत्यन्त सहायक होते है.
प्रोफेसर बीरबल साहनी में वैज्ञानिक खोजो के प्रति अटूट लगाव था. उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन वनस्पति जगत के अनुसंधानों में लगा दिया. उनके मन में ‘पुरा वनस्पति विज्ञान मंदिर’ की स्थापना करने की दृढ इच्छा थी. पंडित नेहरू के सहयोग से उनका सपना पूरा हुआ.
लखनऊ स्थित ‘साहनी इंस्टिट्यूट ऑफ़ पेलियोबॉटनी’ आज भारत ही नहीं बल्कि विश्व का महत्वपूर्ण शोध संस्थान है. कौन जानता था की इस संस्थान के शिलान्यास के ठीक 7 दिन बाद ही प्रोफेसर बीरबल साहनी इस संसार से विदा ले लेंगे. 9 अप्रैल सन 1949 को यह महान विज्ञानी स्वर्ग सिधार गये. संस्थान के उद्घाटन के समय जिस स्थान पर खड़े होकर उन्होंने अपना भाषण दिया था, वाही उनकी समाधी बनायीं गई है.
उनके द्वारा स्थापित ‘श्री बीरबल साहनी पेलियोबॉटनीक संस्थान’ देश का ऐसा शीर्ष शोध- संस्थान है जहाँ उनकी अमूल्य धरोहर आज भी सुरक्षित है. इस महान वैज्ञानिक की स्मृति में भारत के सर्वश्रेष्ठ वनस्पति वैज्ञानिक को ‘बीरबल साहनी पदक’ प्रदान किया जाता है.
विज्ञान के ऐसे महान रत्न पर हमें गर्व है.
प्रोफेसर बीरबल साहनी पर विशेष-
- लखनऊ विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम का पुनर्गठन.
- साठ लाख वर्ष प्राचीन जीवाश्मो की खोज.
- प्राचीन मुद्राओ की खोज. मुद्रा अनुसन्धान पर ‘नेल्सन राइट’ पदक की प्राप्ति.
- काशी व लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर व विभागाध्यक्ष रहे.
- 4 वर्ष ‘राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी’ के सभापति व राष्ट्रीय वैज्ञानिक संस्थान में उपाध्यक्ष रहे.
धन्यवाद !
Read More:
*. भारत रत्न सचिन तेंदुलकर जीवनी
*. सरोजिनी नायडू की प्रेरणादायक जीवनी
*. राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की प्रेरणादायक जीवनी
निवेदन- आपको all information about Proffesar Birbal Sahni in hindi, Birbal Sahni Life Biography in Hindi ये आर्टिकल कैसा लगा हमे अपने कमेन्ट के माध्यम से जरूर बताये क्योंकि आपका एक Comment हमें और बेहतर लिखने के लिए प्रोत्साहित करेगा और हमारे Facebook Page को जरूर LIKE करे.
Leave a Reply