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महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की प्रेरक जीवनी !

December 17, 2015 By Surendra Mahara 4 Comments

श्रीनिवास रामानुजन आयंगर की प्रेरणादायक जीवनी

Table of Contents

  • श्रीनिवास रामानुजन आयंगर की प्रेरणादायक जीवनी
    • Srinivasa Ramanujan biography in hindi
          • मद्रास प्रान्त के तंजौर जिले के इरोड नामक छोटे से गांव के स्कूल की घटना है. प्रारम्भिक कक्षा के अध्यापक कक्षा में आये. उन्होंने विद्यार्थियों को कार्य दिया- ” आधा घंटे में एक से सौ तक की सब संख्याओ का जोड़ निकालकर मुझे दिखाइए. ” सारे बच्चे सवाल हल करने में लग गये. दस मिनट भी नहीं बीते होंगे की सात वर्ष का एक विद्यार्थी सवाल हल कर गुरूजी से जाँच कराने ले आया.
          • गुरूजी ने सवालों को जांचा और उत्तर सही पाया. शिक्षक यह देखकर हैरान रह गये की बालक ने सवाल हल करने में जिस सूत्र का प्रयोग किया है, उसका ज्ञान केवल उच्च कक्षा के विद्यार्थी को ही हो सकता है. अध्यापक ने बालक से पूछा- बेटा, तुमने यह सूत्र कहाँ से सीखा ? बालक बोला- किताब से पढ़कर.
    • श्रीनिवास रामानुजन आयंगर के जीवन पर निबंध
          • अध्यापक इस बात को जानकर आश्चर्यचकित रह गये की बालक ने इस सूत्र का ज्ञान किसी बड़ी कक्षा की पुस्तक को पढ़कर किया है. गणित की यह विलक्षण प्रतिभा श्रीनिवास रामानुजन आयंगर थे. जिन्होंने सिद्ध कर दिया की गणित एक रोचक विषय है जिसका खेल-खेल में अध्ययन किया जा सकता है.
          • श्रीनिवास रामानुजन आयंगर का जन्म तमिलनाडु के इरोड गांव में 22 दिसम्बर सन 1887 ईसवी को एक साधारण परिवार में हुआ. बाल्यकाल से ही रामानुजन की गणित में विशेष रूचि थी. वे गणित को खेल मानकर संख्याओ से खेलते रहते. मैजिक वर्ग बनाना उनका प्रिय शौक था. रामानुजन की गणित में विलक्षण प्रतिभा को देखकर अध्यापको को यह विश्वास हो गया की वे एक दिन गणित में विशेष कार्य करेंगे.
          • गणित में विशेष रूचि के कारण रामानुजन बड़ी कक्षाओं की गणित की किताबे भी मांग कर पढ़ लेते थे. वह स्लेट पर प्रश्नों को हल किया करते थे. ऐसा इसलिए करते थे जिससे काँपी का खर्च बच जाये.
          • रामानुजन जब हाईस्कूल में पढ़ रहे थे तो एक हितैषी ने उन्हें ‘जार्जशुब्रिज’ की उच्च गणित की एक पुस्तक उपहार स्वरूप भेंट की. रामानुजन रात-दिन उस पुस्तक को पढने में रहते.
          • 16 वर्ष की आयु में रामानुजन ने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की. उन्हें छात्रवृति मिलने लगी. गणित को अन्य विषयों की अपेक्षा अधिक समय देने के कारण वह इंटर प्रथम वर्ष की परीक्षा में अनुतीर्ण हो गये जिस कारण उन्हें छात्रवृति मिलना बंद हो गयी. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. अतः उन्होंने प्राइवेट परीक्षा दी किन्तु वे असफल रहे. उन्होंने असफलता से हार नहीं मानी और घर पर रहकर ही गणित पर मौलिक शोध करने लगे.
          • इसी बीच रामानुजन का विवाह हो गया. वह जीविकोपार्जन के लिए नौकरी तलाशने लगे. बड़ी मुश्किल से ‘मद्रास ट्रस्ट पोर्ट’ के दफ्तर में उन्हें क्लर्क की नौकरी मिल गयी. दफ्तर में मध्यावकाश के समय जब उनके साथी जलपान के लिए बाहर चले जाते तब भी वे अपनी सीट पर बैठे गणित के प्रश्न हल करते रहते.
          • Also Read: महर्षि वाल्मीकि की जीवनी
          • एक दिन उनके कार्यालय के अधिकारी ने उन्हें देख लिया. पूछताछ करने पर पता चला की रामानुजन गणित के कुछ सूत्र लिख रहे है. उनकी मेज की दराज खोलने पर ऐसे तमाम पन्ने मिले जो गणित के सूत्रों से भरे पड़े थे.
          • अधिकारी ने उन सूत्रों को पढ़कर स्वयं को धिक्कारा ” क्या यह प्रतिभाशाली युवक क्लर्क की कुर्सी पर बैठने लायक है” ? उसने रामानुजन के उन पन्नो को इंग्लैंड के महान गणितज्ञ प्रोफ़ेसर जी. एच. हार्डी के पास भेज दिया. प्रो. हार्डी उन पन्नो को देखकर अत्यंत प्रभावित हुए और इस नतीजे पर पहुंचे की रामानुजन जैसी प्रतिभा को अँधेरे से बाहर निकालना ही चाहिए. उन्होंने प्रयास करके रामानुजन को इंग्लैंड बुलाया और बड़े-बड़े गणितज्ञो से उनका परिचय कराया.
          • शीघ्र ही रामानुजन के कुछ शोधपत्र वहां की पत्र-पत्रिकाओ में प्रकाशित हुए. जिन्हें पढ़कर पाश्चात्य जगत के विद्वान् आश्चर्यचकित रह गये. प्रो. हार्डी ने महसूस किया कि रामानुजन का गणित के कुछ क्षेत्रो में पूर्ण अधिकार है. लेकिन कुछ की कम जानकारी है. उन्हें कम जानकारी वाली चीजे पढ़ाने का उत्तरदायित्व प्रो. हार्डी ने स्वयं ले लिया. हार्डी ने जितना रामानुजन को पढाया उससे ज्यादा रामानुजन से सीखा भी.
          • प्रो. हार्डी ने एक जगह लिखा है- ” मैंने रामानुजन को पढ़ाने की कोशिश की और किसी हद तक इसमें सफल भी हुआ लेकिन रामानुजन को मैंने जितना सीखाया उससे ज्यादा उनसे सीखा भी.
          • रामानुजन इंग्लैंड में रहते हुए भी खान-पान, आचार-विचार और व्यवहार में पुर्णतः भारतीय बने रहे. गणित के क्षेत्र में निरंतर शोध कार्यो से उनकी प्रतिष्ठा लगातार बढती गयी. इंग्लैंड की प्रसिद्ध संस्था ‘रायल सोसाइटी’ जो वैज्ञानिक शोधो को प्रोत्साहित करती थी. इस संस्था ने वर्ष सन 1918 में रामानुजन को अपना फेलो (सम्मानित सदस्य) बनाकर सम्मानित किया. सम्पूर्ण एशिया में इस सम्मान से सम्मानित होने वाले वे पहले व्यक्ति थे.
          • निरंतर मानसिक श्रम और खानपान में लापरवाही से उनका स्वास्थ्य ख़राब रहने लगा. बीमारी की हालत में भी वह गणितीय सूत्रों से खेलते रहे. आखिर रोगी शरीर कब तक चलता. इसलिए वे स्वदेश लौट आये. 26 अप्रैल 1920 को 33 वर्ष की अल्प आयु में ही स्वर्ग सिधार गये.
          • उनके निधन पर प्रो. हार्डी ने कहा था- ” आज हमारे बीच से अमूल्य हीरा खो गया, हम सब देख चुके है की रामानुजन से पूर्व संसार में किसी भी व्यक्ति द्वारा इतनी कम आयु में गणित जैसे जटिल समझे जाने वाले विषय पर इतनी अधिक खोज नहीं की गयी है ”.
          • वास्तव में रामानुजन ने इतने कम उम्र में गणित में जो योगदान दिया वह अभूतपूर्व है. ऐसे महान गणितज्ञ पर हम सब भारतीयों को गर्व होना चाहिए.
          • Read Post: ज्योतिष वैज्ञानिक वराहमिहिर की जीवनी 
          • दोस्तों ! रामानुजन का जीवन हमें यह सीख देता है की कभी भी जीवन में हार मत मानो और लगातार अपने काम में जुटे रहो. आपको सफलता जरुर मिलेगी. अगर कभी भी लाइफ में असफलता मिलती है तो उससे मत घबराओ बल्कि उस असफलता से सीखो और आगे बढ़ते रहो. एक दिन आपको जरुर अपने जीवन में सफलता हासिल होगी.
          • मुझे उम्मीद है की आपको ये Article जरूर पसंद आया होगा.
          • Read More Biography-: जमशेदजी टाटा की प्रेरणादायक जीवनी अबुल कलाम आजाद की प्रेरणादायक जीवनी
          • tag- about Ramanujan in hindi, Srinivasa Ramanujan ke bare me, ramanujan iyengar par nibandh, all information for Srinivasa Ramanujan in hindi, Ramanujan ki jivani, Srinivasa Ramanujan ka jeevan parichay, Ramanujan history in hindi
          • निवेदन- आपको Srinivasa Ramanujan life essay in hindi कैसा लगा हमे अपने कमेन्ट के माध्यम से जरूर बताये क्योंकि आपका एक Comment हमें और बेहतर लिखने के लिए प्रोत्साहित करेगा और हमारा FB LIKE BOX को जरूर LIKE करे.

Srinivasa Ramanujan biography in hindi

मद्रास प्रान्त के तंजौर जिले के इरोड नामक छोटे से गांव के स्कूल की घटना है. प्रारम्भिक कक्षा के अध्यापक कक्षा में आये. उन्होंने विद्यार्थियों को कार्य दिया- ” आधा घंटे में एक से सौ तक की सब संख्याओ का जोड़ निकालकर मुझे दिखाइए. ” सारे बच्चे सवाल हल करने में लग गये. दस मिनट भी नहीं बीते होंगे की सात वर्ष का एक विद्यार्थी सवाल हल कर गुरूजी से जाँच कराने ले आया.

 

गुरूजी ने सवालों को जांचा और उत्तर सही पाया. शिक्षक यह देखकर हैरान रह गये की बालक ने सवाल हल करने में जिस सूत्र का प्रयोग किया है, उसका ज्ञान केवल उच्च कक्षा के विद्यार्थी को ही हो सकता है.
अध्यापक ने बालक से पूछा- बेटा, तुमने यह सूत्र कहाँ से सीखा ? बालक बोला- किताब से पढ़कर.

 

श्रीनिवास रामानुजन आयंगर

       श्रीनिवास रामानुजन आयंगर

श्रीनिवास रामानुजन आयंगर के जीवन पर निबंध

अध्यापक इस बात को जानकर आश्चर्यचकित रह गये की बालक ने इस सूत्र का ज्ञान किसी बड़ी कक्षा की पुस्तक को पढ़कर किया है. गणित की यह विलक्षण प्रतिभा श्रीनिवास रामानुजन आयंगर थे. जिन्होंने सिद्ध कर दिया की गणित एक रोचक विषय है जिसका खेल-खेल में अध्ययन किया जा सकता है.

 

श्रीनिवास रामानुजन आयंगर का जन्म तमिलनाडु के इरोड गांव में 22 दिसम्बर सन 1887 ईसवी को एक साधारण परिवार में हुआ. बाल्यकाल से ही रामानुजन की गणित में विशेष रूचि थी. वे गणित को खेल मानकर संख्याओ से खेलते रहते. मैजिक वर्ग बनाना उनका प्रिय शौक था. रामानुजन की गणित में विलक्षण प्रतिभा को देखकर अध्यापको को यह विश्वास हो गया की वे एक दिन गणित में विशेष कार्य करेंगे.

 

गणित में विशेष रूचि के कारण रामानुजन बड़ी कक्षाओं की गणित की किताबे भी मांग कर पढ़ लेते थे. वह स्लेट पर प्रश्नों को हल किया करते थे. ऐसा इसलिए करते थे जिससे काँपी का खर्च बच जाये.

 

Read Post: प्रोफ़ेसर बीरबल साहनी की जीवनी 

रामानुजन जब हाईस्कूल में पढ़ रहे थे तो एक हितैषी ने उन्हें ‘जार्जशुब्रिज’ की उच्च गणित की एक पुस्तक उपहार स्वरूप भेंट की. रामानुजन रात-दिन उस पुस्तक को पढने में रहते.

 

 

16 वर्ष की आयु में रामानुजन ने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की. उन्हें छात्रवृति मिलने लगी. गणित को अन्य विषयों की अपेक्षा अधिक समय देने के कारण वह इंटर प्रथम वर्ष की परीक्षा में अनुतीर्ण हो गये जिस कारण उन्हें छात्रवृति मिलना बंद हो गयी. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. अतः उन्होंने प्राइवेट परीक्षा दी किन्तु वे असफल रहे. उन्होंने असफलता से हार नहीं मानी और घर पर रहकर ही गणित पर मौलिक शोध करने लगे.

 

 

इसी बीच रामानुजन का विवाह हो गया. वह जीविकोपार्जन के लिए नौकरी तलाशने लगे. बड़ी मुश्किल से ‘मद्रास ट्रस्ट पोर्ट’ के दफ्तर में उन्हें क्लर्क की नौकरी मिल गयी. दफ्तर में मध्यावकाश के समय जब उनके साथी जलपान के लिए बाहर चले जाते तब भी वे अपनी सीट पर बैठे गणित के प्रश्न हल करते रहते.

 

Also Read: महर्षि वाल्मीकि की जीवनी

 

एक दिन उनके कार्यालय के अधिकारी ने उन्हें देख लिया. पूछताछ करने पर पता चला की रामानुजन गणित के कुछ सूत्र लिख रहे है. उनकी मेज की दराज खोलने पर ऐसे तमाम पन्ने मिले जो गणित के सूत्रों से भरे पड़े थे.

 

अधिकारी ने उन सूत्रों को पढ़कर स्वयं को धिक्कारा ” क्या यह प्रतिभाशाली युवक क्लर्क की कुर्सी पर बैठने लायक है” ? उसने रामानुजन के उन पन्नो को इंग्लैंड के महान गणितज्ञ प्रोफ़ेसर जी. एच. हार्डी के पास भेज दिया. प्रो. हार्डी उन पन्नो को देखकर अत्यंत प्रभावित हुए और इस नतीजे पर पहुंचे की रामानुजन जैसी प्रतिभा को अँधेरे से बाहर निकालना ही चाहिए. उन्होंने प्रयास करके रामानुजन को इंग्लैंड बुलाया और बड़े-बड़े गणितज्ञो से उनका परिचय कराया.

 

शीघ्र ही रामानुजन के कुछ शोधपत्र वहां की पत्र-पत्रिकाओ में प्रकाशित हुए. जिन्हें पढ़कर पाश्चात्य जगत के विद्वान् आश्चर्यचकित रह गये. प्रो. हार्डी ने महसूस किया कि रामानुजन का गणित के कुछ क्षेत्रो में पूर्ण अधिकार है. लेकिन कुछ की कम जानकारी है. उन्हें कम जानकारी वाली चीजे पढ़ाने का उत्तरदायित्व प्रो. हार्डी ने स्वयं ले लिया. हार्डी ने जितना रामानुजन को पढाया उससे ज्यादा रामानुजन से सीखा भी.

 

प्रो. हार्डी ने एक जगह लिखा है- ” मैंने रामानुजन को पढ़ाने की कोशिश की और किसी हद तक इसमें सफल भी हुआ लेकिन रामानुजन को मैंने जितना सीखाया उससे ज्यादा उनसे सीखा भी.

Read Post: जगदीश चन्द्र बसु की जीवनी 

 

रामानुजन इंग्लैंड में रहते हुए भी खान-पान, आचार-विचार और व्यवहार में पुर्णतः भारतीय बने रहे. गणित के क्षेत्र में निरंतर शोध कार्यो से उनकी प्रतिष्ठा लगातार बढती गयी. इंग्लैंड की प्रसिद्ध संस्था ‘रायल सोसाइटी’ जो वैज्ञानिक शोधो को प्रोत्साहित करती थी. इस संस्था ने वर्ष सन 1918 में रामानुजन को अपना फेलो (सम्मानित सदस्य) बनाकर सम्मानित किया. सम्पूर्ण एशिया में इस सम्मान से सम्मानित होने वाले वे पहले व्यक्ति थे.

 

 

निरंतर मानसिक श्रम और खानपान में लापरवाही से उनका स्वास्थ्य ख़राब रहने लगा. बीमारी की हालत में भी वह गणितीय सूत्रों से खेलते रहे. आखिर रोगी शरीर कब तक चलता. इसलिए वे स्वदेश लौट आये. 26 अप्रैल 1920 को 33 वर्ष की अल्प आयु में ही स्वर्ग सिधार गये.

 

 

उनके निधन पर प्रो. हार्डी ने कहा था- ” आज हमारे बीच से अमूल्य हीरा खो गया, हम सब देख चुके है की रामानुजन से पूर्व संसार में किसी भी व्यक्ति द्वारा इतनी कम आयु में गणित जैसे जटिल समझे जाने वाले विषय पर इतनी अधिक खोज नहीं की गयी है ”.
वास्तव में रामानुजन ने इतने कम उम्र में गणित में जो योगदान दिया वह अभूतपूर्व है. ऐसे महान गणितज्ञ पर हम सब भारतीयों को गर्व होना चाहिए.

 

Read Post: ज्योतिष वैज्ञानिक वराहमिहिर की जीवनी 

 

दोस्तों ! रामानुजन का जीवन हमें यह सीख देता है की कभी भी जीवन में हार मत मानो और लगातार अपने काम में जुटे रहो. आपको सफलता जरुर मिलेगी. अगर कभी भी लाइफ में असफलता मिलती है तो उससे मत घबराओ बल्कि उस असफलता से सीखो और आगे बढ़ते रहो. एक दिन आपको जरुर अपने जीवन में सफलता हासिल होगी.

 

मुझे उम्मीद है की आपको ये Article जरूर पसंद आया होगा.

 

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Comments

  1. Surendra Mahara says

    December 22, 2016 at 5:11 pm

    yes vikash ramanujan is great.

  2. Vikash lal says

    December 22, 2016 at 5:09 pm

    Ramanujan is great mathteacher.

  3. Surendra Mahara says

    December 18, 2016 at 9:01 am

    Hi shivam,
    please copy this article and past there you want to show. i sent you this article on email.

  4. shivam pandey says

    December 17, 2016 at 8:35 pm

    how can i download this…..???

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