Kunti Verma Life History In Hindi
वन्दे मातरम् ! महात्मा गाँधी की जय !
स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है ! भारत माता की जय.
ये नारे लगाते हुए युवको का एक दल अल्मोड़ा नगर की पहाड़ी सड़क पर चल रहा था.जोश और उत्साह से भरे ये युवक नगर पालिका भवन पर तिरंगा फहराना चाहते थे. यह वह समय था जब भारत अंग्रेजो के अधीन था. वन्दे मातरम् कहने भर से किसी को भी जेल में बंद किया जा रहा था. इन युवको के साथ भी यही हुआ.
कुछ ही पलों में पुलिस वहां पहुँच गयी.डंडे बरसने लगे. एक युवक की तो रीढ़ की हड्डी ही टूट गयी और सबको जेल में डाल दिया गया. इस निर्मम मारपीट को एक महिला अपने घर की खिड़की से देख रही थी. निरपराध निहत्थे युवको पर यह अत्याचार देख कर उसका खून खौल उठा और मन ही मन उसने कुछ निश्चय किया.
दूसरे दिन उजाला होने से पहले ही अल्मोड़ा वासियों ने देखा की- अल्मोड़ा नगरपालिका के भवन पर तिरंगा झंडा लहरा रहा था. अंग्रेज सरकार के मुख पर एक भारतीय महिला का यह जोरदार तमाचा था और यह तमाचा मारा था एक महिला ने जिसका नाम था ‘कुंती वर्मा’ जिन्होंने कुछ महिलाओ की सहायता से अँधेरे ही जागकर नगरपालिका भवन पर तिरंगा फहरा दिया था. अंग्रेज अधिकारी तिलमिला उठे. उन्होंने कुंती वर्मा को गिरफ्तार कर लिया और तीन महीने की सजा देकर जेल में डाल दिया.
पर कुंती वर्मा घबराने वाली कहा थी और जेल से रिहा होने पर उन्होंने फिर घर-घर जाकर आजादी की अलख जगाने का काम शुरू कर दिया. विदेशी कपड़ो का बहिष्कार किया,उनकी होली जलाई और धरना दिया. जिस कारण इन्हें 6 महीने के लिए फिर जेल में डाल दिया गया और इस बार उन पर 50 रूपये का जुर्माना भी लगा.
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हल्द्वानी की एक सभा में इन्हें कांग्रेस का महिला प्रतिनिधि चुना गया. कुंती वर्मा का उत्साह अब और बढ़ गया. इन्होने गांव-गांव घूमकर महिलाओ को आजादी की लड़ाई के लिए संगठित करना शुरू किया. इन्होने 100 से अधिक महिलाओ का संगठन बनाया.यह सन 1930 की बात है.
कुंती वर्मा ने अपने संगठन के साथ नैनीताल में सचिवालय और राजभवन का घेराव किया. इसी कारण उन्हें फिर 6 महीने की सजा मिली पर उनका हौसला कभी नहीं टूटा और वह अपने जीवन के अंतिम समय तक आजादी की लड़ाई लडती रही.
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