गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर के जीवन पर निबन्ध
‘मेरा घर सब जगह है,मैं इसे उत्सुकता से खोज रहा हूँ. मेरा
देश भी सब जगह है,इसे मैं जीतने के लिए लडूंगा.
प्रत्येक घर में मेरा निकटतम सम्बन्धी रहता है,
मैं उसे हर स्थान पर तलाश करता हूँ.
-गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर

Ravindra Nath Taigor
Ravindra nath Taigor biography in hindi
रविन्द्र नाथ टैगोर का जन्म 7 मई सन 1861 को कोलकाता में हुआ था.इनके पिता का नाम श्री देवेन्द्रनाथ टैगोर व माता शारदा देवी थी.रविन्द्र नाथ टैगोर को घर के लोग प्यार से ‘रवि’ कहकर पुकारते थे.
उन दिनों बच्चो के लिए मनोरंजन के कोई विशेष साधन जैसे-फिल्मे,टेलीविज़न,विडियो गेम आदि नहीं थे.इसलिए नन्हा रवि अपनी कल्पना की दुनिया में ही मस्त रहता जिसमे उसके मित्र,राजकुमार,जादुगरनिया,परियां व राक्षश होते.प्रकृति से रवि को इतना प्रेम था कि सुबह उठते ही वह बगीचे की ओर भागता और ओस से गीली हरी घास का स्पर्श करता.बगीचे में पत्तो पर पड़ती सूर्य की पहली किरण और ताजा खिले फूलो की महक उसका मन मोह लेती.
सन 1868 को रवि को विद्यालय में प्रवेश दिलाया गया पर उसे वहा का परिवेश अच्छा नहीं लगा.विद्यालय उसे कारागार की तरह लगता क्योंकि वहा घर की तरह खिड़की से बाहर नहीं देख सकते थे और पाठ उबाऊ होते.पाठ तैयार न करके आने की सजा थी सिर पर ढेर साडी स्लेटें रखकर बेंच पर खड़ा होना या डंडे की मार सहना.नतीजा बालक रवि उस विद्यालय में नहीं टिक पाया.उन्हें दुसरे स्कूल में एडमिशन दिलाया गया और रवि के बड़े भाई हेमेन्द्र ने रवि को पढ़ाने की जिम्मेदारी खुद ले ली.
उन्होंने कुश्ती,चित्रकारी,व्यायाम और विज्ञान में विशेष रूचि लेना Start कर दिया.कविता और संगीत ये दोनों ही गुण रविन्द्र नाथ टैगोर में पहले से ही मौजूद थे.रविन्द्र नाथ टैगोर ने बड़े होकर लिखा- “मुझे ऐसा कोई समय याद नहीं जब मैं गा नहीं सका.”
रविन्द्र के माता-पिता ने जब देखा की रविन्द्र छोटी उम्र में ही कविता रचने लगा है तो वे बहुत खुश हुए.17 वर्ष की उम्र में रविन्द्र को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उनके परिवार ने इंग्लैंड भेज दिया.वे वहा से चित्रकारी और लेखन में और अधिक निपुण होकर भारत लौटे.
फिर सन 1883 में रविन्द्र नाथ टैगोर का विवाह मृणालिनी देवी से हुआ.रविन्द्र नाथ के पिताजी ने उनसे कहा-रवि,मैं सोचता हूँ की अब तुम अपनी जमीदारी संभालने योग्य हो गये हो तो तुम्हारा क्या विचार है ? रविन्द्र नाथ टैगोर यह सुनकर बहुत खुश हो गये क्योंकि वे हमेशा ही प्रकृति के बीच रहना पसंद करते थे इसलिए वे अपने गाँव चले गये.यह उनके लाइफ का पहला अवसर था जब वे ग्रामीण जनता के इतना अधिक निकट आये.
उन्होंने अनुभव किया कि भारत की प्रगति के लिए देहातो का विकास किया जाना आवश्यक है.उन्होंने महसूस किया की ग्रामीण जनता की समस्याओ को हल करने के लिए उनकी समस्याओ की पूरी-पूरी जानकारी होना और निरंतर प्रयास किया जाना आवश्यक है.
रविन्द्र नाथ टैगोर अपने काश्तकारो से इतना प्रेम करते थे की वे कहा करते थे “हमने पैगम्बर को तो नहीं देखा लेकिन अपने बाबू मोशाय को देखा है”.
रविंद्रनाथ ने पत्नी से पूछा “, हमारे पास शान्तिनिकेतन (वेस्ट बंगाल में बोलपुर के निकट) में कुछ भूमि है.वहा पर स्कूल खोलने के सम्बन्ध में तुम्हारे क्या विचार है.
इसके बाद मृणालिनी ने टैगोर को थोडा छेड़ते हुआ कहा-लेकिन मैंने तो सुना है की आपने तो कभी स्कूल में पढना पसंद ही नहीं किया.
तब टैगोर बोले-हाँ सच है.लेकिन मैंने ऐसे स्कूल को खोलने की योजना बनायीं है जो चहार दीवारो से घिरा नहीं होगा.
वास्तव में उन्होंने जिस प्रकार से स्कूल की कल्पना की उसे साकार भी किया.आज शान्तिनिकेतन के रूप में इस प्रकार का स्कूल हमारे सामने है. इस विद्यालय में कक्षाएं खुले वातावरण में वृक्षों के नीचे लगती है. इस स्कूल की स्थापना में रविन्द्रनाथ को अत्यंत संघर्ष झेलने पड़े लेकिन वे खुश थे क्योंकि यह बहुत शुभ कार्य था.
शान्तिनिकेतन की स्थापना के पश्चात कई दुखद घटनाओ का ताँता लग गया.पहले रविंद्रनाथ की पत्नी,फिर पुत्री तथा पिता का निधन हो गया और उसके कुछ दिनों बाद उनका छोटा बेटा भी चल बसा.रविंद्रनाथ ने अपने दुःख को ह्रदय की गहराइयों से दबाकर अपना सारा ध्यान स्कूल चलाने में लगा दिया.
उन्होंने स्कूल में ऐसा शैक्षिक माहौल बनाया जिसमे अध्यापक और विद्यार्थी एक साथ रहते और सभी मिल-जुलकर कार्य करते.इस स्कूल का मुख्य उद्देश्य था शिक्षा को जीवन का अभिन्न अंग बनाना.शान्तिनिकेतन बाद में ‘विश्वभारती विश्वविद्यालय’ के नाम से विख्यात हुआ.
28 दिसम्बर 1921 को विश्वभारती विश्वविद्यालय देश को समर्पित करते हुए रविंद्रनाथ टैगोर ने कहा-यह एक ऐसा स्थान है जहा सम्पूर्ण विश्व एक ही घोंसले में घर बनाता है.
रविन्द्र नाथ टैगोर इतने से संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने भारत की समृद्धि के लिए आपसी भाईचारे व शांति को आवश्यक बताया.उन्होंने गांव की उन्नति के लिए खेती-बारी व पशुपालन के उन्नत तरीको को अपनाने व दस्तकारी के विकास पर बल दिया.
रविन्द्र नाथ टैगोर की रचनात्मक प्रतिभा बहुमुखी थी.उनके चिंतन, विचारो,स्वपनों व आकांक्षाओ की अभिव्यक्ति उनकी कविताओ,कहानियो,उपन्यास,नाटको,गीतों और चित्रों में होती है.उनके गीतों में से एक-“आमार सोनार बांगला” बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत है और उन्ही का गीत-“जन गन मन अधिनायक जय हे” हमारा राष्ट्रगान है. रविन्द्र नाथ टैगोर के गीतों को’रविन्द्र संगीत’ के नाम से जाना जाता है.इन गीतों का भारतीय संगीत में विशिष्ट स्थान है.
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी रविन्द्र नाथ टैगोर के व्यक्तित्व से अत्यंत प्रभावित थे.रविन्द्र नाथ टैगोर ने गाँधी को ‘महात्मा’ कहा और गाँधी ने रविन्द्र नाथ टैगोर को ‘गुरुदेव’ की उपाधि दी.
रविन्द्र नाथ टैगोर को उनकी काव्यकृति ‘गीतांजलि’ के लिए सन 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला.यह सम्मान प्राप्त करने वाले वह प्रथम एशियाई व्यक्ति थे.इस पुरस्कार में मिली सारी धनराशि उन्होंने शान्तिनिकेतन में लगा दी.
सन 1915 में अंग्रेजो द्वारा उन्हें ‘सर’ की उपाधि दी गई.अप्रैल 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ.इस बर्बर हत्याकांड के विरोध में रविन्द्र नाथ टैगोर ने अंग्रेज सरकार द्वारा प्रदान की गई ‘सर’ की उपाधि का त्याग कर दिया.
रविन्द्र नाथ टैगोर मातृभाषा के प्रबल पक्षधर थे.उनका कहना था-जिस प्रकार माँ के दूध पर पलने वाला बच्चा अधिक स्वस्थ और बलवान होता है,वैसे ही मातृभाषा पढने से मन और मस्तिष्क अधिक मजबूत बनते है. समाज को अपने देश की महान विरासत की याद दिलाने के लिए रविन्द्रनाथ टैगोर ने भारतीय इतिहास की कीर्तिमय घटनाओ तथा प्रसिद्ध भारतीय व्यक्तियों के बारे में कविताएँ तथा कहानियां लिखी.इनमे से अनेक ‘कविताएँ कथाओ’ कहानी प्रकाशित हुई.
7 अगस्त सन 1941 को रविन्द्रनाथ टैगोर ने अंतिम साँस ली.उन्होंने समृद्ध व उत्कृष्ट जीवन जिया.उनके द्वारा लिखे अंतिम शब्द थे-
जब वह सत्य खोज लेता है.
कोई उसे वंचित नहीं कर सकता,
वह उसे अपने साथ ले जाता है
अपने निधि-कोष में
अपने अंतिम पुरस्कार के रूप में”.
रविन्द्रनाथ टैगोर को शत-शत नमन.
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Bhai is artical me mujhe 3 se 4question exam ke liye mil gaye. Jo ki kisi bhi exam me pucha ja sakata hai. Ak bat aur sir apne bahut hi kam shbdo me adhik jankari di hai thanks
आपका धन्यवाद आयुषी जी।
very impressive, like sagar in gagar…. ��